शोध सारांश

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘लांछन’ एक महिला आश्रम की पृष्ठभूमि में रची गई एक ऐसी कहानी है, जो जेंडर भूमिकाओं, सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत शक्ति की जटिलताओं को उजागर करती है। यह शोध आलेख मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘लांछन’ का जूडिथ बटलर के जेंडर परफॉर्मेटिविटी सिद्धांत के आधार पर आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इस कहानी का विश्लेषण जेंडर परफॉर्मेटिविटी के सिद्धांत के आधार पर करने से यह स्पष्ट होता है कि जेंडर कोई स्थिर या जन्मजात गुण नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक प्रदर्शन है जो व्यवहार, भाषा और संस्कृति के माध्यम से निरंतर निर्मित होता है। यह तर्क देता है कि कहानी में जेंडर सामाजिक प्रदर्शन/निर्माण के रूप में प्रकट होता है, जो पात्रों के व्यवहार, भाषा और सामाजिक संदर्भों के माध्यम से निर्मित और चुनौती प्राप्त करता है। यह विश्लेषण दर्शाता है कि ‘लांछन’ सामाजिक मानदंडों की गतिशीलता और जेंडर भूमिकाओं के पुनर्निर्माण की संभावनाओं को उकेरती है। यह कहानी व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर जेंडर की परिवर्तनशीलता को प्रस्तुत करती है, जो समकालीन जेंडर समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विमर्श के लिए प्रासंगिक है। यह अध्ययन हिंदी साहित्य में और विशेष प्रसंग में ‘लांछन’ में अभिव्यक्त जेंडर की जटिलताओं को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

बीज शब्द: प्रेमचंद, लांछन, जूडिथ बटलर, जेंडर परफॉर्मेटिविटी

जेंडर परफॉर्मेटिविटी और ‘लांछन’

मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में तीन दशकों तक सक्रिय रहते हुए लगभग हर विषय को अपनी लेखनी से स्पर्श किया। उनकी कहानियाँ और उपन्यास आकाश के नीचे और पृथ्वी के ऊपर हर संभव विषय को समेटते हैं। यद्यपि उनकी सभी रचनाओं को समान स्तर की प्रशंसा प्राप्त नहीं हुई। मुख्य रूप से यथार्थवादी सामाजिक-सांस्कृतिक टिप्पणियों के लिए प्रसिद्ध, प्रेमचंद ने कम गंभीर विषयों पर भी लेखन किया। ‘लांछन’ ऐसी ही एक कम चर्चित कहानी है, जो तत्कालीन भारत में स्त्रियों की नैतिक पुलिसिंग को हास्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती है। लेखिका और कार्यकर्ता रूथ वनिता ने इस 90 वर्ष पुरानी कहानी को एक नए दृष्टिकोण से देखा। अपनी संपादित पुस्तक ‘ऑन द एज’ में ‘लांछन’ को शामिल करते हुए, वनिता कहानी की अस्पष्ट प्रकृति पर प्रकाश डालती हैं। वे यह तर्क देती हैं कि प्रेमचंद को अपनी कहानी की अस्पष्टता का कितना ज्ञान था, यह हम शायद कभी न जान सकें। फिर भी, वे सुझाव देती हैं कि दो स्त्रियों के प्रेमी के रूप में नाटक करने में गहरे अर्थ हो सकते हैं। भारतीय लोककथाओं और पुराणों में जेंडर परिवर्तन और जेंडर तरलता की कथाएँ प्रचुर मात्रा में हैं, जहाँ पुरुष और स्त्रियाँ किसी उद्देश्य की प्राप्ति या दैवीय दंड के परिणामस्वरूप विपरीत लिंग में परिवर्तित हो जाते हैं या उनका वेश धारण करते हैं।

