‘फीचर’ (फीचर) समाचार पत्रों का एक अत्यावश्यक व अभिन्न भाग है। इस कारण सभी समाचार पत्रों में ‘फीचर’ देखने और पढ़ने मिल जाते हैं। ‘फीचर’ शब्द लैटिन भाषा के फैक्चर (फैक्ट्रा) शब्द से बना हुआ है। जिसका निश्चित एक अर्थ बताना मुश्किल है। वेबस्टर शब्द कोश के अनुसार ‘फीचर’ शब्द के चार अर्थ निकलते हैं। जैसे (1) व्यक्ति या वस्तु का स्वरूप, (2) समाचार पत्र या पत्रिका की एक विशिष्ट रचना, (3) पूरी लम्बाई का चलचित्र- (इसलिए फिल्मों के लिए एक नया शब्द आजकल प्रचलित हो गया ‘फीचर फिल्म’) (4) चेहरे के अंग विशेष-नाक, आँख, मुँह आदि। प्रो. रमेश जैन अपनी पुस्तक में कहते हैं कि “समाचार माध्यमों में फीचर का अर्थ रहस्य, खोजपरक एवं समसामायिक घटनाओं पर लिखे गये आलेख ‘फीचर’ होता है। समाचार पत्र के संपादकीय विभाग में ‘फीचर डेस्क’ का अपना महत्व भी इसी अर्थ में अधिक व्यापक है कि समाचारपत्र में प्रतिदिन स्थायी रूप से एक या एक से अधिक फीचर उपलब्ध करायें जाते हैं। ‘फीचर’ एक ऐसा आलेख होता है जिसमें समाचार के पीछे समाचार और उसका विश्लेषण मात्र सूचनात्मक न होकर नवीनतम जानकारियों को रचानुभूतिमूलक रूप में प्रस्तुत किया जाता है, अपनी मार्मिकता, व्याख्यापरकता, सत्यान्वेषण एवं मनोरंजकता के साथ।”। 1

समाचार पत्र समाचारों से भरे हुए मिलते है साथ ही उनमें संपादकीय, आलेख, विशेष आलेख, स्तंभ, हास्य व्यंग्य, कार्टुन और फीचर यह सारे भाग बनकर समाचार पत्र आकार धारण करता है। रमेश जैन ही अपनी दूसरी पुस्तक में कहते हैं “संवाद समिति से आए समाचार का पाठ थोड़े बहुत अन्तर के साथ सभी अखबारों में एक जैसा हो सकता है। संवाद समिति का समाचार कौन, कब, कहाँ आदि क कारों या समाचार व्याकरण में बंधा होता है। लेकिन दूसरे स्तंभों पर यह बात लागू नहीं होती। इनमें फीचरों का स्थान सर्वोपरि है।”2

तात्पर्य ‘फीचर’ समाचार मूलक हो भी सकता है और नहीं भी। “सार रूप में कह सकते हैं कि फीचर घटना, व्यक्ति, वस्तु या स्थान के बारे में लिखा गया एक विशिष्ट आलेख है। जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजन और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है।” प्रसिद्ध फीचर विद्वान ब्रेन निकोलस ने फीचर को समाचार पत्र की आत्मा माना है। इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि समाचार पत्र में ‘फीचर’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। डॉ. डी. एस. मेहता के अनुसार “फीचर में घटना के परिवेश विविध

प्रतिक्रियाँ एवं इसके दूरगामी परिणामों का संकट प्राप्त होता है। फीचर लेखक घटना के सम्बन्ध में अपनी प्रतिक्रिया पाठकों को बताता है तथा उनकी कल्पना शक्ति को प्रभावित करता है।” प्रसिद्ध लेखक डॉ. विवेकीराय के अनुसार “फीचर समाचारात्मक निबंध रूपक है और वह विभिन्न क्षेत्रों की नवीनतम हलचलों का शब्द चित्र होता है।”3  यहाँ विवेकीराय ने फीचर के लिए निबंध रूपक कहा है। रूपक फीचर का हिन्दी पर्याय है। बहुत सारे विद्वान फीचर को रूपक ही कहतें आ रहे हैं। रूपक हिन्दी काव्य शास्त्र में खासकर अलंकार, नाटक और दृश्य काव्य के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

रा. र. खाडिलकर के मतानुसार “फीचर वे लेख है, जो पाठकों को यह बताएँ कि कोई घटना क्यों हुई तथा उसका परिणाम क्या होगा।” खाडिलकर जी के मतानुसार फीचर घटना का कारण तो बताता ही है साथ में उसके होने वाले परिणामों की जानकारी भी पाठकों को देता है। वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र गुप्त का कहना है “सृजनात्मक और कुछ न कुछ स्वानुभूति मूलक आलेख फीचर कहलाते हैं।”4  डाँ. मनोहर प्रभाकर के शब्दों में “समाचार पत्रों की संरचना में फीचर उस सामग्री का अविच्छिन्न अंग है जो किसी समाचार पत्र को वैशिष्ट्य प्रदान करता है।” पृथ्वीपाल सिंह के मतानुसार “फीचर किसी रोचक विषय का मनोरंजक शैली में सामान्यतः विस्तृत विवेचन है।”

