निराला के काव्य में सामाजिक यथार्थ – डॉ. काळे मदन भाऊराव
भारतीय ज्ञान परंपरा और भक्ति काव्य – डॉ. जयन्त कुमार कश्यप
हिंदी सिनेमा में विकलांगता की अभिव्यक्ति का बदलता स्वरूप – विशाल कुमार
उत्तराखंड क्षेत्र के लोकपर्व : सामाजिक समरसता के प्रतीक – डॉ. अर्चना डिमरी
आदिवासी लोककथा में निहित मानव जीवन का सार – डॉ. प्रवीण बसंती
भारतीय ज्ञान परंपरा में नाट्यशास्त्र: नाट्य अन्वेषण – ज्योत्सना आर्य सोनी
कृष्ण भक्त कवियों की स्त्री विषयक दृष्टि – शालू
शरद सिंह के उपन्यासों के संदर्भ में नारी-विमर्श – सपना
हिंदी आत्मकथा में स्त्री ( विशेष संदर्भ में – “पिंजरे की मैना“) – प्रियंका सिंह
खड़ी बोली के साहित्य निर्माण में भारतेंदु हरिश्चंद्र की भाषाई नीति – रोहित मिश्रा
भारतेन्दु के मौलिक नाटकों में भारतीय स्वतंत्रता का परिदृश्य – जितेन्द्र शुक्ला
भक्ति काल : सृजनशीलता और भाषा (कबीर के विशेष संदर्भ में) – प्रो. माला मिश्र
भारत का स्वाधीनता संग्राम : विरासत और सबक – शैलेन्द्र चौहान
पांव ज़मीन परः लोक जीवन की लय का स्पंदन (शैलेन्द्र चौहान) – मोहन सपरा
सार्थक सिनेमा के चितेरे ‘बासु दा’ थे – तेजस पूनियां