हिंदी साहित्य और डायरी लेखन का आरंभ

भामह नाम के आचार्य ने ‘सहित’ शब्द का प्रयोग 6 वीं शताब्दी में पहली बार किया था,उनके अनुसार जो कुछ भी रचनाएं कविता,पद्य,गद्य हैं,उनको काव्य कहा जाता था। शब्द और अर्थ का सहित भाव ही साहित्य है। शब्द और अर्थ की अवधारणा किसी भी रचना को सुन्दर बनाती है। साहित्य में शब्द की सुन्दरता भी अनिवार्य है,शब्दों का बहुत गहरा प्रभाव हमारी मनोरचना पर पड़ता है।
मानस के समस्त भावों,मानसिक वेगों,अनुभूति,विचारों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम साहित्य है।हिन्दी साहित्य में अनेक गद्य विधाओं का सूत्रपात आधुनिक युग में हुआ इसमें निबंध,नाटक,उपन्यास,कहानी,यात्रा-साहित्य,रेखाचित्र,रिपोर्ताज,पत्र-पत्रिकाओं के साथ साथ डायरी लेखन आदि प्रमुख हैं। डायरी लेखन हिन्दी साहित्य में मुख्यतः छायावादोत्तर युग की आत्मपरक विधा है। किसी भी घटना के प्रति व्यक्ति की तात्कालिक उद्वेग या अभिव्यक्ति का माध्यम डायरी बनती है वैसे तो डायरी एक निजी सम्पत्ति मानी जाती है जो किसी व्यक्ति की अपनी मानसिक सृष्टि और अंतदर्शन है।परन्तु व्यापक दृष्टि में डायरी भी प्रकाश में आकर साधारणीकृत हो जाने के कारण साहित्य जगत की सम्पत्ति बन जाती है। डायरी में लोग अपने कुछ या बहुत से अनुभवों का दैनिक विवरण लिखते हैं और यही डायरी जब किसी साहित्यकार की कलम से किंचित कलात्मक शैली में लिखी जाती है तो प्रकाशित होकर पाठकों तक पहुंचती है तो वह साहित्य की एक प्रतिष्ठित विधा का हिस्सा बन जाती है।
डायरी भी एक शोध का विषय बन सकती है यह कदाचित आश्चर्य का विषय नहीं क्योंकि हिन्दी साहित्य में बहुत साहित्यकारों ने डायरी लेखन को प्रमुखता दी जिसमें जमनादास बिड़ला,रामृवृक्ष वेनीपुरी,महादेवी वर्मा,हरिवंशराय बच्चन,अजित कुमार ,मोहन राकेश,रामधारी सिंह दिनकर आदि प्रमुख रहे।
इसका कारण इस विधा पर अल्प शोध कार्य है। वास्तव में डायरी लेखन एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक स्वयं की रोज़मर्रा ज़िंदगी और जीवन से जुड़े लोगों के प्रति अगाध प्रेम,द्वंद्व व संवेदन आदि को अपने शब्दों में डायरी में लिखता है। निश्चित ही यह एक अनूठी साहित्यिक विधा है जिसपर अब तक शोध विशेषज्ञों की नज़र नही गयी या कुछ कार्य हुआ भी तो बहुत अल्प मात्रा में। इसमें आरंभ से अंत तक जिज्ञासा बनी रहती है।
डायरी शब्द की उत्पत्ति लैटिन के ‘DIARIUM’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है ‘DIES’ अर्थात् ‘DAY’ यानि दैनिक भत्ता इससे यह स्पष्ट होता है कि डायरी का संबंध दैनिक कार्य ये दिनचर्या से है परंतु शब्दकोशों के अंतर्गत इसे दैनिकी,दैनंदिनी,परामर्श पुस्तिका, रोजनामचा आदि कहा जाता है। इसी प्रकार संस्कृत में इसे ‘दिन पत्रिका’ या दैनिक वृत पुस्तक कहा जाता है परंतु प्रचलन में डायरी शब्द ही सर्वविदित है। जैसा कि हम जानते हैं कि डायरी को दैनंदिनी,रोजनामचा,दैनिकी कार्य आदि पर्याय शब्दों से माना जाता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि डायरी को दैनन्दिनी, रोजनामचा