आज की भाग दौड़ भरे जीवन में माता पिता के पास बच्चों की भावनाओं को समझने का, उनकी बातें सुनने का समय ही नहीं है। दादा दादी दूर हो गए हैं। मेड के सहारे पलने वाले इन बच्चों को जरूरी आत्मीयता नहीं मिल पा रही है। इस सबकी पूर्ति बच्चों को सारी सुख सुविधाएं देकर, अपना अपराध बोध कम करने ही कोशिश की जाती है भौतिक सामग्री से हम कुछ समय के लिए अपने को बहला तो सकते हैं लेकिन प्रसन्नता के लिए तो प्यार का स्नेहिल स्पर्श ही चाहिए |

और मुन्ना ने सुनी कहानी

पापा के घर में आते ही, मुन्ना एक दिन जिद कर बैठे
मुझे सुनाओ एक कहानी, मुझे सुनाओ एक कहानी,
नन्हा पंछी, नटखट बंदर या फिर बोलो राजा रानी,
मुझे सुनाओ एक कहानी, मुझे सुनाओ एक कहानी
थके पापा बहला कर बोले, बाद में सुनना कोई कहानी
ले लो सीडी उसमें सुन लो, बूढ़ा बरगद, राजा रानी-2
बाल हठ पर, बड़ी प्रबल थी, पापा से सुननी थी कहानी-2
गोद में चढ़ बैठे पापा के, और सुनी फिर एक कहानी
गोद में बैठे मुन्ने राजा, पापा सुना रहे कहानी
वह कहानी कहते कहते, मुन्ना के सर हाथ फिराते
और नन्हे नन्हे हाथों को कभी कभी सहलाते जाते
गोद में उनकी बड़ा ही सुख था, बड़े मजे से सुनी कहानी
नन्हा पंछी, नटखट बंदर, बोल मेरी मछली कितना पानी-2
बहुत मजा आया सुनने में, हमतो रोज सुनेंगे कहानी
अब पापा की बढ़ी परेशानी, अब पापा की बढ़ी परेशानी
फिर एक दिन सीडी देके पापा, बोले सुन लो रोज कहानी
मेरी ही आवाज़ है इसमें, और ये है मेरी ही जुबानी
आंखों में आंसु भर-भर के, कुछ ही देर में मुन्ना आए
मुझको सुननी नहीं कहानी, मुझको सुननी नहीं कहानी
आवाज तो है आपकी इसमें लेकिन आपकी गोद कहां है,
इन हाथों की छुअन कहां है, कहां बालों में वो हाथ फिराना,
और कहानी कहते-कहते प्यार तुम्हारा करते जाना-2
पिता की थी अंखियां भर आईं, गले लगा कर, फिर वह बोले
रोज सुनाऊं तुम्हें कहानी, रोज सुनाऊं तुम्हें कहानी
आओ सुन लो बूढ़ा बरगद, नटखट बंदर राजा रानी-2
और मुन्ना ने सुनी कहानी, बोल मेरी मछली कितना पानी-2

सुषमा सिंह
दिल्ली

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