
दर्शन की भाषा में कहें तो सचमुच में सब कुछ परिवर्तनशील है। यहाँ तक कि अपनी विचारधारा से नाभिनाल बद्ध और इसी नाते कट्टर कहे जाने वाले कम्यूनिस्ट पार्टियों के […]
दर्शन की भाषा में कहें तो सचमुच में सब कुछ परिवर्तनशील है। यहाँ तक कि अपनी विचारधारा से नाभिनाल बद्ध और इसी नाते कट्टर कहे जाने वाले कम्यूनिस्ट पार्टियों के […]
आदिवासी विमर्श, दलित विमर्श और नारी विमर्श ने साहित्य को समझने की केवल नई दृष्टि प्रदान नहीं की, बल्कि उसमें नये जीवन आदर्श भी प्रतिस्थापित किए। नारी विमर्श एक ऐसा […]
डायन के संदेह में तिन की हत्या मामला : अदालत ने सात को सुनायी फांसी की सजा कोलकाता, पश्चिम मेदिनीपुर, सोमवार 16 मई 2016 : डायन के संदेह में तीन आदिवासी महिलाओं […]
राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना ही ‘राष्ट्रीय भावना’ या ‘राष्ट्रीयता’ कही जाती है। राष्ट्रीयता या राष्ट्रीय भावना जब तक राष्ट्रीय चेतना नहीं बनती तब तक उसमें सम्पूर्णता निर्धारित नहीं होती […]
‘विपात्र’, ‘काठ का सपना’ की अंतिम रचना है। संभवतः इसका रचनाकाल 1963-64 का है जैसा कि मुक्तिबोध रचनावली में व्यक्त है। यही वह समय है जब मुक्तिबोध बीमारी की अवस्था […]
वर्ग, क्षेत्र,समूह-विशेष आदि के सामाजिक-प्रतिनिधित्व के लिए, उनके हितों की रक्षा के लिए, उनकी मांगों, उनकी समस्याओं आदि को उठाने के लिए उस वर्ग, क्षेत्र, समूह-विशेष से संबंधित संगठनों, आयोगों , समितियों […]
शताब्दियों की गुलामी से मुक्त होकर स्वतत्रंता के पचास वर्ष पूर्ण होने के पश्चात् जब हम हिन्दी की स्थिति पर विचार-चिन्तन करते हैं तब ज्ञात होता है कि अंग्रेजी के […]