फीचर के संबंध में भारतीय विद्वानों के मतों के साथ साथ हमें पाश्चात्य विद्वानों के विचार भी देखने जरूरी हैं तब कही जाकर हम ‘फीचर’ को न्याय दे सकेंगे।

जेम्स बेविस के अनुसारर “फीचर को नया आयाम देता है, उसका परीक्षण करता है, विश्लेषण करता है, तथा उस पर नया प्रकाश डालता है। फीचर का सर्वश्रेष्ठ प्रकार वह है जो सामयिक हो तथा समाचार से जुड़ा हुआ हो।”

फीचर के संबंध में और एक पाश्चात्य विद्वान डॉन डंकन का कथन बड़ा मजेदार है। वे कहते हैं “फीचर जीवन के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण, दैनिक जीवन की करुणा, उसकी नाटकीयता और परिहास पक्ष को ग्रहण करके उसका चित्रण करने की एक विधी है। फीचर एक “सैंडविच” के समान है, जिसके दोनों पार्श्व शक्कर की परत से ढँके हुए केक के टुकड़े तथा बीच में मसालेदार मांस तथा आलू भरे रहते हैं।”

इन सभी परिभाषाओं को देखने पर पता चलता है कि हर एक परिभाषा फीचर की किसी न किसी विशेषता को उदघाटित करती है। फीचर को समझने के लिए कोई एक परिभाषा पर्याप्त नहीं है फिर भी प्रो. रमेश जैन की परिभाषा फीचर का सही बोध कराती है वे कहते हैं कि “फीचर वस्तुतः प्रवृत्तियों और भावनाओं का सरस, मधुर और अनुभूतिपूर्ण वर्णन है। फीचर लेखक गौण है, वह मात्र एक माध्यम है, जो फीचर द्वारा पाठकों की जिज्ञासा, उत्सुकता और उत्कंठा को शांत करता हुआ समाज की विभिन्न प्रवृत्तियों का आकलन करता है।” मेरे विचारों से “फीचर घटना, या समाचार पर यथार्थ और सुन्दर, ढंग से लिखा हुआ आकर्षक विशेष लेख है।” इस कारण ही फीचर स्थिति का विहंगावलोकन करके अज्ञात का ज्ञान करता है और प्रश्नों का सही उत्तर भी देता है। डॉ. चन्द्रप्रकाश फीचर के बारे में कहते हैं “सार रूप में कह सकते हैं कि फीचर किसी घटना, व्यक्ति, वस्तु या स्थान के बारे में लिखा गया ऐसा विशिष्ट आलेख है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है।” 5

फीचर लेखन किसी भी विषय पर लिया जा सकता है। छोटी छोटी बातों से लेकर बड़ी-बड़ी घटनाओं तक फीचर लिखा जा सकता है। महान् विभूतियों से लेकर साधारण मनुष्य के असाधारण कर्म, खेल, साहित्य, पर्यावरण, संस्कृती, देश, व्यवसाय, कोई भी विषय फीचर लेखन के लिए लिया जा सकता है। फीचर लेखन में यह बात ध्यान में रखना अनिवार्य है कि फीचर लेख, आलेख, समाचार, निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, से हटकर एक विशेष लेखन प्रकार है। फीचर लेखन एक कला है। एक शास्त्र है। फीचर लेखन करने के लिए प्रतिभा, अनुभव और परिश्रम की नितांत आवश्यकता है।

फीचर लेखन की प्रमुख विधियाँ/प्रक्रियाएँ:

जैसे की उपर हमने कहा है कि ‘फीचर’ एक कला है एक शास्त्र है। कला और शास्त्र के कुछ सिद्धांत होते हैं। डॉ. हरिमोहन फीचर लेखन की प्रक्रिया के तीन आयाम मानते हैं।

  • विषय चयन, (2) सामग्री संग्रहण, (3) विषय प्रतिपादन

वे आगे कहते है – “यह विधा सर्जनात्मक साहित्य की तरह घटनाओं के, स्थितियों के पार की संवेदना को उभारती है। अपने लालित्य के कारण पाठक को आकर्षित करती है, विचारों भावों के संयोजन से नया संसार रचती है, उद्वेलित, आनन्दित और प्रेरित करती है, सूचना देती है। इसलिए फीचर लेखन को किसी सीमा से बाँधा नहीं जा सकता। इस विधा के लिए कच्चा माल हर कहीं उपलब्ध रहता है। यह एकान्त में बैठकर लिखने की चीज नहीं है अपितु इसके लिए बाहर निकलना पड़ता है, स्थितियों से टकराना और उन्हें जीना पड़ता है। न वह तुरंत फुरत का लेखन है, न समाचारों की तरह चटपटा या नीरस सूचनात्मक गद्यखण्ड। दूसरी ओर न साहित्य की तरह केवल मनोरंजक, कल्पनात्मक, रसात्मक या प्रज्ञात्मक अपितु दोनों क्षेत्रों का संतुलित समायोजन फीचर में निहित रहता है। इसलिए फीचर लेखन, लेखक के लिए एक शक्ति- परीक्षण से कम नहीं होता।” 6

