बच्चों का मन मनुष्य जीवन की सबसे प्रारंभिक एवं कोमल प्रवृत्ति है| प्रारंभिक अवस्था में बच्चों का जीवन बहुत ही भावुक और संवेदनशील होता है | इस दौरान अधिगम की प्रक्रिया भी द्रुतगामी होती है| बच्चे अपनी इन्द्रियों के माध्यम से परिवार,समाज और भौतिक जगत को समझने का प्रयास करते हैं | इस अवस्था में उनकी अपनी आभासी दुनिया होती है जो यर्थाथ से कहीं दूर कल्पनालोक में विचरण कराती है |जहाँ वे अपनी आशाएं,आकांक्षाएं पूरी कर पाते हैं, जो उन्हें यर्थाथ संसार में प्राप्त नहीं होती | यह काल्पनिक संसार बहुत जादुई ,रोमांचक और इन्द्रधनुषी होता है | बच्चे हमेशा इस जादुई आकर्षण के पीछे मतवाले रहते हैं| बच्चों के लिए जो दृश्य या स्थिति उनके मानसिक सौन्दर्य के सबसे निकट जान पड़ती है, उसके लिए ये सदा लालायित रहते हैं|
“चलचित्र मानव जीवन की सबसे सशक्त और सर्वव्यापक माध्यम होते हैं|’ जहाँ तक एनीमेशन फिल्मों का प्रश्न है, लगभग 80 वर्षों से ये कार्टून अथवा एनीमेशन फिल्में बच्चों का मनोरंजन कर रही हैं| |एनीमेशन फिल्में दृश्य एवं ध्वनि का ऐसा सुन्दर समायोजन है, जिसमें कल्पनाशीलता और fantasy का पूरा अवकाश रहता है| बच्चे अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं को भी छोड़ इस इन्द्रधनुषी संसार से अपना तादात्म्य स्थापित कर बहुत ही आनंदित महसूस करते हैं| बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से इन एनीमेशन फिल्मों से बहुत ही भावात्मक और संवेगात्मक रूप से जुड़े होते हैं|जब हम एनीमेशन फिल्मों के इतिहास की बात करते हैं तो एनीमेशन फिल्मों में ‘फेलिक्स द कैट’ पहली कार्टून फिल्म थी, जिसका प्रदर्शन जनवरी, 1920 ई. में किया गया था|अगले दस वर्षों में डोनाल्ड डक, मिकी माउस, प्लूटो जैसे किरदारों को डिज्नी बंधुओं ने प्रस्तुत किया| उसके बाद तो कार्टूनों एवं एनीमेशन फिल्मों की लाइन सी लग गई | भारत में जब हम एनीमेशन फिल्मों की बातें करते हैं तो सर्वप्रथम 1956 ई. में डिज्नी स्टूडियो के सहयोग से फिल्म प्रभाग,भारत सरकार ने ‘क्लेयर वर्क्स’ नामक एनिमेटर की सहायता से ‘बाम्बी’ कार्टून फिल्म का निर्माण करवाया था| इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम 1974 में NCERT के द्वारा “एक अनेक और एकता” नामक एनीमेशन फिल्म का निर्माण हुआ जिसका निर्देशन और पटकथा लेखन विजय मुले ने किया था| भारत की पहली 3डी फिल्म का गौरव यशराज चोपड़ा के बैनर तले ‘रोड साइड रोमियो’ को प्राप्त है | 1991 के आर्थिक सुधारों के उपरांत भारत भी एनीमेशन फिल्मों के एक बहुत बड़े बाजार के रूप में उपस्थित हुआ| उसके बाद तो एनीमेशन तथा कार्टून फिल्मों की एक श्रृखंला सी शुरू हो गई और अब तक यह चल रही है |
