बाहर जोरों की बारिश हो रही थी। अनेक पेड़ों की पत्तियों से टकराती बॅूदों का शोर नजदीक के जंगल के सन्नाटे को भंग करने की बजाए सघन बना रहा था।

‘’आपका फार्महाउस मुझे बहुत पसंद आया। इसके लोकेशन का तो जवाब नहीं।’’ मिसेज चौधरी के मुखारविंद से यह सुनकर चौहान के तन-मन में खुशी की तरंग दौड़ गयी । जाहिर न करने का भरसक प्रयास करने के बावजूद उसके सघन गलमॅूंच्‍छों के बीच से कान तक फैल गए होठों ने चुगली कर ही दी। ‘’इट्स माई प्‍लीजर।’’ उसने बाअदब झुककर प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की। ऐसा करते हुए वह चोपड़ा की शक्‍ल को नहीं देख पाया जो इस वक्‍त ईर्ष्‍या की अग्नि में दहक रहा था। मेरी दी गयी शानदार पार्टियों पर इस भूरी बिल्‍ली ने कुछ नहीं कहा लेकिन जरा देखो इस खूसट चौहान के आगे कैसे न्‍योछावर हुई जा रही है।

लकड़ी के नक्‍काशीदार झूले पर ठंडे निरपेक्ष भाव से बैठी मिसेज घोरपड़े कम निकोटीन वाला सिगरेट पी रही थी। बीच में वह कभी-कभी मिसेज चौधरी के परिधान को स्त्रियोचित ईर्ष्‍या से घूर लेती। एक और सज्‍जन जो जरा अधेड़ावस्‍था की दहलीज पर थे सिगरेट का धॅुआ बारंबार निर्गत करते हुए इस कार्य व्‍यापार को हिकारत से देख रहे थे। उनका नाम सेनगुप्‍ता था। वे प्रखर बुद्धिजीवी माने जाते थे लेकिन राग-रंग में किसी से उन्‍नीस न थे।

हल्‍की सी पदचाप की क्‍या बिसात जो इन मदमस्‍तों को ध्‍यान भंग कर सके। जब तक हाथ में ट्रे लेकर आया व्‍यक्ति आबनूस की मेज पर सामान नहीं रखने लगा तब तक किसी ने परवाह नहीं की। शराब-सोडा, सलाद, चिकन सब करीने से सजा था। ‘’इज ही एक नेटिव ऑफ दिस प्‍लेस?’’ मिसेज घोरपड़े ने यॅू ही पूछा। ‘’सही पहचाना। यह यही का बाशिंदा है। यहॉ के लोग लॉएल होते हैं। इधर आपको चोरी-चकारी कम मिलेगी। पिछले छह महीने से मेरे पास है। हर काम में ट्रेंड हो चुका है। ड्राइविंग,गार्डनिंग,सर्विग वगैरह।’’ चौहान ने अपने प्रबंध की स्‍वयं तारिफ करने वाले अंदाज में बताया।

‘’कुण्‍डू सबके लिए ड्रिंक्‍स तैयार करो।’’ दोस्‍तों से मित्रवत् व्‍यवहार करते हुए सहसा चौहान ने मालिकाना अंदाज में उससे कहा। गहरे सॉवले रंग का तनिक दुबली कठ-काठी का आदमी तरीके से इस काम को अंजाम देने लगा।

दोनों औरते बला की नफासत से आसव का सेवन कर रही थीं। चोपड़ा ने सबसे पहले अपना पेग खाली किया। ‘’यार जरा अपना ख्‍याल रखो।’’ चौहान ने उसे टोका। ‘’इतना हचक-हचक कर पीओगे तो अगले विजिट में अपने डॉक्‍टर को क्‍या मॅुह दिखाओगे। तुम्‍हें एक बार अटैक हो चुका है।’’ उसकी टिप्‍पणी का जवाब कायदे से चोपड़ा को देना था लेकिन सेनगुप्‍ता ने बीच में बात लपक ली। ‘’यह इन्द्रिय-निग्रह बुर्जुआ मेंटेलिटी है। जो मन में आता है सो करो।’’

‘’जी सही फरमाया कामरेड….और यह कमबख्‍त मेडिकल साइंस बड़ी पॅूंजीवादी चीज है। बीमार लोगों का को फालतू में जिंदा रखती है।’’ चौहान हॅसा।

