दूरियों को नज़दीकियों में बदलना ही सोशल मीडिया है। जब आमने-सामने बैठकर दिल की बात कहने में असमर्थता हो, कोई संगी-साथी, रिश्तेदार, पिता-पुत्र या कोई प्रियजन इतनी दूर हो कि आमने-सामने बैठकर दिल की बात न की जा सके, तब दुनिया को मुट्ठी में किया सोशल मीडिया ने। पहले ख़तों के माध्यम से खबरें एक-दूसरे तक पहुँचाई जाती थी 1792 में टेलीग्राफ के आविष्कार से सूचनाएँ तीव्र गति से पहुँचाई जाने लगी। उन्नीसवीं शताब्दी में सूचना के क्षेत्र में 1890 में टेलीफोन और 1891 में रेडियो के आविष्कार ने तहलका मचाया। इन दोनों तकनीकों का प्रयोग आज भी हो रहा है किन्तु ‘दिल है कि मानता नहीं’ बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से सूचना-तकनीक के क्षेत्र में तीव्र गति से बदलाव आने शुरू हुए।
1940 में पहले सुपर कम्प्यूटर के आने के बाद विभिन्न क्म्प्यूटरों को एक ही नेटवर्क से जोड़ने की आवश्यकता महसूस हुई। 1960 में इंटरनेट अपनी प्रारम्भिक अवस्था प्रकाश में आया। 1990 के पश्चात जब घरों में क्म्प्यूटरों का प्रयोग बढ़ा तब 1997 में ‘सिक्स डिग्रीस’ (Six Degrees) नामक पहली सोशल मीडिया साइट को प्रसिद्धि मिली। इस साइट पर पहली बार प्रोफाइल अपलोड करने और अन्य मित्र बनाने की सुविधा मिली। ‘ब्लाॅग’ की खोज ने रातोंरात सोशल मीडिया को ऊँचाइयाँ प्रदान कर दीं। 2000 में ‘लिंकेडिन’ (Linkedin) और ‘माई स्पेस’ (My Space) साइटों ने भी इतनी तारीफें बटोरी जो आज तक चल रही हैं।
2005 में ‘यू ट्यूब’ (You Tube) ने सोशल मीडिया के मायने, संकल्पना और परिकल्पना सबको बदलकर रख दिया। यू ट्यूब पर वीडियो अपलोड करके या शेयर करके कोई भी क्षणभर में नाम और पैसा दोनों कमा सकता है। 2006 में फेसबुक और ट्विटर ने पूरे विश्व में सोशल मीडिया के क्षेत्र में अपना परचम लहरा दिया। फेसबुक की लेाकप्रियता में 11 वर्षों के बाद भी अभी तक कोई कमी नहीं आई है। स्पोटिफाई, पिनदस्ट, टम्बलर आदि साइट कुछ विशिष्ट और चुनिन्दा क्षेत्रों के लिए ही प्लेटफार्म उपलब्ध कराती हैं जैसे स्पोटिफाई संगीत के क्षेत्र में आदि।
‘व्हट्सएप’ मैसेंजर स्मार्ट फोन पर चलने वाली तत्क्षण मैसेजिंग सेवा है जिसमें इंटरनेट की सहायता से ‘व्हट्सएप’ उपयोगकर्ता टेक्स्ट संदेश के अलावा आॅडियो, वीडियो, फोटो भेज सकते है, आॅडियो या वीडियो काॅल भी की जा सकती है। ‘व्हट्सएप’ का आविष्कार दो दोस्तों- ब्रायन ऐक्टन और जेन कूम ने 2009 में किया। मज़ेदार बात यह है कि इन दोनों को फ़ेसबुक द्वारा अस्वीकृत किए जाने पर दोनों ने कोई ‘एप’ बनाने की सोची, नतीजा सबके सामने है।
इन दो प्रबुद्ध जनों ‘एप’ को फेसबुक ने 2014 में 19 बिलियन डाॅलर में खरीदा। ये तो थी कुछ तथ्यात्मक जानकारियाँ अब कुछ चर्चा हो जाए व्यावहारिक परेशानियों को लेकर।
आज 19 अक्टूबर दीवाली का दिन है। पिछले दो दिन से ‘व्हट्सएप’ पर दीवाली की शुभकामनाओं के सन्देशों की बाढ़ आई हुई है। कम से कम सौ सन्देश तो ऐसे आए है जिनमें यह दावा किया गया है कि वे सबसे पहले हमें दीवाली पर शुभकामनाएँ भेज रहे हैं। दीवाली वाले दिन तो पूछो ही मत। स्मार्टफोन उपयोगकर्ता जिसके पास ‘व्हट्सएप’ तो होगा ही, कम से कम पन्द्रह-बीस ग्रुप का सदस्य तो होता ही है। एक ग्रुप में 25-30 सदस्य तो होते ही हैं, कइयों में तो सौ से भी ऊपर हो जाते है। इस तरह से कुछ पाँच-सौ, छः-सौ संदेश आॅडियो-वीडियो-फोटो के रूप में आ जाते हैं।
