
भारतीय संस्कृति अतिथि देवो भव वाली है। संत तुकाराम महाराज ने 17वीं शताब्दी में सभी भारतवासियों के लिए बहुत ही बड़ा मौलिक संदेश दिया था। जो आज भी प्रासंगिक लगता है।
वृक्षवल्ली आम्हा सोयरी वनचरे
पक्षी ही सुस्वरे आळविती।
प्रकृति मानव जीवन में एक अनमोल तोहफा है। जिसे संभाल के रखना हमारा कर्तव्य है। 21वीं सदी मे हम वृक्ष वल्ली को भूला रहे हैं। पशु पंछियों को बेघर करने लगे हैं। एक डाल पर तोता बोले एक डाल पर मैंना यह है प्रकृति का रूप सलोना। जेठ माह में वट पूर्णिमा का उत्सव नई नवेली दुल्हन के लिए एक बहुत बड़ा त्यौहार होता है। सत्यवान की सावित्री ने इसी दिन बरगद के पेड़ को धागा बांधकर अपने पति के जीवन दान का वरदान मांगा था यमराज से । भारतीय सभ्यता और संस्कृति पूरे विश्व को आकर्षित करती है हमारे देश की अमूल्य निधियां है झरने झील नदी पेड़ पौधे संजीवनी बूटी अद्वितीय है। इन वृक्षों का हमारे दैनंदिन।। जीवन में बहुत ही बड़ा उपयोग होता है। यह देश का बहुमूल्य खजाना है। पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए बहुत ही कीमती है।
आज वट वृक्ष ने भी मन में ठान ली थी।
मैं सावित्री से कहूंगा
हे सावित्री मेरे जीवन दान के लिए तुम कौन से देवता की पूजा करती हो?
वृक्ष देवता आज सुबह से सावित्री का इंतजार करने लगे थे।
सावित्री ने रात में ही पूजा की सारी तैयारी करके रखी थी।
नई दुल्हन को सास ने कहा था
बहुरानी आज वट पूर्णिमा है तुम्हें अपने पति के लिए व्रत रखना होगा । सभी सुहागन स्त्रियां वट पूर्णिमा के दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए धागा बांधकर आती है।
मैं यह परंपरा सालों से निभा रही हूं अब तुम्हारी बारी है समझी।
सावित्री ने बड़े सच्चे दिल से अपने सास से कहा
” हां माजी “
मैं आपके नक्श कदम पर चलूंगी।
जो हुकुम मेरे आका दोनों खिलखिला कर हंसने लगी।
आज वह सुबह जल्दी जाग गई थी।
उसे वटवृक्ष की पूजा करने के लिए जाना था। सावित्री बहुत ही सुंदर साड़ी पहनकर तैयार हुई थी। गले में सोने का नवलखा हार, हाथों में सोने के कंगन चूड़ियों में अधिक सुंदर लग रहे थे। उसकी मांग में लाल सिंदूर चमक रहा था। बालों में मोगरे का गजरा महेक ने लगा। फूलों का भी सौभाग्य देखो। उसे भी बरगद की पूजा करने के लिए जाना था। बहुरानी के जुड़े में बैठकर वह बहुत खुश था। हाथ में पूजा की थाली लिए हुए बहू साक्षात माता लक्ष्मी का रूप लग रही थी।।सासने बड़े प्यार से बहू की बलाईया ली ।
सावित्री वटवृक्ष की पूजा करने के लिए गाड़ी में बैठकर जा रही थी। भूखी प्यासी सावित्री वटवृक्ष को ढूंढ रही थी उसे आसपास एक भी वृक्ष नजर नहीं आया।
समृद्धि के पेट में कितने वृक्ष समा गए इसका तनिक अंदाजा भी नहीं था।
2 किलोमीटर की दूरी पर सीना तानकर निर्भयता से बड़े बरगद महाराज सावित्री को देख रहे थे। सावित्री की प्रतीक्षा में वट वृक्ष के मन में लाखों सवाल खलबली मचा रहे थे।
सावित्री कार में से उतर गई साड़ी को संभालते हुए बड़े प्यार से बरगद के वृक्ष को सावित्री ने लोटे में का जल अर्पण किया। बरगद ने खुश होकर सावित्री को आशीर्वाद दिया।
” सदा सुहागन रहो ।
हर जन्म में तुम्हें तुम्हारा यही पति मिले।”
वट वृक्ष ने आवाज दी सावित्री को
” हे सावित्री कितनी पूजा करती पति के लंबी आयु के लिए। मुझे धागा बांधकर सात फेरे लेती अपने पति के जीवनदान का सौभाग्य मुझसे मांगती।
“”हे सावित्री कभी मेरी लंबी आयु के लिए भी प्रार्थना करो?