वर्तमान समय में भारतीय प्रसारण में कार्टून अथवा एनीमेशन से जुड़े निम्नलिखित चैनल हैं जो भारत में कारोबार कर रहे हैं | कार्टून नेटवर्क, किड्स डिस्कवरी, डिज्नी चैनल, निक, सोनिक,जैनैक्स, हंगामा, पोगो तथा बेबी चैनल आदि | इन चैनलों पर चलने वाली कहानियों के प्रमुख किरदारों में छोटा भीम,मोटू-पतलू,डोरेमोन,माइटीराजू,शिन चेन,कृष्णा एंड बाल्टी बॉय,गोडियो गो गो,डोरा,बेनटेन,पिकाचू,विक्की और बेताल,कुम्भकर्ण,हगीमारू,स्पाइडर मैन,टॉम एंड जेरी, पॉवर एंजेल्स, कीमोन आचे जैसे किरदार शामिल हैं|इन किरदारों के साथ बच्चों का सीधा भावात्मक सम्बन्ध स्थापित है|
मैं एक उदहारण के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट करना चाहूँगा|एक रिसर्च के अनुसार उपरोक्त कार्टून चैनलों में ‘कार्टून नेटवर्क’ विश्व का सबसे प्रमुख चैनल है|इसका प्रसारण सर्वप्रथम1992 में हुआ था| तब से लेकर अबतक यह रिकॉर्ड रूप से लोगों के बीच प्रसिद्धि पा चुका है| अगस्त 2002 से यह लगभग अमेरिका के 8 करोड़ घरों और दुनिया के 145 देशों के करोड़ों घरों में देखा जा रहा है |इसके 68% दर्शक 2 से 17 वर्ष की आयु के बीच के हैं| 6 से 11 वर्ष की आयु के बच्चे इस चैनल के कोर दर्शक हैं|इसके कार्टून कंटेंट हिंसा से भरें हुए हैं जो बच्चों के व्यवहारमें आश्चर्यजनक परिवर्तन ला रहें हैं|
सामान्य तौर पर हर बच्चे की सीखने अथवा याद करने की प्रवृति अलग-अलग होती है |अधिगम की यह प्रक्रिया उनके व्यवहार को भी संचालित करती है | इसे हम VKUT सिद्धांत से समझ सकते हैं जिसका प्रचलन बाल मनोविज्ञान को समझने में ज्यादा होता है | प्रथमत : कोई व्यक्ति किसी दृश्य या घटना अथवा वस्तु के भौतिक रूप को देखकर उसे याद करता है अथवा सीखता है |इसे हम विजुअलाइजेशन कहते हैं | द्वितीय कोई व्यक्ति या बालक किसी ध्वनि या संवाद को सुनकर याद रखता है अथवा सीखता है इसे हम Auditory प्रक्रिया कहते हैं |तृतीय स्थिति में हम किसी क्रिया को दोहराकर अथवा शारीरिक अंगों के संचालन के माध्यम से सीखते हैं और याद करते हैं|इस प्रक्रिया को गतिकी अथवा kinesthetic प्रक्रिया कहते हैं|चतुर्थ प्रक्रिया में किसी वस्तु को स्पर्श कर या छूकर, अनुभव के माध्यम से सीखा और याद किया जाता है|इस प्रक्रिया को हम tectile प्रक्रिया कहते हैं|