टाइम्स ऑफ इंडिया (दिल्ली) के समाचार संपादक श्री विश्वंभर नाथ कुमार के अनुसार भावना और आलोचना फीचर के आवश्यक अंग है। फीचर मैं भावना की व्याख्या की जाती है।” वरिष्ठ पत्रकार पी. डी. टंडन के मतानुसार “फीचर एक प्रकार का गद्यगीत है। फीचर हमारा मनोरंजन करता है। फीचर विशेष रूप से विवेक और आनन्द के लिए लिखा जाता है।” इस पर प्रो. रमेश जैन कहते हैं “फीचर की परख के नियम बदल गये हैं। अब फीचर केवल मनोरंजन और विनोद का साधन नहीं है। फीचर को जिस रस में सराबोर करना हो, किया जा सकता है। अब गद्य गीत मानना उसके महत्व को कम करना है।”7 “मेरी दृष्टि से फीचर गद्य-पद्य संवेदना से जुड़ा हुआ गीत है जो मनोरंजन के साथ साथ पाठकों के ज्ञान में वृद्धि करता है।” 7

“न्यूज राइटिंग” पुस्तक के लेखक जार्ज ए. हग के मतानुसार फीचर में सामान्यतः उसी प्रकार की मानव प्रकृति और वैसी ही परिस्थितियों का विश्लेषण होता है, जिसका हम नित्य प्रति अनुभव करते हैं और जो किसी के भी जीवन में घटती या घट सकती है। जॉर्ज के कथनानुसार फीचर यह याद दिलाता है कि हम सब समान अनुभव के भागीदार हैं। भारतीय विद्वान लेखक डी. ए. मेहता कहते है कि “फीचर में उस तथ्य को उभारा जाता है, जो महत्व का होते हुए भी स्पष्ट नहीं होता और उसका प्रस्तुतीकरण ही फीचर के व्यक्तित्व, उसकी शक्ती और उसके औचित्य का बोध देता है। अध्ययन, अनुसंधान और साक्षात्कार के बल पर फीचर में तथ्यों का विस्तार किया जाता है। फीचर किसी विषय के जानकार और अज्ञानी पाठक के लिए शिक्षक, पथ-प्रदर्शक और मोहक का काम करता है।” पं. डॉ. रमेंन्द्र तिवारी फीचर लेखन प्रक्रिया के बारे में लिखते हैं “फीचर लेखक अपने आँख, कान, भावों, अनुभूतियों, मनोवेगों और अन्वेषणों का सहारा लेकर उसे रुचिकर, आकर्षक और हृदयग्राही बनता है।” फीचर लेखक को यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि ‘फीचर’ हमेशा सत्य पर आधारित हो। उसमें कल्पना का सहारा न के बराबर ही लेना चाहिए। डॉ. मल्लिनाथ जी का इस संबंध में स्पष्ट मत है कि “लेखक को यह सदैव याद रखना चाहिए ‘नामूलं लिख्यते किंचितः’।” 8

फीचर लेखन की प्रक्रिया –

डॉ. चन्द्रप्रकाश अपनी पुस्तक मीडिया लेखन (सिद्धान्त और व्यवहार) में निम्नलिखित बिन्दुओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।

(1) विषयवस्तु (कंटेंट), (2) सामग्री संकलन (दाता कलेक-तिओं), (3) प्रस्तावना या भूमिका या आरंभ (इंट्रोडक्शन), (4) विवरण ,विश्लेषण या मध्य (बॉडी), (5) उपसंहार या निष्कर्ष, अंत (कंक्लुजन), (6) शीर्षक (हेडिंग), (7) छायांकन (फोटोग्राफी)

(1) विषयवस्तु (कंटेंट) :

‘फीचर’ लेखन के लिए विषय का होना अत्यंत जरूरी है। विषय रुचिकर मनोरंजक और लोकमानस को झकझोरनेवाला हो। इस कारण विषय का चयन समयानुकूल करना चाहिए। विषय का दायरा देखकर ही फीचर लेखन करने पर वह प्रभावशाली बनता है। कभी पाठकों की रुचि देखकर भी विषय का चयन करना होता है। डॉ. चन्द्रप्रकाश इस संबंध में कहते हैं “विषय की नवीनता फीचर को न सिर्फ पठनीय बनाती है बल्कि उसे संग्रहणीय भी बनाती है।” तो डॉ. हरिमोहन लिखते है “फीचर का विषय ऐसा होना चाहिए जो लोक रुचि का हो, लोक मानस को छुये, पाठकों में जिज्ञासा जगाए और कोई नई जानकारी दें।” 9 उत्सवों, पर्वों, मेलों, ऋतुओं, पर्यटन स्थलों, ऐतिहासिक स्थानों, सन्तों, महापुरुषों और महान राजनेताओं आदि विषयों पर लिखे फीचर अच्छे बन पड़ते हैं, इतना ही नहीं तो वह सदा के लिए ताजा रहतें हैं। उन्हें पाठक सदा ही पसंद करते हैं।

(2) सामग्री संकलन (दाता कलेक्शन) :

