आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में एक आदमी के पास दूसरे के लिए वक्त नहीं है। रिश्ते ही आपस में एक दूसरे के लिए स्थान ढूंढ रहे हैं उस समय इंसानियत को बचाए रखना बहुत मुश्किल है। मानव मूल्य धीरे धीरे अपना स्तर खोते जा रहे हैं। कबीर स्कूल तो कभी नहीं गए, न कुछ पढ़ा और न ही कुछ लिखा,उसके बाद वो हम लेखकों के पुरखे हैं। वो न हिन्दू हैं और न ही मुस्लिम। वो इंसानियत के ब्रांड अम्बेस्डर हैं। सहजता,विनम्रता,सत्यता आत्मीयता के बिना ईश्वर को नहीं प्राप्त किया जा सकता,यह वो भली भांति जानते थे। वो बिना कोई धार्मिक अनुष्ठान किए बिना धार्मिक किताब पढे ईश्वर को अपने सबसे ज्यादा नजदीक पाते थे।
मसि कागद छूओ नहीं कलम गही नहिं हाथ।
यह स्वीकार कर कबीर ने जो विनम्रता का परिचय दिया है वह यह सिद्ध करता है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इंसान को इंसान बनाए रखना ही है। शिक्षा के लिए न कागज की जरूरत है और न ही कलम की। ज्ञान किताबों से नहीं आता,अनुभव से आता है इसको अनपढ़ कबीर बखूबी समझते थे। जो सामने है वही सच है,कागजी ज्ञान कुछ नहीं। जो सत्य के दर्शन कराये वही शिक्षा है। यही था कबीर का दर्शन ।
मैं कहता हूँ आखिन देखी,तू कहता कागद की लेखी।
पूरी दुनिया में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो सवाल कर सकता है। बनी-बनाई विचारधाराओं को जस का तस अपना लेना इंसान का चरित्र नहीं हो सकता। सबसे जरूरी है सवाल करना और कबीर ने पूरी जिंदगी वही किया। कबीर ने शिक्षा के लिए किताबों या उपदेशों का जिक्र नहिं किया, उन्होंने माना तो केवल गुरु की महिमा को ही,जिसे गुरु मिल जाते हैं उसे ईश्वर मिल ही जाते हैं।
हिन्दू धर्म और इस्लाम दोनों के खिलाफ उन्होने जमकर प्रहार किए। उनका मानना था कि ईश्वर का तो विरोध हो सकता है लेकिन इंसान का नही । इंसानियत के बिना धर्म का कोई महत्व नहीं। इंसान दूसरे इंसान से प्रेम करे यही सीखना है, इसके बिना तो राम मिलते ही नहीं।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय।
अपने प्राण मगहर में जाकर त्यागना कबीर का जिद्दीपन ही था। लोगों की मान्यता है कि काशी में मरने से स्वर्ग मिलता है मगहर में मरने से नहीं। इसी विचारधारा को तोड़ने के लिए कबीर ने मगहर में जाकर प्राण त्यागे। उनका मानना था कि यदि केवल काशी का ही महत्व है तो उम्र भर राम का नाम लेने का क्या फायदा। तभी उन्होने कहा-
जो कबीर कासी में मरिहें,
राम के कौन निहोरा।
आज के समय में आवश्यकता है कि हम कबीर को और सरल रूप में अपने बच्चों के सामने रखें। कम्प्युटर और मोबाइल पर सोशल हो चुके हमारे युवा कहीं एक दिन अपने आस पास के समाज से ही दूर न हो जाएँ। यही हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती है कि इंसान इंसान ही रहे, और इसको हम भरपूर जियें,यही कबीर चाहते थे।
डॉ॰ स्वप्निल यादव