1. बदलते लोग

दीवारों की दरारों से लोग हालात भांपने लगे,

आँखो में दिखती लाली से लोग जज्बात मापने लगे,

खुल कर मुस्कुराया जब कोई,

तब लोग उसकी मुस्कुराहट के

पीछे क्या राजहै ताकने लगे,

हर बार लोग तेरा इम्तिहान लेने लगे,

किसी के जीने-मरने से किसी को कोई

मतलब नही,

एक बार तू जीवन से छूटकर तो देख,

तुझे पता चलेगा तभी तेरी बुराई करने वाले भी,

तेरी तारीफ एक दूसरे से बाटने लगे,

एक पल भी जिसने तेरा हाथ ना पकड़ा,

जीवन से जब तू छुटा तो तेरे लिए अपने

कन्धो पर तुझे बारी-बारी बाटने लगे,

होड़ लग जायेगी तुझ से मिलने वालों की,

वो जो बहुत व्यस्थ है अपने काम काज में,

देख खेल किस्मत का,तेरे मरने के बाद वो

भी तेरे लिए सुखी लकड़ी छाँटने लगे,

लोगो का प्यार तुझे ऐसे ही पाना होगा,

सब मिलेगा तुझे,बस तुझे दुनिया से जाना होगा,

 

2. व्याकुल मन

अपनी अब तक कि यादें,मन मे हलचल मचाये।

शोरमचे कुछ ऐसा,बस अब मन मे ना रुक पाए।।

अपने मन की कलम से,करता हूँ प्रयास।

आँख खोल दे लेखनी,मिटे मन की प्यास।।

समंदर में जितना पानी,उतनी मेरे कलम की प्यास।

धरती जैसे पृष्ठ पर,निकले पूरी कलम की भड़ास।।

निकले जब भड़ास,कोई भी पास ना आवे।

कलम चले कुछ ऐसे जैसे बाढ़ में सब बह जावे ।।

कलम बडी मतवाली,इसे ऐसा हुनर है आवे।

इससे निकली बात जिसे समझानी उसे सब समझ आवे।।

3.  मर रही इंसानियत आजकल

खाली पड़ा है मय का प्याला आजकल।

ऐसा लगता है इसका भी मय से नाता टूट गया है।।

आसमाँ में उजाले की कुछ कमी सी है आजकल।

ऐसा लगता है कुछ सितारों का अपनो से साथ छूट गया है।।

आँखे देखियेएगा हँसने वालो की गौर से,वो भी लाल है आजकल।

ऐसा लगता है जैसे उनकी आँखो से आँशुओ का साथ छूट गया है।।

मंदिर में भी लोगो की भीड़ बहुत लगी है आजकल।

ऐसा लगता है जैसे इंसान का इंसान से विश्वास छूट गया है।।

माँ जैसा किसी को कहने वाले कहीं गायब है आजकल।

ऐसा लगता है जैसे अब उस माँ की रूह का शरीर से साथ छूट गया है।।

चंद रुपयों की नुमाइश करते है सफेदपोश लोग आजकल।

ऐसा लगता है जैसे इंसान से अब इंसानियत का साथ छूट गया है।।

बहुत मगरूर हो गए है कुछ शरीफ गिरगिट जैसे लोग आजकल।

ऐसा लगता है जैसे उन्हें ये नही पता कि सिकंदर भी अपनी जान से छूट गया है।।

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