
शोध सारांश –
प्रेमचंद हिंदी साहित्य जगत के अद्वितीय कथाकार हैं। वे हिंदी साहित्य आकाश के ऐसे चंद्रमा है जिन्हें हर हिंदी प्रेमी चकोर की भांति प्रेम और सम्मान पूर्वक देखने को बाध्य है। वह एक मनीषी कथाकार थे। उनके कहानी लेखन का प्रयोजन केवल पाठकों का मनोरंजन कराना मात्र नहीं था बल्कि पाठकों को असत्य के त्याग और सत्य के ग्रहण की प्रेरणा देकर उनके मन में सुधार के आदर्श का भाव जागृत करना भी था । प्रेमचंद का यही आदर्शोन्मुख यथार्थवाद है जो उनकी कहानियों में पग-पग पर सामाजिक एवं लोक मूल्यों की प्रतिष्ठा करता है । प्रेमचंद की कहानियों में निहित आदर्शोंन्मुख यथार्थवाद के तत्व पूर्णतया धर्म, कर्तव्य निष्ठा, सत्कर्म साधना, सदाचार और संयम की स्थापना करने में सक्षम है । वे अपनी कहानियों में भले बुरे कर्मों के अच्छे और बुरे परिणाम दिखाकर भलाई के ग्रहण और बुराई के त्याग की भावना जागृत करते हुए पाठकों का हित साधन करने और लोक कल्याण का उपदेश देने के उद्देश्य को पूर्ण करते हैं । इसी अर्थ में प्रस्तुत शोध आलेख में हम उनकी कथाओं में लोक धर्म एवं सामाजिक मूल्यों का निरूपण करेंगे ।
लोकधर्म का स्वरूप –
मनुष्य एक लोकबद्ध (सामाजिक) तथा लोक सिद्ध (कर्तव्यनिष्ठ) प्राणी है । अतः प्रत्येक मनुष्य का अपने देश समाज और परिवार के प्रति एक मर्यादामय दायित्व होता है । वह अपने देश, जाति और परिवार तथा संबंधियों आदि का ऋणी होता है और उसे इन घटकों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए उनके उपकार का ऋण चुकाना पड़ता है । यही उसका सर्वप्रधान धर्म अर्थात कर्तव्य होता है, इस कर्तव्य परायणता को ही लोकधर्म कहा जाता है । यही मनुष्य का व्यावहारिक धर्म है इसीलिए कहा गया है कि ‘ धरितलोकान्ए ध्रियतेपुण्यात्मभिरितिवा ‘ इसका आशय यह है कि धर्म सभी लोकों को धारण करता है अर्थात धर्म से ही लोक जीवन का उद्भव और विकास होता है । धर्म लोक जीवन के पुण्य कर्मों को ही धारण करता है और लोक कल्याण के कार्यों भावों, विचारों का प्रचार-प्रसार करता है इसीलिए उसे लोक (समाज) के श्रेय और प्रेय का धारक अर्थात लोक धर्म कहा जाता है । सरलतम रूप में लोक-धर्म को कर्तव्य परायणता के व्यावहारिक नाम से अभिहित करना भी न्याय संगत है । लोक धर्म में लोक जीवन से संबद्ध सत्य अनिवार्य रूप से विद्यमान रहता है । यह संस्कारों और आदर्श परम्पराओं से जुड़ा रहता है । यह धर्म नितांत रूप से लोक कल्याणकारी होता है और इसका पालन करने से ही मनुष्य महान और यशस्वी बनता है । सामान्य रूप से लोक धर्म के तीन भेद किए जा सकते हैं । –
- दया धर्म (सेवा धर्म तथा रक्षण धर्म)
- समाज धर्म (कर्तव्य परायणता एवं मर्यादा पालन)
- देश धर्म (देश प्रेम, स्वतंत्रता प्रेम और देश रक्षण की भावना)
प्रेमचंद की कथाओं में लोक–धर्म –
भारत देश में जन सामान्य के लिए लोक धर्म का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि लोक धर्म के पालन से ही कुल मर्यादा और सामाजिक शिष्टाचार की रक्षा होती है । इसे दया-धर्म, समाज- धर्म और देश धर्म के रूप में पहचाना जाता है। प्रेमचंद की कहानियों में लोक-धर्म का बड़े व्यापक रूप में निरूपण मिलता है, जिससे कर्तव्य परायणता, लोक-मर्यादा तथा देश-प्रेम आदि की चेतना पाठकों को मिल सके और वह कर्तव्य परायणता के महत्व को समझ सकें । प्रेमचंद की कहानियों में लोक धर्म निरूपण के निम्नलिखित आयाम सामाने आते हैं।