जेंडर परफॉर्मेटिविटी का सिद्धांत, जिसे जूडिथ बटलर ने अपनी पुस्तक ‘जेंडर ट्रबल’ में प्रतिपादित किया, यह मानता है कि जेंडर एक प्राकृतिक या जैविक विशेषता नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं के अनुरूप बार-बार दोहराए गए व्यवहारों से बनती है। बटलर के अनुसार, जेंडर ‘होने’ की बजाय ‘करने’ की बात है—यह एक प्रदर्शन है जो भाषा, हावभाव, और सामाजिक संदर्भों के माध्यम से व्यक्त होता है। प्रेमचंद की कहानी ‘लांछन’ इस सिद्धांत के लिए एक उपयुक्त धरातल प्रदान करती है, क्योंकि यह न केवल 20वीं सदी में भारत में प्रचलित जेंडर भूमिकाओं को चित्रित करती है, बल्कि उन पर प्रश्नचिह्न लगाने और पुनर्निर्माण करने की संभावनाओं को भी उजागर करती है। यह कहानी का केंद्रीय चरित्र जुगनूबाई एक बुजुर्ग, अनपढ़, और गरीब स्त्री है जो महिला आश्रम में सेविका के रूप में कार्य करती है। वह अपनी तीक्ष्ण नजर और दूसरों के रहस्यों को जानने की क्षमता के लिए जानी जाती है, जिसके कारण आश्रम की स्त्रियाँ उससे भयभीत रहती हैं। दूसरी ओर, मिस खुरशेद एक शिक्षित, आत्मविश्वासी, और स्वतंत्र स्त्री है जो एक स्कूल की हेडमिस्ट्रेस के रूप में आश्रम में आती है। इन दोनों पात्रों के बीच का संघर्ष कहानी को जेंडर परफॉर्मेटिविटी के विश्लेषण के लिए एक समृद्ध आधार प्रदान करती है।

‘लांछन’ एक महिला आश्रम में घटित होने वाली कहानी है, जहाँ जुगनूबाई नामक एक बुजुर्ग सेविका अपनी सूझबुझ और गपशप के माध्यम से स्त्रियों पर नियंत्रण रखती है। उसकी शक्ति इस बात में निहित है कि वह आश्रम की स्त्रियों के अतीत के रहस्यों को जानती है और जरूरत पड़ने पर उन्हें उजागर करने की धमकी देती है। प्रस्तुत कहानी में नया मोड़ तब आता है जब मिस खुरशेद, एक शिक्षित और आत्मनिर्भर स्त्री, आश्रम में प्रवेश करती है। जुगनूबाई मिस खुरशेद की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए अफवाहें फैलाती है, लेकिन मिस खुरशेद अपनी मित्र लीलावती के साथ मिलकर एक चाल रचती है। लीलावती पुरुष वेश (विलियम किंग) में मिस खुरशेद से मिलने आती है, जिसे देखकर जुगनूबाई यह मान लेती है कि मिस खुरशेद का कोई अनैतिक संबंध है। अंत में, जब यह रहस्योद्घाटन होता है कि विलियम किंग वास्तव में लीलावती थी, जुगनूबाई की हार होती है और वह आश्रम से भाग जाती है। यह कथा जेंडर की गतिशीलता और सामाजिक प्रदर्शन की शक्ति को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है।

जेंडर परफॉर्मेटिविटी का सिद्धांत यह दर्शाता है कि जेंडर एक स्थिर पहचान नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो सामाजिक संदर्भों में निरंतर दोहराई जाने वाली गतिविधियों के माध्यम से बनती है। बटलर के शब्दों में, “जेंडर वह नहीं है जो हम हैं, बल्कि वह है जो हम करते हैं।” यह प्रदर्शन सामाजिक मानदंडों से प्रभावित होता है और व्यक्तियों को विशिष्ट जेंडर भूमिकाओं में ढालने का प्रयास करता है। ‘लांछन’ में, यह सिद्धांत जुगनूबाई और मिस खुरशेद के चरित्रों के व्यवहार और उनके सामाजिक प्रभाव के माध्यम से स्पष्ट होता है। जुगनूबाई का शक्तिशाली और नियंत्रक व्यक्तित्व पारंपरिक स्त्रीत्व से परे है, जबकि मिस खुरशेद की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता समाज की जेंडर अपेक्षाओं को चुनौती देती है। दोनों पात्र अपने-अपने तरीके से जेंडर को प्रदर्शित करते हैं।

जुगनूबाई: नैतिक पुलिसिंग की रखवाली

जुगनूबाई का चरित्र कहानी में जेंडर परफॉर्मेटिविटी का एक जटिल उदाहरण प्रस्तुत करता है। वह एक बुजुर्ग, अनपढ़, और गरीब स्त्री है, जिसे प्रथम दृष्टि में समाज की निचली पायदान पर रखा जा सकता है। प्रेमचंद उसे इस तरह वर्णन करते हैं: “उसका ठिगना स्थूल शरीर, सिर के खिचड़ी बाल, गोल मुँह, फूले-फूले गाल, छोटी-छोटी आँखें उसके स्वभाव की प्रखरता और तेजी पर परदा-सा डाले रहती थीं; लेकिन जब वह किसी की कुत्सा करने लगती, तो उसकी आकृति कठोर हो जाती, आँखें फैल जातीं और कंठ-स्वर कर्कश हो जाता।” यह वर्णन उसके व्यक्तित्व की दोहरी प्रकृति को दर्शाता है—एक ओर वह सरल और हँसमुख दिखती है, दूसरी ओर उसकी तीक्ष्णता और नियंत्रण की क्षमता उसे शक्तिशाली बनाती है।

