सुबह के सात बजे थे। रोजाना की तरह सीमा रसोईघर में नाश्ता बना रही थी। तभी अनीता ने आकर पूछा – भाभी नाश्ता बन गया क्या? हां बस अभी देती हूं कहकर उसने एक प्लेट में आलू का पराठा और दही डाल कर दिया। अनीता नाश्ता लेकर अपने कमरे में चली गई।

बहू …… आज चाय मिलेगी कि नहीं ?

जी मम्मी जी, ला रही हूं- उसने जवाब दिया।

वह एक कप में चाय डालने लगी तो जल्दी – जल्दी के कारण उबलती हुई चाय सीमा के हाथ पर गिर गई और वह चिल्ला पड़ी। उसकी आंखे भर आई। कादंबरी सीमा की आवाज़ सुन कर रसोई घर में गई और उसे रोते देख बोली – हे भगवान ! रोज़ इसका कोई ना कोई बहाना होता है, काम ना करने का। मिल गई आज चाय।

सीमा अपने हाथ पर ठंडा पानी डाल रही थी कि यह सब सुनकर आज उससे चुप न रहा गया। वह रोते हुए स्वर में बोली – मम्मी जी सब काम मैं ही करती हूं तो गलती भी हो सकती है। कोई जान बूझकर उबलती चाय अपने ऊपर क्यों गिराएगा और वैसे भी….

इतना कहा ही था कि कादंबरी बीच में ही बोल पड़ी – हां रोज़ ही तो गलती होती है। आज कुछ नया कहां है। जब से इस घर में आई है तब से हमारा जीवन तो नरक बना दिया।

सीमा कोई जवाब देती कि तभी रमेश और अनीता अपने कमरे से बाहर आ गए।

माँ ऐसे चिल्ला क्यों रही हो सुबह सुबह,  क्या हो गया – रमेश ने पूछा।

अब क्या बताऊं बेटा एक कप चाय मांगी थी। हाथ जलवा कर बैठ गई महारानी।

कोई बात नहीं माँ….. अनीता भी तो है घर में,  तो वो बना देगी चाय।

यह सुनते ही अनीता के माथे पर सिलवटें पड़ गईं वह तिनक कर बोल पड़ी – भैया अगले हफ्ते से मेरे पेपर हैं तो अभी मुझसे काम नहीं होगा। मुझे पढ़ना भी तो होता है। भाभी तो पूरा दिन घर में ही रहती है इतना काम तो वो भी कर सकती है।

सीमा को यह सब सुन कर अपने कॉलेज के दिनों की याद आ गई। जब वह अपनी माँ के साथ घर का काम करके कॉलेज के लिए निकलती तो उसकी माँ कहती थी कि बेटा ऐसे ही आगे जाकर सेवा करनी है। यहां नहीं भी करेगी तो चल जाएगा, पर वहां जाकर तो करना ही पड़ेगा। उसके आंसू जो कहीं बीच में रुक गए थे सहसा फिर निकल पड़े।

एक चाय बनाने में कितना समय लगता है। तू पूरा दिन पढ़। कोई मना नहीं करेगा पर कुछ समय तो दे ही सकती है- रमेश ने कहा।

बेटा वो तो बना ही देगी। उसे कॉलेज के लिए निकलना है। अब अनीता पढ़ेगी या काम करेगी। आगे चलकर उसे भी तो अपना घर- बार संभालना पड़ेगा तो अब लड़की को कम से कम अपने घर तो आराम मिले।

माँ अब सारा काम करने को कौन कह रहा है। घर के काम में थोड़ा बहुत हाथ तो बटाया जा ही सकता है। वह भी तो पूरा दिन काम करती है – रमेश ने कहा।

हाँ अब बेटी ही करेगी घर का काम। बहू तो आराम करने के लिए आई है। तेरे ऊपर तो पता नहीं क्या जादू कर दिया कि हमारी कुछ नहीं सुनता। वहीं सही है तेरे लिए तो । बस यही दिन देखने बाकी थे। वो तू और तेरी घरवाली दिखा ही रहे हैं।

अब सीमा से चुप ना रहा गया। वह तुरंत ही बोल पड़ी – मम्मी जी मैं इस घर में बहू बन कर आई हूं नौकरानी नहीं कि मैं ही सारा काम करूं।

अब अपने घर का काम करने में भी नौकरानी हो गई तू।

मम्मी जी आप हमेशा….. सीमा ने इतना कहा ही था कि रमेश बीच में ही बोल पड़ा।– सीमा तुम चुप रहो।

