
जाती हुई सर्दी का महीना था। यही कोई लगभग 3, 3:30 का वक्त था। इस वक्त सर्दी कम ही थी पर मैंने कोट पहन रखा था । क्योंकि जब सुबह […]

जाती हुई सर्दी का महीना था। यही कोई लगभग 3, 3:30 का वक्त था। इस वक्त सर्दी कम ही थी पर मैंने कोट पहन रखा था । क्योंकि जब सुबह […]

1. कविता का पानी जब से मोड़ी है तुमने अपने शब्दों की दिशा ठीक मेरी आंखों के सामने से एक अगम भाषा की आंखें अपने अनूठे बिम्ब लिए घूरती है […]

1. हवा का चलना, न चलना हवा न चल रही हो तो लाखों पेड़ कुछ नहीं कर सकते सिवाय सावधान की मुद्रा में निश्चल खड़े रहने के बुद्धू की तरह […]

1. भार तो केवल श्वासों का है स्वप्न जो देखा था रात्रि में हमने सुबह अश्रु बन बह किनारे हो गए हैं चांद और मंगल पर विचरने वाले हम आज […]

1. सफ़र सरसराहट संसद तक बिन विश्राम सफ़र करेगी ———————————————————- तिर्रियाँ पकड़ रही हैं गाँव की कच्ची उम्र तितलियों के पीछे दौड़ रही है पकड़ने की इच्छा अबोध बच्चियों का! […]

वह ब्रज मधुवन की कली, खेलन को थी होली चली| थी संग एक टोली अली , पीछा करे मधुवन कली || […]

फिर चली हवा परधानी की फिर चली हवा परधानी की पैरों पर शीश झुकाने की , अम्मा ,आजी,काकी,चाची से झूठी बात बनाने की ।। फिर […]

जी मम्मी … मम्मी मैं आपको बता नहीं सकती की मैं कितना खुश हूँ। इतने सालों बाद तो कोई उम्मीद की किरण नजर आई है। अब हमारे घर में भी […]

मैं बोलती हूँ ज़माने से उनके आगे हो जाती हूँ चुप ज़माना सोचता है इसे मेरी शर्म वो सोचते हैं इसे मेरी रुसवाईयाँ सिर्फ़ मैं जानती हूँ इसके पीछे के […]

कुल्हड़ में गर्मी ड़ाल सर्दी को सुढ़क लेती थी वाष्प अपने पारदर्शी गर्दन से गटक लेती थी नहाकर,जब भी आती थी वह मुंडे़र पर यारों भींगी जुल्फों से, पानी की बूंदें झटक देती थी […]