जुगनूबाई का व्यवहार पारंपरिक स्त्रीत्व के कुछ पहलुओं को अपनाता है, जैसे उसकी बिल्ली जैसी चाल और दूसरों की कमजोरियों को पकड़ने की क्षमता, जो साहित्य में अक्सर रूढिगत रूप से स्त्रियों से जोड़ी जाती है। प्रेमचंद के शब्दों में, “उसकी चाल में बिल्लियों का-सा संयम था; दबे पाँव धीरे-धीरे चलती, पर शिकार की आहट पाते ही, जस्त मारने को तैयार हो जाती थी।” यह चित्रण उसे एक शिकारी के रूप में प्रस्तुत करता है, जो स्त्रीत्व की निष्क्रिय छवि से हटकर है। साथ ही, वह गपशप और अफवाहों के माध्यम से आश्रम की स्त्रियों पर नियंत्रण रखती है, जो एक ऐसी शक्ति है जो परंपरागत रूप से पुरुषों से जोड़ी जाती है। इस प्रकार, जुगनूबाई का जेंडर प्रदर्शन पारंपरिक स्त्रीत्व और पुरुषत्व के बीच की सीमाओं को धुंधला करता है।

उसकी शक्ति का आधार स्त्रियों के अतीत के रहस्यों को जानना और उनको ‘ब्लैकमेल’ करना है। प्रेमचंद लिखते हैं, “जुगनू के दिल में हजारों मुरदे गड़े पड़े थे और वह जरूरत पड़ने पर उन्हें उखाड़ दिया करती थी।” यह व्यवहार जेंडर परफॉर्मेटिविटी के सिद्धांत से मेल खाता है, क्योंकि जुगनूबाई अपनी सामाजिक स्थिति (एक गरीब सेविका) के बावजूद एक ऐसी भूमिका निभाती है जो उसे आश्रम में प्रभावशाली बनाती है। उसका यह प्रदर्शन सामाजिक मानदंडों के भीतर रहते हुए भी उन्हें चुनौती देता है, क्योंकि वह एक स्त्री होकर भी नियंत्रण और प्रभुत्व की स्थिति में है।

‘लांछन’ में नैतिक पुलिसिंग का सबसे प्रमुख उदाहरण जुगनूबाई है, जो एक बुजुर्ग, अनपढ़ सेविका है, लेकिन आश्रम की स्त्रियों पर अपनी सूक्ष्म निगरानी और गपशप के माध्यम से नियंत्रण रखती है। प्रेमचंद उसे इस तरह वर्णित करते हैं: “उसकी आँखें बुराइयों ही पर पहुँच जाती थीं। शहर में ऐसी कोई स्त्री न थी; जिसके विषय में दो-चार लुकी-छिपी बातें उसे न मालूम हों।” जुगनूबाई समाज के नैतिक संरक्षक की भूमिका निभाती है, जो स्त्रियों के व्यवहार को सामाजिक मानदंडों के अनुरूप रखने का प्रयास करती है। उसकी यह शक्ति सामाजिक अपेक्षाओं, विशेष रूप से स्त्रियों की पवित्रता और नैतिकता से जुड़ी अपेक्षाओं, पर आधारित है।

जुगनूबाई की नैतिक पुलिसिंग का आधार गपशप और अफवाहें हैं। वह आश्रम की स्त्रियों के अतीत के रहस्यों को ‘उखाड़’ देती है, जैसा कि लिखा है: “जुगनू के दिल में हजारों मुरदे गड़े पड़े थे और वह जरूरत पड़ने पर उन्हें उखाड़ दिया करती थी।” यह व्यवहार नैतिक पुलिसिंग का एक रूप है, जहाँ वह समाज की जेंडर आधारित अपेक्षाओं—जैसे स्त्रियों का संयम और आज्ञाकारिता को लागू करती है। उदाहरण के लिए, जब वह मिस खुरशेद के अविवाहित रहने पर टिप्पणी करती है, “कोई पूछता ही न होगा। ऐसी बहुत-सी क्वाँरियाँ देख चुकी हूँ। सत्तर चूहे खाकर, बिल्ली चली हज्ज को!” तो वह समाज की उस धारणा को मजबूत करती है जो अविवाहित स्त्रियों को संदिग्ध मानती है। यह नैतिक पुलिसिंग न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करती है, बल्कि पितृसत्तात्मक मानदंडों को भी बनाए रखती है।