मम्मी जी जो मन में आए वो बोलती रहें और मैं चुप रहूं। डेढ़ साल से सुन ही तो रही हूं ।

देख रहा है अब कैसे जबान चल रही है इसकी। तेरे सामने ये हाल है तेरे पीछे तो ये हमें जीने ना दे।

सीमा कुछ जवाब देती कि तभी रमेश ने कहा – अरे माँ तुम यहां आकर बैठो। रोज सुबह कोई ना कोई बात मिल जाती है। अब मैं यहां तुम्हारे झगड़े सुलजाऊं या काम पर जाऊं । अनीता तू जाकर माँ के लिए चाए बना दे।

अनीता मुंह बना कर रसोई में चली गई।

कादंबरी बाहर कुर्सी पर आ बैठी। रमेश और सीमा भी अपने कमरे में चले गए।

देखिए, मैं अब मम्मी जी के साथ इस घर में एक दिन भी नहीं रह सकती। तुम कहीं और नया घर देख लो या मुझे मेरे मम्मी पापा के घर छोड़ आओ। अरे अब तुम्हें क्या हो गया – रमेश ने पूछा।

मुझे बस अब इस घर में नहीं रहना है। तुम तो काम पर चले जाते हो। घर में मुझे रहना पड़ता है पूरा दिन मम्मी जी कमियां निकालती रहती हैं और लड़ती रहती हैं। खाना देर से क्यों बनाया, खाने में कभी तेल ज्यादा कभी नमक ज्यादा। अब मैं रोज – रोज नहीं सुन सकती।

सीमा….. अब माँ और अनीता को अकेले तो नहीं छोड़ सकते । अनीता का भी अब विवाह करना है। मैं उसका भाई हूं। अब घर की जिम्मेदारियां मेरे ऊपर है। ऐसे छोड़ कर नहीं जाया जा सकता।

तो मेरी भी कोई जिम्मेदारी है या मम्मी जी और दीदी की ही है।

ऐसे क्यों कह रही हो। मैंने तुम्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। बताओ और क्या चाहिए?

मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे अब इस घर में नहीं रहना है कहकर वह मुंह बना कर बैठ गई।

देखो सीमा….. माँ अपने बच्चे को कभी – कभी बिना गलती ही डांट देती है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो हमसे प्यार नहीं करती और हम उन्हें छोड़ कर चले जाए। उन्होंने हमें पाल पोस कर इतना पड़ा किया। पढ़ाया – लिखाया। हमारी भी तो उनके प्रति कोई जिम्मेदारी है या नहीं। तुम्हें माँ की डांट का बुरा नहीं मानना चाहिए।

मैं रोज़ की इस लड़ाई से तंग आ चुकी हूं शादी से पहले मैंने अपनी नौकरी क्या यह दिन देखने के लिए छोड़ दी थी।

सीमा हमारे घर में लड़कियां नौकरी नहीं करती है।

तो क्या इस घर में एक शांतिपूर्ण जीवन जीने का हक भी नहीं है। अब रमेश से कोई जवाब न बन पड़ा वह चुपचाप बाहर आ गया।

बेटा देख लिया ना । अब कर रही होगी आराम। काम से बचने का रोज़ नया बहाना निकाल लेती है। तू तो काम पर चला जाता है। बाकी पूरा दिन मैं ही घर पर रहती हूं। एक काम कहती हूं तो तुरंत लड़ने को आती है।

माँ तुमसे एक बात करनी थी- रमेश ने कहा।

हां बोल बेटा,  क्या हुआ।

माँ मैं सोच रहा था कि सीमा नौकरी कर ले तो घर में शांति बनी रहेगी और उनके मन की भी हो जाएगी।

हे भगवान !  कैसी बहू मिली है। फिर मेरे बेटे को पता नहीं कौन-सी पट्टी पढ़ा दी। देख बेटा हमारे घर में लड़की नौकरी नहीं करती है। ये तू भी जानता है। अब मैं समझी, काम से इसलिए बचती है ताकि हम ही परेशान होकर कह दे कि नौकरी कर ले। ये इस घर में नहीं चलेगा। रमेश बिना कुछ जवाब दिए अपने कमरे में चला गया और तैयार होकर काम के लिए निकल ही रहा था कि तभी सीमा ने कहा – आज भैया लेने आएंगे तो मैं अपने घर जाऊंगी। वह बिना कुछ जवाब दिए अपने काम पर चला गया।

