वह उनकी इकलौती पुत्री थी. माता चाहती थी कि उनकी पुत्री को उनके पति जैस व्यापारी वर न मिले, जबकि पिता चाहते थे कि उनकी पुत्री को व्यापारी वर मिलें । माता ने कहा , “यह लड़का ठीक रहेगा. इस की सरकारी नौकरी है। अपनी लड़की खुश रहेगी।”
पिता ने कहा, “नहीं-नहीं, यह ठीक नहीं रहेगा। मेरे हाथ में जो फोटो है, वह लड़का ठीक रहेगा। अच्छा व्यापारी है। खूब पैसे कमाता है। लड़की सुखी रहेगी.”
लड़की पास के कमरे में पहलवानी के दाँवपेच की किताब पढ़ रही थी।यह बहस सुन कर उस का ध्यान भंग हो गया।
माता कह रही थी,” मुझे अपनी लड़की के लिए आप के जैसा पति नहीं चाहिए.”
पिता कहा कह रहे थे,”नहीं-नहीं, जिस लड़के को तुम पसंद कर रही हो, वह हमारी लड़की के लिए उचित नहीं है.”
माता कह रही थी,” मुझे अपनी लड़की के भविष्य की चिंता है। उसे तुम जैसा व्यापारी पति नहीं चाहिए जो अपनी पत्नी को सुखदुख में काम ना आ सके, रात दिन व्यापार में ही लगा रहे.”
यह सुन कर लड़की ने अपनी मुट्ठी भींच ली, फिर तेज़ी से माता-पिता के पास आ कर बोली, ” कभी आप ने मुझ से पूछा है कि मैं क्या चाहती हूँ ? ”
दोनों चकित रह गए. एक साथ चौकें. फिर लड़की का मुँह तांकने लगे. मानो, पूछ रहे हो,” आखिर तुम क्या चाहती हो?”
लड़की ने दीवार पर लगी पहलवान गीता फोगट की तस्वीर देख कर कहा,” मेरा लक्ष्य शादी करना नहीं है” और उसी समय खिड़की के बाहर से तेज़ी से आवाज़ आई , ” होली है !”
बाहर होलिका धूँ-धूँ कर जल रही थी.
ओमप्रकाश क्षत्रिय
रतनगढ़, नीमच, मध्यप्रदेश