
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 20वीं शताब्दी के मध्य तक भारत में एक व्यापक सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई, जिसने शिक्षा, जाति-उन्मूलन, स्त्री-स्वतंत्रता और धार्मिक सुधार जैसे […]

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 20वीं शताब्दी के मध्य तक भारत में एक व्यापक सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई, जिसने शिक्षा, जाति-उन्मूलन, स्त्री-स्वतंत्रता और धार्मिक सुधार जैसे […]

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में मानवीय मूल्य, मानवीय संवेदना के साथ सामाजिक यथार्थ का मार्मिक चित्रण किया है। उन्होंने उपन्यासों के पात्रों के माध्यम से समाज में […]

शोध सार : भारतीय समाज और संस्कृति में बुजुर्गों को सदा ही सम्मान का स्थान दिया जाता था। परन्तु आज आधुनिकीकरण के प्रभाव से परिवार में वृद्ध की अहमियत कम […]

प्रेमचंद एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जिनकी सृजनात्मक प्रतिभा से उनका नाम विश्व के गिने- चुने कथाकारों में लिया जाता है। आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के कथन के अनुसार […]

शोध सारांश – मुंशी प्रेमचंद को कौन नहीं जानता है । उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चार मील दूर लमही गाँव में जन्मे मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय […]

कफन प्रेमचन्द की ही नहीं समूचे हिन्दी साहित्य की सर्वाधिक चर्चित कहानी है । मुंशी जी जीवन तथा साहित्य के सूक्ष्मदर्शी तथा दूरदर्शी साहित्यकार थे । उनकी रचनाओं में वर्तमान […]

शोध सार : प्रेमचंद हिंदी साहित्य के यथार्थवादी और मानवीय दृष्टिकोण से लिखने वाले महान कथाकार थे। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गाँव […]

मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित ‘निर्मला’ एक प्रसिद्ध उपन्यास है। ‘निर्मला‘ उपन्यास नारी जीवन की करुण त्रासदी कहा जा सकता है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ दहेज […]

यह शोधपत्र प्रेमचंद के साहित्य और प्रवासी हिंदी साहित्य के मध्य एक सर्जनात्मक और वैचारिक संवाद की संभावना का विश्लेषण करता है। प्रेमचंद भारतीय उपन्यास और कथा साहित्य की परंपरा […]

प्रस्तावना (Introduction): मुंशी प्रेमचंद (1880–1936) हिन्दी कथा साहित्य के प्रमुख स्तंभ हैं। वे अपने यथार्थवादी दृष्टिकोण, जनसरोकारों से जुड़ी विषयवस्तु, और सरल-सुबोध भाषा के लिए जाने जाते हैं। ‘कफन’ उनकी […]