
हिंदी साहित्य अनेक विधाओं से समृद्ध साहित्य माना जाता है। विशेष रूप से हिंदी कथा साहित्य की चर्चा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में जिनके कारण होती है उन समग्र साहित्यकारों में प्रेमचंद जी का स्थान अग्रणी है। प्रेमचंद जी की हर कहानी समाज को एक नई दृष्टि प्रदान करती है। प्रेमचंद मानवता की पुजारी के साथ साथ में कलम के जादूगर भी है। प्रेमचंद जैसे कलम के जादूगर न होते तो शायद हिंदी कथा साहित्य की चर्चा विश्व के साहित्य पटल पर शायद ही इतनी सार्थकता से हो पाती।
प्रेमचंद जी का हिंदी कथा साहित्य में विशिष्ट स्थान है,इसका प्रमुख कारण प्रेमचंद की समाज सापेक्ष दृष्टि है। प्रेमचंद की हर कहानी सामाजिक मूल्यों से ओतप्रोत हैं। प्रेमचंद जी यह बखूबी जानते थे कि सामाजिकता ही साहित्य का मुख्य केंद्रबिन्दु होना चाहिए। साहित्य की सार्थक अभिव्यक्ति सामाजिकता के दायरे में रहकर की गई तो साहित्य समृद्ध और सार्थक रूप में निर्माण किया जा सकता है।
साहित्य का मूल आधार मनुष्य और सामाजिक जीवन है। यह तत्त्व प्रेमचंद के साहित्य में सार्थकता से अभिव्यक्त हुआ है। इस संदर्भ में प्रेमचंद स्वयं लिखते हैं, “साहित्य का आधार ही जीवन है, इसी नीव पर साहित्य की दीवार खड़ी है ।(1) आज का साहित्यकार अपने सामाजिक उत्तरदायित्व से पलायन नहीं कर सकता है । इसलिए प्रेमचंद के साहित्य में मानव जीवन की अनेकों सामाजिक समस्याओं का सशक्त अभिव्यक्ति प्राप्त होती है । प्रेमचंद जी कलम के ऐसे महान जादूगर है जिन्होंने अपने कहानी उपन्यास साहित्य में सिर्फ सामाजिक समस्याओं का उद्घाटन ही नहीं किया अपितु उन पर आदर्श सुझाव देकर आदर्शवाद एवं यथार्थवाद की स्थापना की है। यही प्रेमचंद के साहित्य के सबसे बड़ी विशेषता है ।
हिंदी साहित्य में जब ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और मनोरंजनात्मक, धार्मिकता के आधार पर लेखनी चलाकर साहित्य निर्माण किया जा रहा था, तब प्रेमचंद जैसे कलम के महान जादूगर, कलम के सिपाही और मानवता की पुजारी ने इस मार्ग को त्यागकर साहित्य के क्षेत्र में मानवता के और सामाजिकता के नए मार्ग का निर्माण किया । प्रेमचंद ने अपने युगीन साहित्य को सामाजिकता के साथ जोड़ने का सार्थक और महान कार्य किया है । इस संदर्भ में डॉ. रक्षापुरी लिखती हैं-“प्रेमचंद युगीन साहित्य में सामाजिक जीवन की अधिकांश समस्याएँ भारतीय परिवार एवं नारी जीवन से संबंधित थी।”(2) प्रेमचंद सिर्फ साहित्यकार ही नहीं बल्कि युगनिर्माता भी हैं। इसी कारण हिंदी साहित्य के इतिहास में कहानी और उपन्यास के विकास में प्रेमचंद जी का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रेमचंद जी का साहित्य क्षेत्र में सामाजिक योगदान इतना अनमोल है कि उनके रचनात्मक काल को प्रेमचंद युग के नाम से पहचाना जाता है । इ प्रेमचंद के बारे में कहा जाता है- ” प्रेमचंद न केवल हिंदी वरन विश्व साहित्य के श्रेष्ठतम साहित्यकार हैं ,इनका गोदान महाकाव्यात्मक उपन्यास विश्व साहित्य की श्रेष्ठतम रचनाओं में से एक है ।”