दीपक वार्ष्णेय की कविताएँ

पिता पिता दफ्तर से घर बच्चों का इन्तजार है गुस्सा में छुपा प्यार है हर जरुरत की पूर्ति है संयम की मूर्ति है निस्वार्थ उपकार है हमारा संस्कार है हमारी […]

सुनो, तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे (कहानी) – संजय वर्मा “दृष्टी”

घर की बालकनी की खिड़की खोली बाहर का दृश्य देख मुंह  से निकल पड़ा – देखो चीकू के पापा कितना मनोरम दृश्य है । रोज की तरह रजाई ताने बिस्तर […]

पंखुरी सिन्हा की पाँच कविताएँ

कारण प्रेम कारण से परे होता है लेकिन कारण से परे हर कुछ प्रेम नहीं होता प्रेम की लाश ढ़ोने वाले बहुत हैं इतने हैं कि दूर नहीं जाने देंगे […]

हाँ मैं प्रसिद्ध होना चाहती हूँ – कुमारी अर्चना

क्या करना होगा अपना चेहरा रोज रोज गमकऊँआ साबुन से चमकाना होगा फेरनलवली खूब पोतना होगा सात धंटे की पूरी नींद लेनी होगा फिर फेसबुक,इन्ट्राग्राम पर हॉट,सेक्सी व भड़काऊं फोटो […]

पिंजरे की चिड़िया – स्वाति कुमार

पिंजरे  में  कैद  एक  चिड़िया, संसार के यथार्थ से अनजान, दूसरों के अरमानों के पीछे, अपने सपनों को कुचलती एक चिड़िया, पिंजरे में कैद एक चिड़िया।   चारदीवारी में पंख […]

मैं रूठा हूँ – सुषमा सिंह

पापा को ऑफिस की जल्दी माँ तुम भी तो जाती छोड़ दादी नानी कोई न संग में बोलो मुझे संभाले कौन मैं डरता हूँ माँ सपनों में तुमको नहीं बताता […]

प्रेरणा (लघुकथा) – मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

पवन एक अच्छी कद – काठी का छात्र था | वह भारतीय सेना में जाना चाहता था, इसलिए दिन – रात जी तोड़ मेहनत की थी उसने, वैसे पढ़ने – […]

औरत, औरत की दुश्मन – अमन कौशिक

हर शाम की तरह आज भी ऑफिस से आने के बाद घर का वही माहौल था। सब बैठ कर, एक टीम बना कर इधर उधर की बातें कम और चुगलियां […]

और मुन्ना ने सुनी कहानी (कविता) – सुषमा सिंह

आज की भाग दौड़ भरे जीवन में माता पिता के पास बच्चों की भावनाओं को समझने का, उनकी बातें सुनने का समय ही नहीं है। दादा दादी दूर हो गए […]

मेरी पहचान (कविता) -अमर

मेरी पहचान रोते हुए दुनिया की दहलीज पे जब रखा पहला कदम, माँ की ख़ुशी का एक  अलग सा था  एहसास , एक अजीब  सी खामोशी का आलम छाया था हर चेहरे पे सोचो मुझे देखते ही क्यों हो गए हैं सब बेरहम मां कभी पिताजी के मायूस चेहरे को देखती, तो कभी देखती मेरी नन्ही सी मुस्कान, कभी खुद की किस्मत को कोसती तो कभी जानके सब बन जाती अनजान मैं समझ ही न पाया कि ये कैसा है इंसान जो एक नए मेहमान के आने से हो गए हैं सब परेशान तभी मेरी माँ जैसे दिखने वाले आ गए और इंसान और मुझे छीन के ले जाने को करने लगे घमासान माँ का रो रोके हो गया था तब बुरा हाल पिता जी को भी सूझ नही रहा था कोई समाधान अब समझने लगा मैं की यही है विधि का विधान माँ के पेट से पैदा नही हुआ था कोई इंसान मैं अब बड़ा हो चुका हूँ, पसंद है बस करना श्रंगार साडी, सूट, तालियों के बिना नही चल पाता मेरा संसार अब खोने को अपना मेरा कोई नही रहा इंसान बस याद आता है आज भी माँ का बलिदान अब सब ने दी मुझे एक नई पहचान सीता, रेखा, विमला नाम बहुत पर बुलाते हैं सब मुझे किन्नर हाँ चौकने की है ये बात जो अब समझ मे आयी जिंदगी भर दुनिया मे आने के लिए लड़ता रहा जो अब ये दुनिया ही है उसके लिए परायी मैं किन्नर हूँ पर मैं भी हुँ एक इंसान, दुनिया का ठुकराया हुआ पर,मेरे भी हैं कुछ अरमान, मुझे कुछ मत दो बस जीने दो भाई जान […]