सारांश

          पंजाबी साहित्य में गुरु नानक देव का अग्रणीय स्थान है। उनका जन्म 15 अप्रैल (1469 ई.)  तलवंडी नामक गाँव में हुआ था, वह आज का पाकिस्तान है। गुरु नानक देव के माता-पिता का नाम तुप्ता एवं कालुचरण है। उनकी रचनाएँ जपुजी, आसा दी वार, सिद्ध गोष्ठ आदि। गुरु नानक देव ने समाज में अव्याप्त रूढ़ि-परंपरा, कृरीतियाँ,आडंबरों आदि स्थिति पर व्यंग्य किया है। गुरु नानक देव ने वाणी को जन-मानस तक पहुँचाकर समाज को उपदेश देने का कार्य किया। गुरु नानक देव ने दूसरे धर्म के विद्वानों का सामना किसी तरह का संकोच न करते हुए किया। जिससे मक्का में जाकर इस्लाम धर्म के सत्यता को उजागर किया। गुरु नानक देव ने किसी मनुष्य को वर्ग विशेष के तौर पर छोटा या बड़ा नहीं कहा है बल्कि सबको समानता की दृष्टि से देखा है । गुरु नानक देव ने संगीत को गा-गाकर ईश्वर को प्राप्त किया है। उससे ही समाज को उपदेश किया। गुरु नानक देव के काव्य से समाज को मूल्य की शिक्षा उनके रबाब नामक शिष्य के संगीत के द्वारा दी ।

बीज-शब्द

          समाज-व्यवस्था, जातियता, सत्, नैतिकता,ईश्वर भक्ति, मानवीयता, धर्म, दर्शन, संगीत

———————————————————————————————– आमुख

          मध्ययुग में गुरु नानक देव के आरंभ से दिशाहिन समाज में सत की भावना जगाकर उन्हें प्रेरित किया। गुरु नानक देव रचनाएँ तीन शैलियों का प्रयोग मिलता है। प्रथम अपभ्रंश शैली याने उसका प्रयोग गीत के रुप में हैं। दूसरा साधू भाषा की छाप है याने दक्खनी ओंकार, सिद्धियों की राग गोष्ठी, राग गोंड़ी, मारु में रचित आदि आध्यात्मिक कृतियाँ। तीसरा आधुनिक पंजाबी भाषा में मुहावरे का प्रयोग गीतिमय सूही, तुखारी रागों में है। तत्कालीन बल के प्रयोग से राजनीति और पाखंडपूर्ण धार्मिक कृरीतियों के विरुद्ध कठोर शब्दों में  गुरु नानक देव ने आघात किया है। गुरु नानक देव का उनकी वाणी में आध्यात्मिक शिक्षा के साथ समाजसुधार की भावना विद्यमान है वह मनुष्य का ह्रदय परिवर्तित किए बिना नहीं रहता है। इसके परिप्रेक्ष्य में श्री.एम.ए.मेकालीफ का कथन है –“सिक्ख धर्म के सिंद्धांतों की प्रामाणिकता की दृष्टि से अन्य अधिकांश धर्म पद्धतियों से अन्तर है। विश्व प्रसिद्ध महान गुरुओं में से अनेक ऐसे हैं जो अपनी वाणी की एक पंक्ति भी नहीं छोड़ गए है और परंपरा और दूसरों द्वारा प्रदत्त जानकारी से ही हमे मालूम हो पाता है कि उन्होंने क्या संदेश दिया था ’’’’पर जैसा कि हम जानते हैं, सिक्ख गुरुओं की वाणियाँ जिस रुप में उन्होंने शिक्षाएँ दी थी, उसी रुप में सुरक्षित है। उन्होंने कविता के माध्यम को अपनाया था, जो सामान्यतः प्रतिलिपिकों द्वारा बदला नहीं जा सकता और हम कालान्तर में उनकी विभिन्न शैलियों से परिचित हो जाते हैं।”1 उक्त कथन गुरु नानक देव की शिक्षा का महत्त्व सिक्ख धर्म के दशगुरु परंपरा से रहा है। यह शिक्षा ही  उन्हें दूसरे संप्रदाय से अलग करती है। गुरु नानक देव की समाज सुधार की भावना को व्यक्त करनेवाले के परिप्रेक्ष्य में डॉ.मनमोहन सहगल ने लिखा है- “विश्व को एक नवीन दृष्टिकोण, जो सांसरिक संकीर्णताओं और पारस्परिक खीझ से अछूता था, देने के कारण गुरु नानक विश्व-विख्यात सुधारक कहलाए और आज भी भारत की जनता इन्हीं के चरणों में अपनी श्रद्धा के सर्वाधिक पुष्प अर्पित करती है।”2 गुरु नानक देव का समाजसुधार की भावना विश्व-व्यापक दृष्टि परक थी। गुरु नानक देव के काव्य की वर्तमान समाज को आवश्यकता है कारण समाज में सत्यता का दिखावा रखकर हर कोई दूसरे के साथ छल-कपट कर रहा है। इसलिए गुरु नानक देव सभी मनुष्य को अपना जीवन बड़ी ईमानदारी के साथ व्यतित करने को कहते हैं और सत् को जीवन में अधिक महत्त्व देते हैं।