मिस खुरशेद: स्वतंत्रता और परंपरा का टकराव

मिस खुरशेद कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण चरित्र है, जो एक शिक्षित, आत्मविश्वासी, और स्वतंत्र स्त्री के रूप में प्रस्तुत की गई है। वह इंदुमती महिला पाठशाला की हेडमिस्ट्रेस है और उसने विवाह न करने का निर्णय लिया है, जो उस समय के भारतीय समाज में असामान्य था। प्रेमचंद उसे इस तरह वर्णन करते हैं: “गुलाबी गोरा रंग, कोमल गाल, मदभरी आँखें, नये फैशन के कटे हुए केश, एक-एक अंग साँचे में ढला हुआ; मादकता की इससे अच्छी प्रतिमा न बन सकती थी।” यह वर्णन उसे एक आकर्षक और आधुनिक स्त्री के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन उसकी असली शक्ति उसकी बुद्धिमत्ता और आत्मनिर्भरता में निहित है।

मिस खुरशेद का जेंडर प्रदर्शन समाज की पारंपरिक जेंडर अपेक्षाओं को सीधे चुनौती देता है। उस समय के भारत में स्त्रियों से अपेक्षा की जाती थी कि वे विवाह करें और परिवार की देखभाल करें, लेकिन मिस खुरशेद कहती है, “कहती है, मैं शादी करना ही नहीं चाहती। किसी पुरुष के हाथ क्यों अपनी आजादी बेचूँ?” यह कथन उसकी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को दर्शाता है, जो जेंडर परफॉर्मेटिविटी के संदर्भ में एक क्रांतिकारी प्रदर्शन है। वह समाज के उस नियम को अस्वीकार करती है जो स्त्रियों को पुरुषों पर निर्भर बनाता है और अपने लिए एक नई पहचान गढ़ती है।

उसका यह प्रदर्शन केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी प्रभाव डालता है। जब वह जुगनूबाई की अफवाहों का जवाब देने के लिए लीलावती के साथ मिलकर एक नाटक रचती है, तो वह जेंडर की प्रदर्शनात्मकता का उपयोग एक हथियार के रूप में करती है। यह दृश्य, जहाँ लीलावती पुरुष वेश में विलियम किंग बनकर आती है, जेंडर की तरलता और इसके सामाजिक निर्माण को उजागर करता है। मिस खुरशेद का यह कदम न केवल जुगनूबाई को हराता है, बल्कि आश्रम की स्त्रियों को यह भी दिखाता है कि जेंडर भूमिकाएँ स्थिर नहीं हैं और उन्हें बदला जा सकता है।

समाज की जेंडर अपेक्षाएँ और उनका प्रभाव

‘लांछन’ में समाज की जेंडर अपेक्षाएँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उस समय के भारतीय समाज में स्त्रियों से अपेक्षा की जाती थी कि वे संयम, आज्ञाकारिता, और नैतिकता का पालन करें। उनकी प्रतिष्ठा उनकी सामाजिक स्थिति का आधार थी, और इसे बनाए रखने के लिए उन्हें अपने व्यवहार पर कड़ा नियंत्रण रखना पड़ता था। जुगनूबाई इस अपेक्षा का लाभ उठाती है और स्त्रियों की कमजोरियों को हथियार बनाकर उनकी प्रतिष्ठा पर हमला करती है। कहानी में लिखा है, “जहाँ किसी स्त्री ने दून की ली, या शान दिखायी, वहाँ जुगनू की त्योरियाँ बदलीं। उसकी एक कड़ी निगाह अच्छे-अच्छे को दहला देती थी।” यह दर्शाता है कि जुगनूबाई सामाजिक मानदंडों का उपयोग करके अपनी शक्ति को बढ़ाती है।

