दिल्ली महिला आयोग का गठन वर्ष 1994 में हुआ था। दिल्ली सरकार द्वारा पारित दिल्ली महिला आयोग अधिनियम -1994 के अंतर्गत गठित आयोग को पिछले 26 सालों से राजधानी में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ उनके सम्मान व सशक्तिकरण के लिए नीति निर्माण और उनके क्रियान्वयन की दिशा में अग्रसर है। बावजूद इसके क्या दिल्ली की महिलाएं आयोग के कार्यप्रणाली व नीति से अवगत है ? जब यह सवाल किया जाता है तो जो जवाब मिलता है वह मन को भाता नहीं है। जी हां, दिल्ली जैसी मेट्रो सिटी में यदि महिलाएं कहें कि वो महिला आयोग से अनिभिज्ञ है तो हैरानी और चिंता दोनों ही होना लाजमी है। यह चिंता और ज्यादा तब बढ़ जाती है जब यह ज्ञात होता है कि दिल्ली महिला आयोग प्रदेश में पिछले 26 सालों से सक्रिय है और काम कर रहा है। 26 साल की लंबी अवधि के बावजूद यदि दिल्ली जैसे महानगर में महिलाओं को महिला आयोग के संबंध में जानकारी का अभाव हो तो स्थिति चिंताजनक है। इस विषय में यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि दिल्ली महिला आयोग ने अपने गठन के छह साल बाद वर्ष 2000 में हेल्पलाइन सेवा की शुरुआत की थी। यानी महिला आयोग अपने गठन के छह साल बाद हेल्पलाइन के माध्यम से महिलाओं से जुड़ा कमोबेश यही रफतार है जिसके परिणामस्वरूप राजधानी की महिलाएं उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करने वाले दिल्ली महिला आयोग से ही अनिभिज्ञ है और उनके बीच इसके प्रचार-प्रसार की जरूरत महसूस की जा रही है।

साहित्य समीक्षा: इस अध्ययन में दिल्ली महिला आयोग की उपलब्धता व इसके प्रति आमजन के बीच जागरूकता पर विशेष ध्यान दिया गया है इसलिए आयोग के गठन से लेकर प्रचार-प्रसार के संबंध में किए गए विभिन्न प्रयासों के संबंध में विभिन्न माध्यमों से अध्ययन के लिए आवश्यक जानकारियां एकत्र की गई। चूंकि अध्ययन के केंद्र में दिल्ली महिला आयोग है इसलिए इससे संबंधित विभिन्न सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाओं के स्तर पर भी किए जा रहे प्रयासों की समीक्षा कर तथ्य जुटाने का प्रयास किया गया है। इस अध्ययन में स्थानीय समाचार पत्रों और उनमें दिल्ली महिला आयोग के द्वारा किए जा रहे कार्यों की सूचना विज्ञापन अथवा समाचार आदि का भी विश्लेषण किया गया।

संभावनाएं: दिल्ली महिला आयोग के प्रति जागरूकता के विषय में बात करें तो पिछले करीब छह साल से इस दिशा में काफी बदलाव देखने को मिले हैं बावजूद इसके अभी भी दिल्ली महिला आयोग की कार्यप्रणाली, नीतियों और इसके माध्यम से महिलाओं को मिलने वाली राहतों की जानकारी के संबंध में जमीन स्तर पर स्थिति उतनी बेहतर नहीं है जितनी की दिल्ली जैसी मेट्रो सिटी में होनी चाहिए थी। 26 साल पहले शुरू इस संस्था के प्रति आमजन में जागरूकता का स्तर संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। जहां तक बार साक्षरता की है तो राजधानी दिल्ली में हर 10 में से 7 लड़कियां साक्षर हैं लेकिन फिर भी वह अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बने दिल्ली महिला आयोग की कार्यप्रणाली और उससे मिलने वाली राहतों से अनभिज्ञ हैं। संभव है कि यही कारण है कि महिलाएं अपने साथ होने वाले उत्पीड़न की स्थिति में दिल्ली महिला आयोग का दरवाजा खटखटाने के बजाय दिल्ली पुलिस का रुख करती है। जागरूकता की बात करें तो महिलाओं को अच्छी तरह से ज्ञात ही नहीं है कि वो किस तरह के अपराधों के लिए दिल्ली महिला आयोग की मदद ले सकती हैं। इस शोध कार्य के माध्यम से हमने महिलाओं के बीच जाकर वस्तुस्थिति की पड़ताल कर उन कारकों को जानने का प्रयास किया, जिनकी मदद से दिल्ली महिला आयोग के प्रति जागरूकता बढे़ और राजधानी की महिलाओं को इसके द्वारा किए जा रहे प्रयासों का शत प्रतिशत लाभ सुनिश्चित हो।

