सूर्य देवता आग उगल रहे हैं, हवा का कहीं नामों-निशान नहीं और बह भी रही है, तो मंद मंद गति से पेड़-पौधे सब सूख गए, इस समय तो बरसात होने लगती थी। कल समाचार में सुना था। इसबार पिछली बार से भी अधिक गर्मी पड़ेगी। रेड लाइट के किनारे एक लड़का खेल दिखा रहा था। अचानक मेरी नजर उस दस-ग्यारह साल के दुबले-पतले लड़के पर पड़ी। वह करतब दिखाता, कभी गाड़ी का शीशा साफ करता, तो कभी बंदर,शेर,भालू,और बिल्ली बनकर दिखाता सबको हँसाता। उस के कंधे पर एक गंदा-सा थैला लटक रहा था। मैं वहीं पास रिक्शे में से देख रहा था। देवी जी ने उसको एक सिक्का दिया  वह उसको देखकर खुश हुआ और नाचने लगा। मैं सोचने लगा यह बस एक सिक्के पर इतना खुश जैसे इसके हाथ कोई मणि लग गई। हां..! उसके लिए शायद हो भी, ग्रीन लाइट हुई और रिक्शा चल दिया मैं और मेरी पत्नी हम मंदिर से घूमकर घर जा रहे थे। घर पहुंच कर देवी जी ने चाय बनाई और शाम के खाने में लग गई। मैं भी पोथी पतरा लेकर लिखने बैठ गया, बहुत दिनों  से यह रचना  अधूरी है, हर रोज मुझे आलस घेर लेता है। आज इस रचना को पूरा करके रहूंगा, जैसे ही लिखना आरंभ करता हूं। वह लड़का आंखों के  सामने आने लगता है, वह छोटी सी उम्र में कितना बड़ा हो गया। वह पैसे का मूल्य समझता है, उसने झट से वो सिक्का थैले में डाल लिया था। मजबूरी इंसान से क्या नहीं करवाती। बिचारे की स्कूल जाने की उम्र है, और काम कर रहा है। यह कैसी विडंबना है, सरकार ने स्कूल खोले किसके लिए ? मुफ्त शिक्षा किसके लिए ? बच्चों के लिए और बच्चें काम कर रहे हैं।

आज वहीं लडका वैष्णों ढाबा में काम करता दिखा, मैं अक्सर वहां जाता हूं।गली की चौक पर है। आज अनीता घर पर नहीं है, मायके गई है। उसकी मां की तबीयत भी कुछ ठीक नहीं है, कल तक आएगी। आज का खाना इसी ढाबा में खा लेता हूं। छोटू एक गिलास ठंडा पानी देना।

लड़का- लो साब,

साहब – तू वही है, जो कल रेड लाइट वाला लड़का था ना?

लड़का- हां साब,

साहब – बहुत बढ़िया खेल दिखाता है, कहां सीखा?

लड़का – कहीं नहीं, “साब.! यूं ही आ गया”।

साहब- तेरा नाम और घर में कौन कौन हैं?

लड़का- नाम टीटू , घर मे कोई नहीं, सब मर गए..!

साहब – कैसे?

लड़का- मां पीली होते होते मर गई, और बाप तो पहले से ही मर गया, जब में पैदा भी नहीं हुआ था तब । मां की दवाई कौन लाता? मैं तो छोटा था।

साहब- यहां- कहां रहता है? लड़का – कहीं नहीं,

साहब – तो तेरा घर नहीं है!

लड़का – नहीं,

मेरे घर चलेगा? हां साब, तो चल .!

रूको साब थैला ले लूं। क्या है इसमें ? मां की एक तस्वीर, अच्छा चल अब..!

हम दोनों घर की ओर हो लिए घर पहुंचा ही था, कि मोबाईल की घंटी बजी खबर थी मेरी घरवाली की मां खत्म हो गई है, मुझे फौरन वहां पहुंचना होगा। मैंने उस लड़के से कहा,

अच्छा.! सुन कल आना.! अभी जाना होगा। आएगा ना? हां साब

आज तीन दिन हो गए। वह लड़का आया नहीं, पता नहीं कहां चला गया। सोचा था हमारी कोई संतान नहीं है, तो उसको अपनी संतान की तरह पालूगां, पढ़ाऊंगा। यही सोच रहा था कि देवी जी चाय के साथ सुबह का अखबार भी दें गई। अखबार उठाकर पढ़ रहा था। ऊपर उस लड़के की तस्वीर छपी थी, लिखा था “भूख”से मर गया। कुछ लोगों ने उस मासूम से लड़के को पीटा और उसके पैसे छीन लिए। मैं स्तब्ध अखबार में उस लड़के को देख रहा हूं। आंसू की एक बूंद गिरी चारों तरफ एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। उस लड़के की आवाज मेरे कानों मे गूंज रही है “ साब”..!

 

राहुल पाल
शिवाजी महाविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय