प्रस्तावना-

’उजली आग ’ राष्ट्रकवि रामाधारी सिंह ’ दिनकर ’ द्वारा रचित एक अनोखी और अद्वितीय कृति है जिसमें बोध कथाओं का संकलन है । ये कथाएँ मानव जीवन की सच्चाई को व्यक्त करती है । हर एक कथा को लेखक ने बड़े ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है । हर कथा का विषय उसकी गम्भीरता व गूढ़ार्थ की प्रदर्शनी है । ये कथाएँ हर व्यक्ति के कर्म की साक्षी है । इक्कीसवीं शताब्दी के इस चुनौती भरे युग में मानव कई शंकाओं का शिकार होता चला जा रहा है और कई बार निराशावादी, अवसादयुक्त जीवन जीने लगता है । इन कथाओं की दार्शनिकता हर व्यक्ति का मार्गदर्शन करती है । अत: मैंने इस लेख में लेखक के विचारों ,उनका उद्देश्य, पाठकों को उनका संदेश , उनके दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है ।

राष्ट्र्कवि रामधारी सिंह ’ दिनकर’ का परिचय-

राष्ट्र्कवि रामधारी सिंह ’ दिनकर’ का जन्म बिहार राज्य, मुंगेर जिला, गाँव सिमरिया जो मिथिलांचल का प्रसिद्ध तीर्थ है, बाबू रवि सिंह जी के घर, २३, सितम्बर, १९०८ ई में हुआ । पटना विश्वविद्यालय से बी.ए की पदवी हासिल की । पारिवारिक  जिम्मेदारी के कारण नौकरी करने लगे । स्कूल के प्रधानाध्यापक पद से आगे बढ़ते हुए भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने । अन्तत: १९६५ से १९७२ तक भारत सरकार के गृहविभाग में हिन्दी सलाहकार  हुए । २४ अप्रैल १९७४को,  रात्रि में, तिरूपति में भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन के बाद मद्रास में शरीर त्यागा ।

“ श्री रामधारी सिंह के दिनकर–तत्त्व को पोषित-पल्लवित किया तुलसीजी के ’रामचरितमानस’ तथा मैथिलीशरण गुप्त एवं माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं ने । उसके बाद उनके मन पर जिनकी छाप पड़ी और जिनसे उन्होंने प्रेरणा ग्रहण की वे घटनाएँ और व्यक्तित्व हैं – अपने देश का स्वतन्त्रता -संग्राम, विश्वस्तर पर स्वातन्त्र्य-कामियों के संघर्ष, गाँघीजी के कार्य और विचार, स्वामी विवेकानन्दजी, राजा राममोहन रायजी, दयानन्द सरस्वती, श्रीमती एनी बेसेन्ट, दो-दो विश्वयुद्ध और उनके कारण विचार जगत और साहित्य-लोक के संघर्ष विवाद;-उनके लगभग पाँच हज़ार पृष्ठॊं में प्रकाशित वाङमय में इन सबकी अनुगूँज स्पष्ट रेखांकित की जा सकती है । “ पृष्ठ-१२५-उजली आग- रामधारी सिंह ’ दिनकर’

रामधारी सिंह ’ दिनकर’ भारत जैसे महान राष्ट्र के पाँचवे राष्ट्र्कवि सिद्ध हुए । वे राष्ट्रीयता के उद्घोषक और क्रांति के उदगाता थे । सुगम्भीर चिन्तक थे । मानवता के प्रति प्रतिबद्ध थे । दलितों-दुखियों की दुर्दशा से दुखी थे । भारत प्रेम और भारत धर्म की परिपूर्ण अभिव्यक्ति इनके साहित्य के लक्षण है ।

वैयक्तिक निबन्ध, साहित्यिक आलोचना, बोध – कथाएँ, संस्मरण, यात्रा विवरण आदि गद्य लेखन में लेखक ने  अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है ।