ओंकार सतीनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु,

अकालमूरति अजूनी सैभं गुरुप्रसादि।3

गुरु नानक देव के समान नरोत्तम दास ने ‘सुदामा-चरित्र’ में भगवान कृष्ण को सत्यता के साथ उजागर किया है।

सतनाम अरु बहुत बंदगी जो इसको नाइक कर जाने।

ज्यों-ज्यों याद करे वह बंदा त्यों-त्यों वह नीके कर जाने।4

गुरु नानक देव ने समाज में लोकभाषा के माध्यम से सब के साथ आत्मीयता से संवाद किया । गुरु नानक देव की शिक्षा का प्रभाव पंजाब प्रांत तक सीमित न होकर अन्य देश का ही अवलोकन किया।  गुरु नानक देव किसी भी धर्म को बुरा नहीं कहते हैं । इस पर गुरु नानक देव ने उपद्देश किया है। सभी इन्सान एक ही है। यहाँ कोई छोटा या बड़ा नहीं है। गुरु नानक देव ने योगी पुरुष को आवाहन किया है जो योगी बाह्यलक्षण का अवलबन नहीं करता है। वह सच्चा योगी मायापूर्ण जगत में जीवन यापन करते हुए अपने आंतरिक शुद्ध चित्त पर भर देता है। उसे गुरु की प्राप्ति से भवभ्रम दूर होकर विषय-वासना की तरफ का ध्यान खत्म होता है। यह आनंद ही अलौकिक है।  वह योगी अपने संसारिक जीवन से दूर रहते हैं उन योगीजन को गुरु नानक देव ने बताया है-“मनुष्य का जीवन अमूल्य है। जब ईश्वर मानवी योनि में जन्म देता है तभी उसका महत्त्व अधिक बढ़ता है। कुछ लोग मानवी जीवन को अधिशाप समझते हैं । इसलिए उन्हें इस जीवन का महत्त्व समझ नहीं आता है। ऐसे विकृति के कारण पलायन का मोह होता है और जीवन की तरफ पीठ फेरने में कुछ भी पुरुषार्थ नहीं । योगीमित्र आप शक्तिमान है,आप जीवन में पुनः आइए । मानवता से दूर मत रहिए, आप ही तस्टस्थ रहेंगे तो दुर्लभ लोगों को अधिक ही दुर्दशा होगी । निष्काम कर्मयोगी ही इस विश्व का रक्षक होता है।”5  गुरु जी के इस कथन से योगी पुरुषों में कुछ तथ्यता दिखाई दी और उनका जीवन की तरफ देखने का दृष्टिकोण बदल गया। गुरु नानक देव ने चारों दिशाओं में यात्रा की थी। उस दौराण उनकी भेट समाज के  बुरी प्रवृत्ति के लोगों से हुई। उन्होंने गुरु नानक देव एवं मरदाना नामक शिष्य को घेर लिया। उन डकैतीयों ने बताया हम लोग चोर है। इससे गुरु नानक देव उनकी पीठ पर हाथ रखकर कहा था “ मित्र आपका यह व्यवसाय मुझे पहले से मालूम है। इस व्यवसाय से आप लोगों बहुत बड़ा लाभ प्राप्त नहीं हुआ है। आप जिन्हें लुटकर, मारकर जला देते हो याने काम पूर्ण होता है। वह सामने धुआँ दिखाई देता है, वहाँ से अग्नि लेकर आइए। याने हमें भी  मारकर –जलाना आसाना होगा और पीछे कुछ शेष बचेगा नहीं। ”6  इस तरह से गुरु नानक देव ने शिक्षा देकर उन डकैतीयों का ह्रदय परिवर्तन किया।  गुरु नानक देव ने उनसे कहा था कि आज तक आपने जीतने लोगों का धन छीना था उन्हें गरीबों में बाँट देकर एक मेहनतकश मनुष्य को जीवन ज्ञापन करने का आवाहन किया । गुरु नानक देव ने जीवन मूल्य की शिक्षा दी और उन्हें अपने धर्मवृत्ति न छोड़ने की बात कहीं है। हमें यह शिक्षा बुरे कार्य से बचाकर सत्य के मार्ग पर चलाने को बाध्य करती है।

