सोवियत संध के विघटन के बाद वैश्वीकरण का दौर शुरू होताहै| भूमंडलीकरण ,उदारीकरण ,वैश्वीकरण आदि जिस नाम से पुकारे इसे फलने –फूलने एवं फैलाने में मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है| एक समय पत्रकारिता मिशन थी,भूमंडलीकृत युग ने मीडिया को कमीशन में बदल डाला | पत्रकारिता एक ओर युग का लेखा जोखा करती है तो दूसरी ओर अपनी प्रतिवादी आवाज से यह साबित करती है कि सिर्फ समाचार तैयार करना ही उसका मकसद नहीं है| समाज के विचार पथ को आलोकित करके समाज को सही गलत का ज्ञान कराना पत्रकारिता का कार्य है| पर भूमंडलीकरण ने पत्रकारिता /मीडिया के लिए अपनी कुछ खास शर्तो को ही लागू किया है जो पत्रकारिता को मुनाफाखोरी या पूँजीवाद का दरबारी बना दिया है |
आज प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया केवल मुनाफा कमाने के लिए है| कारण भूमंडलीकरण का नीति विश्वग्राम में बदलने की है | मीडिया ही इसे हर-स्तर पर लागू कर सकता है | भूमंडलीकरण ने समाज,साहित्य,संस्कृति और उसके अधिकार को बर्बाद करने का प्रयास किए जा रहा है | बाज़ार आज हमारे बेडरूम से लेकर रसोई घर तक अपना अधिकार जमाए बैठा नज़र आ रहा है| कुमुद शर्मा ने लिखा है-“ भूमंडलीय मीडिया का उभार सहज और स्वाभाविक स्थितियों की देन नहीं है | बल्कि भूमंडलीय मीडिया के उभार की राजनैतिक आर्थिक और सामजिक पृष्ठभूमि है| भारतीय परिप्रेक्ष्य में भूमंडलीय मीडिया के प्रवेश के पीछे भूमंडलीकरण के वाहको की महत्वपूर्ण भूमिका रही है |”1 उन्होंने आगे लिखा है- “उच्च प्रोद्योगिक के युग में संचार क्रांति ने संचार माध्यमों के बहुआयामी स्वरुप को उपस्थित कर परम्परागत संचार माध्यमों की पृष्ठभूमि में धकेल कर उनके स्थान पर हाइटेक और सुपर स्पीड वाले संचार माध्यमों को स्थापित कर दिया है |”2
सच्चीदानंद सिन्हा ने औद्योगिक पूँजीवाद और उसकी उपभोक्तावादी पूँजी के संदर्भ में लिखे हैं- “भूमंडलीकरण के नाम अब औद्योगिक पूँजी व्यवस्था और उसकी उपभोक्तावादी संस्कृति को संसार के उन भोगो पर लादने का प्रयास हो रहा है जहाँ अभी तक पारम्परिक या गैर-पूंजीवादी व्यवस्था थी| अपनी हित रक्षा में अपने चरित्र के कारण पूँजीवाद कहीं भी अनियोजित विकास ही करता है | उससे क्षेत्रिय विषमताए उभरती हैं | और जहाँ भी इसका पैर पड़ता है वहाँ सम्पन्नता और विपन्नता के ध्रुवो में अंचलों और समूहों का विभाजन होता है| इससे हर जगह आँचलिक या समूहों के बीच संघर्ष उभरता है | छोटी खेती और किसानों के बीच संघर्ष उभारते हैं| छोटी खेती और किसानों का अस्तित्व समाप्त होने लगता है और विशाल पैमाने पर बेरोजगारी फैलती है |”3
हिंदी पत्रकारिता के इतिहास देखने से पता चलता है आजादी के समय हिंदी पत्रकारिता किस तरह प्रतिपक्ष की भूमिका निभाती है| हिंदी पत्रकारिता ने भारतीय समाज को जोड़ने का कार्य किया था | भारत के सांस्कृतिक समन्वय को स्थापित करने के लिए हिंदी पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है | आजादी के बाद पत्रकारिता की दशा एवं दिशा में बदलाव दिखने लगा और इंदिरा युग में पत्रकारिता तो प्राय प्रतिबंधित हो चुकी थी |आठवे दशक का समय हिंदी पत्रकारिता ही नहीं भारतीय पत्रिकारिता या मीडिया के लिए कलंक का काल रहा है | 1991 की उदारनीति ने पत्रकारिता को व्यापार में बदल डाला- “भूमंडलीकरण के इस युग में राजनीतिक ,आर्थिक ,सामजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रो में मीडिया की भूमिका का एक तरह से एकीकरण हो गया है | मीडिया अगर किन्ही व्यापारिक हितो की पूर्ति कर रहा होता है तो साथ ही एक विचारधारा का प्रचार कर रहा होता है और इस व्यवस्था के तमाम उत्पादों के लिए बाज़ार का विस्तार भी करता है |”4