दूसरी ओर, मिस खुरशेद इन अपेक्षाओं को अस्वीकार करती है। उसका विवाह न करना और स्वतंत्र जीवन जीना समाज के लिए अस्वीकार्य है, जिसके कारण जुगनूबाई उस पर लांछन लगाने का प्रयास करती है। जुगनूबाई कहती है, “कोई पूछता ही न होगा। ऐसी बहुत-सी क्वाँरियाँ देख चुकी हूँ। सत्तर चूहे खाकर, बिल्ली चली हज्ज को!” यह कथन समाज की उस धारणा को दर्शाता है जो अविवाहित स्त्रियों को संदेह की नजर से देखती है। मिस खुरशेद और जुगनूबाई के बीच का यह संघर्ष जेंडर अपेक्षाओं की कठोरता और उनकी दमनकारी प्रकृति को उजागर करता है।

‘लांछन’ में नैतिक पुलिसिंग उस समय के भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक संरचना को प्रतिबिंबित करती है, जहाँ स्त्रियों की नैतिकता और व्यवहार पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी। प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से यह दर्शाते हैं कि नैतिक पुलिसिंग न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करती है, बल्कि सामाजिक शक्ति संरचनाओं को भी बनाए रखती है। जुगनूबाई का चरित्र समाज के उस हिस्से का प्रतीक है जो दूसरों के जीवन को नियंत्रित करने के लिए गपशप और सामाजिक दबाव का उपयोग करता है।

मिस खुरशेद का प्रतिरोध इस नैतिक पुलिसिंग के खिलाफ एक बगावत है। वह न केवल अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करती है, बल्कि आश्रम की अन्य स्त्रियों को भी यह दिखाती है कि सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी जा सकती है। कहानी का अंत, जहाँ जुगनूबाई गायब हो जाती है और स्त्रियाँ हँसती हैं, यह संदेश देता है कि नैतिक पुलिसिंग की शक्ति को बुद्धिमत्ता और एकजुटता के माध्यम से तोड़ा जा सकता है। यह संदेश आज के समय में भी प्रासंगिक है, जहाँ नैतिक पुलिसिंग के विभिन्न रूप—जैसे सामाजिक मीडिया पर ट्रोलिंग या सार्वजनिक शर्मिंदगी— स्त्रियों की स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

जेंडर की तरलता और प्रदर्शन

कहानी में जेंडर की तरलता का सबसे स्पष्ट उदाहरण मिस खुरशेद और लीलावती द्वारा रचा गया नाटक है। जब लीलावती विलियम किंग के रूप में मिस खुरशेद से मिलने आती है, तो वह पुरुषत्व का प्रदर्शन करती है। कहानी में वर्णित है, “सहसा एक सुंदर सजीला युवक रेशमी सूट धारण किये जूते चरमर करता हुआ अंदर आया। मिस खुरशेद ने इस तरह दौड़कर प्रेम से उसका अभिवादन किया, मानो जामे में फूली न समाती हों।” यह दृश्य जुगनूबाई को यह विश्वास दिलाता है कि मिस खुरशेद का कोई अनैतिक संबंध है। लेकिन जब यह खुलासा होता है कि विलियम किंग वास्तव में लीलावती है, तो जेंडर की प्रदर्शनात्मकता की शक्ति स्पष्ट हो जाती है। लीलावती कहती है, “इस वक्त लीलावती हूँ। रात को विलियम किंग बन जाती हूँ। इसमें बात ही क्या है!” यह कथन जेंडर की तरलता और इसके सामाजिक निर्माण को रेखांकित करता है।

यह प्रदर्शन न केवल जुगनूबाई को चकित करती है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जेंडर एक ऐसा मुखौटा है जिसे बदला जा सकता है। मिस खुरशेद इस प्रदर्शन के माध्यम से जुगनूबाई की शक्ति को नष्ट करती है और आश्रम की स्त्रियों को अपनी स्वायत्तता वापस दिलाती है। यह जेंडर परफॉर्मेटिविटी के सिद्धांत के अनुरूप है, जो यह मानता है कि जेंडर भूमिकाएँ संदर्भ के अनुसार परिवर्तनशील हैं।

कहानी में भाषा भी जेंडर प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। जुगनूबाई की भाषा तीक्ष्ण और कठोर है, जो उसकी शक्ति और नियंत्रण को दर्शाती है। उदाहरण के लिए, वह मिस खुरशेद के बारे में कहती है, “आँखों का पानी जैसे मर गया हो।” यह कथन उसकी आलोचनात्मक और प्रभुत्वशाली प्रकृति को उजागर करता है। दूसरी ओर, मिस खुरशेद की भाषा आत्मविश्वास और दृढ़ता से भरी है। वह जुगनूबाई से कहती है, “मैं उसकी जबान भी बंद कर दूँगी बहन। आप देख लीजिएगा।” यह कथन उसकी स्वतंत्रता और समाज के मानदंडों को चुनौती देने की क्षमता को दर्शाता है।

गपशप और अफवाहें भी कहानी में जेंडर प्रदर्शन का एक रूप हैं। जुगनूबाई अफवाहों का उपयोग करके स्त्रियों की प्रतिष्ठा को नियंत्रित करती है, जो समाज में स्त्रियों की स्थिति को दर्शाता है। लेकिन मिस खुरशेद इस प्रदर्शन को उलट देती है और जुगनूबाई को उसी के हथियार से हराती है। यह भाषा और प्रदर्शन का खेल जेंडर की गतिशीलता को और भी स्पष्ट करता है।

जब जुगनूबाई की हार होती है और वह आश्रम से गायब हो जाती है, तो आश्रम की स्त्रियाँ उसका मजाक उड़ाती हैं। कहानी में लिखा है, “देवियों को अब यथार्थ की लालिमा दिखाई दी। चारों तरफ कहकहे पड़ने लगे।” यह दृश्य दर्शाता है कि स्त्रियों ने अपनी शक्ति और स्वायत्तता को पुनः प्राप्त कर लिया है। जुगनूबाई, जो शुरू में शक्तिशाली थी, अंत में पराजित हो जाती है, जबकि मिस खुरशेद अपनी बुद्धिमत्ता और प्रदर्शन के माध्यम से विजयी होती है।

प्रेमचंद यह संदेश देते हैं कि जेंडर एक सामाजिक निर्माण है जिसे चुनौती दी जा सकती है और पुनर्निर्मित किया जा सकता है। जुगनूबाई का चरित्र यह दर्शाता है कि स्त्रियाँ भी शक्ति की स्थिति में हो सकती हैं, लेकिन यह शक्ति अक्सर सामाजिक मानदंडों के भीतर ही सीमित रहती है। मिस खुरशेद का चरित्र इन मानदंडों को तोड़ता है और एक नई संभावना प्रस्तुत करता है। यह संदेश आज के समय में भी प्रासंगिक है, जहाँ जेंडर समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी है।

निष्कर्ष

प्रेमचंद की कहानी ‘लांछन’ जेंडर परफॉर्मेटिविटी के आधार पर एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। जुगनूबाई का चरित्र पारंपरिक स्त्रीत्व और पुरुषत्व के बीच की सीमाओं को धुंधला करता है, क्योंकि वह एक स्त्री होकर भी शक्ति और नियंत्रण का प्रदर्शन करती है। दूसरी ओर, मिस खुरशेद समाज की जेंडर अपेक्षाओं को अस्वीकार करती है और अपनी स्वतंत्रता के माध्यम से एक नई पहचान गढ़ती है। कहानी में लीलावती का पुरुष वेश धारण करना जेंडर की तरलता और इसके सामाजिक निर्माण को उजागर करता है। अंत में, जुगनूबाई की हार और स्त्रियों का हँसना यह दर्शाता है कि जेंडर भूमिकाएँ परिवर्तनशील हैं और उन्हें पुनर्निर्मित किया जा सकता है। प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से नैतिक पुलिसिंग की आलोचना भी करते हैं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक परिवर्तन की वकालत करते हैं, जो समकालीन जेंडर विमर्श के लिए भी प्रासंगिक है। इस प्रकार, ‘लांछन’ जेंडर परफॉर्मेटिविटी के सिद्धांत को प्रभावी ढंग से चित्रित करती है और समाज में जेंडर की गतिशीलता को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

सहायक ग्रन्थ सूची

  1. प्रेमचंद. समर-यात्रा और ग्यारह अन्य राजनैतिक कहानियाँ. सरस्वती प्रेस, 1932.
  2. Butler, Judith. Gender Trouble: Feminism and the Subversion of Identity. Routledge, 1990.
  3. Orsini, Francesca. The Hindi Public Sphere 1920–1940: Language and Literature in the Age of Nationalism. Oxford UP, 2002.
  4. Vanita, Ruth. On the Edge: 100 Years of Hindi Fiction on Same-Sex Desire. Penguin Random House, 2023.

वेबसाइट

  1. Lanchhan by Munshi Premchand.” Munshi Premchand, Oct. 2022, https://www.munshipremchand.com/2022/10/lanchhan-by-munshi-premchand.html. Accessed 10 July 2025.

 

जयकृष्णन एम.
Assistant Professor on Contract
St. Peter’s College, Kolenchery, Kerala