दीवाली की शाम को रंगोली और लक्ष्मी पूजन के संदेश, अगले दिन सुबह दीवाली की शुभकामनाएँ देने के एवज में हाथ जोड़कर धन्यवाद संदेश आते हैं। अगले दिन गोवर्धन पूजा के संदेश, फिर भैया दूज के संदेश फिर ………. पता नहीं किस-किस के। पूरा समय फोन को ‘ट्रिंग-ट्रिंग’ दौरे पड़े रहते हैं। दीवाली पर लक्ष्मी के आने की तो कोई गारण्टी नहीं है किन्तु फ़ोन की मेमोरी या स्टोरेज फुल होने की पूरी गारण्टी है।
‘दीवार’ फिल्म में अमिताभ बच्चन का एक प्रसिद्ध संवाद है- ‘मेरे पास गाड़ी है, बँगला है, तेरे पास क्या है। मेरे पास माँ है’ आज मेरे पास ‘व्हट्सएप’ है। हर परिवार में पति-पत्नी के अलग-अलग फोन हैं, बच्चों के अलग। सब के सब फ़ोन को छाती से चिपकाकर चलते हैं। मैसेज की घण्टी बजते ही मैसेज पढ़ने की आतुरता छिपाए नहीं छिपती।
‘व्हट्सएप’ पर ग्रुप संस्कृति बड़ी पाॅपुलर हो गई है किसी दिन सुबह उठते हैं तो पता चलता है कि एक और ग्रुप में मुझे जोड़ दिया गया है। एक ग्रुप को छोड़ भी दो तो फिर भी तेरा पीछा न छोड़ेगें सोनिए।’ इन ग्रुपों या समूहों की भी कई किस्में हैं-
(क) बहुत नज़दीकी लोगों का ग्रुप-इसमें सदस्यों की संख्या कम होती है। यह पारिवारिक और आॅफिशियल दोनों प्रकार का हो सकता है। इसके सभी सदस्य इस भ्रम में रहते हैं कि वे सभी एक-दूसरे के सच्चे मित्र हैं।
(ख) विभागीय या काॅलेज का या पूरे परिवार का ग्रुप- इस ग्रुप में किसी काॅलेज, विद्यालय या आॅफिस का एक विशिष्ट विभाग, या पूरे काॅलेज या विद्यालय या आॅफिस का समूह हो सकता है। इस प्रकार के ग्रुप में औपचारिकताओं और शिष्टताओं का पूरा-पूरा ख्याल रखा जाता है। कभी हाथ जोड़कर, कभी अँगूठा दिखाकर (ये वो ‘अँगूठा दिखाना’ मुहावरे वाला नहीं है) कभी ‘हा-हा’ लिखकर या अन्य छोटी-मोटी टिप्पणी लिखकर अपने-आपको सभ्य सिद्ध किया जाता है। यूँ तो इस प्रकार के समूह का उद्देश्य औपचारिक सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है किन्तु कभी-कभी कुछ सदस्य कभी रसगुल्ले-लड्डू भेजकर, कभी गुलदस्ते भेजकर दुरूपयोग (दूसरों की दृष्टि में) करने लगते हैं।
इस प्रकार के समान कार्यस्थल वाले समूह में पोस्ट की गई सामग्री या किसी पोस्ट पर की गई टिप्पणी, अन्य सहयोगियों और सहकर्मियों के सूक्ष्म निरीक्षण-परीक्षण की प्रक्रिया से गुजरती हैं। मान लीजिए ‘अ’ की ‘ब’ से नहीं बनती तो ‘ब’ ‘अ’ की प्रत्येक पोस्ट और टिप्पणीयों पर पैनी नज़र रखता है और अमूमन यह भी होता है कि ‘ब’ ‘अ’ की पोस्ट को दूसरों को चटखारे ले लेकर पढ़वा-दिखवा रहा होता है। वीडियो या आॅडियो या कोई और पोस्ट ‘फारवर्ड’ करके ‘अ’ की ‘ख्याति’ दूर-दूर तक फैला देता है। शायद इन्हीं सब गतिविधियों का शिकार न बनने के लिए बहुत सारे सदस्य समूह में मूकदर्शक की भूमिका का निर्वाह कर रहे होते हैं। बेचारे सदस्यों की ‘साँप छछूंदर वाली गति होती है न ग्रुप छोड़ सकते हैं न कोई टिप्पणी कर सकते है।
तीसरा समूह उन अपिरिचित या अनजान लोगों का होता है जिसके न तो सदस्य एक दूसरे को पहचानते है न ही ग्रुपसंचालनकर्ता अर्थात ‘एडमिन’। कोई प्रकाशक है तो उसने कहीं-कहीं से फोन नम्बरों का जुगाड़ करके, अपनी मार्केटिंग के लिए ग्रुप बना दिया। किसी शख़्स का योग और स्वास्थ्य से दूर-दूर का वास्ता नहीं किसी भलेमानस ने उसे ‘करो योग रहो निरोग’ समूह का सदस्य बना दिया। कभी हिन्दी समाजसेवियों के कलेजे में हूक उठती है और वे हिन्दी का कुनबा जोड़ने के लिए ‘हिन्दी समाज’ की भी परिकल्पना को साकार कर देते हैं। कभी किसी ग्रुप के साथ देश-विदेश की यात्रा पर गए तो ‘यूरोप टूर-2016’ नामक ग्रुप बन जाते हैं। इस प्रकार के समूहों में जिसके जो मन में आता है वह पोस्ट कर देता है।