भूमंडलीकृत समय में हमारी जीवन शैली किस तरह बाज़ारवाद से प्रभावित हो रहा है| आज हमें स्वतंत्र चिंतन करने की समय नहीं है प्रचार तंत्र ने हमें अपने वश में कर रखा है| भूमंडलीकरण का वाहक बना मीडिया अंग्रेजी शब्दों की भरमार से निर्मित एक नयी हिंदी को परोस रहा है | मीडिया में जिस तरह की हिंदी का प्रयोग हो रहा है उसे लेकर हिंदी प्रेमी चिंतित है | चिंता हिंदी की है, उस हिंदी की जिसे हमारा समाज उपयोग करता है |भूमंडलीकृत मीडिया हिंग्लिश का चाट सबको चटा रहा है | इलेक्ट्रोनिक मीडिया ,प्रिंट मीडिया दोनों ही विकृत हिंदी भाषा का जमकर प्रयोग कर रहे हैं | चूँकि मीडिया भूमंडलीकरण का प्रमुख वाहक है अत: भाषा बाजारू बनती जा रही है | नामी-गिरामी अख़बार भी इस बाजारू भाषा का प्रयोग जमकर कर रहे हैं तथा इसे अपना आदर्श मन रहे हैं | उपभोक्ता संस्कृति ने अध्ययन ,चिंतन,मनन और मौलिक लेखन का समय छीनकर लोगों को संवेदना शून्य बना दिया है| क्षेत्रियता की प्रभुता कायम करने हेतु| भाषा को बाजारू रूप देने के पीछे भारत के बड़े पूंजीपति ,औद्योगिक घराने ,अवसरवादी राजनेता तथा बिके हुए बुद्धिजीवी भी शामिल है| हम यह मानने को तैयार नहीं कि भाषा ने बाजारू रूप ले लिया है तथा हम हिंग्लिश या विकृत हिंदी का प्रयोग गर्व के साथ करते हैं|
भूमंडलीय मीडिया के उभार ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया के चरित्र को बदलते हुए इसे उपभोक्तावादी संस्कृति का वाहक बना दिया है| भूमंडलीकरण के एजेंडे के तहत हिंदी के अख़बार भी अंग्रेजी के प्रचार में कम पीछे नहीं है | अब तो कई लोकप्रिय हिंदी अखबारों ने अपना अप्रकटित नियम बना लिया है कि उनकी रिपोर्टिंग में 20 से 30 प्रतिशत अंग्रेजी की शब्द होने ही चाहिए||
भूमंडलीकरण हमें भाषाई स्तर पर भी गुलाम बनाने की मुहीम चला रहा है | भाषाएँ समाप्त होंगी तो संस्कृतियाँ भी समाप्त हो जाएगी और साथ ही हमारी अस्मिता भी| दरअसल भूमंडलीकृत समय में मीडिया सामाचार की जगह भाषाई संस्कृति को विकृत कर रही है | आज मीडिया चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक धार्मिक उन्माद और प्रवचन परोसने में होड़ लग लगा रही है | मीडिया की वर्तमान चाल चलन हमें मध्ययुगीन बर्बरता की ओर ले जा रही है | प्रचार तंत्र –विज्ञापन के नाम पर कामोत्तेजक जापानी तेल ,रॉकेट कैप्सुल ,फलेवर कंडोम का प्रचार प्रसार हो रहा है| आजकल समाचार पत्रों में समाचार कम विज्ञापन अधिक है| मीडिया ने स्त्री की छवी को अति धूमिल कर दिया है| नारी सशक्तिकरण के नाम पर नारी को एक पण्य वस्तु में बदलता नज़र आ रहा है |
एक तरफ भूमंडलीकृत समय में सूचना विस्फ़ोट हुआ है तो साहित्य एवं संस्कृति को सबसे अधिक कलुषित मीडिया ही कर रहा है | किसानों की मौत ,बेरोजगारी, बदहाल शिक्षा ,स्वास्थ सेवा की जगह नायक –नायिकाओं की गर्भ धारण का समाचार प्रचारित-प्रसारित होते दिखलाई पद रही है | पेड़ न्यूज़ का इतना अधिक बोल बाला है कि आज मीडिया पर भरोसा करना मुश्किल है | अत: संक्षेप में कहा जा सकता है कि भूमंडलीकृत समयमे मीडिया समाज में जागरूकता के बजाय कामरूपता परोस रही है |
संदर्भ:-
- स्वाधीनता शारदीय विशेषांक ,2017 ,कोलकाता.पृष्ठ-119
- वही ,पृष्ठ-119-120
- वही पृष्ठ- 118
- वही .पृष्ठ- 121
रणजीत कुमार सिन्हा
प्राध्यापक हिंदी विभाग
खड़गपुर