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जी मम्मी … मम्मी मैं आपको बता नहीं सकती की मैं कितना खुश हूँ। इतने सालों बाद तो कोई उम्मीद की किरण नजर आई है। अब हमारे घर में भी नन्हें मेहमान की शरारतें होंगीं उसकी मुस्कुराहट होगी। जी मम्मी मैं अपना और सबका ख़्याल रख रही हूँ। बस आप आशीर्वाद दें कि ये सब आसान हो मेरे लिए। ठीक है मम्मी। अब रखती हूँ। वैसे रिद्धी भी यहाँ आ जाती तो मुझे और आराम मिल जाता। ठीक है मम्मी मैं आपसे बाद में बात करती हूँ। यह बोलते हुए ममता ने फोन रख दिया। कारण उसके पति के कदमों की आहट थी।
वैसे मैंने एक बात नोटिस की है। मैं जब भी तुम्हें देखता हूँ तुम अपनी माँ या बहन से बात कर रही होती हो। सुरेश बोला
नहीं नहीं मैंने तो बस दो मिनट पहले फोन किया था। ममता ने जवाब दिया। आपको नमस्ते कह रही थीं।
नमस्ते -जवाब में सुरेश बोला।
और ये भी बोल रही थीं कि रिद्धी को मुंबई भेज रही हूँ ख़्याल रखने के लिए।
तुम्हें क्या हुआ ? सुरेश ने पूछा
भूल गए आप? डॉक्टर ने क्या कहा था कि बच्चे की पैदाईश पर मुझे बहुत सावधानी रखने की जरूरत है।
ओह अच्छा –
अच्छा सुनो मैंने ये खीर बनाई है। पड़ोस में बाँट देंगे तो अच्छा होगा। ममता बोली
सुरेश – तुम पागल हो या जानबूझकर बन रही हो?
क्यों क्या हुआ!
थका हुआ आया हूँ काम से और तुम मुझे कह रही हो कि बाहर पड़ोस में जाकर खीर बाँटता फिरूँ? पहले मुझे तो खाना-पानी दे दो। सुरेश जिस तरह से ये कहते हुए ममता के पास आया था ममता घबरा सी गई।
अगले दिन शाम को ममता ने सुरेश को आवाज देते हुए पूछा – मम्मी ने छः बजे वाली बस में रिद्धी को बैठा दिया है। वो दस बजे तक पहुंच जाएगी। आप उसे लेने चले जाएंगे?
क्यों? – सुरेश बोला (वो बच्ची थोड़े ही है। अकेले भी तो घर आ सकती है।)
ममता – अरे नहीं नहीं वो तो छः-सात साल पहले यहाँ आई थी तब तो वो छोटी थी। उसे हमारे घर का रास्ता नहीं मालूम। मम्मी के साथ आई थी न।
किताब पढ़ते-पढ़ते ही सुरेश बोला – ठीक है मैडम ले आऊँगा और कोई हुक्म?
मुस्कुराते हुए ममता ने सिर्फ़ न कहा।
एक कप चाय तो ला दो। कहते हुए सुरेश किताब हाथ में लेकर बरामदे से अपने कमरे में चला गया।
ममता चाय बनाने रसोई घर में दाख़िल हुई।
चाय पीने के बाद सुरेश ने आराम किया और चार घण्टे बाद बस स्टैंड पर अपनी साली रिद्धी का इंतज़ार करने लगा।
रिद्धी की बस सुरेश के बस स्टैंड आते ही स्टैंड में प्रवेश कर चुकी थी। सुरेश को ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा।
रिद्धी इधर-उधर सुरेश को खोजने लगी और उसे बस स्टैंड के गेट पर ही कार के पास खड़ा देख उत्साहित होते हुए बोली – सुरेश जी!
तुम रिद्धी हो ? सुरेश ने पूछा
हाँ मैं रिद्धी हूँ। उसने जवाब दिया। क्यों आप मुझे भूल गए? शादी में देखा तो था। उसके बाद एक बार आपसे मिलने भी आओ थी।
अरे नहीं तुम बड़ी हो गई हो तो पहचान नहीं पाया – सुरेश ने कहा।
हाँ – हाँ और मुझे मम्मी ने कहा तुम्हें बहन के पास जाना है। तो मैं ख़ुशी से पागल ही हो गई। ये लें मुँह मीठा करें। कहते हुए वहीं स्टैंड पर ही रिद्धी ने सुरेश के मुँह में मिठाई का टुकड़ा ठूँस दिया। हम बहुत ख़ुश हैं। भगवान ने हमारी दुआ क़बूल कर ली। रिद्धी कहते जा रही थी। मैं मासी और मम्मी नानी बनने वाली है। हम बहुत खुश हैं।
हाँ ख़ुश तो मैं भी बहुत हूँ। सुरेश ने कहते हुए गाड़ी का दरवाज़ा खोला और फिर गाड़ी स्टार्ट करके घर की तरफ़ मोड़ दी। बीच-बीच में वह रिद्धी को भी देखता जा रहा था। फ़िर अचानक गाड़ी के आगे एक कुत्ता आ गया तो गाड़ी के ब्रेक अचानक से सुरेश को लगाने पड़े। जिससे रिद्धी गाड़ी के डैश बोर्ड से टकराने ही वाली थी कि सुरेश ने अपना हाथ सुरक्षा करते हुए उसे टकराने से बचा लिया। सुरेश पूरे रास्ते रिद्धी की खूबसूरती को निहारते जा रहा था।
घर पहुँचते ही रिद्धी ममता से गले लगी और उसे बधाई देते हुए बोली – दीदी क्या हाल बना रखा है! बड़े थके हुए से लग रहे हो।
नहीं तो मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ। – ममता ने कहा
कहाँ दीदी न बाल, न रंगकुछ भी तो सही नहीं।
उसे बीच में रोकते हुए ममता बोली – तुम कितनी बड़ी हो गई।
उनकी बातें सुनते हुए सुरेश ने चुटकी लेते हुए कहा और प्यारी भी।
धन्यवाद सुरेश जी ( रिद्धी अपने जीजा को सुरेश जी ही कहती।)
ममता ने हाल चाल लेते हुए रिद्धी से उसकी परीक्षाओं के बारे में पूछा।
वे दोनों बातें कर रही थी और सुरेश दीवार के सहारे लगकर रिद्धी को निहार जा रहा था। बातें करते-करते ममता ने कहा ठीक है तुम फ्रेश हो जाओ। मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ। इतना सुनते ही रिद्धी ने ममता को रोकते हुए कहा अच्छा मम्मी ने मुझे आपकी खिदमत के लिए भेजा है और मैं आपसे ही अपनी सेवा करवाने लगूँ? आप बैठे मैं आप दोनों और अपने लिए चाय खुद बनाकर लाती हूँ। वैसे भी बहुत दिनों बाद मिले हैं। आपने मेरे हाथ की चाय नहीं पी सात साल बीत गए।
ममता अपने कमरे में चली गई और रिद्धी रसोई घर में चाय बनाने का सामान ढूंढ़ने लगी। इसी बीच सुरेश भी वहाँ आ गया और बोला क्या ढूंढ़ रही हो?
रिद्धी चाय की पत्ती नहीं मिल रही। कहाँ रखी होती है?
चाय ? चाय तो ख़त्म हो गई मैं लेकर आता हूँ।
कुछ और चाहिए तो लाऊँ?
कुछ और क्या?
तुम मेहमान हो हमारी और यहाँ करीब ही दुकान है। वहाँ समोसे बड़े मजे के मिलते हैं।
समोसे! ख़ुशी और हैरानी के भाव लाती हुए रिद्धी बोली।
समोसे के बारे में कहने लगी और बोली अरे वाह समोसे मिल जाए तो मजा ही आ जाए।
हम्म्म्म मुझे भी अच्छे लगते हैं समोसे।
अरे तो पहले कहते आपको अच्छे लगते हैं। तो मैं आते हुए आपके लिए भी पैक करवा लाती। हमारे वहाँ भी बड़े मजे के मिलते हैं।
अच्छा वैसे एक बात बताऊँ? समोसे इतने भी पसंद नहीं है लेकिन तुम लाती तो जरूर खाता।
दोनों इस बात पर मुस्कुरा दिए। सुरेश चला गया
क्या! उसने आत्महत्या कर ली?
आत्महत्या नहीं करती तो क्या करती?