रामधारी सिंह ’ दिनकर’ ’साहित्य अकादमी ’,’ज्ञानपीठ पुरस्कार” तथा ’पद्मभूषण ’ की उपाधि से अलंकृत थे ।

उजली आग – बोध कथाएँ

उजली आग में ३८ बोध कथाओं का समावेश किया गया है । व्यक्ति के जन्म से लेकर रहस्यमय मृत्यु तक के सफर तक, व्यक्ति का मनोभाव उसका विकार, उसके सूक्ष्म अंतरात्मा की पुकार, कालचक्र का यथार्थ, आध्यात्मिकता, धर्म की परिभाषा को वर्णित व उजागर किया गया है ।

उजली आग की भूमिका में मकड़ी जब मधुमक्खी को अहं के कारण कहती है, “ हाँ, बहन : शहद बनाना तो ठीक है, लेकिन, इसमें तुम्हारी क्या बड़ाई है ? बौरे हुए आम पर चढ़ो, तालाब में खिले हुए कमलों पर बैठों, काँटों से घिरी कलियॊं से भीख माँगों या फिर घास की पत्ती-पत्ती की खुशामद करती फिरो, तब कहीं एक बूँद तुम्हारे हाथ आती है । मगर ,मुझे देखो । न कहीं जाना है न आना, जब चाहती हूँ जाली पर जाली बुन डालती हूँ । और मजा यह कि मुझे किसी से भी कुछ माँगना नहीं पड़ता । जो भी रचना करती हूँ, अपने दिमाग से करती हूँ, अपने भीतर संचित संपत्ति के बल पर करती हूँ । देखा है मुझे किसी ने किसी जुलाहे या मिलवाले से सूत माँगते ?”

मधुमक्खी बोली, “ सो तो ठीक है बहन ; मगर, कभी यह भी सोचा है कि तुम्हारी जाली फिजूल की चीज है, जबकि मेरा बनाया हुआ मधु मीठा और पथ्य होता है ?”

इसमें मनुष्य के जीवन की सार्थकता की बात की गई है । मनुष्य शरीर एक अलभ्य अवसर है जिसका वह सदु पयोग करे । ’कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समा: ’गीता में कहा गया है ’कर्म में ही तेरा अधिकार है, उसके फल में नहीं ।’ इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने मानस में कहा है कि ’ कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।’ इस प्रकार हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों में कर्म को प्रधानता दी गई है । इसी के आधार पर हमारी भारतीय संस्कृति भी हमे कर्ममय जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करती है । आलस्य का त्याग कर निष्ठापूर्वक जीवन जीना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए इस कथा का संदेश है ।

जीवन के दो चित्र लेख में जैन गुरू युवाचार्य महाप्रज्ञ पुरूषोत्त्म कृष्ण के विराट व्यक्तित्व की कथा लिखते है-“ वासुदेव कृष्ण जा रहे थे । सैकड़ों कर्मचारी उनके साथ थे । उन्होंने देखा एक बूढ़ा आदमी । उसके हाथ काँप रहे हैं। वह अपने काँपते हाथों से एक ईंट उठा रहा है और बाहर से घर के भीतर ले जा रहा है । कृष्ण ने सोचा कि यह कब पार पड़ेगा ? उनके पैर वृद्ध की ओर आगे बढ़े । एक ईंट उठाकर घर के भीतर ले गए । वासुदेव के साथ सैकड़ों- सैकड़ों हाथ उठे और बूढ़े का काम बन गया । सहयोग व्यक्ति को बड़ा बनाता है और अहं से वह छोटा बनता है । सहयोग किए बिना बड़े बनने वालों में अहं बड़ा होता है, उनका व्यक्तित्व कभी बड़ा नहीं होता । वासुदेव का व्यक्तित्व बड़ा था । अहं विसर्जित और विसर्जित । “ पृष्ठ-१२-समय के हस्ताक्षर, युवाचार्य महाप्रज्ञ

’बीज बनने की राह’ कथा में  जब दो राही किसी गाँव से गुजर रहे थे कि अचानक गाँव में आग लग गई और फूस के बने हुए घर धायँ-धायँ जलने लगे । एक राही यह कह कर कि ’ जला करें ये लोग । आखिर, वे बीड़ी क्य़ों पीते है? मै आग बुझाने को नहीं जा सकता । यह मेरा काम नहीं है । “ यह कह वह  पेड़ की छाया में जा बैठता है ।

वही दूसरा राही बहादुर था । वह आग में कूद कर एक जान और कुछ असबाब को बचाता है । इस बीच उसके हाथ -पाँव जल जाते है । छाया में सुस्तानेवाला राही जब यह पूछता है किसने बोला था तुम्हें अपनी जान खतरे में डाल कर जान बचाने के लिए ? तब बहादुर राही कहता है

“उसी ने, जिसने यह कहा कि बीज बोते चलो, फसल अच्छी उगेगी।“

“और अगर आग में जलकर खाक हो जाता तो?”

“तब तो मैं स्वयं बीज बन जाता ।“ पृष्ठ-१६, उजली आग, रामधारी सिंह ’ दिनकर’

इस कथा का संदेश स्पष्ट है कि जीवन की सार्थकता, समर्पण में  है।

इसी प्रकार से एक और कथा है “ आदमी का देवत्व” जिसमें यह कहा गया है कि जब ब्रह्मा ने आदमी बनाया, तब आदमी ने अपने आप को देवता घोषित कर दिया । देवता डर कर उसके देवत्व को चुरा लेते है और छुपाने का व्यर्थ प्रयास करते है क्योंकि आदमी इतना ताकतवर है उसे कहीं न कहीं ढूँढ़ ही लेगा । तब ब्रह्मा उसके देवत्व को उसके मन में छुपा देते है ।

“जो भी आदमी इस दुनिया में पैदा होता है उन सबके अन्दर ज्योति दी गई है । हृदय ईश्वर का ’ अंश’ या ’बीज’ है जिसमें पूरे व्यक्ति को पुनर्जीवन देने की शक्ति होती है । अन्त:स्थ आत्मा में पूर्ण निष्ठा रखकर हममें से प्रत्येक जगत के बंधन से मुक्त हो सकता है । कोई अंधता या दुष्टता ईश्वर का उपयोग करने में बाधक नहीं है ।“ पृष्ठ- १६०, सत्य की ओर, डॉ. राधाकृष्णन

कबीर दास भी कहते हैं-

ज्यों तिल माहि तेल है , ज्यों चकमक में आग ।

तेरा साई तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ॥

“गुफावासी “कथा आन्तरिक मन की शुचिता और जन्म-जन्मातर के रहस्य को उजागर करता है । लेखक कहते है- “ मेरे हृदय के भीतर एक गुफा है और वह गुफा सूनी नहीं रहती । आरम्भ से ही देखता आ रहा हूँ कि उसमें एक व्यक्ति रहता है, जो बिलकुल मेरे ही समान है ।“  “और जब मैं उसके सामने जाता हूँ,मेरी अक्ल गायब हो जाती है और मै उसे यह कहकर बहला नहीं सकता कि मैने छिपकर कोई पाप नहीं किया है और जो मलिन बातें हैं, उनके लिए मुझमें लोभ नहीं जागा है ।“

“ और एक दिन इस गुफावासी ने मुझे कहा कि देख, ऎसा नहीं कि तू कोई और , और मै कोई और हूँ । मै तेरी वह मूर्ति हूँ, जो स्फटिक से बनाई गई थी । किन्तु, तू जो-जो सोचता है, उसकी छाया मुझ पर पड़ती जाती है, तू जो-जो करता है, उसका क्षरित रस मुझ पर जमता जाता है । और जन्म-जन्मान्तर में रस के इस क्षरण से और विचारों की इस छाया से मुझ पर परतें जम गई हैं । पृष्ठ-१९,गुफावासी, उजली आग, रामधारी सिंह ’ दिनकर’

