बीसवीं शताब्दी में भारतीय राजनीति के क्षेत्र में सबसे प्रभावकारी नेता के रूप में मोहनदास करमचंद गांधी का उदय हुआ | भारतभूमि को स्वतंत्रता दिलाकर स्वराज्य स्थापित करने की मनीषा से इस व्यक्ति ने अपना सम्पूर्ण जीवन ही राष्ट्र को समर्पित कर दिया था | भारतीय समन्वयवादी संस्कृति की पूंजी माने जाने वाले महान ग्रंथ रामायण व गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस को उन्होंने अपना जीवनादर्श माना | सत्य, अहिंसा, प्रेम, सद्भाव, शांति तथा मानवता की भावना को समस्त मानवजाति में प्रतिष्ठित करने के लिए जीवनांत तक वे संघर्ष करते रहे | ‘महात्मा गांधी ने जीवन व्यतीत करने और बेहतर समाज विकसित करने के कुछ सिधांत दिए थे. इन सिधान्तों को ही गांधीवाद कहा जाता है, आगे उनके यही विचार गांधीवादी सिधांत या गांधी दर्शन के रूप में स्थापित हो गए | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक पूरे भारतीय साहित्य पर उनकी इसी विचारधारा का असर देखा जा सकता है | भले ही राजनीतिक क्षेत्र में बदलते समय के अनुसार उनके विचारों की उपेक्षा की जाती रही हो पर साहित्यकार हमेशा उनसे प्रेरणा लेते रहे हैं | भारत की लगभग सभी भाषाओं के साहित्य पर गांधी के मानवतावादी वैचारिक चिंतन का गहरा असर हुआ है | विशेषत: हिंदी साहित्य और साहित्यकार गांधी दर्शन से सर्वाधिक प्रभावित हुए है | महात्मा गांधी को हिंदी के प्रति विशेष प्रेम था | इसीलिए उन्होंने हिंदी के माध्यम से समस्त भारतियों को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया था | शायद यही कारण है कि हिंदी साहित्य और साहित्यकार उनके अधिक निकट आ गए और उन्होंने अपनी कथा,कविता,उपन्यास,नाटक आदि विधाओं में गांधी के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन को प्रसंगानुरूप चित्रित किया है  |
गांधीवादी साहित्य के बारे में कहा जाता है कि केवल संस्कृति और सभ्यता के आदर्श की बात करनेवाला साहित्य ही मात्र गांधीवादी साहित्य नहीं है | इस सन्दर्भ में आचार्य काकासाहेब कालेलकर कहते हैं “पुराने मान्य वचन उद्धत करने के बदले वह साहित्य जीवन के तरह-तरह के प्रयोगों के अनुभव लिखता रहेगा | पुराने का बोजा सर पर चढ़ाये बिना पुराने में से जो कुछ लेने योग्य लगे उसका संग्रह करके समाज नयी परिस्थिति का मुकाबला कर सके ऐसे जीवन प्रयोग आजमाएगा | भूले करेगा और सुधारेगा और ऐसे मौलिक हिम्मतवान जीवन में से जो पैदा होगा वही होगा गांधी युग का साहित्य ऐसा साहित्य पुराणी धार्मिक मानी जाने वाली लेकिन निरुपयोगी साबित हुई रूढ़ियों को फेंक देगा, जगत की सब संस्कृतियों के पुरुषार्थ के प्रति आस्तिकता और आदर रखेगा, और नई जागतिक संस्कृति के लिए नींव तैयार करेगा’’ असल में सह यही गांधीवादी है | हिंदी साहित्यकारों ने भी सच्चे अर्थो में इसी प्रकार के साहित्य को सृजित किया है, उन्होंने गांधी दर्शन को न केवल अपने जीवनचर्या का हिस्सा बनाया अपितु अपने सृजन कर्म को भी उसके प्रति पूर्ण समर्पित कर दिया था |
प्रेमचंद ने तो गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर अपनी सरकारी नौकरी से भी त्यागपत्र दिया था | महात्मा गांधी के प्रथम असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने ‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास लिखा था, जिसमें जातिय और सांप्रदायिक संघर्ष को चित्रित किया है | इसकी रचना के सन्दर्भ में स्वयं प्रेमचंद ने अपनी पत्नी शिवरानी देवी से कहा था कि “गांधी के गोरखपुर आने पर मै उनका चेला हो गया, यद्यपि मै उन्हें बिना देखे ही उनका चेला हो गया था, क्योंकि प्रेमाश्रम लिखकर मै वही लिख रहा था, जो वे चाहते थे ’’ उनके रंगभूमि उपन्यास का नायक सूरदास सत्य, न्याय और धर्म की लड़ाई लड़ते हुए संघर्षपूर्ण जीवन जीता है | उनके अन्य उपन्यासों में भी गांधी विचारों के स्वर मुखरित हुए है | सेवासदन, गोदान, कर्मभूमि, प्रेमा, गबन आदि उपन्यासों में ग्रामीण जीवन, सांप्रदायिक संघर्ष, नैतिकता, नारी सन्मान आदि विषयों को स्थान देकर प्रेमचंद ने अपने लेखन में मानवतावादी दृष्टिकोण का परिचय दिया है |