(3) प्रेमचंद जैसे श्रेष्ठ साहित्यकार जब समाज के प्रचलित भ्रष्ट व्यवस्था का पर्दाफाश करने के लिए लेखनी चलाते है तब अनेकानेक वर्षों तक उनकी कहानियाँ सामाजिक आदर्श निर्माण करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती रहती हैं। प्रेमचंद जी की ‘नमक का दारोगा’ कहानी अत्यंत प्रासंगिक है । वर्तमान भ्रष्ट व्यवहार पर करारा तमाचा मारकर समाज व्यवस्था को सुधारने की प्रेरणा आज भी यह कहानी प्रदान करती है। प्रेमचंद ‘नमक का दारोगा’ कहानी में लिखते हैं- “धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला। पंडित आलोपिदीन ने एक हष्ट-पुष्ट मनुष्य को हथकडीयाँ लिए हुए अपनी तरफ आते देखा तब चारों और निराश और कातर दृष्टि से देखने लगे । इसके बाद यकायक वे मूर्च्छित होकर गिर पडे।”(4)
प्रेमचंद का समग्र साहित्य भारतीय जीवनमूल्यों से परिपूर्ण है। उन्होंने अपने कथा साहित्य के द्वारा सिर्फ भारतीय समाज को ही नहीं अपितु विश्व समाज को एक सकारात्मक दृष्टि प्रदान की है । इसलिये प्रेमचंद जी के बारे में कहा जाता है, “हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्र में उपन्यास और कहानी सम्राट प्रेमचंद सिर्फ साहित्यकार ही नहीं बल्कि वे युग-प्रवर्तक रचनाकार हैं ।”(5) प्रेमचंद जी ने सामाजिक सरोकार से संबंधित सभी भारतीय जीवन मूल्यों का उद्घाटन अपने साहित्य में किया है । इसलिए प्रेमचंद को ‘सामाजिक जीवन मूल्यों के सम्राट’ उपाधि से भी जाना जाता है ।
प्रेमचंद मानव जीवन के प्रेरक-मूल्य अपने हर कहानी में अलग-अलग रूप मे अभिव्यक्त करते हैं। पंच-परमेश्वर प्रेमचंद की ऐसी ही सामाजिक आदर्श निर्माण करने वाली और सत्य की राह पर चलने के लिए बाध्य करने वाली प्रेरक कहानी है। इस संदर्भ में प्रेमचंद लिखते है, “सत्य की रक्षा करना मानव जीवन का सबसे बड़ा मूल्य है।”(6)
पंच- रमेश्वर कहानी गाढ़ी मित्रता की कहानी है। जिम्मेदारी के पद पर जब आदमी विराजमान होता है तो वह सत्य की राह पर चलने के लिए बाधित होता है। पंच-परमेश्वर कहानी के अंत में प्रेमचंद ने जो संवाद लिखा है वह सदियों से आज भी समाज को सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। प्रेमचंद पंच-परमेश्वर कहानी में लिखते है- “पंच के पद पर बैठकर कोई ना किसी का दोस्त होता है, ना दुश्मन । न्याय के सिवाय उसे और कुछ नहीं सूझता। आज मुझे विश्वास हो गया है कि पंच कि जबान से खुदा बोलता है।(7)