          गुरु नानक देव को केवल भक्ति साधना में तल्लीन रहना अच्छा नहीं लगता है। मनुष्य के जीवन में भक्ति आवश्यक होनी चाहिए और साथ ही गुरु जी अपने अनुयायी को श्रम के महत्त्व को बार-बार बताते हैं।  गुरु जी यात्रा के समय में गया के पाटिलीपुत्र नामक स्थान गए जहाँ पर उनके शिष्य मरदाना को वहाँ के  पैसों का अधिपत्य देखकर लोगों का जीवन बड़ा सुखी सम्पन्न लगा और किसी को धर्मशील जीवन के प्रति आकर्षण नहीं दिखा। गुरु नानक देव ने मरदाना को जीवन मूल्य समझाते हुये कहते हैं –“ जीवन का मूल्य समझना बड़ा कठीण है! बहुत को वह समझ ही नहीं आता है। ऐसे दुर्देवी मनुष्य की संख्या अधिक है। हमें अच्छे मार्ग पर चलते रहना चाहिए। सभी को जीवन रत्न की परख नहीं होती है। इसलिए रत्न को परखनेवाला होना चाहिए कारण उसके सहचर्य से जीवन उज्ज्वल होता है। ”7 इस कथन से गुरु जी ने  मरदाना से कहा बाजार में रत्न को जानना सबके बस की बात नहीं होती है वैसे जीवन को समझना भी । जब गुरु नानक पर मुस्लिम शासक ने जुलूम किया वह देखकर गुरु नानक देव अपने शिष्य मरदाना को से बोले थे – “ तुम ख्याब बजाव, हम कविता पाठ करेंगे ।”8

          इस पंक्ति से लोदी का पूरा दरबार भक्ति से प्रभावित हुआ था कारण उनकी वाणी के जयजयकार से जेल में भव्यता का निर्माण हुआ था। तुम राजा होकर प्रजा पर इतना जुलुम कर रहे है हो यह किसी धर्म में नहीं लिखा है। विश्व के सब धर्म में मानवता का प्रेम प्रतीत होता है । राजा सिंकदर लोदी जिस तरह से अन्य को मारने-काटने की बात करता था परंतु गुरु नानक देव का भजन व शिक्षा से बदलाव आ गया। गुरु नानक देव की शिक्षा मूल्य का समाज में स्मरण रहने के लिए लगभग सभी शहर में गुरुद्वारा दिखाई देता है । जहाँ पर आज भी गुरु नानक देव के मूल्यों का सच्चा दर्शन होता है। इसी तरह का दिल्ली में एक गुरुद्वारा मजनू का टीला पर बना है। दूसरा जी.टी.रोड पर नानक पाउ के नाम से हैं।

“जौ तों प्रेम खेलन को चाओ, सिर धर तली गली मोरी आओ ।” 9

इससे गुरु नानक देव ने जिस जनता पर अन्याय हो रहा था उसके खिलाफ आवाज उठाने का सामर्थ्य निर्माण किया । गुरु नानक देव ने समाज-व्यवस्था में जो दीन-दुर्लभ के संदर्भ में कहा है –