रमेश कुछ महीने से तनाव में रहने लगा था। जिस प्रकार एक छोटी- सी दीमक एक मजबूत लकड़ी को अंदर से खोखला बना डालती है उसी प्रकार रोज़ रोज़ के झगड़े किसी व्यक्ति के विवेक को खोखला कर डालते है उनकी खुशियों को नष्ट कर डालते हैं और एक मजबूत रिश्ते की डोर को भी तोड़ डालते है। जब भी वह अपनी माँ को समझाता तो माँ बुरा मान जाती और पत्नी को समझाता तो वह मुंह बना लेती। इन दोनों रिश्तों में संतुलन बनाने में वह स्वयं को असफल पाता। और अंत में वह परेशान होकर चुप्पी साध लेता। और चला जाता। किंतु दिमाग हमेशा इसी उधेड़बुन में लगा रहता। रमेश के पिता उसके विवाह से दो वर्ष पहले ही स्वर्ग सिधार गए। जिससे घर की सारी जिम्मेदारियां उस पर आ गई। सीमा और रमेश के विवाह को डेढ़ साल हो गया और तब से ही घर में रोज किसी ना किसी बात को लेकर खट- पट होती रहती थी। अनीता कॉलेज में प्रथम वर्ष में थी और घर का एक काम नहीं करती थी। सीमा को ही घर का सारा काम करना पड़ता था और बिना गलती के भी कादंबरी की खरी- खोटी सुननी पड़ती थी। सीमा एक पढ़ी लिखी और समझदार लड़की थी किंतु समय के साथ साथ उसकी सहनक्षमता में कमी आने लगी थी। इसलिए वह कादंबरी के सामने बोल पड़ती थी। विवाह से पूर्व वह एक स्कूल में अध्यापन का कार्य करती थी। अपने माता पिता की इच्छा के कारण उसे जल्दी विवाह करना पड़ा। विवाह के बाद उसे नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि कादंबरी को घर का काम काज करने वाली बहू की ज़रूरत थी जो उसकी दिन- रात सेवा करे।

रात के साढ़े आठ बज गए। कादंबरी चिंतित बैठी थी । माँ खाना बन गया है अंदर आ जाओ- अनीता ने पुकारा। मानो उसने कुछ सुना ही नहीं । उसने फिर पुकारा – माँ….

कोई जवाब न आया तो वह खुद बाहर आ खड़ी हुई। माँ मैं कब से बुला रही हूं तुम्हें। अभी तक भैया नहीं आए?

तभी कादंबरी का ध्यान टूटा। बेटा एक बार और फोन लगा कर देख ले ।

माँ मैंने कई बार फोन लगाया,  भैया का फोन बंद है । तभी किसी के पैरो की गड़गड़ाहट सुनाई दी। अरे भैया कहां रह गए थे। माँ कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।

आज कुछ काम था इसलिए लेट हो गया- रमेश ने जवाब दिया।

कोई बात नहीं बेटा….. तू हाथ मुंह धो कर आजा और खाना खा ले।

जी माँ कहकर वह अपने कमरे की ओर चला गया और फोन चार्जिंग पर लगाया। अनीता अपने भाई का खाना ले आ- कादंबरी ने कहा।

अनीता तुरंत रसोईघर की ओर गई तभी रमेश बाहर आ गया। अनीता भी खाना लेकर आई – भैया खाना खा लो। आज मैंने खाना बनाया है।

रमेश को यह देख थोड़े सुख का अनुभव हुआ। उसने नहीं सोचा था कि सुबह की इस लड़ाई से इतना बदलाव हो जाएगा। घर में शांति थी। खाना भी आज अनीता लेकर आई। उसने मुस्कुराकर कहा –

अरे वाह ! तूने खाना बनाया। आज अपनी भाभी को पूरा आराम दे दिया।

तभी कादंबरी बोली – उसका भाई लेने आया था तो वह चली गई। पूरा दिन आराम करती थी। एक काम ठीक से नहीं होता और कुछ कह दो तो अपने घर चली जाती है। अब तो हम किसी से कुछ कह भी नहीं सकते ।

क्या…..  मां तुमने उसे रोका नहीं?

अरे बेटा उसका भाई लेने आया था मैंने सोचा कुछ दिन अपने घर रह आएगी। वहां रहेगी तो अकल ठिकाने आ जाएगी। फिर अपने आप वापस आ जाएगी। मैं भी देखती हूं कितने दिन अपने मायके में रहेगी।

रमेश बिना कुछ खाए ही अपने कमरे में चला गया और सीमा को फोन किया। घंटी बजती रही। किसी ने फोन न उठाया। उसने कई बार फोन किया और परेशान होकर कमरे में चक्कर लगाने लगा। उसने तय किया कि वह कल  अपने ससुराल जाएगा और सीमा को वापस घर लाएगा कि तभी अनीता ने कमरे में खाना लेकर प्रवेश किया। भैया खाना खा लो। अभी मुझे भूख नहीं है, जब भूक लगेगी तो खा लूंगा। अभी तू जा।

वह चुपचाप खाना लेकर वापस आ गई।

अगले दिन रमेश सुबह जल्दी उठ गया। उठ क्या गया रात भर वह सोया ही नहीं था और नहा धो कर तैयार हो गया ।

माँ मैं काम पर जा रहा हूं रात को वापस आते हुए सीमा को लेकर आऊंगा।

कल ही तो गई है। आज लेने भी जा रहा है। हे भगवान तेरे ऊपर कोनसा जादू कर रखा है। हमारी भी कोई जिम्मेदारी है या नहीं। जब से ब्याह हुआ तू हमें तो भूल ही गया।

माँ कोई जादू  नहीं किया है। तुम बिना वजह क्यों उसे खरी-खोटी सुनाती रहती हो।

हां मैं तो खरी- खोटी ही सुनाती हूं। जब अपना लड़का ही ऐसे बोल रहा है फिर वह तो पराए घर की है, उससे क्या उम्मीद करें।

तभी शोर सुन कर अनीता बाहर आ गई – माँ आज फिर क्यों सुबह- सुबह चिल्ला रही हो।

चिल्ला नहीं रही, अपने आप को कोस रही हूं कि ऐसा लड़का जन्मा है जो अपनी घरवाली का पल्लू पकड़े है। ना इसे अपनी माँ की चिंता ना बहन की।

रमेश बिना कुछ कहे ही घर से बाहर की ओर जाने लगा। अब जा ही रहा है तो खाना खा कर जा। रात को भी कुछ नहीं खाया था- कादंबरी ने कहा।

रमेश बिना कुछ कहे ही घर से निकल गया। कई बातों ने उसके मस्तिष्क को घेर लिया था। वह अंदर ही अंदर टूट चुका था।

थोड़ी देर बाद अनीता तैयार होकर बाहर आई। माँ मैं कॉलेज जा रही हूं

बिटिया…. आज मत जा (कादंबरी बड़े दुखी मन से बोली ) क्यों माँ,  क्या हुआ ?

कुछ नहीं बस आज रुक जा मन अच्छा नहीं है। तू रहेगी तो ठीक लगेगा।

माँ ऐसे मैं कितने दिन रुकूंगी?

बेटा एक दिन की बात है। रोज़ तो मैं कहती नहीं हूं, बस आज कह रही हूं।

जब भाभी गई थी तो उन्हें ही रोक लेते। अब सारा काम मुझे ही करना पड़ेगा और पेपर आने वाले हैं, फिर थोड़ा रुक कर बोली……. ठीक है आज रुक जाती हूं वैसे भी आज भाभी तो आ ही जाएंगी। वह वापस अंदर कमरे में चली गई।

कादंबरी की आंखे भर आईं । जिस बेटी के लिए वह इतना सोचती थी वहीं आज उसे चार बातें सुना कर चली गई। इतने प्रेम से उसके साथ रहती थी पर आज मानो वह बिल्कुल ही बदल गई। आज उसे सीमा पर बड़ी दया आई जिसे वह पूरा दिन हर बात पर टोकती थी, पर कभी पलटकर जवाब ना आता था आज वह भी बोल गई। उसने मन में ठाना कि अब वह सीमा को कुछ ना कहा करेगी और प्रेम भाव से उसके साथ रहेगी।

रात के आठ बजे गए थे। रमेश सीमा को लेने अपनी ससुराल जा रहा था। पर शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था। तभी एक ट्रक के आगे आते ही वह ढेर हो गया। रोड पार करते हुए उसकी परेशानियों को  छोड़ वह उस ट्रक को ना देख सका और उन सभी परेशानियों के साथ उसके जीवन का भी अंत हो गया।

मीनाक्षी
एम.फिल शोधार्थी
हिंदी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय

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