- 1. दया धर्म
2 मातृ धर्म
- भ्रात धर्म
- पति-पत्नी धर्म
- 5. आज्ञा पालन धर्म
- देश धर्म
प्रेमचंद की कथा साहित्य में हमें यह सभी आयाम देखने को मिलते हैं।
दया धर्म –
दया को धर्म का मूलाधार माना गया है । दया से लोकहित का प्रसार होता है एवं आशा, परोपकार, त्याग भावना का विकास होता है जो अत्यंत जन कल्याणकारी है । प्रेमचंद की कहानियों के कई पात्रों में हमें यह भाव दिखाई पड़ता है। ‘अनाथ लड़की’ नामक कहानी में दया धर्म का बड़ा ही सटीक चित्र उपस्थित होता है जब सेठ पुरुषोत्तम दास रोहिणी नाम की अनाथ लड़की को सज्जनतावश पाल-पोसकर बड़ा करते हैं इतना ही नहीं उसे बेटी से बहू बनाकर दया एवं सज्जनता की मिसाल प्रस्तुत करते हैं । प्रेमचंद की ‘बांका जमींदार’ नामक कहानी में प्रद्युम्न सिंह नाम के एक प्रतिष्ठित जमींदार का हृदय परिवर्तन बताया गया है जो कि दया-धर्म की प्रतिष्ठा करने में पूर्णता सक्षम है । जमीदार साहब प्रारंभ में तो बहुत कठोर दिल और झगड़ालू थे परंतु गांव वालों के अदम्य साहस के आगे उनका दिल पिघल जाता है और वे जमीदारी से अपना हाथ खींच कर गांव वालों को मुक्त कर देते हैं । ‘मुक्तिधन’ दया धर्म का प्रस्फुटन करने वाली श्रेष्ठ कहानी है। लाला दाऊ दयाल जो ऋण वसूल करने में बहुत ही कठोर पुरुष माने जाते थे, एक निर्धन, असहाय, ईमानदार और सत्य भाषी मुसलमान की गौ-रक्षक भावना से प्रभावित होकर उसे ऋण मुक्त कर देते हैं । इतना ही नहीं उसे अपना दोस्त बनाकर भविष्य में उसके काम आने का आश्वासन भी देते हैं । इसके अतिरिक्त प्रेमचंद की कई कहानियां है जिससे दया धर्म प्रतिष्ठित होता है ।
इस विवेचन से स्पष्ट है कि प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में समाज के सच्चे सेवकों की दया और उदारता का वर्णन करके उनके महान कार्यों को आदर्शोंन्मुख रूप में चित्रित किया है जो समाज को कल्याणमयी प्रेरणा देता है । जिससे समाज के दीन-दुखियों, अनाथों, असहायों और त्रस्त लोगों का कल्याण और त्राण हो सके ।
मातृ-पितृ-पुत्र धर्म –
‘मां’ नामक कहानी में प्रेमचंद ने माता के द्वारा पुत्र धर्म का सुंदर चित्रण किया है । कहानी की नायिका करुणा का पति आदित्य जो एक स्वतंत्रता सेनानी था जेल की यात्राओं से आहत होकर स्वर्ग सिधार गया था परंतु वह एक नन्हा सा बालक छोड़ गया था जो करुणा के जीवन का एकमात्र आधार था । करुणा ने अपार कष्ट सहन कर अपने पुत्र प्रकाश को पाला पोसा ताकि वह भी पिता के समान ही एक सच्चा देशभक्त और शूरवीर बने परंतु पुत्र आज्ञाकारी ना निकला और वह यूरोप की चकाचौंध में खो गया । वह यह भी भूल गया कि जिन अंग्रेजो ने उसके पिता के प्राण लिए वह उन्ही दुष्टों की गुलामी करने अपने स्वदेश को त्याग कर अपनी माता को भी बिलखता हुआ छोड़ कर चला गया। यह करुणा के हृदय पर उसी के पुत्र द्वारा किया गया वज्राघात था जिसे वह सहन न कर सकी और उसने अपने प्राण त्याग दिए । यह करुणा का मातृ – धर्म मूलक बलिदान था । वर्तमान युग के कुपुत्रों के लिए इस कहानी में कुछ प्रेरणा छिपी हुई है । एक अन्य कहानी ‘बेटो वाली विधवा’ में भी फूलमती अपने मातृ धर्म का तन्मयता से निर्वाह करती है । जब तक फूलमती का पति जीवित था तब तक उसके सभी पुत्र उसकी आज्ञा का पालन करते थे परंतु पिता की तेरहवीं भी नहीं हुई थी कि उसके पुत्रों और बहूओं ने उसकी बातों का उल्लंघन प्रारंभ कर दिया था । वह अपनी एक मात्र पुत्री कुमुद का विवाह पंडित मुरारीलाल से करना चाहती थी परंतु अधिक व्यय के कारण उसके पुत्रों ने वहां शादी नहीं होने दी। अंत में ऐसी स्थिति हो गई की उसे एक छोटी सी कोठरी में रहना पड़ा उसकी हालत की बहुत खराब हो गई थी वह लगभग चेतना शून्य हो गई थी । परंतु फिर भी उसने अपना मातृ धर्म नहीं छोड़ा जब घर की महरी बीमार पड़ गई तब उसने पुत्र के भोजन का प्रबंध किया और अपने पुत्र के लिए वर्षा में गंगाजल लेने गई और तभी उसका पांव फिसला और उसका देहांत हो गया । इसी प्रकार ‘मंदिर’ कहानी में भी ऐसी ममतामयी अछूत जाति की महान धर्मनिष्ठ माता की अपूर्व शक्ति का वर्णन है जिसने अपने पुत्र के वियोग में प्राण त्याग दिए । ‘माता का हृदय’ , ‘विमाता’ तथा ‘अलग्योझा’ आदि कहानियों में भी मातृ धर्म का प्रेरणा मूलक और चेतना मूलक निरूपण उपलब्ध होता है । इसके अतिरिक्त ‘आगापीछा’, ‘गृह –दाह’ एवं ‘पुत्र-प्रेम’ नामक कहानियां भी पितृ एवं पुत्र प्रेम का आदर्श उपस्थित करती हैं।
भ्रातृ-धर्म –
‘राजा हरदौल’ और ‘गृह –दाह’ कहानियों में भ्रातृ प्रेम का उच्च आदर्श उपस्थित किया गया है । ‘राजा हरदौल’ कहानी में तो भाई के प्रति समर्पण के कारण हरदौल ने अपने प्राण भी त्याग दिए । ‘बैर का अंत’ तथा ‘दो भाई’ कहानियों में दो भाइयों के बीच वैर और फूट दिखाकर प्रेमचंद यह बताना चाहते हैं कि यह कितना खतरनाक हो सकता है ।
पति-पत्नी धर्म –
पति-पत्नी का संबंध हिंदू समाज में आध्यात्मिक रूप में माना जाता है। यही हिंदू समाज का आधार है और लोक धर्म का श्रेष्ठतम रूप भी यही है इसी से परिवार की रचना होती है। ‘नेउर’ नामक कहानी में नेउर ऐसा पत्नी भक्त पति है जो सदैव अपनी आलसी और निठल्ली पत्नी की सेवा में लगा रहता है । वह बाहर भी कठिन परिश्रम करता था और घर में भी सारा काम करता था परन्तु अपनी पत्नी से कुछ नहीं बोलता था । ‘मगरू ‘ नामक कहानी में भी प्रेमचंद ने ऐसे पति का वर्णन किया है जो अपनी पत्नी के सतीत्व की रक्षा करने के लिए अपने प्राण भी त्यागने को उद्यत हो जाता है । इसी प्रकार उसकी पत्नी गौरा भी अपने पति के प्राण की रक्षा करने के लिए बिना भयभीत हुए अंग्रेज का हृदय परिवर्तन कर देती है और उसके हृदय में कोमल भाव को जगा देती है । ‘घास वाली’ कहानी में मुलिया नाम की अछूत स्त्री अपने चरित्रबल से अपने सतीत्व को की रक्षा करती है और अपनी वाक्पटुता से वासना पूर्ण व्यक्ति चैन सिंह का हृदय परिवर्तन करती है एवं अपने पत्नी धर्म का पालन करती है ।
आज्ञा पालन धर्म –
नारी का एक महान आदर्श यह भी है कि वह संसार के समस्त धर्मों का परित्याग करके पति की आज्ञा का पालन करे। ‘राजा हरदौल’ कहानी में रानी कुलीना के समक्ष भी ऐसी स्थिति आन पड़ी जब उसने अपने निर्दोष शूरवीर और शीलवान देवर के प्राण लेकर ही अपने सतीत्व की रक्षा करनी थी । अपने दिल पर पत्थर रखकर वह इसके लिए राजी भी हो गई परंतु परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि उसके सतीत्व की रक्षा भी हो गई और उसको अपने देवर के प्राण भी नहीं लेना पड़े । ‘शाप ‘ कहानी में भी प्रियंवदा नाम की एक राज कन्या ने शाप के प्रभाव से पशु रूप में परिवर्तित हुए अपने पति की 10 वर्ष तक मन वचन और कर्म से ऐसी सेवा की कि उसका पति पुनः अपने मानवी रूप को प्राप्त कर सका । प्रियंवदा का यह सेवा व्रत ठीक वैसा ही था जैसा कि कभी सावित्री ने किया था ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रेमचंद ने पति- पत्नी धर्म का मार्मिक एवं प्रेरणादायी चित्रण किया है ।
देश धर्म –
प्रेमचंद एक सच्चे और पक्के देश भक्त थे । उस समय भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था । देशवासियों को जगाने के लिए प्रेमचंद ने ‘सोजे वतन’ नाम से कुछ देशभक्तिपरक रचनाएँ की परंतु अंग्रेजों ने उन्हें जब्त करके अग्नि को समर्पित कर दिया । उसके बाद भी प्रेमचंद देशभक्ति परक रचनाएँ लिखते रहे जिससे कि देशवासियों के हृदय में देश प्रेम की ज्वाला जलती रहे । देश प्रेम से संबंधित कहानियां में ‘सत्याग्रह’, ‘विचित्र होली, ‘जेल’, ‘जुलुस’, ‘समर‘ यात्रा’, ‘आदर्श- विरोध’, ’पत्नी से पति’ ‘होली का उपहार’ और ‘राज्य –भक्त’ आदि ऐसी कहानियाँ है. जिनमें देश-प्रेम, देश-भक्ति, स्वतंत्रता-प्रेम, राष्ट्रीय-एकता और देश के लिए त्याग और बलिदान की उत्कृष्ट भावना तथा जन जागृति का शंखनाद किया गया है । इसके अतिरिक्त ‘राजा हरदौल’,‘रानी सारंगा’ आदि कहानियों में भारतीय राजाओं की अद्भुत वीरता का परिचय कराकर देशवासियों में उत्साह, साहस और वीरता भरने का सुदृढ़ प्रयास किया गया है । प्रेमचंद ने ‘कैदी’ और ‘सांसारिक प्रेम और देश प्रेम’ जैसी कहानी रच कर रूस और इटली में होने वाली राजनीतिक क्रांतियां से भी भारतवासियों का परिचय करवाया ताकि देश-प्रेम, स्वतंत्रता-प्रेम और राष्ट्रीय-एकता को बल मिल सके । ‘यह मेरी मातृभूमि’ कहानी में एक अप्रवासी भारतीय का भारतवर्ष के प्रति अटूट प्रेम का जैसा परिचय दिया गया है उससे विदेशों के भौतिक सुखों के प्रति उदासीनता और शोषित तथा पिछड़े हुए होने पर भी भारतवर्ष के प्रति प्रगाढ़ आस्था का अभ्युदय पाठक के मन में होता है। इस कहानी का नायक ‘कत्थक’ अपनी मातृभूमि के दर्शन करने विदेश के अपार वैभव को त्याग कर भारत आता है और उसे यहां पर उसे पूर्ण सुख और शांति मिलती है और वह यही गंगा के किनारे कुटि बनाकर रहने लग जाता है । वह कहता है –“मेरे स्त्री और मेरे पुत्र मुझे बार-बार बुलाते हैं; मगर अब मैं यह गंगा का तट और अपना प्यारा देश छोड़कर वहां नहीं जा सकता । अपनी मिट्टी गंगा जी को ही सौंपूगा अब संसार की कोई आकांक्षा मुझे इस स्थान से नहीं हटा सकते क्योंकि यह मेरा प्यारा देश और यही मेरी प्यारी मातृ भूमि है ।“
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में लोक धर्म के सभी तत्वों का विशद विवरण किया है। लोक धर्म में सत्यम शिवम सुन्दरम का समन्वय होता है। हिन्दू धर्म श्रेय और प्रेम का समर्थक है। प्रेमचंद ने इसे आदर्श और यथार्थ दो रूपों में विभक्त कर यथार्थ के सुधार और आदर्श के ग्रहण की प्रेरणा दी है ।
शोध संदर्भ –
- प्रेमचंद व्यक्ति और साहित्यकार
- प्रेमचंद एक विवेचन
- मानसरोवर (भाग- 2) नेउर
- गुप्त धन (भाग-1) अनाथ लड़की
- मानसरोवर (भाग 3) मुक्ति धन
- मानसरोवर (भाग 1) मां
- मानसरोवर (भाग 1) बेटों वाली विधवा
- मानसरोवर (भाग 1) माता का हृदय
- गुप्त धन (भाग 1) कर्मों का फल
- मानसरोवर (भाग 1) घास वाली
- मानसरोवर (भाग 6) राजा हरदौल
- मानसरोवर (भाग 6) रानी सारंधा
- मानसरोवर (भाग 8) विमाता
- मानसरोवर (भाग 3) विचित्र होली
- मानसरोवर (भाग 2) शूद्रा
- गुप्त धन (भाग 1) सांसारिक प्रेम और देश प्रेम
- संस्कृत हिंदी कोष





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