चोपड़ा को लगा कि मदिरा पान के अवसर पर इस प्रकार का बुद्धिजीवीनुमा वार्तालाप रंसभंजक है। खासकर तब जब खेल भावना से परिपूर्ण दो संभ्रांत महिलाऍ उपस्थित हो।

सेनगुप्‍ता के बुद्धिजीवी दिमाग में सामाजिक सरोकार नामक तत्‍व का उदय हुआ। ‘’भई बताओ तुम पहले कहॉ थे?’’ कुण्‍डू शुरु में अचकचाया फिर कहने लगा। ‘’सर जंगल का आदमी हॅू। गिलहरी….वन मुर्गी से लेकर जंगली सूअर तक का शिकार किया है। खेती लायक जमीन कहॉ बची। साहब का एहसानमंद हॅू। मुझे यहॉ लेकर आए। गाड़ी चलाना सीखा…।’’ वह चुप हो गया। मानो उसकी बस इतनी सी कहानी है। ‘’पेड़-वेड़ काटते हो?’’ सेनगुप्‍ता की रुचि अभी भी बची थी। ‘’जी हजूर।’’ उसमें अचानक आत्‍मविश्‍वास आ गया। ‘’हमें मालूम है कि हरियाली जिन्‍दगी होती है लेकिन पेड़ से ही हमें सारी चीजें मिलती हैं। पेड़ की हर चीज का हम इस्‍तेमाल करते हैं।…लेकिन वैसे नहीं करते हैं जैसे ठेकेदार और बड़े लोग काटते हैं।’’

‘’ही इज टॉकिंग नानसेन्‍स मिस्‍टर सेनगुप्‍ता।’’ चौहान की आवाज तल्‍ख थी। उसे खीझ हो रही थी कि यह सेनगुप्‍ता क्‍यों खामखाह अपना दर्शन बघार रहा है। आखिर उसे ऐसा करने को यही मिला है?

इस बैठकनुमा बरामदे में बाहर हो रही बारिश का आराम से दिग्‍दर्शन किया जा सकता था। कहॉ फ्लैटों के कमरों में पता भी नहीं चलता है। चॅूकि बारिश से किसी के कमीज का कलफ खराब होने या साड़ी का बार्डर गंदा होने का भय न था इसलिए वे रुमानी अंदाज में इस नजारे का लुफ्त ले रहे थे।

‘’मुझे बारिश में भीगने का मन कर रहा है।’’ मिसेज घोरपड़े एक षोड़शी की भॉति चहकी। पुरुषों ने मुस्‍करा कर एक-दूसरे को देखा। मिसेज चौधरी होठ सिकोड़कर व्‍यंग्‍य से मुस्‍कारायी। लेकिन हकीकत यह थी कि अपने इस अप्रत्‍याशित आत्‍माभिव्‍यक्ति से वह पुरुषों की नजरों का केन्‍द्र बन चुकी थी। मिसेज चौधरी ने अपने क्रोध को छिपाते हुए नफासत से पेग खाली किया।

फार्म हाउस के अहाते का मुख्‍य द्धार खुला रह गया था। कुण्‍डू छाता लेकर उसे बन्‍द करने गया लेकिन फिर भी तेज बारिश की वजह से वह अच्‍छा-खासा भीग गया। सहसा बिजली चमकने से समूचा वातावरण पल भर के लिए ही आलोकित हो उठा। कुण्‍डू और ज्‍यादा भीगने से बचने तथा फिसलन भरी जमीन पर गिरने से खुद को बचाते हुए सावधानी भरी तेज रफ्तार से भागा।‍ मिसेज घोरपड़े ने बिजली की चमक के दौरान कुछ ऐसा देख लिया जो वह दिन की रोशनी में अनदेखा कर गयी थी। ‘’देखो जरा वे सफेद फूल…! कितने सुन्‍दर लग रहे हैं। आर दिज फ्लॉवरस् एक्‍जोटिक?’’

‘’अरे मोहतरमा ये व्‍हाइट रोज हैं। इन्‍हें आप मुगल गार्डन में देख पाएगीं। हर जगह दिखायी नहीं देगा। मैंने खासतौर पर इन्‍हें लगवाया है। हमारी पसंद कितनी एक जैसी है।’’ चौहान गदगद था।

मिसेज घोरपड़े कुछ ज्‍यादा सरुर में आ गयी थी। वह झूले से उठकर खुले में आ गयी। लोग बस देखते रहे। ‘’आप भीग जाएगीं।’’ सेनगुप्‍ता ने वाजिब चिंता जाहिर की। उसने जैसे सुना ही नहीं। क्‍यारियों के पास खड़ी होकर वह गुलाब को एकटक देख रही थी। बारिश ने उसे भिगो दिया। एक फूल तोड़कर वह लौटने लगी। तभी कीचड़ में पॉव फिसल गया। सॅभलते-सॅभलते भी वह भूलुंठित हो चुकी थी। लोग धर्मसंकट में थे कि मिसेज घोरपड़े के इस साहसिक अभियान में उसकी मदद कैसे करे। तभी कुण्‍डू तीर की गति से भागा और उसे सहारा देकर उठाया। उसे अपना हाथ पकड़ने में पूरा मौका देने के बाद वह उसके कंधे के सहारे उठी। दरअसल चोट कुछ खास नहीं थी। कीचड़ सने चप्‍पल पहने कुण्‍डू मिसेज घोरपड़े का हाथ थामे अन्‍दर आया। साफ-सुथरे संगमरमरी फर्श पर पानी,कीचड़ और घास के तिनके भी आ गए। चौहान और चोपड़ा के ऑंखों से शोले निकल रहे थे। चौहान चीख कर कुछ कहना चाहता था लेकिन उपर्युक्‍त शब्‍द न मिलने पर उसने बस हाथ के इशारे से कुण्‍डू को जाने का आदेश दिया।

‘’मिसेज घोरपड़े आर यू ऑल राइट?’’ चौहान और चोपड़ा दोनों के मुखारविन्‍द से समवेत स्‍वर में यह प्रश्‍न निकला। ‘’ओह यस मैं ठीक हॅू।’’ वह अपनी उॅगलियों में फॅसे सफेद गुलाब को गर्व से निहारती कपड़े बदलने चली गयी। सेनगुप्‍ता व्‍यंग्‍यात्‍मक द्दष्टि से अपने पुरुष मित्रों की भाव-भंगिमा को निहार कर आनन्‍द ले रहा था। उसके लिहाज से कुण्‍डू एक भरी पूरी और वाजिब प्रशंसा का हकदार था। ‘’इस आदमी ने चुस्‍ती दिखायी नहीं तो मैडम और परेशानी में पड़ जाती।’’ आखिरकार उसने कह डाला।

मिसेज चौधरी की सर्पिल अलकाओं में खीझ और जलन का सहअस्तित्‍व था। ‘’आई डिसएर्गी मिस्‍टर सेनगुप्‍ता। मुझे वह एक वाहियात आदमी दिखता है।’’

‘’अच्‍छा…!! भला क्‍यों…?’’ सेनगुप्‍ता ने इत्‍मीनान से सिगरेट का कश लेकर सवाल किया।

‘’सी…मैं होती तो उसे एक थप्‍पड़ कसकर लगाती।’’ वह तेज स्‍वर में बोली। उसकी इस घोषणा से चौहान और चोपड़ा के दिल को आंशिक ठंडक मिली।

‘’भूखों भर रहा था। मैंने रहम करके काम पर रखा।’’ चौहान की आवाज में फॅूफकार थी।

 सेनगुप्‍ता ने विषय परिवर्तन किया। ‘’यार तुम्‍हारे यहॉ आने का फायदा तब है जब कोई ट्रिप बने। जंगल घूमकर आते हैं। शिकार-विकार करने की इजाजत है या नहीं।’’ चोपड़ा ने खुश होकर चौहान की ओर देखा ‘’नाइस आइडिया।’’

अगले दिन सभी र्स्‍पोटस् शू और आरामदेह टीशर्ट धारण किए प्रस्‍थान को तैयार थे।

‘’सेनगुप्‍ता सर आप जैसा खालिस बुद्धिजीवी जंगल की तकलीफ बर्दाश्‍त कर पाएगा?’’ चौहान ने अपनी मॅूछों पर उॅगली फेरता हुए उसे छेड़ने के इरादे से पूछा। ‘’माई डियर घूमने का सुझाव मेरा ही है।’’ सेनगुप्‍ता जानबूझकर खुली जीप में उछलकर चढ़ा। ऐसा करते हुए उसे अपनी टॉगों में खिंचाव महसूस हुआ लेकिन क्‍या मजाल कि इसकी भनक वह किसी को लगने दे।