‘फीचर’ लेखन के लिए विषय चयन के बाद सामग्री संकलन करना होता है। बिना सामग्री के आप विषय को न्याय नहीं दे सकतें। सामग्री में सबसे पहले आपको कलम, नोटबुक, पुस्तकें या टेपरेकार्ड, सीडी प्लेयर, सीडीयाँ जुटानें पड़ते हैं। उसके बाद जिस विषय पर आप फीचर लिखने जा रहे हैं उस विषय पर नयी पुरानी एकत्रितं की गयी सामग्री का उपयोग करना पड़ता है। खासकर समाचारों की कतरने, कंम्प्यूटर से निकाला हुआ डाटा आदि का प्रयोग आप कर सकतें है। डॉ. हरिमोहन लिखते है “उन सभी स्थलों पर जहाँ से फीचर की सामग्री मिल सकती है या लेनी हैं, वहाँ तक पूरी तैयारी के साथ जाना होता है। कलम, नोटबुक, कैमरा, टैपरिकार्डर आदि उस लेखक के सबसे विश्वसनीय सहाय्यक उपकरण या साथी है। स्वयं अपने निरीक्षण से काम नहीं चलता, लेखक को घटनाओं की सत्यता जानने, घटनाओं पर प्रतिक्रिया जानने, घटनाओं की तह में जाने आदि के लिए लोगों से मिलना पड़ता है, बातचीत करनी पड़ती है।” 10

(3) परिचय:

विषय चयन, सामग्री चयन के बाद फीचर लेखन की सही शुरुवात होती है। सबसे पहले फीचर की प्रस्तावना लिखनी पड़ती है। इसे आप भूमिका, आमुख या फीचर का परिचय भी कह सकते हैं। प्रस्तावना फीचर का प्राण होती है। जिसमें विषय की संक्षिप्त जानकारी देनी होती है। प्रस्तावना के वाक्यों से ही महत्वपूर्ण विचार निकलना चाहिए। आमुख से ही फीचर पढ़ने का भाव पाठको के मन में उत्पन्न होना चाहिए। अच्छी प्रस्तावना ही पाठकों को संपूर्ण फीचर पढ़ने के लिए मजबूर करती है। घटिया और साधारण प्रस्तावना फीचर का बेढा गर्क कर सकती है। इसलिए तो डॉ. संजीव भानावत लिखते हैं “अच्छा ‘इंट्रो’ ही पाठक को पूरा फीचर पढ़ने के लिए मजबूर करेगा। घटिया या साधारण स्तर का ‘इंट्रो’ अच्छे से अच्छे फीचर का ‘काल’ बन जाता है। ‘इंट्रो’ की नाटकीयता मनोरंजकता, भावात्मकता अथवा आलंकारिता अनायास ही फीचर की निर्जीवता में सजीवता का संचार कर देती है। पाठकों की जिज्ञासा वृत्ति को जागृत करने वाले प्रथम पंक्ति में ही पाठकों को आकृष्ट करनेवाले ‘इंट्रो’ श्रेष्ठ तथा स्तरीय माने जा सकते हैं।”।। प्रस्तावना के डॉ. चन्द्रप्रकाश निम्नलिखित भेद गिनाते हैं।

(ई) सारयुक्त अग्रांश (समरी लीड्स) : सारयुक्त अग्रांश में सभी प्रमुख

तत्वों का सार रूप में सरल सीधे एवं सरस ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें ‘कौन’, ‘क्या’, ‘कब’, ‘कहाँ’ और ‘क्यों’ का उत्तर होना जरूरी है। (आईआई) विशिष्ट घटनात्मक अग्रांश (डिस्टिंक्टिव इनिडेंट लीड्स) : विशिष्ट घटनात्मक अग्रांश वह होता है जिसमें घटना की ऐसी शाब्दिक झलक होनी चाहिए, जो नाटकीय रुचि उत्पन्न करें। (आईआईआई) दृष्टान्वित अग्रांश (कोटेशन लीड्स) : इसमें विषयानुरूप उदाहरणों का प्रयोग कर पाठकों को विषय तथ्य से परिचित कराने का प्रयत्न किया जाता है। (आईवी) लघुवाक्य अग्रांश (शॉर्ट सेंटेंस लीड्स) : लघुवाक्य अग्रांश में कथा या विषय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य एक लघु वाक्य में दिया जाता है।

(व) प्रश्नात्मक अग्रांश (क्वेश्चन लीड्स) : इस प्रकार में प्रारंभ

प्रश्न द्वारा किया जाता है। जिससे पाठकों की ज्ञान और अभिरुची जगाने का यत्न किया जाता है। इसका स्वरूप लघु वाक्य अग्रांश की तरह होता है।

(वी) विरोधात्मक अग्रांश (कॉन्ट्रस्त लीड्स) : इसमें विषय पर जोर देते हुए दो विभिन्न तथ्यों पर वकृत्व देते हुए वर्तमान स्थिति से पूर्व की स्थिति का तुलनात्मक विवरण दिया जाता है।

(वी) सादृश्य अग्रांश (एनालॉजी लीड्स) : इसमें ‘फीचर’ के मुख्य तथ्य की किसी चिर-परिचित तथ्य के साथ अनरूपता बताई जाती है।

(वि) चित्रात्मक अग्रांश (पिक्चर लीड्स) : चित्रात्मक अग्रांश में फीचर से संबंधित व्यक्ति या कार्य का चित्रात्मक ढंग से वर्णन किया जाता है।

(इक्स) प्रत्यक्ष भावान्वित अग्रांश (डायरेक्ट अपील लीड्स) : यह पत्र लेखन कला का विकसित रूप है, जिसमें लेखक पाठक से प्रत्यक्ष तादाम्य स्थापित कर अपनी बात कहता है।

(एक्स) नाट्यात्मक अग्रांश (ड्रामेटिकल लीड्स) : यह नाटकीय प्रभाव उत्पन्न करता है तथा विस्तार में छोटा होता है।

(4) विवेचन-विश्लेषण (बॉडी) : विवेचन-विश्लेषण (बॉडी) को हम विषय प्रतिपादन कहते हैं। इसमें मूल संवेदना की व्याख्या की जाती है। मूल संवेदना पर ही फीचर का संपूर्ण ढाँचा खड़ा होता है। “विषय को अधिक पुष्ट एवं प्रामाणिक बनाने वाले तथ्यों एवं विचारों का ही इस खंड में आकलन, संकलन व ग्रंथन होना चाहिए असंबद्ध एवं विषयांतर प्रसंगो के समावेश से फीचर पाठकों की दृष्टि की पकड़ खो देता है।”12 इस संबंध में डी. एस. मेहता कहते हैं “फीचर में उस तथ्य को उभारा जाता है जो महत्त्व का होते हुए भी स्पष्ट नहीं होता और उसका प्रस्तुती करण ही फीचर के व्यक्तित्व उसकी शक्ति और उसके औचित्य को बाँध देता है। अध्ययन अनुसंधान और साक्षात्कारों के बल पर फीचर में तथ्यों का विस्तार किया जाता है।”

(5) उपसंहार या निष्कर्ष (कंक्लुजन) :

इसमें फीचर लेखक निष्कर्ष नहीं निकालता। वह तो अपनी बात संक्षिप्त में कहकर पाठकों की जिज्ञासा शान्त करता हैं। डॉ. हरिमोहन कहते हैं “वह नये विचार-सूत्र दे सकता है। सुझाव दे सकता है, कोई प्रश्न छोड़ सकता है जो पाठकों को सोचने को बाध्य करें। कुछ ऐसे प्रश्न छोड़ जिनके उत्तर पाठक तलाशें।” 13 तात्पर्य फीचर का उपसंहार अच्छा होना अत्यावश्यक है।

(6) शीर्षक:

शीर्षक ‘फीचर’ की आत्मा है। शीर्षक उसके सौन्दर्य और प्रभाव को बढ़ाता है। इसलिए शीर्षक देने में सावधानी बरतनी पड़ती है। फीचर का शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो उसके कथ्य या भाव को प्रगट करें। इसलिए वह आकर्षक कौतुहल वर्धक हो।

शीर्षक संक्षिप्त, सटीक, सनसनीखेज, काव्यात्मक, उक्तिप्रधान, प्रश्नसूचक और प्रभावशाली अगर होगा तो वह फीचर में चार चाँद लगा देगा। प्रभावहीन शीर्षक फीचर का मजा किरकिरा कर सकता है। फीचर लेखक अगर नवीन शीर्षकों का प्रयोग करता है तो वह कौतुहलवर्धक होना जरूरी है।

(7) छायांकन (फोटोग्राफी) :

फीचर में अगर विषयानुरूप छायाचित्र होगें तो यह बात सोने पे सुहागा बन जायेगी। छायाचित्रों का प्रभाव पाठकों पर पड़ता ही है। फीचर के पाठक सर्वप्रथम शीर्षक और छायाचित्र ही देखतें है इस कारण छायाचित्र सुन्दर, स्पष्ट, जीवंत और आकर्षक होने चाहिए।

डॉ. सुजाता वर्मा ‘पत्रकारिता प्रशिक्षण एवं प्रेस विधि’ पुस्तक में अच्छे फीचर में निम्न गुणों को आवश्यक मानती है।

  1. सरल भाषा
  2. सहज व रुचिकर लेखन शैली
  3. घटना या विषय सम्बन्धी समस्त आवश्यक तथ्यों का समावेश
  4. तथ्यों की सत्यता
  5. पाठकों में जिज्ञासु और आश्चर्य का संचार करने की क्षमता
  6. फीचर में समसामायिकता
  7. आकर्षक शीर्षक

फीचर लेखक के गुण या योग्यता

अब तक हमने फीचर का स्वरूप, उसका अर्थ उसकी व्याख्या और उसकी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से देखा है। अब हम फीचर लेखक के गुण या योग्यता को देखेंगे।

