भारतीय सिनेमा : नशे का शिकार युवा वर्ग (सन्दर्भ उड़ता पंजाब, राधे – योर मोस्ट वांटेड भाई) – मीनाक्षी गिरी 

सिनेमा मूक फिल्मों से होता हुआ श्वेत श्याम और रंगीन व थ्री डी तक आ पहुंचा है जिसमें मनोरंजन से होता हुआ सिनेमा विचारात्मक या प्रतिरोध का रूप ले चुका […]

समकालीन मलयालम सिनेमा और स्त्री – विनीजा विजयन

साहित्य को समाज का दर्पण माना गया है, ठीक उसी तरह सिनेमा समाज का चित्रण करने वाला तकनीकी कलारूप है। देश के इतिहास निर्माण में सिनेमा का भी बड़ा योगदान […]

समाज को प्रभावित करता सिनेमा मनोविज्ञान – डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी

सिनेमा वर्तमान युग में समस्त कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यमों में सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। किसी भी जाति, धर्म, वर्ग के लोगों को सीधे प्रभावित करने में यह पूर्णतया […]

फिल्म चाहे जिस भाषा का क्यों न हो उसमें साहित्य दिखना चाहिए – दिलीप कुमार शर्मा ‘अज्ञात’ 

बंगाली फिल्मों के बारे में कुछ कहने से पहले मैं समझता हूँ, एक बार बांग्ला साहित्य के बारे में बात कर लेनी चाहिए। बांग्ला भाषा और साहित्य का काल विभाजन […]

सिनेमाई परदे पर उभरता सामाजिक मूल्यों का रीमेक – डॉ. नीतू गुप्ता

समस्त प्रकृति परिवर्तनशील है। यदि इसमें समय-समय पर परिवर्तन ना हों तो इसकी एकरूपता, नीरसता बनकर रह जाएगी। प्रकृति के साथ साथ परिवर्तन का यह नियम समाज और सामजिक मूल्यों […]

ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफ़ॉर्म नियमन, खूबियाँ एवं खामियाँ – आशीष कुमार पाण्डेय

भारत सरकार ने 25 फ़रवरी 2021  को सूचना प्रौद्योगिकी को लेकर नए नियम को अधिसूचित किया है। इसका नाम ‘द इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी रूल 2021’ है। डिजिटल मीडिया से जुड़ी पारदर्शिता […]

प्रौद्योगिकी और डिजिटल कला – शैलेन्द्र चौहान

दुनिया में बड़े कलाकारों की मूल कलाकृतियों उर्फ पेंटिंग्स की कीमत बहुत अधिक होती है। भारत के पिकासो के नाम से जाने जाने वाले एम. एफ. हुसैन को गुजरे अभी […]

 पद्मा सचदेव के साहित्य में जम्मू कश्मीर का सामाजिक जीवन – शास्वत आनंद

1947 में भारत के विभाजन का शिकार बने संस्कृत के विद्वान प्रोफ़ेसर जयदेव बादु की तीन संतानों में सबसे बड़ी पद्मा जी ने अपनी शिक्षा की शुरुआत पवित्र नदी ‘देवका’ […]

सुभाष मुखोपाध्याय: असाधारण में साधारण (जन्मशती स्मरण)- रणजीत साहा

एक बार भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता और साहित्य अकादेमी के संयुक्त साहित्य आयोजन में भाग लेने मैं कोलकाता गया हुआ था। कार्यक्रम शुरू होने के एक दिन पहले मैं अपने […]

घर (कोरोना काल पर केन्द्रित लघुकथा) – बिद्या दास

आज वह दिन बहुत याद आ रहा है जब काम के लिए जाते समय डब्बा बांधते हुए रमा के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। पता लग रहा था कि वह […]