
हिंदी आलोचना को परिष्कृत एवं समृद्ध करने में जिन आलोचकों का योगदान रहा हैं उनमें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम सर्वप्रमुख हैं। सूरदास के साहित्य […]

हिंदी आलोचना को परिष्कृत एवं समृद्ध करने में जिन आलोचकों का योगदान रहा हैं उनमें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम सर्वप्रमुख हैं। सूरदास के साहित्य […]

स्त्री-जीवन के सच और उसकी नियति से मुठभेड़ करती हुई हिन्दी और बांग्ला के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं की कृतियों को भी हिन्दी सिनेमा ने अपने विस्तृत पटल पर जगह […]

हिन्दी साहित्य में भक्ति काल विशेष रूपेण भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन एवं सम्मिश्रण का युग रहा है। विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय दुर्बल राजव्यवस्था का लाभ उठाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। […]

कृष्ण बलदेव वैद हिन्दी के आधुनिक, किन्तु विरल रचनाकार हैं। उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट और भय के अपने लिए एक अलग रास्ता बनाया और उस पर जीवनपर्यन्त चलते रहे। दस […]

10 वें सिक्ख गुरूओं के प्रथम गुरू गुरुनानक सिक्ख पंथ के संस्थापक थे । जिन्होंने धर्म में एक नई लहर उत्पन्न की । सिख गुरूओं में प्रथम गुरू नानक का […]

प्रासंगिकता का प्रश्न जितना सीधा दिखता है , जब उसके अंतर में उतरिये तो वह उतना ही विचित्र दिखाई पड़ता है – वह भी तब जब रचना और रचनाकार के […]

भाषा एक समाज सापेक्ष प्रतीक व्यवस्था है। वह समाज के सापेक्षता में ही जीवित रह सकता है तथा उसका विकास भी समाज के भीतर ही होता है। इस प्रकार यह […]

समाज में स्त्री को हमेशा पार्श्व में रखने की ही परम्परा रही है। पुरूष के समकक्ष स्त्री को खड़ा देखने की आदत आज भी हमारे भारतीय समाज में नहीं आ […]

भारतीय इतिहास का मध्यकाल कई दृष्टियों से उल्लेखनीय है। यह वही दौर है जब भारत की धरती पर मुसलमानों का विधिवत् शासन स्थापित हुआ था। इसी दौर में भक्ति ने […]

मनुष्य अपने व्यापक अर्थ में स्त्री-पुरुष का योग है। सभ्यता और समाज के विकास में इन दोनों का ही सहयोग समान रूप से आवश्यक माना गया है। लेकिन भारतीय समाज […]