  1. भाषा पर अधिकार : फीचर लेखक की यह पहली योग्यता है कि उसकी भाषा पर जबरदस्त पकड़ चाहिए। रमेश जैन लिखते हैं “यदि भाषा लेखक के इशारों पर थिरकती रहेगी तो फीचर में लालित्य और तरलता का समावेश हो सकेगा।” 14
  2. विभिन्न विषयों का ज्ञान : फीचर लेखक बहुज्ञानी होना अत्यावश्यक है। उसे सारे शास्त्र, कलाओं की जानकारी होना जरूरी है। साथ में धर्म, राजनीति, साहित्य, संस्कृति, दर्शन, इतिहास का थोड़ा बहुत ज्ञान होना लाजमी है। तभी वह विषय को न्याय दे सकता है।
  3. प्रतिभा : भाषा पर अधिकार है, विभिन्न विषयों का ज्ञान भी है मगर प्रतिभा नहीं हैं। तो क्या फायदा। फीचर लेखन की एक शैली होती है। ऐरा गैरा नत्थू खैरा फीचर लिख नहीं सकता। जिस तरह काव्य लिखने के लिए प्रतिभा आवश्यक है ठीक उसी तरह फीचर लेखन के लिए भी प्रतिभा होना जरूरी है।
  4. परिश्रम : फीचर लेखन सरल विधा नहीं है उसके लिए कठिन परिश्रम करने की आवश्यकता है। यह विधा श्रमसाध्य है। इसके लेखन के लिए अत्याधिक श्रम करने पड़ते हैं। अगर फीचर लेखक परिश्रमी नही है तो समझिये फीचर का सत्यानाश हो गया।
  5. अनुभव : फीचर लेखक के लिए दुनिया दारी का अनुभव होना लाजमी है। अगर उसे अनुभव नहीं है तो वह लिख ही नहीं सकेगा। फीचर के साथ न्याय ही नहीं करेगा। अनुभव सबसे बड़ा गुरु होता है। दूसरों के अनुभवों पर फीचर लिखा नहीं जाता।
  6. निरीक्षण शक्ति : फीचर लेखक के पास सूक्ष्म निरक्षण शक्ति होनी चाहिए। निरक्षण शक्ती का यहाँ अर्थ मात्र देखना नहीं हैं तो किसी वस्तु को देखकर उसके प्रभाव को महसूस करना भी होता है। उसकी निरीक्षण शक्ति इतनी तीक्ष्ण होनी चाहिए कि जो बात अन्य लोगों के दिमाग में नहीं आती वह उसे दिखायी देनी चाहिए। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि फीचर लेखक की नजर पैनी और आँखे, दिमाग सदा खुला रहना चाहिए।
  7. परिस्थितयों के प्रति सजगता : फीचर लेखक परिवेश के प्रति सदा सजग और परिस्थितियों के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
  8. प्रो. रमेश जैन के अनुसार ‘फीचर को प्रभावशाली तथा मनोरंजक बनाने के लिए आवश्यक है कि फीचर लेखक के पास कवि सा हृदय, समीक्षक सा प्रौढ़ चिंतन, इतिहासकार सा इतिहास बोध, वैज्ञानिक सी तार्किकता, समाजशास्त्री सा समाज बोध तथा युगदृष्टा की भाँति भविष्य को परखने की शक्ति हो।’

फीचर के प्रकार

फीचरों के प्रकारों के बारे में विद्वानों में मतभेद है डॉ. सुजाता वर्मा फीचर के तीन प्रकार करती है। उनके मतानुसार मुख्य रूप से फीचर तीन प्रकार के होते हैं |

  1. समाचार आधारित, 2. अभिरुची अधारित. 3. फोटो फीचर
  2. समाचार आधारित : इसमें विभिन्न घटनाओं पर विवेचनात्मक एवं

शोधपरक रपट को बहुत ही सहज और आकर्षक शैली में लिखा जाता है। इसमें फीचर लेखक महत्वपूर्ण समाचार का विषय लेकर उस घटना के कारणों एवं प्रभावों के संबंध में विस्तार से चर्चा करता है।

  1. अभिरुची आधारित : इस प्रकार में लेखक अपनी या जन सामान्य की रुची के अनुसार ज्ञानपयोगी एवं मनोंरजन युक्त सामग्री परोसता है।
  2. फोटो फीचर : ‘फोटो फीचर’ का अर्थ है किसी महत्वपूर्ण घटना या प्रसंग से सम्बन्धित चित्रों का संकलन और प्रकाशन। डॉ. सुजाता वर्मा इसके बारे में कहती है “यह चित्र इतने सजीव होते हैं कि इन्हें देखने मात्र से घटना की स्थितियाँ, उसकी गम्भीरता और उसकी सम्पूर्ण जानकारी पाठकों को मिल जाती है। सामान्यतः अकाल, युद्ध तथा अन्य प्राकृतिक विभिषिकाओं अथवा ऐतिहासिक महत्व की घटनाओं को फोटो फीचर के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाया जाता है।” 15

डॉ. मनोहर प्रभाकर ने फीचर के कुल चार प्रकार किये है। उनके अनुसार 1. घटनामूलक फीचर, 2. विशिष्टतामूलक फीचर, 3. विचित्रतामूलक फीचर, 4. चिन्तनामूलक फीचर |