दोनों बहनें बातें कर रही थीं।
वो बहन नहीं माँ जैसी थी। उसे बच्चों की तरह पाला था उसने। आपको याद है हम सब भी देखा करते थे और उस छोटी बहन ने ही अपनी बड़ी बहन कर घर में डाका डाला था और अब अपने बहनोई से ही शादी कर ली उसने। मुझे तो यक़ीन नहीं आ रहा कि एक बहन ऐसा भी कर सकती है? रिद्धी बोल रही थी।
और बहनोई जो एक बाप की हैसियत रखता है उसी के साथ। छी… छी… छी… वो भी ऐसा कर सकता है? इस बार ममता बोली।
अच्छा छोड़ें आप काजल की बात करके अपना मूड ख़राब न करें। वैसे भी आपको इस वक़्त ख़ुश रहना चाहिए। मैं आपके लिए हलवा लेकर आई हूँ आपको पसंद है न।
अच्छा! अरे वाह! तुम्हें पता है जब मेरी शादी हुई थी तो मम्मी ने पूरे बीस किलो हलवा बनवाया था और सुरेश को हलवा इतना पसंद है कि उसने खूब सारा खाया। फिर उसका पेट खराब हो गया।
इतने में सुरेश घर आ गया था हलवा खाने की बात उसने खिड़की से सुन ली थी।
आओ सुरेश जी…
अच्छा जी ज़ुल्म हो रहा है ये तो मेरे घर में। नहीं? बेचारी मेहमान आई है जिससे तुम टाँगे दबवा रही हो।
मैंने कब कहा उसे – ममता ने जवाब दिया।
हाथ दिखाओ जरा लाल हो गए ना दबाते दबाते?
हँसते हुए रिद्धी ने कहा – नहीं।
अच्छा मैं जाती हूँ चाय बनाने। कहकर रिद्धी वहाँ से चली गई। सुरेश उसे जाते हुए एकटक देखता रहा और आँखों से दूर होने के बाद ममता से मुख़ातिब होते हुए बोला – एक बात बताओ ज़रा।तुम दोनों बहनों की तरबियत एक ही माँ ने की है?
क्या मतलब? अजीब से भाव मुँह पर लाते हुए ममता ने सवाल किया।
कुछ नहीं। सुरेश बोला और वहाँ से चला गया।
ममता सुरेश के जाते ही न जाने किन ख्यालों में गुम हो गई।
इधर रिद्धी चाय बनाने लगी तो सुरेश फिर से वहीं आ गया और एकदम चुपचाप आकर उसके पीछे खड़ा हो गया। चाय बनाते-बनाते रिद्धी गुनगुना रही थी। फिर एकदम से पीछे मुड़ी तो सुरेश को अपने पीछे खड़ा देख डर गई और एक हल्की सी चीख़ उसके मुँह से निकली।
क्या हुआ डर क्यों गई? चिड़िया जितना दिल है क्या तुम्हारा?
हाँ है। ठीक है। आइंदा मत कीजिएगा ऐसा।
अच्छा नहीं करूँगा और ये चाय नहीं पीनी मुझे।
ठीक है। कहकर रिद्धी रसोईघर से जाने लगी तो सुरेश ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया और बोला – मेरा मतलब मैं चाय नहीं पियूँगा खाना तो खाऊंगा।
आप टेबल पर बैठें मैं खाना लगाती हूँ। रिद्धी बोली
वैसे ये बड़े-बुज़ुर्ग जो कहते हैं सच होता है क्या ?
क्या – रिद्धी ने पूछा
यही की साली आधी घरवाली होती है। जैसे तुम कह रही हो उस हिसाब से मुझे बात याद आ गई और तुम आधी नहीं पूरी घर वाली लग रही हो इस वक्त मुझे।
आप बैठें बाहर बहुत सर्दी हो रही है।
हाँ सर्दी तो हो रही है।
रिद्धी खाना गर्म करने लगी सुरेश वहाँ से गया नहीं बल्कि उसके और करीब आते हुए धीरे से बोला- वैसे तुम्हें डरना नहीं चाहिए मुझसे। कहकर वह चला गया।
कुछ दिन बाद घर में कपड़े समेटते हुए रिद्धी ने ममता से बात करनी चाही और सवाल किया। दीदी एक बात पूछुं आपसे?
हाँ पूछो
ये सुरेश जी कैसे आदमी हैं?
मतलब! और तुम अचानक से इतनी पूछताछ क्यों करने लगी?
आपके साथ वो कैसा व्यवहार करते हैं? रिद्धी ने अपनी बहन की बात को जैसे सुना ही नहीं और यह दूसरा सवाल पूछ लिया।
कभी अच्छा, कभी बुरा तो कभी बहुत ही बुरा ममता ने कहा था।
अच्छा … हूँ…
तो अब ये हूँ का क्या मतलब। जिस वजह से पूछ रही थी वो वजह भी बता दो।
नहीं ऐसी कोई खास वजह नहीं है। लेकिन मुझे लगता है उनका बर्ताव आपके साथ कहते कहते रिद्धी रुक गई। शादी के बाद अच्छे-बुरे की कोई हैसियत नहीं रह जाती। ममता ने कह रही थी। वह अपनी बात आगे बढ़ाती हुई बोली। मर्द बीवी की बात का जवाब दे दे वही काफी है। जो बीवियाँ बहुत ज्यादा उम्मीद लगा लेती हैं वो सारी उम्र दुख झेलती हैं।
अच्छा एक बात बताएँ। उन्होंने आखरी दफ़ा अच्छे से बात कब की आपके साथ।
ये किस तरह के सवालात लेकर बैठ गई तुम। का पर ध्यान दो।
उस दिन जब रिद्धी रात को अपने कमरे में सो रही थी तो सुरेश उसके कमरे में दाखिल हुआ और उसके पाँव को छूकर एकदम से छुप गया। रिद्धी चौंक कर उठी और दीदी के कमरे में जाकर उन्हें उठाने लगी। ममता के उठने पर उसने कहा कि मेरे पाँव पर किसी ने चुटकी काटी दीदी।
क्या? कौन था वहाँ?
पता नहीं
तुमने कोई सपना देखा होगा।
नहीं मैं सोई नहीं थी बस आंखें बंद थी। सुरेश जी कहाँ है उसने पूछा।
सुरेश! इतने में सुरेश बाथरूम से निकला उसे देख ममता बोली लो वो आ गए। सुरेश अपना गीला मुँह पोंछते हुए बोला क्या हुआ?
कुछ नहीं डर गई थी सपने में शायद ममता बोली।
सपने में कोई इस तरह चिल्लाता है। तुम जानती हो तुम्हारी बहन मां बनने वाली है। वो तुम्हारे पीछे भागती, गिर जाती तो क्या होता। सुरेश का कहना था।
नहीं वहाँ कोई था। रिद्धी फिर से बोली।
कौन था चलो मैं चलकर देखता हूँ।
रिद्धी और सुरेश चले गए। कमरे में पहुँच कर सुरेश ने आवाज लगाई कौन है। लो यहां तो मेरे और तुम्हारे अलावा कोई नहीं है।
आप जाएं मैं सो जाती हूँ।
नहीं तुम्हें डर लग रहा है ना तुम सो जाओ। मैं यहां बैठकर तुम्हें देखता रहूँगा। जब तक तुम सो नहीं जाती। कहकर सुरेश उसे एकटक निहारने लगा। रिद्धी तकिए का सहारा लेकर लेट गई।
अगले दिन जब रिद्धी अपने कमरे में बैठी अखबार पढ़ रही थी तो सुरेश वहां आया।
आप यहां कैसे?
वो तुम्हारी बहन तो सो गई है। मुझे भूख लग रही है। कुछ खाने को मिलेगा?
