1. तुम्हारे संतान सदैव सुखी रहें सभ्यता और संस्कृति के समन्वित सड़क पर निकल पड़ा हूँ शोध के लिए झाड़ियों से छिल गयी है देह थक गये हैं पाँव कुछ […]
हायर सेकेंडरी – सतीश सम्यक
जाती हुई सर्दी का महीना था। यही कोई लगभग 3, 3:30 का वक्त था। इस वक्त सर्दी कम ही थी पर मैंने कोट पहन रखा था । क्योंकि जब सुबह […]
वंदना गुप्ता की कविताएं
1. कविता का पानी जब से मोड़ी है तुमने अपने शब्दों की दिशा ठीक मेरी आंखों के सामने से एक अगम भाषा की आंखें अपने अनूठे बिम्ब लिए घूरती है […]
केशव शरण की कविताएँ
1. हवा का चलना, न चलना हवा न चल रही हो तो लाखों पेड़ कुछ नहीं कर सकते सिवाय सावधान की मुद्रा में निश्चल खड़े रहने के बुद्धू की तरह […]
राकेश धर द्विवेदी की कविताएं
1. भार तो केवल श्वासों का है स्वप्न जो देखा था रात्रि में हमने सुबह अश्रु बन बह किनारे हो गए हैं चांद और मंगल पर विचरने वाले हम आज […]
गोलेन्द्र पटेल की कविताएं
1. सफ़र सरसराहट संसद तक बिन विश्राम सफ़र करेगी ———————————————————- तिर्रियाँ पकड़ रही हैं गाँव की कच्ची उम्र तितलियों के पीछे दौड़ रही है पकड़ने की इच्छा अबोध बच्चियों का! […]
मधुवन कल ( कविता ) – रंजीत कुमार त्रिपाठी
वह ब्रज मधुवन की कली, खेलन को थी होली चली| थी संग एक टोली अली , पीछा करे मधुवन कली || […]
प्रधानी 2021 ( कविता ) – आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
फिर चली हवा परधानी की फिर चली हवा परधानी की पैरों पर शीश झुकाने की , अम्मा ,आजी,काकी,चाची से झूठी बात बनाने की ।। फिर […]
आओ माँ घर चलें ( कहानी ) – तेजस पूनिया
जी मम्मी … मम्मी मैं आपको बता नहीं सकती की मैं कितना खुश हूँ। इतने सालों बाद तो कोई उम्मीद की किरण नजर आई है। अब हमारे घर में भी […]
‘आखिर स्त्री भी तो मानव होती है…’ – डॉ. लता
मैं बोलती हूँ ज़माने से उनके आगे हो जाती हूँ चुप ज़माना सोचता है इसे मेरी शर्म वो सोचते हैं इसे मेरी रुसवाईयाँ सिर्फ़ मैं जानती हूँ इसके पीछे के […]