जीप हिचकोले खाती आगे बढ़ रही थी। मिसेज चौधरी को अपने बाल सॅभालने में दिक्‍कत हो रही थी। पह कनखियों से मिसेज घोरपड़े की ओर देखती कि कैसे उसने कॅसकर जूड़ा बॉधा है। ‘’वह देखिए! हिरनों का झुण्‍ड़।’’ कुण्‍डू गाड़ी ड्राइव कर रहा था। उसने तर्जनी से एक ओर इशारा किया। कुछ शावक कॅुलाचें भर रहे थे। ‘’वंडरफुल।’’ मिसेज चौधरी ने तत्‍काल इस द्दश्‍य को कैमरे में कैद किया।

‘’यहॉ शिकार की परमीशन है?’’ चोपड़ा ने सवाल किया। ‘’नहीं साहब।’’ कुण्‍डूने जवाब दिया। हालॉकि यह प्रश्‍न उससे नहीं पूछा गया था। ‘’जस्‍ट कीप योर माउथ शट।’’ चौहान चिल्‍लाया। उसके गलमुच्‍छे उत्‍तेजना से हिल उठे। चोपड़ा के कन्‍धे पर आत्‍मीयता से हाथ रखकर वह बोला। ‘’डियर फ्रेंड हम परमीशन की सीमा से परे हैं। यहॉ शूट पहले करते हैं और बात बाद में।’’ इस आत्‍मविश्‍वास से मण्‍डली के सभी सदस्‍य हर्षित हुए। कुण्‍डू की शक्‍ल के भाव किसी को नजर नहीं आए। जंगल घना होता जा रहा था। पेड़ की पत्तियॉ हवा में सरसराती तो लगता कि आपस में गुपचुप बतिया रही हैं। कोई जंगली चिडि़या शोर करती हुई उड़ती तो दोनों स्त्रियॉ चौंक कर एक दूसरे को देखने लगतीं। ‘’मिसेज घोरपड़े आपको कुछ अजीब सा नहीं लग रहा है?’’ मिसेज चौधरी ने दीमकों की एक बॉबी को देखते हुए सवाल किया। मिसेज घोरपड़े जो स्‍वयं भयभीत हिरनी की भॉति इधर-उधर देख रही थी कुछ न बोली। पेड़ों के अनंत विस्‍तार के बीच निकली सड़क सुहागिन की मॉग जैसी लग रही थी। इस पर जीप भागती जा रही थी।

‘’कोई यहॉ भूतों में यकीन करता है?’’ मिसेज चौधी ने अचानक यह सवाल किया। क्‍या बकवास है। चोपड़ा खिसिआया। लेकिन प्रकट रुप में कुछ नहीं बोला क्‍योंकि यह सवाल चौहान जैसे खबीस फौजी या सेनगुप्‍ता सरीखे सनकी बुद्धिजीवी ने नहीं बल्कि किसी नारी के मुख से निकला था। ‘’वेल कुछ कह नहीं सकते। हो भी सकता है आखिर डेथ के बाद इंसान की स्पिरिट कहीं न कहीं तो जाती होगी।’’

सेनगुप्‍ता ने कहा,’’हमारे एक रिलेटिव की बेटी ने पिछले साल सुसाइड कर ली थी। उसके पेरेन्‍टस दूसरी कम्‍यूनिटी के लड़के से उसकी शादी के खिलाफ थे। वे बंगाली थे और लड़के वाले पंजाबी।’’

‘’हद हो गयी सेनगुप्‍ता साहब। आप जैसे कामरेड की विश्‍व द्दष्टि के खिलाफ घर में यह क्‍या हो गया?’’ चौहान बोला। ‘’मैं जो कह रहा हॅू वह है कि उसकी आत्‍मा की मौजूदगी घर में मॉ को महसूस होती है।’’ सेनगुप्‍ता ने बात को पटरी पर पहॅुचाया।

‘’वही तो,’’ मिसेज चौधरी को इस बात से बल मिला। ‘’आत्‍माऍ होती हैं। यह कुण्‍डू जब पहली बार आया तो मुझे उसकी शक्‍ल बिल्‍कुल भूतहा दिखी।’’

‘’अरे इस भूत को मैं पकड़कर लाया हॅू।’’ चौहान ने हाथ मले। ‘’अच्‍छे-खासे डोमेस्टिक हेल्‍प रजिस्‍टर्ड मिल रहे थे। पुलिस वेरिफिकेशन वाले…। जिन्‍दगी में पहली दफा अनाज खाने को मिला तो पर निकल आए।’’