प्रेमचंद ने हिंदी में तीनसौ से अधिक कहानियाँ लिखी, जिनमें अधिकतर कहानियाँ गांधी दर्शन से प्रेरित रही है | उनकी राजनीतिक कहानियों में विचित्र होली, लाल फीता, दुस्साहस, आदर्श विरोध, लाग डाट आदि कहानियाँ असहयोग आंदोलन की युग चेतना पर लिखी गई है | उसी तरह बलिदान, पशु से मनुष्य, उपदेश जैसी कहानियाँ कृषि संस्कृति के महत्व को उजागर करती है | मानवी आदर्श को लेकर उन्होंने सज्जनता का दंड, पञ्च परमेश्वर, सेवा मार्ग , सच्चाई का उपहार, घमंड का पुतला आदि जैसी कहानियाँ लिखी जिसमें नैतिक मूल्यों के विजय का चित्रण है | इस तरह से गांधी युग की लगभग सभी समस्याओं का चित्रण प्रेमचंद के कथात्मक साहित्य में देखा जा सकता है |
मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार जैनेन्द्र भी गांधीवादी विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित थे | उनके परख उपन्यास के कथानक में गांधी दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है | उपन्यास की शुरुवात में वे अपनी बात रखते हुए कहते हैं “ सभी पात्रों को मैंने अपनी ह्रदय की सहानुभूति दी है | दुनिया में कौन है जो बुरा होना चाहता है और कौन है, जो बुरा नहीं है, अच्छा ही अच्छा है? न कोई देवता है, न पशु. सब आदमी ही है, देवता से कम ही और पशु से उपर ही” उनके चर्चित उपन्यास सुनीता, की नायिका सुनीता अपने जीवन में समस्याओं और संघर्षों से जुझते हुए जीती है | इसके अतिरिक्त सुखदा, व्यतीत, त्यागपत्र और विवर्त में चित्रित संघर्ष का समाधान जैनेन्द्र गांधी दर्शन के अनुरूप प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं | डॉ.चंद्रकांत बांदिवडेकर अपने आलेख हिंदी उपन्यास और गांधीवाद में कहते हैं कि “जैनेन्द्र बुद्धि से दुश्मनी करते हुए दिखाई देते हैं, और उनके प्रमुख पात्र भी समस्याओं के समाधान के लिए बुद्धि पर निर्भर रहने की अपेक्षा ह्रदय और श्रद्धा में विश्वास करते जान पड़ते हैं | गांधीजी बुद्धि से अधिक श्रद्धा में आस्था रखते थे” | ‘इलाचंद्र जोशी अपने जिप्सी उपन्यास में स्त्री और पुरुष की मनोवैज्ञानिकता को स्पष्ट करते हुए व्यक्ति,समाज,वर्ग,व्यवस्था तथा राजनीति के बीच का संघर्ष को अभिव्यक्त करते हैं’  वही मुक्तिपथ जैसे उपन्यास उनकी मानवतावादी दृष्टिकोण का अहसाह कराते हैं |
भगवती प्रसाद वाजपेयी के उपन्यासों के केंद्र में प्रेम,सौन्दर्य के साथ मानवता की भावना ही महत्वपूर्ण रही है | चलते चलते, मनुष्य और देवता, यथार्थ के आगे, पाषाण की लोच उनके उल्लेखनीय सामाजिक उपन्यास है | पाषाण की लोच उनका कर्तव्य और भावना के संघर्ष का एक मर्मस्पर्शी उपन्यास है |उन्होंने अपने पतवार उपन्यास में गांधी दर्शन के आदर्श को स्वीकारते हुए कहा है कि ‘स्थाई विश्वशांति और मनुष्य मात्र का कल्याण सत्य और अहिंसा के द्वारा ही संभव है’ ऐतिहासिक उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा का अमरबेल गांधीजी की सहकारिता की भावना पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है | उसी तरह उनके गढ़कुंडार प्रेम की भेंट, अहिल्याबाई, मृगनयनी, आँचल