आप कमरें में जाएं मैं वहीं कुछ लेकर आती हूँ।
लेकिन मुझे तो तुम्हारे हाथ से खाना है।
जी ये क्या बात हुई।
तुम्हारे हाथ कितने मुलायम है ना और छोटे-छोटे से भी।
क्या हो गया है सुरेश जी आपको। कैसी बातें कर रहे हैं। आपकी बातों से मुझे ख़ौफ़ होता है। घबराहट होने लगती है।
कैसी बातें। क्या मतलब। कहकर वो उसके बैड के पास बैठ गया और उसके हाथ पैरों की तारीफ़ करने लगा।
सिकुड़ सी गई थी रिद्धी। अपने आपको समेटने लगी थी।
सुरेश उसके एक एक अंग के हिस्से, उसके बाल सबकी तारीफ़ करने लगा।
सुरेश जी सुबह मैं आपकी ये सारी बातें दीदी को बताऊंगी।
क्या ये कि मैं तुम्हारी तारीफ कर रहा था। इसमें बुरा ही क्या है। सारी दुनिया की लड़कियों को अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता है। तुम्हें बुरा लग रहा है तो तुम्हारी बहन के सामने तारीफ कर दूँगा।
आपके मुँह से मुझे अपनी कोई तारीफ नहीं सुननी। आप चले जाएं गुस्से से उबलते हुए रिद्धी फड़फड़ाती हुई आवाज में बोल रही थी।
प्यार हो गया है तुमसे। सुरेश उसके और नजदीक आते हुए बोला।
क्या हो गया है आपको। ये कैसी बातें कर रहे हैं। मेरा दिल घबराने लगता है आपको देखकर। मैं सबकुछ बताऊंगी दीदी को। एक एक बात और आपकी हरकतें।
सुरेश हाँ बता देना लेकिन एक बात अपने दिमाग में रखना अगर तुम्हारे बताने से पहले मैंने बता दिया तो? तुम जानती हो न क्या होगा। आजकल बीवियाँ वैसे भी शक्की दिमाग और जेहन वाली होती हैं। और तुम्हारी बहन तो तुम पर भरोसा करती है। जाओ अब जाकर खाना लाओ मुझे भूख लगी है। रिद्धी जाने लगी तो सुरेश ने उसे पीछे से आवाज देते हुए रोक लिया और बोला कितनी प्यारी हो तुम।
और आप बहुत बुरे – रिद्धी कहकर चली गई।
तो सुरेश पीछे से जोर से बोला अच्छा ठीक है अब तुम्हें परेशान नहीं करूँगा।
लेकिन इस वाक़ये के बाद भी उसका व्यवहार जस का तस बना रहा। जब सुरेश घर में मौजूद न होता तो रिद्धी चैन की सांस ले पाती थी।
कुछ दिन बीते। ममता के पेट में दर्द बढ़ गया उसे अस्पताल भर्ती करवाना पड़ा। इसी समय सुरेश ने मौका पा घर में रिद्धी को अकेला देख उसके साथ ज्यादती करने की कोशिश की। ममता को जब इस बारे में पता चला तो उसने खुदकुशी कर ली। साल भर तक तो रिद्धी सुरेश के साथ रही उसके बच्चे को अपने बच्चे की तरह पालती रही। इस एक साल में वह अपने कॉलेज के आखरी इम्तिहान भी न दे पाई थी। सुरेश भी व्यस्त रहने लगा था। अब वह रिद्धी को तंग नहीं करता था। ऑफिस से आता कुछ देर बच्चे के साथ रहता और फिर सो जाता।
एक दिन रिद्धी की मां ने फोन किया और रिद्धी से अपनी ढीली सेहत के बारे में बताया और इच्छा भी जाहिर की कि उन्हें रिद्धी की जरूरत है।
रिद्धी अपनी बहन के बच्चे हितेश को अपने साथ लेकर चली गई। बच्चे को साथ न ले जाने के लिए सुरेश ने बड़ी मान मनौवल भी की थी। किन्तु वह अभी छोटा था और रिद्धी को वह अपने बच्चे जैसा प्यारा था। रिद्धी अपनी मां के पास आ गई थी। बीमारी के कारण कुछ ही महीनों में उसकी मां चल बसी। रिद्धी ने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। जब सुरेश अपनी सास के मरने पर आया था तब भी उसने रिद्धी से कहा था कि वह बच्चे को लेकर उसके पास आ जाए उसका बच्चे के बिना मन नहीं लगता। लेकिन रिद्धि ने उसका प्रस्ताव स्वीकार महीन किया। पाँच साल बाद जब एक दिन सुरेश अपनी ससुराल के पास स्थित एक कम्पनी में मीटिंग के लिए गया तो वहां से लौटते हुए उसे रिद्धी दिखाई दी। वह उसे पल भर में पहचान गया। उसने रिद्धी से अपने किए की माफी भी मांगी और कहा कि उसी की वजह से आज वह इस हाल में है। और उसकी पत्नी भी चल बसी। रिद्धी चुपचाप उसकी सफाइयां सुनते जा रही थी। इतने में हितेश स्कूल से बाहर निकला और उसने आवाज दी। “आओ मां घर चलें।”
तेजस पूनिया