धर्म और क्म्यूनिज्म – मोहसिना खातून

दर्शन की भाषा में कहें तो सचमुच में सब कुछ परिवर्तनशील है। यहाँ तक कि अपनी विचारधारा से नाभिनाल बद्ध और इसी नाते कट्टर कहे जाने वाले कम्यूनिस्ट पार्टियों के […]

नारी-चेतना के विविध आयाम – ज्योति

आदिवासी विमर्श, दलित विमर्श और नारी विमर्श ने साहित्य को समझने की केवल नई दृष्टि प्रदान नहीं की, बल्कि उसमें नये जीवन आदर्श भी प्रतिस्थापित किए। नारी विमर्श एक ऐसा […]

डायन बताने के पीछे षड्यंत्र : संतोष शर्मा

डायन के संदेह में तिन की हत्या मामला : अदालत ने सात को सुनायी फांसी की सजा कोलकाता,  पश्चिम मेदिनीपुर, सोमवार 16  मई 2016 :    डायन के संदेह में तीन आदिवासी महिलाओं […]

सुभद्राकुमारी चौहान के काव्य में राष्ट्रीय चेतना – निधि मिश्रा

राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना ही ‘राष्ट्रीय भावना’ या ‘राष्ट्रीयता’ कही जाती है। राष्ट्रीयता या राष्ट्रीय भावना जब तक राष्ट्रीय चेतना नहीं बनती तब तक उसमें सम्पूर्णता निर्धारित नहीं होती […]

मध्यवर्ग की बौद्धिकता और ‘विपात्र’ – चंद्रमणि सिंह

‘विपात्र’, ‘काठ का सपना’ की अंतिम रचना है। संभवतः इसका रचनाकाल 1963-64 का है जैसा कि मुक्तिबोध रचनावली में व्यक्त है। यही वह समय है जब मुक्तिबोध बीमारी की अवस्था […]

छात्र-पॉलिटिक्स – भूपेंद्र भावुक

वर्ग, क्षेत्र,समूह-विशेष आदि के सामाजिक-प्रतिनिधित्व के लिए, उनके हितों की रक्षा के लिए, उनकी मांगों, उनकी समस्याओं आदि को उठाने के लिए उस वर्ग, क्षेत्र, समूह-विशेष से संबंधित संगठनों, आयोगों , समितियों […]

हिंंदी का प्रशासनिक परिदृश्य – डॉ. ममता सिंगला

शताब्दियों की गुलामी से मुक्त होकर स्वतत्रंता के पचास वर्ष पूर्ण होने के पश्चात् जब हम हिन्दी की स्थिति पर विचार-चिन्तन करते हैं तब ज्ञात होता है कि अंग्रेजी के […]