रास्‍ते में कुछ मोर दिखे। ‘’फोटो लीजिए सेनगुप्‍ता साहब।’’ चोपड़ा ने प्रेरित किया। ‘’चिडि़या देखना आपको पसंद है।’’ चौहान इस बात पर खूब हॅसा। ‘’हमारी पसंद शिकार है।‘’ वह जरा गर्वमिश्रित वाणी में विहॅस रहा था।

‘’मैडम आज आपको डिनर में सांभर मिलेगा।‘’ चौहान अपने हैट को दुरुस्‍त करते हुए उत्‍तेजना से बोला। गन लेकर वह गाड़ी से उतरा। ‘’तुम उस तरफ जाओ।’’ उसने कुण्‍डू को आदेश दिया। ‘’कुछ दिखे तो हाथ से इशारा करना। जबान मत चलाना वरना जानवर बिदक जाएगा।’’ उसकी योजना से सेनगुप्‍ता प्रभावित हुआ। कहीं सारा श्रेय यह सनकी फौजी न ले जाए इसलिए चोपड़ा भी नीचे उतरकर यॅू ही सघन हरियाली में कुछ देखने की कोशिश करने लगा।

सामने शिव की जटाओं की तरह फैला बरगद सुदीर्घ समाधि में लीन था। उसके समीप झाडि़यॉ आड़ बनाकर खड़ी थीं। चौहान ने वही र्मोचा जमाया। झाड़ी में कुछ हिला था। शायद सांभर या फिर कुछ और। कुण्‍डू भी निर्देश पाकर उधर ही गया था। चौहान ने गोली दाग दी। शोर हुआ। लेकिन यह हिरन या सांभर की चीख न थी। ‘’वो मारा….।‘’ चौहान गोल करने पर खुशी मनाते खिलाड़ी सा उछला। पीछे बैठी मिसेज चौधरी ने कहा। ‘’मुझे बेकार की जीव-हत्‍या पसंद नहीं है।’’ पहली बार मिसेज घोरपड़े ने दिल से उसका साथ दिया। ‘’यू आर राइट।’’ चौहार भागता हुआ झाड़ी की ओर गया। कुछ देर तक वहॉ रुकने के बाद वह बद्हवास सा लौटा। ‘’चलिए लौटते हैं। आज का दिन खराब है।’’

‘’क्‍या हुआ बाबू मोशाय….?’’ सेनगुप्‍ता स्थिति से वाकिफ नहीं था इसलिए सामान्‍य लहजे में पूछा। चौहान ने ड्राइविंग सीट सॅभाली। ‘’यह कुण्‍डू बीच में न जाने कैसे आ गया।’’

‘’मतलब….?’’ सेनगुप्‍ता की ऑंखें हैरानी से फैल गयी।

दोनों औरतों के चेहरे से हवाईयॉ उड़ रही थी। अब क्‍या होगा वाला भाव उनके शक्‍ल पर पसरा हुआ था। सबलोग ने केवल निशब्‍द व स्‍तब्‍ध थे बल्कि बेजान पदार्थो की तरह जड़ हो गए थे। काफी दूर निकल जाने के बाद चौहान ने ही बात शुरु की। ‘’एक्‍च्‍युअली…कोई नहीं जानता है कि कुण्‍डू मेरे यहॉ काम करता था। सिवाय आप सबके। न कोई आधार कार्ड और न राशन कार्ड। एक भिखारी को लेकर आया था। अच्‍छा खाता-पहनता था। घर-बार पैसे भेजता था। इट वाज जस्‍ट एन एक्‍सीडेंट।’’

जीप की रफ्तार कुछ ज्‍यादा ही बढ़ गयी थी। हिचकोले खाने के बाद भी कोई चौहान को गति कम करने को नहीं कह रहा था। सभी को निकलना था। तभी पेड़ों के बीच से कोई परछाईनुमा आकृति दिखी। महिलाऍ डर से चीखी। मर्दो ने हिम्‍मत दिखाने का दिखावा किया। एकाध पल रुकने के बाद वह आकृति अद्दश्‍य हो गयी।

‘’क्‍या था वह….?’’ मिसेज चौधरी का बुरा हाल था। ‘’भूत….!!’’ सेनगुप्‍ता के मुख से हठात् निकल पड़ा। कुण्‍डू का हो सकता है। सामने हाइवे दिख रहा था यानि जंगल को अंत नजदीक है। चौहान अच्‍छी सड़क मिलने का इंतजार कर रहा था ताकि जीप की रफ्तार और बढ़ा सके।

 

 

 

 

मनीष कुमार सिंह
गाजियाबाद
उत्‍तर प्रदेश

 

 

 

 

 

 

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