प्रो. रमेश जैन फीचर के मात्र प्रमुख दो ही प्रकार बताते हैं।

  1. समाचारी फीचर,
  2. विशिष्ट फीचर

मगर साथ में फीचर को कई रूपों में वर्गीकृत भी करते हैं।

1.व्यख्यात्मा,

  1. ऐतिहासिक,
  2. मानवीय रुचिपरक,
  3. व्यक्तिपरक,
  4. विज्ञानपरक,
  5. खेलकूद
  6. पर्वोत्सव,
  7. परिवार,
  8. रेडियो,
  9. टेलीविजन,
  10. फोटो फीचर आदि

फीचर तथा अन्य साहित्यिक विधाएँ

कई लोग फीचर का संबंध समाचार, निबंध, आलेख, संस्मरण से जोड़ते हैं। मगर जैसे कि पीछे कहा है कि फीचर एक स्वतंत्र विधा है। उसका एक स्वतंत्र रूप और ढाँचा है। फीचर एक अलग प्रकार की लेखन कला और सिद्धान्त है। कुछ महत्वपूर्ण विधाओं से फीचर का क्या संबंध है उसके बारे में संक्षेप में देखेंगे। काशी पत्रकार संघ की विशेष अनियतकालिक स्मारिका ‘पत्रकार’ (1972) के पूर्वी उत्तरप्रदेश के अंक में प्रकाशित डॉ. विवेकीराय का लेख ‘हिन्दी में फीचर लेखन’ के अनुसार ‘फीचर’ आधुनिकता का अनिवार्य आग्रह है।” जिन निबंधेत्तर विधाओं के साथ जुड़कर विविध रूप में उनकी रचना होती है, उसकी तालिका नीचे दी गयी है।

(क) पर्सनल ऐसे (ललित निबंध), (ख) स्केच (रेखाचित्र), (ग) रिपोर्ताज (विवरणिका), (घ) फैंटेसी (स्वैर विधा), (ङ) शॉर्ट स्टोरी (लघुकथा), (च) पत्र, डायरी और वार्ता आदि।

डॉ. विवेकीराय के कथनानुसार फीचर सब कुछ है और सब में उसकी व्याप्ति है। मगर फीचर को सभी विधाओं से जोड़ने पर ‘फीचर’ का स्वरूप ही नष्ट हो जायेगा। और वह सभी विधाओं का रसायन बन जाएगा। रमेश जैन लिखते हैं “फीचर को खिचड़ीं बनाने से उसका महत्त्व कहीं का नहीं रहेगा और न उसकी कसोटी भी तैयार हो सकेगी।”16 फिर भी तौलनिक अध्ययन हेतु फीचर और अन्य विधाओं का संबंध देखना जरूरी हो जाता हैं।

  1. समाचार और फीचर:

समाचार घटित घटना का विवरण मात्र है, वह पत्रकारिता का मेरुदण्ड है। फीचर का आधार समाचार होता है। मगर यहाँ यह बात ध्यान में रखनी होगी कि फीचर समाचार नहीं होता। विलियम एल रिवर्स के अनुसार ‘फीचर का जाल समाचार से बड़ा होता है।’ प्रो. रमेश जैन के मतानुसार “समाचार तथ्यपरक होता है, फीचर समाचार को नया आयाम देता है।”” समाचार और फीचर की लेखन शैलीयाँ, आकार, रूप अलग अलग होता है। समाचार रूक्ष तो फीचर मनोरंजक होता है। समाचार तथ्य परक होता है तो फीचर ज्ञानपरक। समाचार क्षणभंगुर होते हैं तो फीचर सदा अमर और शाश्वत रहते हैं। प्रा. करटिस डी. मैकडेगल अपनी पुस्तक ‘इन्वेस्टीगेटिव रिपोर्टिंग’ में कहते हैं “फीचर समाचार को अच्छादित कर लेता है। खोजी और व्याख्यात्मक समाचारों पर फीचर छा जाता है। समाचारपत्रों में समाचार की तुलना में फीचर को अधिक पसंद किया जाता है।

  1. संपादकीय और फीचर:

संपादक द्वारा लिखा गया लेख ‘संपादकीय’ कहा जाता है। ‘संपादकीय’ संपादक का किसी घटना या समाचार के प्रति निजी मत रहता है, और वह समाचार की रीति-नीति का आईना होता है। संपादकीय पत्र की जीवन्तता का प्रतीक होता है। वैसे देखा जाए तो संपादकीय लेखन ‘गागर में सागर’ भरने जैसा है। ‘फीचर’ सम्पादकीय से भिन्न लेखन प्रकार है। इन दोनों में अभिव्यक्ति मूलक भेद होता है। विलियम एम. रिवर्स की मान्यतानुसार संपादकीय, समीक्षा तथा अन्य विचार लेखों से फीचर और सम्पादकीय आदि में। फीचर लेखक तथ्यों को तौलता है, उनके आधार पर वकालत नहीं करता। वह पाठकों को फुसलाता नहीं पर उसके ज्ञान की वृद्धि करता है।”

  1. कहानी और फीचर :

