गीतिका 
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उर को चुराने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
मदिरा पिलाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
लगती रहस्यमय है, मेंहदी रची हथेली
सच को छिपाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
कमनीय कामना ने, क्या रूप दे दिया है
सपने सजाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
संकेत, मौन भाषा, पढ़ना सिखा रहे हैं
ज्ञानी बनाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
उठने लगीं हृदय में, उद्दाम उर्मियाँ सी
नौका चलाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
देते प्रणय निमंत्रण, रखते सतत नियंत्रण
पल-पल जगाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
देखा तुम्हें है जबसे, मोहित हुआ हूँ तबसे
कविता रचाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
नव दृष्टि सी मिली है, आशा कली खिली है
सद्पथ दिखाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
सोचूँ  ‘विनम्र’ किसको, मैं स्नेह श्रेय दे दूँ
सम्मान पाने वाले, ये नयन हैं तुम्हारे
गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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