साहित्य के दर्पण में मुखड़ा देखने की कवायद : परिष्कृत मनोदशा के स्वरूप का यथार्थवादी चिंतनशील परिदृश्य – डॉ.अजय शुक्ला

“ समाज में ऐसे कौन से सतोप्रधान स्वरूप में पवित्र कारक हैं जो जीवन के उत्कर्ष एवं उन्नयन के लिए निरंतर रूप से प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं और मानव […]

भारत का स्‍वाधीनता संग्राम : विरासत और सबक – शैलेन्द्र चौहान

भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भारतीय नागरिकों को न केवल स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास की प्रमुख घटनाओं तथा अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्यपूर्ण संघर्षों व उनकी कुर्बानियों का सम्मानपूर्वक […]

 “भारतीय ज्ञान परंपरा में आध्यात्मिक अनुसंधान अध्ययन के विहंगम परिदृश्य द्वारा आत्मिक परिवेश की पवित्र अनुभूति” – डॉ. अजय शुक्ला 

” आध्यात्मिक अनुसंधान में सत्य दर्शन का रहस्योद्घाटन प्रामाणिक स्वरूप से होने के कारण , साधना के पथ पर गतिशील साधक के लिए – आत्मानंद के सानिध्य में परिष्कृत आत्मचिंतन […]

राजनीति में सन्तवाद – डॉ. हरदीप कौर

एक सच्चा सन्त अपने परिवेष की अवहेलना नहीं करता, उसका अपने सामाजिक परिवेष के साथ धनिष्ठ सम्बन्ध होता है। वह सामाजिक उतार-चढ़ावों, उसके द्वन्द्वों आदि को समझता है। उसकी वाणी, […]

आज लेखक, पाठक और प्रकाशक – शैलेन्द्र चौहान

यह वह दौर है, जब व्यक्तिवादी प्रवृत्तियों ने जीवन की सामुदायकिता को दरकिनार कर दिया है। मध्यवर्ग में पढ़ने की प्रवृत्ति बहुत कम दिखाई देती है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास […]

लोक-मंगल और रीति नीति की गायक हैं, गिरिधर की कुंडलियां – पद्मा मिश्रा

हिंदी साहित्य अपने काव्य शिल्प, छंद विधान और पारंपरिक विधाओं से समृद्ध रहा है,लोक संस्कृति और साहित्य में ऐसे अनेक कवि हुए हैं जो सहज सरल रूप में कविता के […]

भारत की झाँकी – डॉ0 नीलम सिंह

तटस्थता और सूक्ष्मता से भारत का अवलोकन करनेवाले किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति को दो परस्पर विरोधी विशेषताएँ अवश्य दिखाई देंगी :अनेकरूपता के साथ-साथ एकता । यहाँ की अंतहीन विविधता आश्चर्यजनक, […]

सिर्फ मानव ही आराध्य है – शैलेन्द्र चौहान

“जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो। उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो।’ जो […]

मानवता के सजग प्रहरी निराला और राम की शक्ति पूजा – सौरभ कुमार सिंह

काव्य का उत्स अंतर की गहराइयों में है और कहा भी जाता है कि कला का जन्म अंतश्चेतना से होता है । काव्य अध्ययन की पूर्णता की दिशा में व्यक्तित्व […]

साहित्य को लोकतान्त्रिक बनाने की आवश्यकता है : प्रो॰ श्यौराज सिंह बेचैन (व्याख्यान) – अनुज कुमार

दिनांक 9 सितंबर 2021,  सुबह 9:30  बजे, आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के बी०ए० प्रोग्राम की संस्था ‘लक्ष्य सोसायटी’ द्वारा ‘अस्मितामूलक विमर्श और […]