‘कहानी’ का ढाँचा कल्पना पर आधारित होता है। बल्कि फीचर तथ्य की भूमि पर टिका हुआ होता है। फीचर जितना विश्वसनीय हो सकता है उतनी कहानी विश्वसनीय नहीं हो सकती। कहानी कभी-कभी सत्य घटनाओं पर लिखी जाती है। लेकिन कहानीकार उस घटना को तोड़ मरोड़कर पेश करता है। इस कारण वह घटना या प्रसंग अपनी ऐतिहासिकता और सत्यता खो देती है। हाँ यहाँ यह बात गौर करने लायक है कि फीचर और कहानी में एक समानता है और वह ‘संवेदना’ मूलतः कहानी एक संवेदना ही होती है। तो फीचर का प्राण ही संवेदनशीलता होती है।

  1. कमेन्ट्री और फीचर :

कमेन्ट्री शब्द आकाशवाणी और टि. व्ह चैनलों से जुड़ा हुआ शब्द है। जिसका अर्थ “किसी तथ्य का वर्णन करते हुए आलोचना, समीक्षा या टीका करना होता है। फीचर में थोड़ी बहुत आलोचना टीका और समीक्षा होती है मगर उसी के साथ फीचर में भावुकता लबालब भर हुयी होती है। कमेन्ट्री और भावुकता का दूर-दूर तक कोई नाता रिश्ता नह होता।” इसलिए तो ब्रियन निकल्स कहते हैं कि “फीचर का बांकपन उसम निहित भावुकता और टीका में है।”

  1. फीचर और अन्य विधायें :

नाटक, संस्मरण, रिपोतार्ज, निबंध , लघुकथा, रेखाचित्र, डायरी आदि से फीचर की तुलना नहीं की जा सकती। यह यह बात गौर करने लायक है कि इन विधाओं का थोड़ा बहुत अंश फीच लेखन में उतरता रहता है। इसका कारण यह है कि इन विधाओं की फीचर झलक लेने से फीचर मनोरंजक और प्रभावशाली बनते हैं। प्रो. रमेश जै लिखते हैं- “जैसे मुख का सौंदर्य ललाट, कपोल, अथवा चिंबुक के एक न तिल बढ़ा देते हैं, वैसे ही इन विधाओं में से एक-दो का संक्षिप्त प्रयोग फीच की शोभा की वृद्धि करते हैं। मुख पर छाए अधिक तिल-जिस प्रकार उसक कुरूप कर देते हैं, इसी तरह फीचर में ऊपर दी गई विधाओं की अधिक मात्रा उसकी विशिष्टता को समाप्त कर देती है।”18

संदर्भ ग्रंथ सूची:

  1. प्रिन्ट मीडिया लेखन- प्रो. रमेश जैन
  2. पत्रकारिता प्रशिक्षण एवं प्रेस विधि- डॉ. सुजाता वर्मा
  3. मीडिया लेखन- डॉ. चन्द्रप्रकाश
  4. संपादन, पृष्ठ सज्जा और मुद्रण- प्रो. रमेश जैन
  5. मीडिया लेखन- डॉ. रमेशचन्द्र त्रिपाठी, डॉ. पवन अग्रवाल
  6. आधुनिक पत्रकारिता- डॉ. अर्जुन तिवारी
  7. समाचार लेखन एवं संपादन- नवीन चन्द्र

संदर्भ :

  1. प्रिंट मीडिया लेखन- प्रो. रमेश जैन- पृ.
  2. संपादन, पृष्ठ सज्जा और मुद्रण प्रो. रमेश जैन- पृ.-132
  3. मीडिया लेखन- डॉ. चन्द्रप्रकाश मिश्र पृ.-109
  4. प्रिन्ट मीडिया लेखन प्रो. रमेश जैन- पृ.-261-62
  5. मीडिया लेखन- डॉ. चन्द्रप्रकाश मिश्र पृ.-109
  6. समाचार, फीचर लेखन और संपादन-कला डॉ. हरिमोहन पृष्ठ 112-13
  7. संपादन, पृष्ठ, सज्जा और मुद्रण-प्रो. रमेश जैन- पृ.- 135
  8. मीडिया लेखन (सिद्धान्त और व्यवहार) डॉ. चन्द्रप्रकाश मिश्र पृ.-111
  9. समाचार, फीचर लेखन एवं संपादन-कला- डॉ. हरिमोहन- पृ. 113
  10. समाचार, फीचर लेखन एवं संपादन-कला डॉ. हरिमोहन पृ. 113
  11. समाचार लेखन के सिद्धान्त और तकनीक डॉ. सजीव भानावत पृ.-91
  12. समाचार लेखन के सिद्धान्त और तकनीक डॉ. सजीव भानावत पृ.-92-93
  13. समाचार फीचर लेखन एवं संपादन-कला डॉ. हरिमोहन पृ. 117
  14. प्रिण्ट मीडिया लेखन प्रो. रमेश जैन पृ.- 268
  15. पत्रकारिता प्रशिक्षण एवं प्रेस विधि- डॉ. सुजाता वर्मा- पृ.-92
  16. प्रिण्ट मीडिया लेखन प्रो. रमेश जैन पृ. 263
  17. प्रिण्ट मीडिया लेखन प्रो. रमेश जैन पृ.-147
  18. संपादन, पृष्ठ सज्जा और मुद्रण प्रो. रमेश जैन- पृ.-148

– डॉ. पंढरीनाथ शिवदास पाटिल ,
गंगामाई महाविद्यालय नगाँव, धुले, महाराष्ट्र