‘व्हट्सएप’ के आने से पतियों ने राहत की साँस तो ज़रूर ली होगी। एक तो पत्नियों का यह बहाना समाप्त हो गया कि ‘आज सुबह से बोर हो रही हूँ’, दूसरे बोरियत से बचने के लिए अनाप-शनाप शाॅपिंग समाप्त हो गई है, तीसरे पत्नियों के रोज़-रोज़ मायके जाने के झंझट से मुक्ति क्योंकि प्रतिदिन माँ-बहनों से तो ‘व्हट्सएप’ पर बातचीत होती ही है, फोटो भी दिख जाती हैं।
पहले मनोरंजन के लिए घर में एक अदद टी. वी. होता था और जिसके दस चाहने वाले होते थे। सबकी पसंद एक होने का तो प्रश्न ही नहीं। अब ‘व्हट्सएप’ ने सबको अपना-अपना स्पेस दे दिया। पहले घर-परिवार के सदस्य नाराज़ होकर अँधेरे कोने में बैठते थे। अब बैठें तो समझ लीजिए कि ‘व्हट्सएप’ की गिरफत में हैं। पहले छुट्टी वाले दिन बच्चे, सुबह से जिद पकड़ लेते थे ‘बाहर घूमने चलो, खाना-खाने चलो’। अब केवल और केवल ‘ऊँ ‘व्हट्सएप’ हरे’। जब घर में बजट की इतनी बचत हो तो इंटरनेट पैक पर हज़ार-दो हज़ार फूँकने में कोई हर्ज़ नहीं है।
‘व्हट्सएप’ प्रयोगकर्ताओं को वीडियो, आॅडियो या पोस्ट की विश्वसनीयता, भ्रामकता और वर्तनाी की शुद्धि से क्या लेना-देना। वीडियो होगी दस साल पहले की, किसी अन्य संदर्भ और घटना की, अब पोस्ट की जाएगी नवीनतम संदर्भों के साथ। कुछ प्रयोगकर्ता उसको बिना विश्वसनीयता के सबूतों के आदतन फारवर्ड करने से नहीं चूकते।
एक पोस्ट में लिखा होगा कि ‘मीठा कैंसर कोशिकाओं को फैलाता है, अतएव मीठी वस्तुओं का सेवन न करें’। कुछ सैकण्ड में दूसरी पोस्ट में लिखा होगा- ‘जिम जाने या शारीरिक अभ्यास से पूर्व मीठा खाने से एनर्जी लेवल बना रहता है’। तुरंत तीसरी पोस्ट में लिखा होता है- भोजन में कार्बोहाइड्रेट के उत्तम स्त्रोत हैं’- अन्न और मीठे खाद्य पदार्थ। अब समस्या यह आती है कि किस पोस्ट पर विश्वास करें। ‘व्हट्सएप’ प्रयोगकर्ता, सब के सब डाॅक्टर भी हैं, सलाहकार, भी हैं, धार्मिक भी है, एक्टर-सिंगर भी हैं, योग-चिकित्सक भी है। अब मनुष्य दोराहे नहीं, पता नहीं कितने राहे पर खड़ा होता है। स्थिति तब और भी चिन्ताजनक होती है जब इन पोस्टों के औचित्य-अनौचित्य, सार्थकता को लेकर पार्कों इत्यादि में दो घड़ों में परस्पर तनातनी तक हो जाती है।
चूँकि ‘व्हट्सएप’ का उद्देश्य एक-दूसरे से दूर रहने वाले लोगों को निकट लाना था इसलिए वर्तनी की शुद्धता पर किसी का ध्यान क्यों जाएगा। For You का ‘4U’ या Before you का ‘B4U’, Please का Plz, Tomorrow, का ‘tom’ आशीर्वाद का ‘आर्शिवाद’ जागृत के स्थान पर ‘जाग्रत’ रिश्ता के स्थान पर ‘रीशता’। यदि ऐसे ही संक्षेपीकरण की प्रवृत्ति बनी रही तो भविष्य में प्रश्न-पत्र में कुछ इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाएँगें-
1.  मैं कल कक्षा में नहीं आऊँगी।
(वाक्य का संक्षेपीकरण ‘व्हट्सएप’ पद्धति के आधार पर कीजिए)

2.  निम्नलिखित शब्दों के ‘व्हट्सएप’ रूप लिखिए।

Tomorrow, Yesterday, Before, Picture, Profile, Display, Right, Thanking you, That.

3. निम्नलिखित शब्दों की ‘व्हट्सएप’ आकृति (इमोजी) बनाइए
हँसना, धन्यवाद ज्ञापित करना, मुँह में पानी आना, प्रशंसा करना।

 

डॉ. राजरानी शर्मा

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