प्रेमचंद मानवता के पुजारी थे। मानवीयता उनके साहित्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। प्रेमचंद ने अपने सामाजिक जीवन में अपने साहित्य के द्वारा एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से जोड़ने का महान कार्य किया है। इसलिए प्रेमचंद जी को साहित्य के क्षेत्र का समाज सुधारक कहना अनुचित न होगा। प्रेमचंद मानवता के वे पुजारी हैं जिनके लेखन में बुद्ध, ईसा और गांधी के जीवन तत्त्वो की सार्थकता प्राप्त होती है। इस संदर्भ में प्रो. केसरी कुमार लिखते हैं- “मेरी नजर में प्रेमचंद महापुरुष थे । जीवन पर्यंत वे कठिनाइयों से जूझते रहे, अधजली बीड़ी कान पर रखकर वे लिखते रहे, किंतु उनका साहित्य बेजुबानों को जुबान देता रहा। नेत्रहीनों को नयन देता रहा और प्रेमचंद निरंतर मजदूरों के बेताज बादशाह बने रहे।”(8)
प्रेमचंद मानवता के पुजारी, मानवता के महापुरुष तथा कलम के जादूगर इसलिए कहलाते हैं कि उन्होने अपने साहित्य में भारतीय जन-मानस का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है । प्रेमचंद ने अपने आपको और अपने साहित्य को कभी भी सामान्य जनता के दुख-दर्द से अलग नहीं रखा। इस संदर्भ में हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ आलोचक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी लिखते है-” प्रेमचंद शताब्दीयों से पद-दलित,अपमानित और उपेक्षित कृषकों की आवाज थे । वे पर्दे में कैद पद-पद पर लांछित और असाह्य नारी जाति की महिमा के जबरदस्त वकील थे । वे गरीबों और बेकसों के महत्व के प्रचारक थे।”(9)
प्रेमचंद जी आज भी अपने समृद्ध साहित्य के द्वारा अमर हैं । वे और उनका साहित्य आज भी समाज को प्रेरणा प्रदान करने का कार्य कर रहा है। उनकी आने वाली जयंती पर उनके उदात्त और मानवतावादी विचारों को शत-शत नमन।
संदर्भ-ग्रंथ:
- प्रेमचंद साहित्य: डॉ रक्षा पुरी, आत्माराम एंड सन्स प्रकाशन, दिल्ली-6. पृष्ठ क्रमांक -7.
- प्रेमचंद साहित्य: डॉ रक्षा पुरी, आत्माराम एंड सन्स प्रकाशन, दिल्ली-6. पृष्ठ क्रमांक – 50.
- कथाधारा- संपा. डॉ अनिता नेरे,डॉ धुलधुले. जगत भारती प्रकाशन,इलाहाबाद. पृष्ठ क्र. 24
- कथाधारा- ‘नमक का दरोगा’ संपा. डॉ अनिता नेरे,डॉ धुलधुले. जगतभारती प्रकाशन,इलाहाबाद. पृष्ठ क्र.29.
- गद्य वैभव: संपा. डॉ राजेंद्र खैरनार, स्नेहवर्धन प्रकाशन,पुणे पृष्ठ क्र.11.
- गद्य वैभव: संपा. डॉ राजेंद्र खैरनार, स्नेहवर्धन प्रकाशन,पुणे पृष्ठ क्र.11.
- गद्य वैभव: संपा. डॉ राजेंद्र खैरनार, स्नेहवर्धन प्रकाशन,पुणे पृष्ठ क्र.20,21.
- प्रेमचंद: विविध आयाम – (प्रेमचंद मानवता के एकमात्र लेखन प्रो.केसरी कुमार) संपा. डॉ दिनेश प्रसाद सिंह, अनुपम प्रकाशन, पटना. पृष्ठ क्र. 3
- प्रेमचंद: विविध आयाम – संपा. डॉ दिनेश प्रसाद सिंह, अनुपम प्रकाशन, पटना. पृष्ठ क्र. 233.
डॉ. जितेंद्र पीतांबर पाटिल
सहयोगी प्राध्यापक
हिंदी विभाग
संगमनेर नगरपालिका कला, दा. ज. मालपाणी वाणिज्य
तथा ब. ना सारडा विज्ञान महाविद्यालय (स्वशासी)