चाहे हम हिन्दू ऋषियों को ले, बौद्ध उपदेशकों को ले ;सुकरात, अफलातून, अरस्तू एवं प्लाटिनस जैसे यूनानी विचारकों को लें, या फिर ईसाई रहस्यवादियों और सूफियों को लें सब की मान्यता है कि मनुष्य में ईश्वर का वास है । जो हमें सत्य और असत्य से अवगत कराता रहता है ।

“ जब उपनिषदें इस महासत्य की घोषणा करती हैं कि “ यह तुम हो,” जब बुद्ध उपदेश देते हैं कि प्रत्येक मानव -व्यक्ति अपने अन्दर बुद्ध या बोधिसत्व होने की शक्ति रखता है, जब यहूदी कहते हैं कि “ मानवात्मा ही ईश्वर का दीपक है”, जब ईसा अपने श्रोताओं से कहते हैं कि “ मानवात्मा ही ईश्वर का दीपक है”, जब ईसा अपने श्रोताओं से कहते है कि स्वर्ग का राज्य उन्हींके अन्दर है, और जब मुहम्मद ज़ोर देते है कि ईश्वर हमारे उससे भी  ज्यादा नज़दीक है जितना हमारे गले की धमनी है – तब इन सबका एक ही आशय होता है कि जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु मानव के बाहर की किसी चीज़ में नहीं , बल्कि उसके चिन्तन एवं भावना के गुप्त स्तरों में पाई जा सकती है ।“ पृष्ठ-१३४, सत्य की ओर, डॉ. राधाकृष्णन

’दो ध्रुव ’ कथा में महात्मा ईसा मसीह अपने शिष्य को जो अपने पिता के शव को रो -रो कर दफना रहा था उसे ज्ञान देते हुए कहते है “ जो मर गया ,वह भूत का साथी हो गया । लाश के साथ लिपटकर तू क्यों वर्तमान से दूर होता है ? यह समय बहुत लम्बा है और इसने बहुत – सी लाशों को जतन से दफना रखा है । “ पृष्ठ-२१, दो ध्रुव, उजली आग, रामधारी सिंह ’ दिनकर’

’ जीवन का बोझ ’ कथा में एक बूढ़ा आदमी जेठ के धूप में लकड़ियों का बड़ा बोझ उठाए हाँफते हुए जब जा रहा था अचानक उसके मन में वैराग्य की भावना जाग उठती है और वह पुकार उठता है ’ हे मृत्यु के देवता ; कहाँ छिपे हो? आओ और इस अदना मज़दूर को अपनी शरण में ले लो ।“ यमराज दयाद्रवित हो एक दूत को फौरन भेजते है । यमदूत को देखते ही बुड्ढे की सिट्टि-पिट्टी गुम हो जाती है । यमदूत जब सहायता के लिए पूछता है तब वह डर के मारे लकडियों का बोझा अपने सर पर वापस रखवा लेता है जिसे उसने पेड़ के नीचे पटका था । इस कहानी में उस सच्चाई को व्यक्त किया गया है कि मनुष्य जीवन की यातना सहने को तो तैयार है लेकिन वह मृत्यु से भयभीत रहता है ।

“ महात्मा बुद्ध कहते है- “ मृत्यु अनिवार्य है, स्वाभाविक है । इसलिए यही चेष्टा करो कि जीवन सन्मार्ग पर चले ।“ पृष्ठ- ७०, गौतम बुद्ध, लीला जॉर्ज

’मृत्यु” कथा में लेखक  रामधारी सिंह ’ दिनकर’   कह उठते है “ और चार दिनों के जीवन के लिए जब इतनी हाय-हाय है , तब कभी खत्म न होने वाली जिन्दगी के लिए कितनी हाय-हाय होती ;” “ मौत की कैद लगा दी है, गनीमत समझो । “