“नीचा अंदरी नीची जाति नीची हूँ अति नीच।

नानक तिनके सग साथ बड़िया सु क्या सीख ।।”10

उक्त पंक्ति में  समाजव्यवस्था में जो निम्न स्तर पर जीवन व्यथित करनेवाले ओर दीन-दुर्लभ के साथ गुरु नानक देव रहते हैं। यह गुरु नानक देव की शिक्षा मूल्य हमारा मानस सिंचित पर विचार करने के बाध्य करती है। कारण समाज में बहुत उन्नति शिक्षा के कारण हुई और भी हो रही है लेकिन अभी समाज में उच्च-नीच की खाई कम होने के बजाय बढ़ ही रही है । यह समाज में बड़ी विडम्बना है। उदाहरण अभी हाल में घटित घटना है कि तमिलनाडु में दलितों का शव पुल से जाने नहीं दिया। ऐसी घटनाएँ हमें वर्तमान पत्र से सुनने को मिलती है।

          गुरु नानक देव के कीर्तन की एक विशेषता है कि उनमें किसी तरह का जात-पात तथा धर्म का कोई बंधन नहीं था । इसलिए गुरु जी कीर्तन में सभी को द्वार खुले थे। गुरु नानक देव की लंगर प्रथा आज भी अनेकता में एकता का भाव मानवता में उजागर करती है। गुरु नानक देव ने नारी के महत्ता को प्रतिपादित कराकर उन्हें पुरुषों के बराबर दर्जा दिया। यह मध्ययुगीन समाज में स्त्री को एक मानवता के रुप में देखा। गुरु नानक देव ने संसार का त्याग न करके गृहस्थ जीवन में रखकर भी भक्ति से ईश्वर प्राप्ति हो सकती है। यह गुरु नानक की बात गीता का स्मरण दिलाती है। इससे पता चलता है गुरु नानक देव की वाणी की शिक्षा व मूल्य किसी एक धर्म-ग्रंथ, जात-पात तक सीमित न होकर समग्रता में हैं। इसलिए उन्होंने मानवता के भौतिक उद्धार के साथ आध्यात्मिक का सरल रास्ता बताया है। गुरु नानक देव की सत्यता व शिक्षा से सूफी कवि वहाउद्दीन,शेख फरीद प्रभावित हुए । गुरु नानक देव की नैतिक शिक्षा भारतीय परंपरा के अनुकूल है। कारण बौद्ध धर्म में आचरण, त्याग, संसार से वैराग्य और भिक्षुक बनने पर अधिक महत्त्व देता है परंतु सिक्ख धर्म और महाराष्ट्र का वारकरी पंथ की शिक्षा नैतिक सिद्धांत सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन व्यापन करने पर अधिक ज़ोर देता है।

          इस तरह से गुरु नानक देव के विचार थे  ज्ञानवान, आत्मिक जीवन में मानवता को आवाहन करते हैं। मनुष्य को अपनी प्रतिभा ही मानव जाति की सेवा करने में लगानी चाहिए। इसलिए गुरु जी अपने यात्रा के समय में एक गाँव में गए जहाँ पर सब अच्छे व नेक लोग रहा करते थे, उन्हें ‘उजड़ जावों’ की बात करते हैं वही दूसरे गाँव में उच्च तथा नास्तिक व बुरी प्रवत्ति के लोगों को आवाहन करते हैं ‘यही रह जाव’ की बात करते हैं। इससे गुरु नानक देव की जीवन मूल्य की शिक्षा से पता चलता है, जिस व्यक्ति में अच्छाई है। उससे एक अच्छे समाज निर्माण होने की आशा व्यक्त करते हैं। गुरु नानक देव ने जीवन की सच्ची पुजा ह्रदय रुपी थाली में तीन वस्तुए हैं सत्य, संतोष, विचार रखों। गुरु जी ने कितनी महत्त्वपूर्ण बात कही है। आज के कितने वर्ष के पश्चात भी उनकी शिक्षा प्रासंगिक विद्यमान है और समाज को उसकी आवश्यता है।  गुरु गोविंद सिंह शिक्षा में कहते हैं –“थोड़ा खाओ थोड़ा सोओं तथा ह्रदय में दया क्षमा से प्रेम धारण करों ।”11 गुरु गोविंद सिंह समाज में शिक्षा का संदेह देते हुए कितना संयमता से प्रेम की बात करते हैं। मनुष्य को नम्रता ही नैतिक शक्ति प्रदान करती है। जहाँ क्षमा का गुण है वहाँ पर परमात्मा की ज्योति है। गुरु नानक देव ने अपनी शिक्षा मन में शब्दों को धारण करने के रूप में योग को व्यक्त किया है।

