1. नारी जीवन-सम्मान
नारी- सम्मान   निराकृत से,
दुःखमय समाज हो जाता है।
नारी को सुख पहुंचाने से,
सुखमय समाज हो जाता है।।
इतिहास प्रत्यक्षित करने से,
यह विदित हमें हो जाता है।
जब-जब नारी अपमान बढ़ा,
उठता समाज गिर जाता है।।
निज देश में नारी की महिमा,
सज्जित थी पुरातन कालों में।
गायत्री, सावित्री अरु अनुसूया,
पूजित   थीं  उन  समयों में ।।
नारी    की  पूजा   होने  से,
उस काल की महिमा भारी थी।
सुखमय   समीर   चहुँ ओर बहे,
किंचिद     न     दुश्वारी   थी ।।
मध्य-काल   के  आते  ही,
नारी-जीवन अपमान बढ़ा।
जीवन -सम्मान  बचाने को,
सतियों   का  है ग्राफ चढ़ा।।
इनके जीवन की धारा को,
हर तरह से पहुँची पीड़ा थी।
फिर    भी  अपने बलबूते से,
रजिया, दुर्गा   हुंकार  उठीं।।
मीरा   के  भक्ती तानों से,
दुर्गा    के  बलिदानों से।
नारी -जागरण की डंका को,
कोई रोक सका न बजने से।।
ब्रिटिश -काल    में नारी ने,
अपनी शक्ति थी दिखलायी।
पुरुषों के समान नारियाँ भी,
रणक्षेत्रों    में   उतर  आईं।।
लक्ष्मी बाई,  विजय लक्ष्मी,
अरुणा आसफ अब बोल उठीं।
इनके     शक्ति   प्रदर्शन से,
अंग्रेजों  की  सत्ता डोल उठी।।
नारी महिमा का यह बखान,
जो  भी    है   सो  कम है।
हर क्षेत्र में नारियों का परचम,
लहराया  अब   भारत  में है।।
इंदिरा, बेदी,   मदर टेरेसा,
संधू की अब है शान बढ़ी।
एवरेस्ट विजेता बनी बछेन्द्री,
जज बनी फातिमा बीबी थीं।।
नारियाँ   अपनी     प्रतिभा से,
भारत  का मान   बढ़ा हैं रहीं।
मेधा पाटेकर  की सामाजिकता,
विश्व में आज भी   गूँज रही।।
मिशन शक्ति की ज्योति अब,
चहुँ   दिसि    प्रसरित  होय।
नारी -जीवन      सम्मान  से,
भारत    की    उन्नति   होय।।
2. माँ का महात्म्य
माँ के ममत्व की रसधारा,
                                                        जीवन को सफल बनाती है।
‘माँ’शब्द लबों पर आते ही,
हर कष्ट शमित हो जाती है।
देव, दनुज, गंधर्व आदि,
सब माँ का ही गुणगान किये ।
माँ की ममता के खातिर ही,
इह लोक में देव भी वास किये।।
सुत जनन की चाहत में माता,
अति दारुण कष्ट सहन करती।
परिवारी पीड़ा का रौद्र रूप,
वह गर्भागत हित में सह लेती।
गोदी में लाल जो लसे व हँसे,
सो धात्री धन्य हो जाती है।
भूखी रहकर भी अम्बा,
निज सुत का भूख मिटाती है।।
नौ माह गर्भ में धारण कर,
जिस सुत को माँ ने जन्म दिया।
जिस तनय के जीवन कष्टों को,
मन मुदित भाव से माँ ने लिया।
बेटा भूखा या प्यासा है,
इस बात को सोचे कौन हिया।
दो-चार कदम के सब रिश्ते,
माँ प्रेम करे जब तक है जिया।।
जिस सुत-तनया के जनन हेतु,
माँ असीम दुःख सहती है।
वे बेटे और बेटियां भी,
क्या माँ को सुख पहुंचाती हैं।
माता अति मानती बेटे को,
तनुजा तात की दुलारी है।
मौके पर सब रिश्ते बिगरे,
अब जीवन की लाचारी है।।
परिवारी जीवन का राज-रहस्य,
बिखरे रिश्तों ने प्रत्यक्ष किया।
पत्नी प्रेम में बेटों ने,
जीवन-दात्री को अलग किया।
बेटी माँ से क्या है लेती,
बेटा माँ को है क्या देता?
बेटे और बेटियों में,
क्यों अन्तर रखता है इंशा ।।
निज मातु-पिता की सेवा कर,
बेटियां धन्य हो जाती हैं।
पढ़ लिखकर आज बेटियां भी,
दो कुल को रोशन करती हैं।
अति प्यार-दुलार में पला बढ़ा,
बेटा जब व्याहा जाता है।
पत्नी के प्रेम-परीक्षा में,
माँ-बाप को सहज ठुकराता है।।
इक माँ के जीवन की करुण-कथा,
सुन लो मैं तुम्हें सुनाता हूँ।
बेटे ने माँ पर क्या ज़ुल्म किया,
उस व्यथा-कथा को बताता हूँ।
जिस बेटे को अति उम्मीदों से,
विधवा माँ ने पाला -पोसा।
उस माँ को अति निर्ममता से,
बेटे ने खुद से अलग किया।।
दुःख भरी कहानी अम्मा की,
सुन तनया दौड़ी आती है।
बेटे से उपेक्षित माता को,
पति गृह अपने ले जाती है ।
माँ के जीवन की यह घटना,
काल चक्र का विषय बना।
जिस बेटे ने माँ को अलग किया,
निज सुत ने उसको दूर किया।।
सुख-दुःख मिश्रित इस जीवन में,
हे मानव!किंचिद दम्भ न कर।
इस लोक में तुम्हें जो लाया है,
उसकी सेवा में शर्म न कर।
करके सुकर्म तुम धन्य बनो,
वरना तुम पछताओगे ।
प्रभु के विधान पर ध्यान रहे,
जो बोओगे सो काटोगे।।
 सुरेश लाल श्रीवास्तव
   प्रधानाचार्य
         राजकीय इण्टर कालेज
       अकबरपुर, अम्बेडकरनगर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *