डायन के संदेह में तिन की हत्या मामला : अदालत ने सात को सुनायी फांसी की सजा
कोलकाता,  पश्चिम मेदिनीपुर, सोमवार 16  मई 2016 :   
डायन के संदेह में तीन आदिवासी महिलाओं की पीट-पीट कर हत्या करने के एक मामले  में पश्चिम बंगाल के  पश्चिम मेदिनीपुर जिले की घाटाल महकमा अदालत ने एक महिला समेत सात लोगों को फांसी की सजा सुनायी। इस मामले में कुल 14 आरोपी थे, जिनमें से अन्य पांच  को अदालत ने आजीवन कारावास एवं एक महिला को सात वर्ष कैद की सजा सुनाई है।
अदालत का फैसला सुनते ही वहां मौजूद सभी दोषी एवं उनके परिजन जोर-जोर से रोने लगे. घटना अक्तूबर 2012 की है। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार पश्चिम मेदिनीपुर के दासपुर व डेबरा थाना सीमा पर स्थित दुबराजपुर गांव में कई लोग बीमार पड़ गये थे।

क्या है मामला:  16 अक्तूबर 2012 को गांव में एक सालिसी सभा आयोजित की गयी। सालिसी सभा में पंचों ने  फूलमनि सिंह (62), उनकी बेटी श्वारी सिंह (40) एवं शस्वरी सिंह (55) को डायन करार दिया था।  सभा के इस फैसले का उन महिलाओं के पति व बच्चों ने विरोध किया, पर गांव वालों ने उनकी एक न सुनी एवं उन्हें गांव छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया गया।  इसके बाद उन तीन महिलाओं की बांस से पीट-पीट कर नृशंस रुप से हत्या कर दी गयी, उसके बाद गांव के पास से गुजरनेवाली कंसावती नदी के किनारे उनके पार्थिव शरीर को गाड़ दिया गया था।

डायन और डायन विद्या  
पश्चिम बंगाल में संथाली , आदिवासी , ओंडाओं समुदायों का भी निवास है। आदिवासी समाज में मुख्य रूप से यह ’डायन’ का अंधविश्वास फैला हुआ है। इस समाज ‘डायन’  और ‘डायन-विद्या’  के बारे में बहुत ही अजीबों गरीबों बातें कही गयी हैं । कहा जाता है कि डायन अपनी मंत्र शक्ति यानी काला जादू की मदद से पैड़ की सवारी करती है। और वह रात के अंधेरे में काफी दूर तक उड़ कर चली जाती है। डायन के अंधिवश्वास में डूबे लोगों का कहना है कि गांव में कोई अनहोनी या अकाल मृत्यु की किसी घटना के पहले इन डायनों को आधी रात किसी वन या सुनसान जगह पर निर्वस्त्र होकर नृत्य करते देखा जाता है। रात में यह डायन बिल्ली का रूप धारणा कर लेती है। उसके बाद वह अपने शिकार के घर में घुस जाती है। शिकार यानी किसी का बच्चा , ओरत , मर्द या जानवर आदि। वंहा से ‘ शिकार ‘ को ख़ामोशी के साथ किसी वीरान जगह पर ले जाती है , जहां डायन उस शिकार का फेफड़े , गुर्दें आदि खा लेती है। फिर शिकार को उसी घर में वापस पहुंचा देती है। डायन अपना मायाजाल फैलाने के लिए यह सभी कुकर्म इतनी कुशलता के साथ करती है कि उसके परिवार के अन्य सदस्यों को इसकी भनक तक नहीं लगती है। इसके बाद अचानक एक रोज उस ‘ शिकार ‘ की अस्वाभाविक मौत हो जाती है। इसके अलावा ’ डायन अपनी  ‘ डायन-विद्या ‘ की मदद से किसी को भी बीमार कर सकती है अथवा किसी की जान भी ले सकती है। डायन के जल में फंसे शिकार को कोई भी चिकित्सक इलाज कर स्वस्थ नहीं कर सकता। डायन अपनी डायन-विद्या को बचाकर रखने के लिए कम उम‘ की लड़कियों को अपनी शिष्या बनती है। शिष्या को डायन विद्या में दीक्षित करने के लिए उसे किसी श्मशान या कोई जन मानव हिनव हीन इलाके में ले जाती है। वहां शिष्य को निर्वस्त्र कर डायन विद्या में दीक्षित दी जाती है। दीक्षा प्राप्त करने के बाद दीक्षागुरु का आदेश शिष्या को मानना पड़ता है। आदेश के अनुसार नयी  डायन  को अपने ही परिवार या किसी रिश्तेदार पर डायन विद्या  का प्रयोग करना पड़ता है। संथाली समाज में यह विश्वास है कि उम्र  ढलने के साथ जिंदगी में असफलता या अपमान , लोभ या ईर्ष्या में पड़कर कुछ महिलाएं डायन विद्या में दीक्षा लेती हैं। दीक्षित गांव में महामारी फैलाने के लिए संक्रामक  बीमारी इकट्ठे करती है। डायन गुप्त बैठक में किसी की जन लेने का उपाय ढूढती है। इसके आलावा भी कोल , हो और लड़को समुदायों में वंशगत डायन में विश्वास है। इन समुदायों में डायन की बेटी पर भी ‘ डायन ‘होने का संदेह किया जाता है।

ओझा , सोखा , जानगुरु और माझी का चक्रव्यूह : आदिवासी व संथाली समुदाय में डायन का ‘ पुलिस ‘ ओझा , सोखा  , जानगुरु और  माझी जैसे बाबाओं पर विश्वास बना हुआ है। एक ओर जंहा डायन-विद्या की मदद से समाज में कलाजदु का माया जल फैलाती है , वहीं दूसरी तरफ ओझा ,सोखा , जानगुरु और माझी तंत्रमंत्र की  प्रयोग कर समाज का कल्याण करती है।
ओझा आमतौर पर हर एक गांव में रहते है। वह झाड़फूंक कर लोगों की बीमारी ठीक करता है। जबकि गांव में किसी डायन का पता लगाने के लिए भी इनकी मदद ली जाती है। डायन चिन्हित करने के लिए शाल के पत्ते में सिंदूर व सरसों का तेल लेकर मंत्र पढ़ता है। इस कारनामों से ओझा को यह पता चल जाता है कि  गांव में कौन डायन है। ओझा के कहने पर गांव में एक सालिशी सभा बुलायी जाती है। सभा में चिन्हित दय्न पर जुर्माना लगते हैं। अगर जुर्माना दे दिये तो चिन्हित महिला को डायन के आरोप से मुक्त कर दिया जाता है। लेकिन जुर्माना देने में असमर्थ उस महिला एवं उसके परिवार को गांव से खदेर या पीटपीट कर मर दिया जाता है। अगर किसी को ओझा की बात पर भडोसानही  नहीं हुआ तो वे समस्या को लेकर सखा के पास। जाते हैं। डायन चिन्हित करने में सोखा को उस्ताद होते हैं जबकि इनसे अधिक महत्य जानगुरु भूत प्रेत या डायन को अपनी बस में कर सकते हैं। अगर किसी के सर भूत प्रेत या डायन आ गयी तो उसे जानगुरु झाड़फूंक कर भगा देते हैं। इन सबके अलावा , जानगुरु डायन चिन्हित कर  उन्हें  जुर्माना लगते हैं।
आदिवासी समाज में परम्परागत नेता को माझी कहते है। माझी की अनुमति के बिना इस समाज में कोई भी सामाजिक अनुष्ठान , पूजापाठ आदि नहीं हो सकता है। बड़ी बात ,माझी की इजाजत के बैगर आदिवासी लोग पुलिस या अदालत नहीं पहुंच सकते है। गांव में घटित अपराध की सुचना माझी ही पुलिस को देते है। पुलिस भी गांव में सबसे पहले इनसे पूछताछ करती है। माझी द्वारा किसी महिला को डायन करार देना अंतिम फैसला हॉट है। कुल मिलकर आदिवासी समाज में डायन चिन्हित करने में ओझा , सोखा , जानगुरु एवं माझी की भूमिका होती है।

डायन बताने के पीछे षड्यंत्र :  
साधारणतः वर्ष के मार्च से जून महीनों में आदिवासी प्रभावित इलाकों में डायन के संदेह में महिलाओं पर  अत्याचार या हत्या की घटना सबसे ज्यादा होती है। इस महीने में खेती में कामकाज नहीं के बराबर रहता है। ध्यान दें जिस वर्ष बरसात कम और गर्मी ज्यादा या अच्छी फसल नहीं होती है , उस वर्ष जमीन मालिक , आदिवासी या हिस्सेदार किसानों के पास पैसे का अभाव होता है। इस आभाव को दूर करने के लिए एक षड्यंत्र रचा जाता है। गरीब , असहाय परिवार अथवा लाचार विधवा की संपति , जमीन , घर आदि हड़पने अथवा पारिवारिक दुश्मनी या मुहल्ले का पुराना विवाद आदि को अथवा गांव में किसी व्यक्ति या जानवर की बीमारी से हुई मौत को वजह बनाकर एक षड्यंत्र रच जाता है। उस षड्यंत्र के अनुसार किसी महिला को डायन बताकर पहले उसकी  अफवाह फैलाई जाती है। अफवाह को सच साबित करने के लिए एक शालिसी सभा बुलाई जाती है जंहा गांव के मुखिया की उपस्थिति में जानगुरु या ओझा एक शाल के पत्ते में सिंदूर व  सरसों का तेल लेकर तंत्रमंत्र के जरिए यह पता लगते है कि आरोपी महिला डायन है या नहीं। आरोप साबित होने के बाद डायन पर मोटी रकम का जुर्माना लगाया जाता है। जुर्माना देने में असमर्थ महिला पर अमानवीय जुल्म ढाए जाते हैं।  कभी कभार महिला की डायन के नाम पर नृशंस हत्या भी कर दी जाती है।

डायन  के नाम पर महिलाओं की बलि : देहरादून की एक गैर सरकारी संस्था एनजीओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर वर्ष 200 से ज्यादा महिलाओं को डायन बताकर इनकी हत्या कर दी जाती है। इस हत्याकांड के मामले में झाड़खंड सबसे आगे है जंहा  50 से 60 महिलाओं की डायन बताकर हत्या कर दी जाती है। डायन बताकर महिलायों की जान लेने के मामले में आंध‘प्रदेश दूसरे नम्बर पर है जंहा करीब 30 हत्याएं की जाती है। रूरल लिटिगेशन एण्ड इनटाइटिलमेंट केन्द्र के अनुसार इसके हरियाणा और ओड़िसा का नाम आता है। इन राजों में क‘मशः 25 से 30एवं 24 से  28 महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। पिछले 15 वर्षों में देश में तक़रीबन 2500 महिलाओं की डायन के नाम पर बलि चढ़ा दी गई है ।

डायन प्रथा के खिलाफ आन्दोलन    
पश्चिम बंगाल में राजनितिक सत्ता परिवर्तन के बावजूद यह  अत्यन्त शर्म की बात यह है कि इस प्रदेश में महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं में  इजाफा हुआ है। इन घटनाओं में डायन के नाम पर महिलाओं पर जुल्म , हत्या आदि शामिल हैं। पहले ही स्पष्ट कहा गया है कि  वास्तव में डायन या डायन-विद्या का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है। मगर कुछ लोग स्वार्थसिद्धि के लिए एक षड्यंत्र रचकर किसी लाचार महिला पर डायन का आरोप लगाकर अपनी उल्लू सीधा करते कर रहे हैं। उस षड्यंत्र में ओझा , सोखा , जानगुरु और माझी जैसे पाखण्डी भी कुछ ऐंठने की लालच में पूरा साथ देते हैं। कुल मिलकर कुछ स्वार्थी लोग और इन ओझा , सोखा , जानगुरु और माझी की मिलीभगत से एक महिला को डायन बताकर उस पर जुर्माना लगाकर मोटी रकम हड़पते हैं। कभी कभार महिला की नृशंस हत्या करवा दी जाती है। समाज में  डायन जैसे फैले अंधविश्वासों को मिटने के लिए स्वयं सेवी संस्था भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति ( साइंस एंड रेशनलिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ) के अध्यक्ष प्रबीर घोष एवं ह्युमानिस्ट्स एसोसीएशन की अध्यक्ष सुमित्रा पद्मनाभन के नेत्रित्व में वर्षों से  लगातार आन्दोलन कर रही हैं।
प्रबीर घोष ने कहा कि देश के अन्य भागों में भी ऐसी घटनाएं अकसर घटती हैं. जिनकी इस तरह हत्या की जाती है, उनमें अधिकतर गरीब, कमजोर व विधवा औरतें होती हैं।  विडंबना यह है कि औरतों पर होनेवाले ऐसे जुल्मों के साथ हमारे समाज की कुछ धार्मिक और पोंगापंथी ताकतें जुड़ी होती हैं। श्री घोष ने कहा कि पश्चिम बंगाल में आज भी आदिवासी समुदाय लगभग हर तरह की सुविधाओं  से वंचित है। इस समाज में डायन का अन्धविश्वास एक बीमारी  कि  तरह फैले हुआ है। इस बीमारी को दूर करने के लिए सबसे पहले ओझा , जानगुरु , सोखा व माझी और इनके कर्मकाण्डों को द ड्रग्स एण्ड कासमेटिकस एक्ट , 1940 के तहत अवैध घोषित करने की जरूरत है। आदिवासियों में विभिन्न तरह की बिमारियों के  बारे में वैज्ञानिक जानकारियां फैलाया जान चाहिए । ग्रामीण क्षेत्र में आधुनिक चिकित्सा सहित अन्य सेवाएं उपलब्ध करने में राज्य और सरकरों को ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि संगठन की ओर से  ‘ अलौकिक नहीं , लौकिक ‘ नामक एक अन्धविश्वास विरोधी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम के जरिये जनता को चुनौती के साथ यह बताया जाता है कि ओझा ,  सोखा , जानगुरु और माझी जैसे लोगों के पास कोई भी तंत्रमंत्र की शक्ति नहीं रहती है , न ही डायन विद्या का अस्तित्व है। समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ओझा , सोखा , जानगुरु और माझी द्वारा डायन चिन्हित के तरकीबों का खुलासा किया जाता है। वास्तव में डायन या डायन विद्या का कोई अस्तित्व ही नहीं है।  डायन भी भूत प्रेत की तरह एक अंधविश्वास और कल्पना मात्र  है।   ओझा , सोखा , जानगुरु और माझी एक नम्बर का पाखण्डी  होते हैं। इन पाखंडियों के षड्यंत्र में फंस कर हर वर्ष हमारे देश में डायन के नाम पर हजारों मासूमों की बलि चढ़ा दी जाती है।

डायन हत्या निवारक कानून:
13 अगस्त 2015 को असम विधानसभा ने डायन हत्या निवारक कानून (प्रीवेंशन एंड प्रोटेक्शन फ्रॉम  विच-हंटिंग बिल, 2015) पारित किया।  इस कानून में प्राविधान है कि कोई भी यदि किसी स्त्री को डायन बताता है, तो उसे 3  से 5  साल की सख्त  सजा होगी और 50 हजार से 5  लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा।
डायन बता कर जुल्म करनेवाले को 5  से 10 साल की सजा और 1  से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भरना होगा। अगर ऐसे किसी काम में किसी समूह को दोषी पाया जाता है, तो उस समूह के हर व्यक्ति को 5  से 30 हजार रुपये तक का जुर्माना देना होगा। डायन बता कर किसी की हत्या करने पर धारा 302 के तहत मुकदमा चलेगा।
डायन बता कर यदि किसी को आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसे 7  साल से उम्रकैद तक की सजा और 1  से 5  लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा।
ऐसे मामलों की जांच में गलती करनेवाले जांच अधिकारी को भी दंड मिलेगा. उसे भी 10 हजार रुपये का जुर्माना भरना होगा।

   असम का यह कानून बिहार, उड़ीसा, झारखंड और महाराष्ट्र के ऐसे ही कानून से ज्यादा सख्त कानून है। असम में पिछले पांच सालों में 70 औरतों को डायन बता कर उनकी हत्या कर दी गई थी। जांच करने पर पता चला है कि इनमें से अधिकांश मामलों के मूल में जमीन और संपत्ति का विवाद था।
इसी 8 अगस्त को झारखंड में पाँच औरतों को डायन बताकर मार डाला गया था। पिछले  दस वर्षों में वहाँ इस तरह अब तक 1200 औरतों को डायन बताकर मारा जा चुका है ।

संतोष शर्मा
जाफरपुर
कोलकाता

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