जहाँ तक एनीमेशन फिल्मों का प्रश्न है, इसमें दृश्य और ध्वनि के संयोजन से ऐसी काल्पनिक दुनिया तैयार की जाती है जिसमें बच्चा भावात्मक और संवेगात्मक रूप से पूरी तरह से जुड़ा होता है तथा इस प्रक्रिया में Visualisationऔर Auditory सिद्धांत कार्य करते हैं जिसका निष्पादन उसके kinesthetic कार्यों अर्थात उनके व्यवहार में होता है| इस भावात्मक और संवेगात्मक प्रक्रिया में विघ्न पड़ते ही उसके व्यवहार में परिवर्तन आता है| जरा आप कार्यक्रम के दौरान चैनल बंद करके तो देखिये आपको पता चल जायेगा| इन चैनलों अथवा एनीमेशन फिल्मों का समग्र प्रभाव बच्चे के व्यक्तित्व में पड़ता है जिसकी परिणति उसके व्यवहार में परिवर्तन होती है| यह परिवर्तन तात्कालिक नहीं होता किन्तु कथानक और चरित्रों का प्रभाव उनके मन: मस्तिष्क को आंदोलित कर शनैःशनैः उनके व्यवहार में परिवर्तन लाता है|
‘रंग और ध्वनि’ ,एनीमेशन फिल्मों के ये दो प्रमुख आधार हैं| बच्चों का रंग और ध्वनि के प्रति आकर्षण सर्वज्ञात है|एनीमेशन फ़िल्में रंग-बिरंगी दुनिया होती है जो निर्जीव होते हुए भी बच्चों के लिए सजीव होती है|रंगों के इस संसार में कल्पना है, fantasy है,जादू है, तिलिस्म भी है| रंगों की इस दुनिया में जब ध्वनियों का संयोजन हो जाता है तो उसका चमत्कार और भी अधिक हो जाता है और बच्चे इस सम्मोहन से चाहकर भी नहीं उबर पाते| इस स्थिति में बच्चों का साधारणीकरण हो जाता है और वे देशकाल ,वातावरण से ऊपर उठ जाते हैं| वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में यह साधारणीकरण की प्रक्रिया बहुत ही प्रभावी और तीव्रगामी होती है|वे शीघ्र ही उस दृश्य, कथानक या चरित्र के साथ अपना भावात्मक तथा संवेगात्मक सम्बन्ध कायम कर लेते हैं और इन भावात्मक तथा संवेगात्मक स्थितियों का प्रभाव उनके व्यवहार में परिलक्षित होता है |
वर्तमान परिदृश्य में जहाँ एनीमेशन से सम्बंधित वीडियो गेमिंग की बात की जाये तो हम पाते हैं कि विश्व के सभी देशों में वीडियो गेमिंग का एक बहुत बड़ा बाज़ार है, जहाँ एनीमेशन के माध्यम से करोडो बच्चे ऐसे उत्पादों के सीधे खरीदार हैं| आई ओ एस और एंड्राइड के प्लातेफ़ोर्म पर एनीमेशन गेमिंग का एक बहुत बड़ा मार्किट उपलब्ध है| समस्या यह नही कि बच्चे उपभोक्तावाद की शरण में जा रहे हैं बल्कि समस्या यह है कि बच्चों के व्यवहार में खतरनाक परिवर्तन आ रहे हैं| वीडियो गेमिंग के ये उत्पाद हिंसा और सेक्स से भरे हुए हैं,जिसके लिए जागरूक माता-पिता को सोचना पड़ेगा|
इस समय में यह कहना सही होगा कि इन एनीमेशन फिल्मों ने बच्चों की शारीरिक क्रियाशीलता को कम किया है |उन्हें शारीरिक रूप से शिथिल बनाया है|यद्यपि इन फिल्मों के माध्यम से बच्चे भले ही समय से पहले परिपक्व हो जाएं, उनकी रचनात्मकता बढ़ जाये ,कल्पनाशीलता बढ़ जाये किन्तु विवेक की कसौटी पर वे खरे नहीं उतरते वनिस्पत उन बच्चों के जिन्होंने एनीमेशन फिल्में कम देखीं हैं अथवा बिलकुल नहीं देखीं |इन बच्चों का मन उस कार्टून चरित्र के आसपास उसकी आभासी दुनिया का अहसास कराती है जिससे वे यर्थाथ के ठोस धरातल पर उतरने पर चुभन महसूस करते हैं और उनके व्यवहार में परिवर्तन आता है |
दरअसल इन एनीमेशन फिल्मों के पीछे एक बहुत बड़ा बाज़ार है | इन फिल्मों के कंटेंट और चरित्र निर्धारित करने में बाज़ार की एक बहुत बड़ी भूमिका है | भारत में एनीमेशन फिल्मों का कारोबार 51.1बिलियन डॉलर का है जो लगभग 13.8% वृद्धि दर के साथ आगे बढ़ रहा है |5 इन फिल्मों के द्वारा बाज़ार की कई प्रमुख कंपनियां अपने उत्पादों के विज्ञापन में कार्टून चरित्रों का इस्तेमाल कर लाखों डॉलर का मुनाफ़ा कमाती हैं | इस मुनाफ़े का माध्यम बच्चों का कोमल मन होता है, जिसकी आड़ में अपने विज्ञापनों से बच्चों को दिग्भ्रमितकर अपने घटिया उत्पादों की बिक्री बढ़ाकर लाखों, करोड़ों डॉलर का मुनाफा कमाती हैं |6
इन एनीमेशन फिल्मों के कंटेंट पर बात करें तो इसमें वयस्क प्रेम से लेकर हिंसा और घृणा तक के दृश्य होते हैं| बच्चों के मन पर इब भावों का बड़ा ही गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ता है |आजकल टी.वी. और इंटरनेट पर ढेरों एनीमेशन से जुडी सामग्रीपड़ी है और बच्चा इसका सार्थक चुनाव नहीं कर पाता कि उसे क्या देखना चाहिए और क्या नहीं? कई बार माता – पिता को भी यही भ्रम होता है कि अरे छोड़ो बच्चा कार्टून फिल्म ही तो देख रहा है | कंटेंट के चुनाव में वे ज़्यादा जागरूक नहीं रहते | फलत: इन फिल्मों की नकारात्मक प्रवृतियों का समावेश बच्चों के व्यवहार में होता रहता है जोकि ख़तरनाक स्थिति है |
ये एनीमेशन फिल्में बच्चों के व्यवहार में निश्चित परिवर्तन लाती हैं जैसे पसंद, नापसंद, बात करने का तरीका, अपने मित्रों,माता-पिता तथा परिवार के अन्य व्यक्तियों के प्रति व्यवहार,शिक्षकों के प्रति व्यवहार आदि | ये फिल्में विशेष रूप से बच्चों के भाषा व्यवहार उनके खाने पीने और पहनने के ढंग पर भी गहरा और व्यापक प्रभाव डालती हैं |

