अनुक्रमणिका

संपादकीय 

डॉ. आलोक रंजन पांडेय

शोधार्थी

निराला के काव्य में सामाजिक यथार्थ – डॉ. काळे मदन भाऊराव

भारतीय ज्ञान परंपरा और भक्ति काव्य – डॉ. जयन्त कुमार कश्यप

हिंदी सिनेमा में विकलांगता की अभिव्यक्ति का बदलता स्वरूप – विशाल कुमार

उत्तराखंड क्षेत्र के लोकपर्व : सामाजिक समरसता के प्रतीक – डॉ. अर्चना डिमरी

आदिवासी लोककथा में निहित मानव जीवन का सार – डॉ. प्रवीण बसंती

भारतीय ज्ञान परंपरा में नाट्यशास्त्र: नाट्य अन्वेषण – ज्योत्सना आर्य सोनी

कृष्ण भक्त कवियों की स्त्री विषयक दृष्टि – शालू

शरद सिंह के उपन्यासों के संदर्भ में नारी-विमर्श – सपना

हिंदी आत्मकथा में स्त्री ( विशेष संदर्भ में – “पिंजरे की मैना“) – प्रियंका सिंह

खड़ी बोली के साहित्य निर्माण में भारतेंदु हरिश्चंद्र की भाषाई नीति – रोहित मिश्रा

भारतेन्दु के मौलिक नाटकों में भारतीय स्वतंत्रता का परिदृश्य – जितेन्द्र शुक्ला

भक्ति काल : सृजनशीलता और भाषा  (कबीर के विशेष संदर्भ में) – प्रो. माला मिश्र

अनुभूति 

अंकित पाण्डेय की कविताएँ

 

जरा हट के 

साहित्य के दर्पण में मुखड़ा देखने की कवायद : परिष्कृत मनोदशा के स्वरूप का यथार्थवादी चिंतनशील परिदृश्य – डॉ.अजय शुक्ला

भारत का स्‍वाधीनता संग्राम : विरासत और सबक – शैलेन्द्र चौहान

समीक्षा

पांव ज़मीन परः लोक जीवन की लय का स्पंदन (शैलेन्द्र चौहान) – मोहन सपरा

सिनेमा / फैशन 

सार्थक सिनेमा के चितेरे ‘बासु दा’ थे – तेजस पूनियां