1. हवा का चलना, न चलना
हवा न चल रही हो तो
लाखों पेड़ कुछ नहीं कर सकते
सिवाय सावधान की मुद्रा में
निश्चल खड़े रहने के
बुद्धू की तरह
हवा चल रही हो तो
हर पेड़ कह सकता है
शेखचिल्लीपन से
कि हवा उसी के कारण
चल रही है।
2. ट्रेन और सन्नाटा
मेरे मन के सन्नाटे में
धड़धड़ाती हुई एक ट्रेन चली जा रही है
खेतों, मैदानों, पेड़ों, नदियों, बस्तियों
और जंगलों को पीछे छोड़ती
मेरे मेहमानों को लेकर
अपने घर के सन्नाटे में
मैं चुपचाप बैठा हूँ
दिल उदास लिए
आँखों में आँसू
ट्रेन अभी
धड़धड़ाती रहेगी
सन्नाटा अभी
छाया रहेगा
3. दूरी उतनी ही डग लम्बे
बैठा तो
बैठा ही रह गया
छांव में
आराम मिला तो
लगा आराम करने
इतनी देर में
धूप का घेरा
और कड़ा हो गया
दूरी लक्ष्य की उतनी ही
मगर डग लम्बे हो गये भरने
4. सब आ जाएंगे 
कोई देख नहीं रहा है
कौन छपाक-छपाक कर रहा है
कोई सुन नहीं रहा है
कौन पुकार भर रहा है
वह किनारे लगेगा तो
सब आ जाएंगे
क्या हुआ, कैसे हुआ करते
5. पता
भटकने का मज़ा
ले ही रहा था
अब भींगने का मज़ा भी
मिलने लगा है
आग में झोंक दो
काग़ज़ पर लिखा पता !
6. लोकगीत 
नदी किनारे
खेत में
घूमती-चरती
उत्फुल्ल बकरियाँ
लग रहीं जैसे
साग खोंटती लड़कियाँ
में में में में
एक लोकगीत है गोया
7. चाँद पर
एक तरफ़ चाँद है
जिस पर एक एलियन का भी
बोरिया-बिस्तर नहीं है
एक ओर गंगातट
मानवों की बस्तियां जहां से शुरू होती है
पृथ्वी पर
मैं यहाँ बैठा हूं
और वहाँ जाना चाहता हूँ
जाने क्यों
8. महाभोज 
जाओ
अकेलापन खा जायेगा तुमको
मत आओ
अकेलापन खा जायेगा तुमको
बड़ी हमदर्दी है उनको
मुझको अकेलेपन द्वारा खाये जाने पर
मुझे अपनी महफ़िल का महाभोज
बनाये जाने पर
कुछ नहीं कहेंगे
9. क्या चाहूँ, कहां जाऊँ 
घाट के किनारे बैठा
साइबेरियन पंछियों को देख रहा हूँ
और चेकोस्लोवाकिया के आदमी से
बतिया रहा हूँ
गंगा की डाल्फिन के बिना भी
पारदर्शी पानी के बग़ैर भी
अद्भुत है काशी
अद्भुत हैं घाट
पथरीले सौंदर्य से भरे
गुनगुनी धूप में ध्यानमग्न
बैठी हैं गाएँ
भारतीय संस्कृति की
पवित्र आत्माएँ
क्या चाहूँ
महत्वाकांक्षाएँ खोकर
कहाँ जाऊँ
यहाँ का होकर
केशव शरण
वाराणसी​

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