निष्कर्ष-

भारत में एनीमेशन फिल्मों की स्थिति देखें तो यहाँ विदेशी कार्टून चरित्रों के साथ साथ भारतीय पौराणिक चरित्रों जैसे छोटा भीम, कृष्णा, बाल गणेशा आदि तथा समकालीन विषयों से जुड़े किरदार मौजूद हैं|बच्चे इन चरित्रों के साथ अपना भावात्मक और संवेगात्मक सम्बन्ध कायम कर उनके जैसा बनने ,उनके जैसा दिखने या उनके जैसा आचरण करने का प्रयास करते हैं| उनका स्वाभाविक बचपन पहले की अपेक्षा ज्यादा परिपक्व होता जा रहा है| ये तमाम चीजें उनकी भाषा और व्यवहार में परिवर्तन ला रहीं हैं| उनकी सामाजिकता एवं पारिवारिक सम्बन्ध नगण्य होते जा रहें हैं| यह स्थिति भयावह है|अतः कंटेंट के चुनाव में माता पिता अथवा अभिभावक को सावधानी रखने की आवश्यकता है तभी बच्चों का बचपन सुरक्षित रह सकता है| बच्चों को आप एनीमेशन फ़िल्में या कार्टून फ़िल्में अवश्य दिखाएँ, उनमें कल्पनाशीलता, रचनात्मकता,सृजनशीलता जैसे गुणों का अवश्य विकास करें,किन्तु उनकी स्वाभाविक मुस्कान न छीनें|

सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची
1. The Role of film in society-Vikas Shah,Thought Economics,June,2011

2. Box-Office-Mojo.com

3.International Journal of Management Economics and Social Sciences,ISSN 2304-1366

4.शिक्षा मनोविज्ञान-डॉ अरुण कुमार,पृष्ठ-१६३

4.FICCI Frame 2015,KPMG Report

5.http://indianexpress.com/article/entertainment/entertainment-others/indias-animation-industry-has-seen-unprecedented-growth-avneet-kaur/10/4/2016

डॉ. अंकित कुमार श्रीवास्तव
प्राध्यापक,हिंदी

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