दैनिकी कार्य आदि पर्याय शब्दों से माना जाता है परंतु कुछ डायरी लेखक इसे कुछ भिन्न संज्ञाए देते हैं। अजित कुमार डायरी लेखन को ‘ अंकित (अंकित होने दो ) करने के संदर्भ में लेते हैं , कृष्ण बलदेव वैद इसे इन्द्रराज कहकर पुकारते हैं , गोपाल सहर इसे राजदां ( तिनका-तिनका सपने ) मानते हैं और ये पर्याय इस दृष्टि से सार्थक भी हैं कि डायरी में लेखक का अनुभव उसके सबसे निकट रहकर अंकित होता है।
रामधारी सिंह दिनकर डायरी शब्द को इस प्रकार स्पष्ट करते हैं कि ‘ डायरी वह चीज़ है जो रोज लिखी जाती है और जिसमें घोर रुप से व्यक्तित्व की बातें भी लिखी जा सकती हैं । इसी रूप में अनिता राकेश भी डायरी के स्वरुप को स्पष्ट करते हुए कहती हैं – डायरी एक बहुत ही वैयक्तिक चीज़ है जो बिना लाग लपेट के व्यक्त होता है।
डायरी का संबंध मूलत: लेखक से होता है अत: यह उनके ही विचार और अनुभव की शब्द सृष्टि है। यह अनुभव और विचार कहीं न कहीं उनकी कृतियों में भी झलकते हैं। अर्थात् एक सर्जक अपने सर्जन से जुड़े घटना तथ्यों का संग्रह भी डायरी में करता चलता है। यहां यह स्पष्टत: कहा जा सकता है कि जब कोई लेखक अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का यथार्थ चित्रण क्रमबद्ध और लिपिबद्ध करता है तो उसे डायरी कहते हैं।डायरी में लेखक के सपने होते हैं किसी प्रिय के प्रति प्रेम होता है क्षोभ के साथ साथ दुख व आंसू  होते हैं जहां रोज़ नया दिन होता है नयी बातें होती हैं जो उसके व्यक्तित्व को प्रकाशित करती है इस तरह यह स्वयं को नित् नवीन रूप में स्थापित करने वाली विधा है जो कोतुहलता से भरपूर है।
साहित्य में डायरी लेखन दूसरी गद्य विद्याओं की भांति विस्तृत रूप में तो नहीं है पर डायरी लेखन से मैं बहुत प्रभावित रहा हूँ । हिन्दी साहित्य में डायरी लेखन में प्रमुख रूप से हरिवंश राय बच्चन , मोहन राकेश, दिनकर , अजित कुमार व प्रेमचंद जैसे दिग्गज साहित्यकार लिखते रहे हैं जिनका डायरी लेखन के प्रति अगाध प्रेम व आस्था स्पष्ट झलकती है।
जिनसे परिचित होना एक आनन्द का विषय है। श्री रामवृक्ष वेनीपुरी बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे। उन्होंने गद्य की अनेक विधाओं में लेखन कार्य किया। हिन्दी गद्य साहित्य जगत में डायरी विधा की समूह होती परम्परा में श्री रामवृक्ष वेनीपुरी ने लगभग 13 वर्ष(1950-63) तक डायरी ( डायरी के पन्ने ) लिखी।डायरी लेखन अब हिंदुस्तान में एक जानी पहचानी विधा है। इसे हमारे साहित्य जगत ने भी स्वीकार कर लिया है। एक डायरी घटनाओं,अनुभवों,विचारों और अवलोकनों का व्यक्तिगत रिकार्ड है। यह एक अनुपम विधा है जिस पर शोध किया जाना अत्यंत आवश्यक है ताकि यह साहित्य प्रशिक्षु, जिज्ञासु विदों तक पहुंच सके और साहित्यिक विधाओं में डायरी लेखन को भी प्रमुखता दी जा सकती है यद्यपि इस विधा के लेखन में सहित्यिक विद्वानों ने उतनी प्रमुखता नहीं दी जितनी अन्य विधाओं में अपितु यह दिल को छू जाने वाली उत्तम विधा है।

मनोज शर्मा

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