लेखक कहते है “ प्रजातन्त्र की असली पताका का नाम कफन है, जिस पर लिखा रहता है, “ सभी मनुष्य समान है ।“ “ यम की दो आकृतियाँ हैं, जिनमें से एक तो भयावह, किन्तु , दूसरी हँसमुख और प्रसन्न है ।“

“मरन रे, तुहुँ मम श्याम-समान ।

मरन रे, श्याम तोहारई नाम ॥“ पृष्ठ- ७५, मृत्यु, उजली आग, रामधारी सिंह ’ दिनकर’

गौतम बुद्ध ने अपने प्रथम उपदेश में कहा था- ’ अति सर्वत्र वर्जयेत’

“ इस जगत-वृक्ष की जड़ॆ ऊपर की ओर है तथा शाखाएँ नीचे है “ यह भगवदगीता का कथन है । “ मै ऊधर्वलोक का हूँ ; तुम लोग इसी दुनिया के हो ।“ पृष्ठ-१४२, सत्य की ओर, डॉ. राधाकृष्णन

निष्कर्ष:     रामधारी सिंह ’ दिनकर के द्वारा रचित हर एक वाक्य गम्भीरता का बयान करती है । हर एक कथा के अंत में ऎसे चित्र है जो कथा के अंतर्निहित विचारों को स्पष्ट करती है अर्थात चित्रात्मक शैली  का प्रयोग ’उजली आग ’ की अपनी विशेषता है । भाषा का पांडित्य लेखक के वैचारिक पृष्ठभूमि को पुर्णत: उद्घोषित करती है । कथा पढ़ते- पढ़ते सरल तो लगते है लेकिन उसमें निहित अर्थ को शब्दों में व्यक्त करना सरल नहीं है । ये कथाएँ अन्तरात्मा का मंथन तो करती है साथ ही आत्मशक्ति का उजागर भी करती है । विषय की गम्भीरता पाठकों को भारतीय दर्शन शास्त्र, भारतीय धर्म शास्त्र, भारती संस्कृति की तरफ मुखातिब करती है । ये कथाएँ लेखक के गम्भीर व्यक्तित्व को दर्शाती है ।

युवाचार्य के शब्दों में –“ वे अब इस दुनिया में नहीं रहे । एसा लगा, जैसे पराक्रम का स्वर सदा के लिए मौन हो गया । वे कोरे कवि ही नहीं थे, उनमें काव्य, चिन्तन और कर्तृत्व की त्रिवेणी का सामंजस्यपूर्ण संगम था । कुरूक्षेत्र का कवि जितना ऊर्जस्वी है, रश्मिरथी का कवि उतना ही मनस्वी है । संस्कृति के चार अध्याय का लेखक जितना अनुसंधित्सु है, शुद्ध कविता की खोज में उतना ही चिन्तन के शिखर पर है । उनमें कर्म का अनुराग था, साथ-साथ धर्म और अध्यात्म का आकर्षण भी था । वे बुद्धिवादी होने के साथ-साथ भावनात्मक विकास में भी विश्वास करते थे । पृष्ठ-३८, समय के हस्ताक्षर-युवाचार्य महाप्रज्ञ

संदर्भ ग्रंथ

  • उजली आग- रामधारी सिंह ’ दिनकर
  • सत्य की ओर- डॉ. राधाकृष्णन
  • समय के हस्ताक्षर-युवाचार्य महाप्रज्ञ
  • गौतम बुद्ध, लीला जॉर्ज
डॉ.गगन कुमारी हळवार
सहायक प्रध्यापिका, भाषा विभाग
डॉ. एन एस.ए.एम  एफ़ जी सी
निट्टे ग्रुप ऑफ इन्सटीटुयशन
बैंगलूरू

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