मेरा कोई, झांसी की रानी आदि उपन्यास आत्मोसर्ग,देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता, नारी शक्ति जैसे आदर्शों को स्थापित करने में सफल हुए है | यशपाल ने अपने झूठा सच, दादा कामरेड, पार्टी कामरेड, दिव्या, देशद्रोही, मनुष्य के रूप तथा अमिता जैसे उपन्यासों में गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन का वर्णन किया है | भगवतीचरण वर्मा का टेढ़े मेढ़े रास्ते पहला राजनितिक उपन्यास है ‘जिसमें 1930 के सत्याग्रह आंदोलन को चित्रित किया गया है | इस उपन्यास के पात्र देशहित के लिए किसी भी प्रकार के कष्ट सहने को तैयार है, उसी प्रकार से हिन्दू मुस्लिम एकता की पृष्ठभूमि पर आधारित चंद हसीनों के खतूत यह पाण्डेय बैचैन शर्मा का उपन्यास हिंदी उपन्यास साहित्य की अनुपम उपलब्धि है |
हिंदी उपन्यासकारों के अलावा ऐसे कई आधुनिक कहानीकार हैं जिन्होंने हिंदी कहानी साहित्य में गांधी दर्शन को प्रकट किया है | विष्णु प्रभाकर का कहानी संग्रह मेरी प्रिय कहानियाँ शुद्ध जीवन व शाश्वत सत्य से प्रभावित कहानियों का संग्रह है | इस कहानी संग्रह के आरंभ में वे कहते हैं कि “मेरी अधिकतर कहानियाँ मनुष्य की है, व्यक्ति की नहीं मनुष्य में ही मेरी अधिक रुचि रही है | उसके जीवन में जो झूठ और पाखण्ड मैंने देखा, सहा है यथासंभव मैंने इन कहानियों में सत्य को ही स्वर देने का प्रयत्न किया है, फिर चाहे वह किस के विरुद्ध हो’’ इस संग्रह की महत्वपूर्ण कहानियों में भोगा हुवा यथार्थ, जरुरत, अभाव, आकाश की छाया में, धरती अब भी घूम रही है, ठेका जैसी कहानियों में मनुष्य और उसके संघर्ष का विवेचन हुआ है |
गांधी के अहिंसा संबंधी सम्यक विचारों का प्रभाव विनोद शंकर व्यास की स्वराज कब मिलेगा? में हुआ है | स्वत्रन्त्रता आंदोलन में कूद पड़े अपने पति को आंदोलन में मारे जाने के भय के कारण वह उसे सभा में जाने से मना करती है | इस पर केशव कहता है “यह कैसे हो सकता है? इस शांतिपूर्ण युद्ध में मरने के बाद भी स्वर्ग है –स्वतंत्रता है” | आनंद प्रकाश जैन की देवताओं की चिंता तथा अमृतलाल नागर की एटम बम जैसी कहानियों में भी अहिंसा और शांति की गुहार लगाई गई है. विश्वास जैसे जीवन मूल्य को विघटन से बचाने की कोशिश सुदर्शन अपनी कहानी हार की जीत में करते हैं | महात्मा गांधी ने सत्य की खोज के लिए सेवा को आवश्यक माना है | ‘बलदेव उपाध्याय की पतिव्रता का व्रत और स्वरुपकुमार बक्शी की कुरूप कन्या, बुलबुल इसी भाव को अभिव्यक्त करनेवाली कहानियाँ हैं’ |
आधुनिक हिंदी नाटककारों और रंगकर्मियों ने भी गांधी के जीवन और विचारों के विभिन्न पहलुओं को अपने अपने दृष्टि से चित्रित किया है | जैसे कि प्रसिद्ध नाटककार प्रसन्ना ने बाबरी मस्जित के विध्वंस की घटना ने बाद बढ़ती साम्प्रदायिकता को केंद्र में रखकर बापू नाटक लिखा उनका कहना है कि ‘बाबरी मस्जित विध्वंस की घटना ने उन्हें इतना व्यथित किया कि उन्होंने गांधी के अहिंसा के सिधांत को युवा पीढ़ी में फ़ैलाने के लिए यह नाटक लिखा’ | जनवादी नाटककार राजेश कुमार ने गांधी जीवन प्रसंगों को लेकर गांधी ने कहा था, मार पराजय, हिंद स्वराज और वर्ण श्रम को लेकर आम्बेडकर और गांधी यह चार नाटक लिखें. इन सभी नाटकों में गांधीवादी विचारधारा का चित्रण है.देश के विभिन्न समुदायों में तमाम तनाओं और असहज हालातों के बीच उनका गांधी ने कहा था यह नाटक हमेशा प्रासंगिक रहेगा | इस नाटक के संदर्भ में वे कहते हैं कि “प्रदीप दलवी ने अपने नाटक मै नाथूराम गोडसे बोल रहा हूँ में जिस तरह गोडसे का महिमामंडन किया उसका जवाब देने के लिए मुझे यह नाटक लिखना पड़ा, क्योंकि साम्प्रदायिकता के खिलाफ जिस तरह गांधी को लड़ना पड़ा, वैसी लड़ाई राष्ट्रीय आंदोलन के किसी नायक ने नहीं लड़ी”
