मानसिक दृढ़ता मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा वह किसी भी क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर सकता है। विपरीत परिस्थितियों में भी मनुष्य की मानसिक दृढ़ता उसको उचित निर्णय लेने में सहायक होती है। मनुष्य का स्वभाव और व्यवहार उसके माता पिता के अनुवांशिक गुणों द्वारा और परिवेश पर निर्भर करता है। इसके अलावा आसपास का वातावरण और हम उम्र लोगों का साथ भी उसके व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव डालता है। अगर कोई व्यक्ति उस मनुष्य को बहुत प्रिय है तो वह उस व्यक्ति के जीवन का अनुकरण करने की कोशिश करता है। और उसके आचरण में इसकी झलक दिखाई पड़ती है। मानसिक दृढ़ता भी व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण घटक है। जिसका उपयोग समय एवं परिस्थिति के अनुसार किया जाता है। मानसिक सुदृढ़ व्यक्ति छोटी मोटी घटनाओं से विचलित नहीं होता अपितु अच्छे प्रकार से उसका मुकाबला करता है।
मानसिक दृढ़ता किसी व्यक्ति की वह क्षमता है जिसके द्वारा वह अपने लक्ष्य में आने वाली बाधाओं, चिन्ताओं, उलझनो और परेशानियों को दूर करने और उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम होता है और अपने निर्धारित लक्ष्य की तरफ तय सीमा में पहुँच जाता है। खेलों के अन्दर शारीरिक सुदृढ़ता और तन्दुरुस्ती का बहुत महत्व है। इसके अतिरिक्त, ताकत, लचीलापन, गति भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। किन्तु इन सबके बावजूद खेल की विषम परिस्थितियों में मानसिक दृढ़ता वह अस्त्र है जो किसी भी खिलाड़ी को जीत की राह पर ले जाता है। इस विषय में बेहतरीन उदाहरण उपलब्ध है जैसे काॅमनवेल्थ गेम्स 2010 में गीता फोगाट का महिला कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतना क्योंकि वह अपने प्रतिद्वन्दी खिलाड़ी से न केवल पिछड़ रही थी अपितु प्रतियोगिता की समय सीमा भी समाप्त होने वाली थी। इसके अतिरिक्त एम.सी. मेरी काम महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता में न केवल सात बार से विश्व चैम्पियन है। अपितु शादीे और तीन बच्चे होने के बाद भी उन्होंने अपने स्वर्णिम कैरियर को बनाये रखा। चाहे हम ओलम्पिक में निशाने बाजी में स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिन्द्रा का नाम ले या पी.वी. सन्धु का बैडमिन्टन की विश्व कप प्रतियोगिता में प्रथम स्थान का उदाहरण रखे। ये फेहरिस्त अन्तहीन है। जब खिलाड़ियों ने अपनी मानसिक दृढ़ता के बल पर विश्व में न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि साथ-साथ अपने खेल को अभूतपूर्व ऊँचाईयों तक भी लेकर गये हैं। मानसिक दृढ़ता का विकास किसी दवा या सलाह से नहीं होता, इसके लिए कठिन परिश्रम और निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता होती है।
मानसिक दृढ़ता को बनाने के लिए अति महत्वपूर्ण तथ्य है- अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना। अगर खिलाड़ी अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाता अर्थात् खेल की परिस्थिति अनुसार अपने आवेश और भाषा पर नियंत्रण खो बैठता है तो वह उसकी भावनात्मक कमजोरी का परिचायक है।
खेलों के इतिहास में ऐसे अनेको उदारहण है जब खिलाड़ी ने विपक्षी टीम के अपशब्दों और अनुचित व्यवहार का जवाब, अपने खेल की उत्कृष्ट पराकाष्ठा के द्वारा दिया है। चाहे वो भारत और आस्ट्रेलिया के बीच एक दिवसीय क्रिकेट की बात हो या मिल्खा सिंह के पाकिस्तानी दौरे में 400 मीटर दौड़ का उदाहरण हो। हर जगह महान खिलाड़ियों के भावनात्मक नियंत्रण ने खेल की नई ऊँचाईयों को छूने का अवसर प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त खिलाड़ी का बदलते समय स्थान और परिवेश के सामंजस्य बिठाने की कला भी, उसके खेल में सुधार के अवसर बनाये रखते हैं इसके साथ-साथ खिलाड़ी का वैभवपूर्ण और विलासिता से दूरी, समस्याओं और मुकाबलों से रूबरू होने की क्षमता, एकाग्रता और सकारात्मक सोच उसे मानसिक रूप से न केवल सुदृढ़ करती है अपितु खेल को उत्कृष्ट बनाने में भी सक्षम है। मानसिक दृढ़ता खिलाड़ियों में निरन्तर अभ्यास और मनोवैज्ञानिक सलाह के द्वारा भी बेहतर की जा सकती है। मानसिक दृढ़ता ना केवल खिलाड़ियों के लिये अपितु आम जीवन में मनुष्य के लिये अति आवश्यक है।
मनुष्य की परिस्थितियाँ कभी भी एक समान नहीं रहती, उसमें उतार, चढ़ाव आते जाते रहते हैं। इन उतार चढ़ाव के साथ सामंजस्य बिठाना, मनुष्य की नियति है। जो लोग सामंजस्य में बिठाने में विफल हो जाते हैं वो या तो अपने लक्ष्य को छोड़ देते हैं या गहरे अवसाद में चले जाते हैं। कुछ मामलों में तो इसकी परिस्थिति आत्महत्या के रूप में सामने आती है। किसी भी खिलाड़ी के कैरियर का अगर आप विश्लेषण करते तो यह ज्ञात होगा कि उसका प्रदर्शन हर समय एक जैसा नहीं रहा, बल्कि ऐसा समय भी रहा कि उस खिलाड़ी ने खेल जीवन से संन्यास लेने या प्रशासकों द्वारा उसे निकाले जाने का मन भी बना लिया गयाथा, किन्तु ये उस खिलाड़ी की मानसिक दृढ़ता का ही परिणाम था जिसके द्वारा उसने न केवल अपने कैरियर को बचाये रखा बल्कि साथ ही साथ नई उपलब्धियाँ भी हासिल कर ली। उदाहरण के तौर पर भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी या कैंसर की बीमारी पर विजय प्राप्त कर भारतीय क्रिकेट टीम में पुनः स्थान बनाने वाले युवराज सिंह, जानलेवा हादसे से उभर कर भारतीय हाॅकी टीम के संदीप सिंह/ ऐसे सैकड़ों उदाहरण भारतीय खेल जगत मिल जाऐंगे जिन्होंने मानसिक दृढ़ता के बल पर अपने खेल कौशल को बचाये रखा और बनाये भी रखा।
खेलों के अनुसार भोजन को लेना, समकक्ष सार्थियों के साथ मनोरजंन का त्याग कर घंटो खेलों के मैदान में पसीना बनाना, कठिन प्रशिक्षण को प्राप्त करना, परिवार जनों से दूरी आदि कारक किसी भी मानसिक सुदृृढ़ व्यक्ति द्वारा ही सम्भव है। एक परिपक्व खिलाड़ी का मानसिक स्तर नये खिलाड़ियों और स्थापित खिलाड़ियों के मुकाबले अधिक बेहतर होता है। इसलिये मैच के दौरान मैदान के बाहर भी वरिष्ठ खिलाड़ियों की सलाह को अनदेखा नहीं किया जाता है। विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में खेल क्षमता के साथ-साथ अनुभव को भी वरीयता दी जाती है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि बड़े स्तर की प्रतियोगिताओं में अनुभवी खिलाड़ियो का प्रदर्शन स्थापित खिलाड़ियों की अपेक्षा बेहतर और मैच जिताऊ भी होता है।
भारत ने दिव्यांग प्रतियोगिताओं में विश्वस्तर पर अनेकों पदक अर्जित किये हैं। दिव्यांग खिलाड़ियों ने मनासिक दृढ़ता के बल पर अपनी शारीरिक अक्षमताओं को बौना सिद्ध कर दिया है। कुछ दिव्यांग व्यक्तियों ने तो खेल को औषधि के रूप में अपना कर अपने जीवन को नई दिशा दी है और आम व्यक्तियों एवं खिलाड़ियों के लिये प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं।

निष्कर्षः-
मानसिक दृढ़ता किसी भी खिलाड़ी के व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण घटक है। विषम परिस्थितियों में भावनाओं पर नियंत्रण रख उचित निर्णय लेना खिलाड़ियों का मानसिक दृढ़ता का परिचायक है। मानसिक दृढ़ता को दवाईयों के माध्यम से नहीं बढ़ाया जा सकता। इसके लिये निरंतर अभ्यास और मनोवैज्ञानिक सलाह आवश्यक है। कुछ खिलाड़ियों में यह अनुवांशिक तौर पर पाया जाता है। इसके अतिरिक्त खिलाड़ी का परिवेश एवं परवरिश, सहयोगियों और समकक्ष खिलाड़ियो का प्रभाव, व्यक्तिगत क्षमता भी मानसिक दृढ़ता के विकास पर प्रभाव डालती है। खिलाड़ियों के जीवन अध्ययन से यह स्पष्ट है कि खिलाड़ी का प्रदर्शन समय के साथ एक सा नहीं होता, किन्तु मानसिक दृढ़ता के बल पर खिलाड़ी अपने प्रदर्शन में ना केवल सुधार कर सकता है अपितु नई ऊँचाइयों को भी छूने में सक्षम है। अगर आप दिव्यांग खिलाड़ियों का उदाहरण ले तो यह बात आइने की तरह स्पष्ट है कि मानसिक दृढ़ता शारीरिक क्षमता पर भी विजय प्राप्त करने में सक्षम है। क्योंकि दिव्यांग खिलाड़ी अपनी शारीरिक बाधाओं पर विजय प्राप्त कर खेल के मैदान में अपना प्रदर्शन करने की काबलियत रखता है। और उसके प्रदर्शन का स्तर एक साधारण शारीरिक सक्षम खिलाड़ी के मुकाबले उत्कृष्ट होता है। ऐसे भी सैकड़ों उदाहरण है जब खेलों ने दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन को नई दिशा दी है और उन्हें एक नई रोशनी एवं ऊर्जा प्रदान की है जिसके द्वारा उन्होंने अपनी मानसिक दृढ़ता को ना केवल बढ़ाया है, अपितु परिणाम स्वरूप विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में पदक लेकर देश का नाम भी रोशन किया है।

 

डाॅ. मुकेश अग्रवाल
सहायक प्रोफेसर
शारीरिक शिक्षा विभाग
महाराजा अग्रसेन काॅलेज,
दिल्ली विश्वविद्यालय

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