शोध विधि: इस शोध के लिए मुख्यतः अन्तरवस्तु विश्लेषण विधि का उपयोग किया गया है। इसके अलावा कुछ स्तर पर इस क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवकों व संस्थाओं से भी संवाद स्थापित किया गया ताकि उपलबध सामग्री की प्रमाणिकता का आंकलन हो सके और विषय के करीब पहुंचकर निष्कर्ष को प्राप्त किया जा सके।

परिचर्चा: दिल्ली महिला आयोग के विषय में क्या महिला जानती है ? सुनकर सवाल थोड़ा से अटपटा लगे लेकिन देश की राजधानी में ऐसा सवाल भी जगह बनाता है इससे स्पष्ट है कि हालात उतने बेहतर तो नहीं है जितने की उम्मीद की जाती है। अब इस सवाल की जवाब जानेंगे तो ज्ञात होता कि आखिर क्यों इसकी आवश्यकता है ? इस सवाल को लेकर दिल्ली के विभिन्न इलाकों में 140 महिलाओं से बात की गई हैं। जिसमें ज्ञात हुआ कि 18.6 फीसद महिलाओं को महिला आयोग के विषय में पता ही नहीं है। जबकि 81.4 फीसद ने कहा कि उन्हें महिला आयोग के विषय में जानकारी है। इसके पश्चात् जब महिलाओं से पूछा गया कि किसी समस्या में आप किसे संपर्क करेंगे तो मात्र 11.4 फीसद ने कहा कि वो महिला आयोग से संपर्क करेगी जबकि 25.7 फीसद का कहना था कि वो दिल्ली पुलिस से राहत के लिए संपर्क करेगी। इस सर्वेक्षण में ज्ञात हुआ कि 44.3 फीसद महिला किसी भी आपात स्थिति में दिल्ली पुलिस के साथ-साथ दिल्ली महिला आयोग से भी मदद के लिए गुहार लगायेगी। इसी तरह 18.6 फीसद ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और कहा कि हम कह नहीं सकती है ऐसी किसी स्थिति में वो क्या करेंगी।

इस तरह से शोध के माध्यम से हमें ज्ञात हुआ कि दिल्ली महिला आयोग करीब 26 साल का लंबा समय गुजरने के बाद भी दिल्ली की महिलाओं के बीच उस तरह से अपनी जगह नहीं बना पाया है कि जैसी की होनी चाहिए। महिलाएं आज भी इसकी कार्यप्रणाली से अवगत नहीं है और उनकी नजर में महिला आयोग व दिल्ली पुलिस में से किसी एक का चुनाव करना होगा तो दिल्ली पुलिस का चयन करने वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा हैं। इसके पीछे कई कारण है और इस दिशा में दिल्ली महिला आयोग को विस्तार पूर्वक कार्य करना होगा अन्यथा इसकी उपलब्धता तो रहेगी लेकिन इसकी स्वीकार्यता पर हमेशा ही प्रश्नचिह्न लगता रहेगा। दिल्ली महिला आयोग को इस अनिभिज्ञता की समस्या से निबटने के लिए व्यापक प्रचार की नीति पर विशेष ध्यान देना होगा और इस प्रचार में खासतौर पर इस बात पर जोर होना चाहिए कि महिला आयोग के पास जाने पर समस्याओं का निदान जल्द उपलब्ध होता है तभी संभव है कि महिलाएं सीधे महिला आयोग का रूख करें। आयोग इसके लिए न सिर्फ सोशल मीडिया बल्कि समाचार पत्रों सहित स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर विशेष अभियान चला सकता है। आयोग को चाहिए की वो महिलाओं को इस बात के प्रति जागरूक करें कि दिल्ली महिला आयोग किस तरह से उनके हितों की रक्षा हेतू तत्पर है और इस भरोसों को कायम करने के बाद ही आयोग की स्वीकार्यता और उसके प्रति महिलाओं का विश्वास कायम होगा। डगर मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं हैं। दिल्ली जैसे महानगर में तो सचमुच इस जागरूकता अभियान को अन्य राज्यों की अपेक्षा बेहद कम समय में पूरा किया जा सकता है बशर्ते की नीति निर्धारक इस दिशा में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े। यहां यह बता देना भी उचित होगा कि चूंकि दिल्ली महिला आयोग का गठन एक कानून के तहत हुआ है सो इसके पास उचित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शक्तियां हैं बस जरूरत है तो इनके सही और महिलाओं के हित में प्रयोग करने की।

संदर्भ ग्रंथ:

  1. दिल्ली महिला आयोग अधिनियम -1994
  2. दिल्ली महिला आयोग की वर्ष 2015-16 की वार्षिक रिपोर्ट
  3. Impact & Initiatives Delhi Commission for Women (2015-2016)
डॉ. अनु चौहान
पोस्ट डॉक्टरल फैलो
आईसीएसएसआर

शोध निर्देशक –

डॉ. आतिश पराशर,
प्रोफेसर
दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया

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