प्रेमचंद  एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जिनकी सृजनात्मक प्रतिभा से उनका नाम विश्व के  गिने- चुने कथाकारों में लिया जाता है। आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के कथन के अनुसार साहित्य जनता की संचित चित्तवृत्तियों का प्रतिबिंब है। प्रेमचंद का साहित्य इस उक्ति पर खरा उतरता है। प्रेमचंद ने भारतीय ग्रामीण तथा शहरीय जीवन को अपने कथासाहित्य में अद्भुत ढंग से तराशा है।   सामाजिक  जीवन के एक-एक चित्र को अपने कथा साहित्य में ऐसे उकेरा है कि पढ़ते  समय पाठक उस  जीवन में सराबोर हो जाता है। इतना ही नहीं , रचना-संसार में उनका एक-एक वाक्य सूक्ति के रूप में पाठक के मन में घर कर लेता है। सम्पूर्ण जीवन अभावों में बीतने पर भी उन्होंने कभी भौतिक सुखों के जाल में अपने आपको फँसने नहीं दिया । यही कारण है कि उनका रचना संसार कहीं पर भी आत्मग्लानि में दिखता नहीं । उनका रचना संसार अभावों के कीचड़ में भी अद्भुत रचना सरोज का सृजन करने की व्यापक क्षमता  का  उदाहरण है।

  एक कुशल उपन्यासकार, कहानीकार, लेखक, संपादक के रूप में प्रेमचंद की बहुरूपी प्रतिभा हमें उनके साहित्य में देखने को मिलती है । वास्तव में इन सब के बीच में उनका एक संवेदनशील रचनाकर का रूप  हमें दिखाई पड़ता है। मानव- मूल्यों को बनाए रखने के  प्रति एक सच्चे  साहित्यकार को कितना सजग रहना पड़ता है, इस बात को हम प्रेमचंद से ही सीख सकते हैं। उनके अनुसार साहित्य का उद्देश्य मानव मूल्यों के प्रति संवेदनशील होना ही है। उनका रचना कर्म 1905 ई. से 1936 ई.तक होने पर भी अंतिम पंद्रह या सोलह वर्ष (1920 ई. से 1936ई. तक ) वे लगातार दिन-रात रचना-कर्म में जुटे रहे । उनका कहना था कि “जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है।” यही उसूल प्रेमचंद को अमर बनाते हैं और उनके साहित्य को कालजयी ।

     किसी साधारण व्यक्ति को अपने 56 वर्षीय जीवन में दर्जन से ज्यादा उपन्यास – जिसमे रंगभूमि , कर्मभूमि, गबन और गोदान जैसे अमर उपन्यास शामिल हों, 350 के करीब कहानियाँ – जिनमें ईदगाह,नशा, ठाकुर का कुआं , गुल्ली-डांडा और कफन जैसी  कालजयी कहानियाँ सम्मिलित हों, अनगिनत निबंध तथा अनेक अन्य विधाओं में रचनाएँ करना क्या संभव है ? प्रेमचंद रूपी इस शख्सियत ने इसे करके दिखाया है। अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दुनिया को दिया है। सरल आम भाषा का प्रयोग, हृदय को छूनेवाली सच्ची  घटनाएँ, जहां भी मौका मिला हास्य की छींटों को छिड़कना यही दो-चार औज़ार हैं जिनसे प्रेमचंद ने अपने  रचना संसार को खड़ा कर दिया है। प्रेमचंद एक सच्चाई थे।जाहिर है जिस सच्चाई से कथा साहित्य का सृजन हुआ है वह भी सच्चाई ही होगी।  प्रेमचंद का संपूर्ण साहित्य भारतीय कथा साहित्य का शिखर है । निस्संदेह कह सकते हैं कि प्रेमचंद का साहित्य बाहर वालों के लिए भारतीय समाज को देखने का व पहचानने की एक  खिड़की अवश्य है।

      प्रेमचंद उपन्यास सम्राट जरूर है मगर कहानी के क्षेत्र में भी वह बादशाह है प्रेमचंद ने जीवन के हर पल का चित्रण किया है इनकी कहानियां इसका सबूत हैं हर समस्या की जड़ तक पहुंचना और उस पर चिंतन करने के लिए विवश करना इनकी कहानियों की विशेषता है जो आज के लिए प्रासंगिक है। प्रेमचंद की लगभग 50-60 कहानियां ऐसी हैं जिसमें जीवन का रस हमें अनायास ही मिल जाता है कहानियों के पात्र को कभी हम भूल नहीं पाते हैं सवा सेर गेहूं का शंकर, कफन के घीसू और माधव, पूस की रात का हल्कू ,ठाकुर का कुआं के जोखू और गंगी,  यह कुछ ऐसे पात्र हैं जिनके माध्यम से भारतीय सामाजिक परिवेश को बताने में प्रेमचंद सफल हुए हैं नशा, बड़े भाई साहब जैसे कहानियों में बाल मनोविज्ञान का भरपूर सहारा लेकर सामाजिक परिस्थिति का अद्भुत चित्रण किया है।  ईदगाह कहानी का हामिद तो सिरमौर है जिसके माध्यम से  दयनीय आर्थिक परिस्थिति किस प्रकार बचपन को कुचल डालती है बताया गया है। ये सब कहानियाँ आज की वर्तमान परिस्थिति को व्यंजित करती हैं। परिवेश व वातावरण जरूर बदला हो मगर मूल संवेदना वही है।  प्रेमचंद का जमाना  आजादी की लड़ाई का जमाना था लोग आजादी के लिए मर मिटने के लिए तैयार थे प्रेमचंद का आरंभिक कहानी संग्रह सोजे वतन देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले युवकों की कहानियां हैं