नंदकुमार आचार्य के सोलो नाटक बापू की भी बहुत चर्चा हुई | असगर वजाहत ने साम्प्रदायिकता विभाजन की तकलीफ से आहत गांधी के वैचारिक संघर्ष को लेकर गोडसे @ गांधी.कॉम यह नाटक लिखा. एम के. रैना ने भी गांधी पर तीन नाटक लिखे जिसमें बावला और बापू @साबरमती.कॉम सबसे अलग नाटक है, जिसमे बच्चों की नजरिए से बापू को देखा है |
निष्कर्षत कहा जा सकता है कि हिंदी साहित्यिक क्षेत्र में ऐसे कई लेखक हैं जिन्होंने महात्मा गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रभावित होकर गांधी दर्शन को अपने उपन्यास, कहानी और नाटक जैसी सर्वप्रिय विधाओं के माध्यम से प्रवाहित और प्रचारित किया है | जहाँ साहित्य उद्देश्य के केंद्र में ‘मनुष्य’ को सर्वोपरि माना जाता है | वहीं गांधीविचारधारा के केंद्र में भी ‘मनुष्य’ ही है | इसी के अनुरूप हिंदी कथात्मक साहित्य में सत्य, अहिंसा, विश्वबंधुत्व, शांति, समर्पण, सर्वधर्म समभाव, मानवता आदि गांधीवादी आदर्श को साहित्यकारों ने अपने साहित्य में योग्य जगह देकर, साहित्य के उद्देश को सार्थक कर मानवता को ही सर्वोपरि माना है | गांधीवादी विचारधारा के प्रभाव की व्याप्ती केवल राजनितिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र भी इस विचारधारा के प्रभाव से अछूते नहीं रह पाए है | देश और दुनिया के बुद्धिजीवी तथा सर्जक वर्ग ने अपने चिंतन और सृजन में गांधी दर्शन को सन्मानपूर्वक स्थान देकर भारतीय समाज में स्वातन्त्र्य, समता तथा विश्वबंधुत्व की भावना को अधिक प्रखरता से स्थापित करने में अपना योगदान दिया है | समय के दबाव में चाहे जितने भी चुनौतिया या परिवर्तन हमारे देश में हो गांधी चिंतन से प्रेरणा लेकर ही हमें अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहना होगा | यह विचारधारा ही हमे व्यभिचार, साम्प्रदायिकता, आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकती है, इस दृष्टि से सृजनकर्मियों और संवेदनशील बुद्धिजीवियों को सजग रहना होगा |

संदर्भ सूची –
1. हरिभूमि पोर्टल महात्मा गांधीवाद क्या है? लेख
2. संपा.अमृतलाल याग्निक,गुजरात में गांधी युग (ऐतिहासिक और साहित्यिक अवलोकन), आचार्य काकासाहेब कालेलकर स्मारक निधि सन्निधि, राजघाट, नयी दिल्ली, प्र.सं.1996, पृष्ठ 80
3. कमल किशोर गोयनका,प्रेमचंद कहानी रचनावली,खंड दो, साहित्य अकादेमी, प्र.सं. 2010, पृष्ठ 09
4. जैनेन्द्र कुमार, परख, हिंदी ग्रंथ रत्नाकर प्राइवेट लिमिटेड,बम्बई, आठवी आवृति, जुलाई 1956 पृष्ठ 05
5. डॉ.चंद्रकांत बांदिवडेकर के हिंदी उपन्यास और गांधीवाद आलेख से उद्धत
6. इलाचंद्र जोशी, जिप्सी, राजकमल प्रकाशन समूह, नयी दिल्ली
7. भगवत प्रसाद वाजपेयी, पतवार (उपन्यास) की भूमिका से
8. मनीषा जोगिया, आधुनिक हिंदी साहित्य पर गांधी विचारधारा का प्रभाव, सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट, शोध प्रबंध, 2004, पृष्ठ 192
9. विष्णु प्रभाकर,मेरी प्रिय कहानियाँ, राजपाल एण्ड सन्ज, दिल्ली -6 प्र.सं.1970, पृष्ठ 01
10.विनोद शंकर व्यास,विनोद शंकर व्यास की ४१ कहानियाँ,बलदेव मित्र-मंडल,काशी,1986, पृष्ठ 130
11. गांधीवाद से प्रभावित आधुनिक हिंदी साहित्य डॉ.छोटेलाल गुप्ता 1.3.2019 ,साहित्य कुंज
12.विमल कुमार, नाटक में गांधी (लेख 13 मई 2019) से उद्धत
13. वही

डॉ.सुनील डहाळे
सहयोगी अध्यापक, हिंदी विभाग
विनायकराव पाटील महाविद्यालय,वैजापुर
महाराष्ट्र

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