घीसू और् माधव की कहानी ‘‘कफन’’: एक विश्लेषण – डॉ. अनुपमा वर्मा

प्रस्तावना   मैं एक कॉलेज प्राध्यापक हूं और स्नातक स्तर पर मैं अंग्रेजी साहित्य पढाती हूं ।जिसमें गद्य पढाने में मुझे काफी अच्छा लगता है । उसी में एक कहानी […]

पेड की पुकार – डॉ.पुष्पा गोविंदराव गायकवाड

भारतीय संस्कृति अतिथि देवो भव वाली है। संत तुकाराम महाराज ने 17वीं शताब्दी में सभी भारतवासियों के लिए बहुत ही बड़ा मौलिक संदेश दिया था। जो आज भी प्रासंगिक लगता […]

दोस्तोएवस्की का घोड़ा : एक संघर्षरत युवा और दृष्टा लेखक – आरती

दमनरहित संरचनाओं की विकल्पहीनता के दौर में एक विकल्प की तलाश पर हैं लेखक शचीन्द्र आर्य और उनकी याद की क़िताब। संभवतः यही कारण है कि विधा के हवाले से […]

सफर  जासूसी उपन्यासों का – शैलेन्द्र चौहान

किशोरावस्था में रूमानी और जासूसी उपन्यास खूब पढ़े। साथ-साथ साहित्यिक पुस्तकें भी पढ़ता था। आज जब इन उपन्यासों की लोकप्रियता को याद करता हूँ तो सोचता हूँ बजाय इन्हें सिरे […]

 महिला योगदान: पुराणकाल से अब तक – डॉ. होशियार सिंह यादव

                       कभी पूजा उसको तो कभी ठुकराया है कभी पुरुष तो कभी नारी युग आया है। स्त्री एवं पुरुष समाज […]

साहित्य के दर्पण में मुखड़ा देखने की कवायद : परिष्कृत मनोदशा के स्वरूप का यथार्थवादी चिंतनशील परिदृश्य – डॉ.अजय शुक्ला

“ समाज में ऐसे कौन से सतोप्रधान स्वरूप में पवित्र कारक हैं जो जीवन के उत्कर्ष एवं उन्नयन के लिए निरंतर रूप से प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं और मानव […]

भारत का स्‍वाधीनता संग्राम : विरासत और सबक – शैलेन्द्र चौहान

भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भारतीय नागरिकों को न केवल स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास की प्रमुख घटनाओं तथा अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्यपूर्ण संघर्षों व उनकी कुर्बानियों का सम्मानपूर्वक […]

 “भारतीय ज्ञान परंपरा में आध्यात्मिक अनुसंधान अध्ययन के विहंगम परिदृश्य द्वारा आत्मिक परिवेश की पवित्र अनुभूति” – डॉ. अजय शुक्ला 

” आध्यात्मिक अनुसंधान में सत्य दर्शन का रहस्योद्घाटन प्रामाणिक स्वरूप से होने के कारण , साधना के पथ पर गतिशील साधक के लिए – आत्मानंद के सानिध्य में परिष्कृत आत्मचिंतन […]

राजनीति में सन्तवाद – डॉ. हरदीप कौर

एक सच्चा सन्त अपने परिवेष की अवहेलना नहीं करता, उसका अपने सामाजिक परिवेष के साथ धनिष्ठ सम्बन्ध होता है। वह सामाजिक उतार-चढ़ावों, उसके द्वन्द्वों आदि को समझता है। उसकी वाणी, […]

आज लेखक, पाठक और प्रकाशक – शैलेन्द्र चौहान

यह वह दौर है, जब व्यक्तिवादी प्रवृत्तियों ने जीवन की सामुदायकिता को दरकिनार कर दिया है। मध्यवर्ग में पढ़ने की प्रवृत्ति बहुत कम दिखाई देती है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास […]