संवर्धन (कहानी) – सविता मिश्रा

डोरबेल बजी जा रही थी। रामसिंह भुनभुनाये “इस बुढ़ापे में यह डोरबेल भी बड़ी तकलीफ़ देती है।” दरवाज़ा खोलते ही डाकिया पोस्टकार्ड और एक लिफ़ाफा पकड़ा गया। लिफ़ाफे पर बड़े […]

जंगल का भूत (कहानी) – मनीष कुमार सिंह

बाहर जोरों की बारिश हो रही थी। अनेक पेड़ों की पत्तियों से टकराती बॅूदों का शोर नजदीक के जंगल के सन्नाटे को भंग करने की बजाए सघन बना रहा था। […]

सविता मिश्रा की कविता

क्यों मौन हैं क्यों मौन हैं हम सब चीखते-चिल्लाते रहें पर हम मौन ही रहें खड़े | क्या बोले कोई सुनता ही नहीं , अतः हम मौन ही रहें खड़े […]

रश्मि राजगृहार की कविता

कबीर तुमने कहा था रहना नहीं देस विराना है। लेकिन दे दिया पूरी उम्र देस’ को रहने लायक बनाने में निर्गुण की बाते दुहरायी बारम्बार और पाटते रहे जीऊ और […]

कवि राजेश पुरोहित की गज़ल

गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है असल में वहीं करतार रहता है योजनाओं का लाभ मिले उन्हें जो असल में हकदार रहता है मेरे शहर में डेंगू ने पैर पसारे […]

दीपक वार्ष्णेय की कविताएँ

पिता पिता दफ्तर से घर बच्चों का इन्तजार है गुस्सा में छुपा प्यार है हर जरुरत की पूर्ति है संयम की मूर्ति है निस्वार्थ उपकार है हमारा संस्कार है हमारी […]

सुनो, तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे (कहानी) – संजय वर्मा “दृष्टी”

घर की बालकनी की खिड़की खोली बाहर का दृश्य देख मुंह  से निकल पड़ा – देखो चीकू के पापा कितना मनोरम दृश्य है । रोज की तरह रजाई ताने बिस्तर […]

बेहद्दी : एक लोकगीत – डाॅ. मंजु तॅवर

इससे पूर्व प्रकाशित भारतीय लोक और स्त्रीमन की 5 श्रृंखलाओं में भोजपुरी के लोकगीत, खड़ी बोली के लोकगीत, राजस्थानी लोकगीत, हरियाणी लोकगीत व पंजाबी लोकगीत की बेहद्दी में मैंने जहां […]

असफल होते सरकारी विद्यालयों की कहानी : एक जुबानी – डॉ. अमितेश कुमार शर्मा 

सरकार ने समाज में दो तरह के विद्यालयों की व्यवस्था कर रखी है। सरकारी प्राथमिक विद्यालय अत्यन्त गरीब बच्चों के विद्यालय है, जहाँ सब कुछ निःशुल्क प्राप्त होता है। वहीं […]