प्रेमचंद ने जिंदगी को गतिशील माना  है -“सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी हैं।”  इस प्रतिभा को देख कर ही शायद विख्यात बंगाली साहित्यकार शरतचंद्र ने इन्हें “उपन्यास साम्राट ” कहा था।

 प्रेमचंद के उपन्यास पूरे भारत की सामाजिक परिस्थितियों को व्यापक फलक पर दर्शाते हैं, प्रत्येक पात्र चाहे मुख्य हो या फिर गौण किसी न किसी विशेषता के साथ प्रकट होता है गोदान का होरी हो, रंगभूमि का सूरदास हो, कर्मभूमि का अमरकांत हो या निर्मला का निर्मला या तोताराम हो , गबन का जालापा व  रमाकांत दंपति हो ये  सभी पात्र हमारे इर्द-गिर्द घूमने फिरने वाले पात्र ही हैं मगर इन पात्रों की विशेषता यही है कि ये  पात्र स्थान व परिस्थिति के कटघरों में बंधे  नहीं हैं ये  पात्र इन से परे हैं । इन पात्रों में सभी गुण उदात्त  नहीं होंगे मगर इनमें निहित दुर्बलताओं में भी जीवन का सौंदर्य बोध झलकता है।  ऐसे पात्रों का रूप शिल्पी सिर्फ  प्रेमचंद  ही हो सकता है अन्य नहीं । कथा साहित्य में प्रेमचंद से पहले भी और बाद में भी विशेषकर मजदूर – किसान समस्याओं पर कई उपन्यास व कहानियां आई हैं मगर प्रेमचंद जिस प्रकार पात्रों के साथ पाठक की दोस्ती करवाते हैं वह बात दूसरों में कम ही मिलती है

   यह  कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि उनके साहित्य के माध्यम से अहिंदी प्रान्तों में भी हिन्दी का विस्तार हुआ है । इतना ही नहीं  आज लगभग  सभी भारतीय भाषाओं में तथा दुनिया की प्रमुख भाषाओं में  प्रेमचंद की रचनाएँ उपलब्ध हैं । तालस्टोय, मक्सीम गोर्खी जैसे विश्वस्तरीय साहित्यकारों के समक्ष  खड़ा होने का साहस किसी भारतीय कथा साहित्यकार को है तो निश्चित रूप से प्रेमचंद का नाम ही लेना पड़ेगा। हम सब के लिए यह गर्व की बात है।

   प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के पास लमही गांव में हुआ था।  पिता अजायब राय की डाकखाने  की छोटी-सी नौकरी विमाता के दुत्कार प्रेमचंद की सृजनशीलता और सामाजिक दायित्व को शिथिल होने नहीं दिया।  जैसे जैसे प्रेमचंद बड़े होते गए वैसे-वैसे विकट परिस्थितियों का सामना सफलतापूर्वक करते गए । पारिवारिक समस्याओं ने उनके  आत्मविश्वास को धक्का नहीं दिया।  आर्थिक समस्याएं तो प्रेमचंद के साथ जीवन पर्यंत जुगलबंदी करती रही । अपनी आर्थिक समस्याओं को प्रेमचंद ने ज्यादा महत्त्व नहीं दिया 56 वर्ष की अपनी छोटी सी जीवन यात्रा में ना जाने कितने, कितने मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए।  हर पल साहित्य के माध्यम से समाज का उद्धार करने की महत्वकांक्षा उनमें अंतिम सांस तक थी।  महाजनी सभ्यता पर उनके विचार ये यह तथ्य के प्रबल साक्ष्य हैं । 12 उपन्यास 300 से ज्यादा कहानियां और अनगिनत साहित्यिक लेख के माध्यम से समाज के भीतर पनप रही असमानताओं  , अनाचारों, विश्रुंखलताओं का पर्दाफाश किया है। आरंभिक कहानी से लेकर बृहत उपन्यास गोदान तक सभी कृतियों में  कहीं ना कहीं सामाजिक व नैतिक जिम्मेदारी को प्रेमचंद ने निभाया है।

 सचमुच प्रेमचंद मानवीय मूल्यों को सँजोने वाले कथाकार हैं उनका कहना कितना सच है कि – “जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं।“ यही आज की जरूरत है। आज का साहित्यकार तथ्य को समझता है तो कि प्रेमचंद का साहित्य वर्तमान काल के लिए मशाल का काम कर रहा है। आलोचक रामविलास शर्मा ठीक ही लिखते हैं कि- – तमाम कठिनाइयों और बाधाओं को पार करती हुई भारतीय जनता से प्रेमचंद कहते हैं कि यह अंत नहीं है और आगे बढ़ो और आगे बढ़ो जब तक कि रंगभूमि में विजय ना हो जब तक कि देश का कायाकल्प ना हो जब तक कि इस कर्मभूमि में गब्बर और गोदान के होरी और रामनाथ का तारा होना बंद ना हो और हमारा देश एक नए तरह का सेवासदन और एक नए तरह का प्रेमाश्रम ना बन जाए

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                                  डॉ.नरसिंह राव कल्याणी ,
                               सहायक आचार्य , हिन्दी-विभाग ,
                        डॉ.बुर्गुला रामकृष्ण राव शासकीय महाविद्यालय ,
                        जडचेरला