अंतरि सबदु निरंतरि मुद्रा हउमै ममता दूरि करी।।

काम, क्रोध अहंकारु निवारै गुरु कै सबदि सु समझ परी।।

खिंथा झोली भरिपुरी रहिआ नानक तारै एकु हरी॥

साचा साहिबु साची नाई परखै गुर की बात खरी॥12

उक्त पंक्ति से विदित होता है गुरु नानक देव ने योग के द्वारा ही पंचों विकार पर विजय पायी है। उसी का अनुसरण जनता को करते हैं। गुरु नानक देव ने मनुष्य का जीवन प्रेम के अभाव में खाली शंख के समान है। इसलिए मनुष्य के जीवन में प्रेम को बड़ी महत्ता प्रतिपादिता किया है। गुरु नानक देव ने प्रेम से सभी जनता जनार्दन से संवाद ईश्वर के भजन से साधा है। गुरु नानक देव ने बार-बार समझाया है कि कर्मों से मुक्ति कर्तव्यों को त्यागकर नहीं बल्कि अपनाकर प्राप्त की जा सकती है। इससे जीवात्मा परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। भक्ति पंथ के संत नैतिक मूल्य की शिक्षा दी है वह अपने समाज संस्कृति को व्यक्त करती है।

निष्कर्ष : गुरु नानक देव की जीवन मूल्य शिक्षा से तत्कालीन समय में बड़ा परिवर्तन हुआ था। वह चाहे सिंकन्दर लोदी हो या चोर डकैत्त की घटना तथा मक्का में काबा की ओर पैर की घटना ही क्यों न रही हो। उनको भी गुरुजी की शिक्षा से बदलाव आया था। जिस तरह से वर्तमान में देश में जातिवाद,असत्यवाद, सांप्रदायिक धर्मान्ध से लोगों में आपसी मतभेद पनप रहे हैं। यहाँ पर एक ध्यान देने योग्य बात प्रतीत होती है। मध्यकाल के संतों ने भक्ति, धर्म के जरिये समाज में आपसी प्रेम निर्माण किया। उसमें सभी धर्म जाति के लोग एकत्र हुए। परंतु आज की स्थिति पर क्या कहा जाए ! इसलिए वर्तमान समय में गुरु नानक देव के विचारों को समाज में आवश्यकता है। गुरु नानक देव के विचारों से पूरा विश्व प्रभावित हुआ था। इस कारण ही मराठी संत तुकाराम के समान गुरु नानक देव को विश्व गुरु के रूप में जाना जाता है।

संदर्भ ग्रंथ –

1. सं. निहालसिंह, गुरुमुख, (1970) गुरु नानक देव :जीवन,युग एवं शिक्षाएं, नैशनल पब्लिशसिंग हाउस,दिल्ली पृ.  सं.262

2.सिंह बेदी, डॉ. हरमहेन्द्र, पंजाब के हिन्दी साहित्य का इतिहास (2008) निर्मल पब्लिकेशन,दिल्ली, पृ.60

3.वही,पृ.सं.67

4.सहगल, मनमोहन, ( )पंजाब का हिन्दी साहित्य, लीना पब्लिशर्ज पटियाला, पृ.सं.111

5. कामत, डॉ.अशोक प्रभाकर, (2006) गुरु नानक देव, गुरुकुल प्रतिष्ठान, पुणे पृ.सं.135

6. वही, पृ.139

7. वही, पृ.सं.145

8. सं. निहालसिंह, गुरुमुख, (1970) गुरु नानक देव :जीवन,युग एवं शिक्षाएं, नैशनल पब्लिशसिंग हाउस,दिल्ली पृ.सं.76

9. वही ,पृ. सं.101

10. पाठक, नरेंद्र, (1970) गुरु नानक देव, सन्मार्ग प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 51

11. सं. निहालसिंह, गुरुमुख, (1970) गुरु नानक देव :जीवन,युग एवं शिक्षाएं, नैशनल पब्लिशसिंग हाउस,दिल्ली पृ. सं.101

12. अग्निहोत्री, डॉ. कुलदीप चंद (2019) लोकचेतना और आध्यात्मिक साधना के वाहक श्री गुरु नानक देवजी, प्रभात पेपरबैक्स, पृ.96

जगदाले अप्पासाहेब गोरक्ष

शोधार्थी

हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय,

हिन्दी विभाग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *