मैला आंचल – राजनीतिक परिदृश्य  – महमुदा खानम

किसी अंचल विशेष को आधार बनाकर लिखी जाने वाली औपन्यासिक कृति आंचलिक उपन्यास की श्रेणी में आती है। डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा ने हिंदी साहित्य कोश में लिखा है कि ‘लेखक […]

रंगभूमि: युगीन समस्याओं का जीवंत दस्तावेज़ – डॉ. सुनीता

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को एक नई दिशा देकर एक नए युग का सूत्रपात किया । हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में युगांतकारी परिवर्तन हुए । उनके आगमन से […]

सेवा सदन के सुमन की मानसिकता – डाॅ. मुरलीधर अच्युतराव लहाडे

प्रारूप:- सेवा सदन से पूर्व की प्रायः सभी रचनाएँ रूमानी जासूसी और कल्पना लोक में विचरण करनेवाली कथा पर आधारित थी। समाज के वास्तविक स्वरूप को तो देखने का शायद […]

प्रेमचंद की रचनाधर्मिता – डॉ. रेविता बलभीम कावळे

हर एक वस्तु की और देखने की प्रत्येक लेखक की अपनी स्वतंत्र दृष्टि होती है। अपने-अपने दृष्टिकोण से किसी चीज को परखने की सूक्ष्मता हर एक लेखक में होती है। […]

रेणु के मैला आँचल में स्वातंत्र्योत्तर ग्रामीण जीवन – प्रा. डॉ. अर्जुन पवार

फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी साहित्य के प्रमुख आँचलिक उपन्यासकार माने जाते हैं | रेणु ने अपने कथासाहित्य में मानवीय सम्बन्धो को केंद्र में रखकर साहित्य की रचना की है | उन्होंने […]

पूस की रात ( हल्कू के बहाने भारतीय किसानों पर एक नज़र ) – बी. डी. मानिकपुरी

हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में कहानी विधा का अपना विशिष्ट स्थान है । आधुनिक काल ही नहीं प्राचीन काल से हमें पुराणों तथा जातक कथाओं के माध्यम से कहानी […]

प्रेमचंद के उपन्यासों में  नारी  की वास्तविक स्थिति – डॉ. अनीता

प्रेमचंद जी को हिंदी  उपन्यासकारों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है|उन्होंने  अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में अपनी विलक्षण  प्रतिभा का परिचय देते हुए  समाज में फैली कुरीतियों पर […]

प्रेमचंद की कहानियां : आदर्श और यथार्थ – डॉ. अरुणा चौधरी

आधुनिक हिंदी के साहित्यकारों में प्रेमचंद एक वैश्विक साहित्यकार हैं। वे 1916 से 1936 तक अर्थात 20 वर्षों तक कथा साहित्य की संरचना में लगे रहे। साहित्य के माध्यम से […]

मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में नारी के विविध रूप एवं समस्याएं – डॉ.मयूरी मिश्रा

साहित्य जगत में भी नारी की स्थिति अच्छी नहीं थी। आदिकाल हो, भक्तिकाल हो या रीतिकाल प्राय: नारी के जो चित्र उभरकर सामने आते हैं, उससे यह स्पष्ट होता है […]

“गोदान” उपन्यास में अभिव्यक्त स्त्री समस्या – डाॅ. मेरी जमातिया

प्रेमचंद का जन्म बनारस के निकट लमही गांव में हुआ था। बचपन से ही प्रेमचंद को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आठ साल की आयु में ही उनकी मां […]