
संपादकीय डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय शोधार्थी निर्गुण संत कवियों की संधा भाषा : परंपरा और प्रयोग – श्वेतांशु शेखर औपनिवेशिक सामाजिक-सांस्कृतिक संकट : हिन्दी कहानी और उदय प्रकाश – दीपक […]
संपादकीय डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय शोधार्थी निर्गुण संत कवियों की संधा भाषा : परंपरा और प्रयोग – श्वेतांशु शेखर औपनिवेशिक सामाजिक-सांस्कृतिक संकट : हिन्दी कहानी और उदय प्रकाश – दीपक […]
हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल को ‘स्वर्ण-युग’ का दर्जा प्राप्त है। भक्ति के आरंभ और विकास को लेकर अनेक मत प्रचलित हैं, लेकिन भारतीय साहित्य में भक्तिकाल के महत्व […]
औद्योगिक क्रान्ति के आस-पास पूँजीवाद ‘व्यक्ति की स्वतंत्राता’ का नारा लेकर सामने आया। सामन्तवादी ढाँचे से मुक्ति तो हमने पायी लेकिन इस औद्योगिक क्रांति ने साम्राज्यवादी ताकतों की भूख बढ़ा […]
हिंदी आलोचना को परिष्कृत एवं समृद्ध करने में जिन आलोचकों का योगदान रहा हैं उनमें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम सर्वप्रमुख हैं। सूरदास के साहित्य […]
हिन्दी साहित्य में भक्ति काल विशेष रूपेण भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन एवं सम्मिश्रण का युग रहा है। विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय दुर्बल राजव्यवस्था का लाभ उठाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। […]
कृष्ण बलदेव वैद हिन्दी के आधुनिक, किन्तु विरल रचनाकार हैं। उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट और भय के अपने लिए एक अलग रास्ता बनाया और उस पर जीवनपर्यन्त चलते रहे। दस […]
10 वें सिक्ख गुरूओं के प्रथम गुरू गुरुनानक सिक्ख पंथ के संस्थापक थे । जिन्होंने धर्म में एक नई लहर उत्पन्न की । सिख गुरूओं में प्रथम गुरू नानक का […]
1. हम फिर से आयेंगे तेरे शहर को बसाने हम फिर से आयेंगें तेरे शहर को बसाने पर आज तुम न देखों हमारे पैरों पे पड़े छाले क्यों आंखे भर […]
1. हिन्द के बाग में ये कौन आया? हिन्द के बाग में यह कदम किसके है? किसके नेत्र उठे हैं? किसमें जगी ज्वालामुखी जैसी अग्नि हिन्द के खिलाफ में पहचान […]
ढलती शाम दूर कहीं किनारे पर अकेला बैठा है कोई मार रहा है पत्थर पानी पर एकएक कर झांकता है कभी दूर पहाड़ी के उस पार मन में लिए कुछ […]