मैं सदियों से बिना भेदभाव के सबको फूल फल छाया देता हूं।
मेरे पत्ते आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए बहुत ही काम आते हैं । मेरी जटाए कितनी महत्वपूर्ण है।
“तुम बहुत महान हो हर साल मुझे सिर्फ वट पूर्णिमा के दिन स्मरण करती हो। मेरे पास सज धज कर दौड़े दौड़े आती।
मैं कितनी भी दूरी पर रहूं। तुम वहां अवश्य आती हो। मन ही मन में मुझे प्रार्थना करती
“हे वृक्ष देवता”
“हर जन्म में मुझे यही पति मिले “
“हे सावित्री तुम्हें मुझे धागा बांधने के लिए हर जन्म में मेरे पास ही आना होगा?
“”मैं बहुत दुखी हो गया। मेरा तो कोई भरोसा नहीं आज हूं तो कल नहीं। कब मुझ पर किसकी बुरी नजर पड़ जाए। मैं जीवित रहूंगा या नहीं अगले वर्ष के लिए।
“मैं जीवित रहूंगा तभी तो तुम मुझे धागा बांध पाओगी।
मेरा कोई रक्षक नहीं सब मेरे दुश्मन है जब जब मेरी बलि चढ़ाई जाती है। तब प्रशासन व्यवस्था आंखें बंद कर लेती है। आम जनता टुकुर-टुकुर देखती है। ऑटो रिक्शा वाले मेरे काटने का खामोश तमाशा देखते हैं। किसी को मेरी दया नहीं आती। कोई मेरी लंबी उम्र के लिए धागा नहीं बंधता।
सावित्री पति के जीवन दान के लिए पूजा करती हो। काश मेरे लिए भी एक व्रत्त रखती तो कितना अच्छा होता है।
अब कोई पथिक मेरी शीतल छाया में बैठने नहीं आता। मवेशी ने भी आंखें फेर ली, वृद्ध अब वृद्ध आश्रम में अपना जीवन बिताने लगे। उन्हें मेरी चिंता नहीं “मैं जीवित रहूं या कट जाऊं”। पता नहीं कब तक मेरी सांसे चलती रहेगी। बड़े बेरहमी से मुझे काटते हैं। पता नहीं क्यों काट देते हैं मुझे।
कभी सड़क के किनारे मेरी हत्या होती है, तो कभी अदालत के आंगन में मुझे काट दिया जाता है।
मेरा कोई शुभचिंतक नहीं। कोई साथी नहीं। मुझे काटने वाले पर कोई र्निबंध नहीं। मैं इस धरती पर युगों से सीना तानकर खड़ा हूं। मुझे काटकर विदेशी वृक्ष लगाते बारिश के मौसम में पौधारोपण करने का परचम लहराते हैं। चारों ओर समाचार पत्रों में वृक्षारोपण की फोटो छपती।
” हे सावित्री कैसे तुम्हारे सुहाग की रक्षा होगी?
तुम कौन से वट वृक्ष को अपने पति के लंबी उम्र के लिए “
धागा बांधने जाओगी? हे सावित्री मेरी सुरक्षा के लिए एक रक्षा कवच तो बांधो।
मेरी पूजा में इतनी सारी सामग्री लाती हो। मुझे चढ़ाने के लिए सेब केला आम अनार अंगूर दूध खजूर बादाम किशमिश यह सब मेरे किस काम के। एक दिन जल अर्पण करके साल भर का पुण्य कमाती। मुझे यह सब नहीं चाहिए मुझे जीवन दान चाहिए। भारतीय संस्कृति किसी को पीड़ा पहुंचाने वाली नहीं है फिर मैं ही बार-बार सबके आंखों का कांटा क्यों बन जाता हूं?
“हे सावित्री वट पूर्णिमा के दिन ही मुझे स्मरण करती हो। उसी दिन मुझे तुम अपने सुहाग का रक्षक मानती हो?
मुझे स्नेहा का धागा बांधकर मेरे महत्व को समझती हो भूखी प्यासी रहकर मेरी 108 परिक्रमा लगाती हो। तब मैं हैरान हो जाता हूं।
” हे सावित्री तुम मुझे एक दिन कितना महत्व देती।
क्या मैं वट पूर्णिमा के दिन का मेहमान हूं। मैं तो युगो युगो से इस धरती मां के गोद में पला बड़ा हूं। धरती ही मेरी माता है, मैं जीना चाहता हूं
मुझे जीना है।
मैंने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज की थी।
“मुझे बचाओ”
पुलिस भी मेरी रक्षा नहीं कर पाए। फिर भी मैं ने हार नहीं मानी थी। इस देश के रक्षक जज साहब पर मेरा अटूट विश्वास था। मैंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
” जज साहब मेरी रक्षा करो,
मुझे बेवजह काट रहे हैं लोग।
मैंने कौन सा गुनाह किया है।
मैं तो दिन-रात ऑक्सीजन देता हूं। शुद्ध हवा मुझसे ही मिलती है।
” राहगीर की में शीतल छाया हूं मासूम छोटे बच्चे मेरे पास आकर खेला करते हैं। वृद्ध मेरी छाया में आकर सुख-दुख की बातें करते। गांव की पंचायत मेरी छाया में संपन्न होती। पशु भी मेरी छाया में घंटो बैठा करते। गौ माता भी विश्राम करने आती। ये सब जीव मुझे गुदगुदी करते मुझे हंसाते। जब मन हुआ तब उठकर चले जाते। पंछी मेरी गोद में आकर बैठते हैं, चिड़िया कोयल मैंना तोता कबूतर कौवे मेरी डाल पर अपना बसेरा बनाते। इन सबका में सच्चा हितेषी।
पर मेरा नहीं कोई साथी। ये सब मेरे अपने लगते।
मेरे मन में कोई भेदभाव नहीं निस्वार्थ भाव से मैं मनुष्य की सेवा में मग्न रहता हूं। जिसको जितनी देर मेरी आगोश में बैठना है उतनी देर बैठ जाते।
“हे सावित्री तुम मुझे वट पूर्णिमा के दिन पर महत्व देती । मेरा मान सम्मान बढ़ाती। मैं राष्ट्रीय वृक्ष घोषित हुआ। फिर भी मैं सुरक्षित नहीं।
मेरा भाग्य भी कितना निराला है मैं सबके लिए काम आता पर मुझे बचाने कोई नहीं आता।
इस धरती पर जितने भी पेड़ पौधे हैं वे सब धरती के गर्भ से निकले हुए अनमोल हिरे हैं। बेलपत्र आंवला शमी नीम
पीपल बरगद अमरूद महूआ भिलावा सिताफल जामुन इमली । इन वृक्षों का रोजमर्रा की जिंदगी में अनगिनत उपयोग होता है।
भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय पेड़ पौधे वल्लरी पत्ते ।फूल फलों पर निर्भर है। हरियाली धरती मां की चुनर है। वृक्ष धरती के सौभाग्य का श्रृंगार है। बिना वृक्ष के धरती विधवा समान है।
सावित्री कहां गई तुम्हारी शकुंतला सी आत्मा। शकुंतला वृक्षों को पानी दिए बिना पानी ग्रहण नहीं करती थी। आभूषण प्रिय होते हुए भी वह यह सोचकर पल्लवों को नहीं तोड़ती थी। इससे वृक्ष को दुख होगा। ऐसी समृद्ध भारतीय परंपरा होते हुए भी मैं आज अपने प्राणों की भीख मांग रहा हूं। मेरे महत्व को क्यों नहीं समझता कोई?
मुझे से ही शुद्ध हवा मिलती है।
मैं हूं इसलिए धरती पर पानी बरसता है।
जंगल का मेवा रानमेवा मुझसे ही मिलता हैं।
तुम्हारी सेहत का राज नीम बबूल की गोंद कहां से आती हैं।सीताफल चिरौंजी भिलावा का फूल महुआ आम अमरुद जामुन बेल का मुरब्बा आंवला यह सब प्रकृति की अनमोल देन है। हम अपना सब कुछ मनुष्य पर लुटाते हैं मनुष्य हमें अनदेखा कर देते हैं। हमारे अस्तित्व को कोई नहीं समझता।
” मैंने इंजीनियर साहब को अंतरात्मा से आवाज लगाइए मुझे आरा मशीन के दानव से बचाइए।
” मैं चिख चिख कर कहता रहा।
” मुझे मत काटो “
मुझे काटने का आदेश मत दीजिए?
इंजीनियर ने मेरी एक ना सुनी। मैं मायूसी से इधर-उधर देखने लगा।
“। कोई मेरी लंबी उम्र के लिए प्रेम का धागा बांधने आयेगा?
” आज तुम आ गई सावित्री “
” मुझे स्नेहा का धागा बांधने।
“। काश मेरे लिए भी कोई अपनेपन का धागा बांधता। मेरी लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करता तो आज मैं निर्भयता से खड़ा रहता मुझे भी जीवन दान मिलता।
” तुम्हें मेरी पूजा की “आस “तो साल में एक ही बार होती है। मैं सदियों से आस लगाए बैठा हूं। यह भूमि मेरी है ये लोग मेरे अपने हैं। पर मेरी किस्मत कहां ऐसी जो मैं अपने भाग्य पर इठलाऊं। मैं हर पल चौकन्ना रहता हूं मुझे हर बार डर लगता है।
पेड़ रो रहा था।
” मेरा जीवन निरर्थक है क्या?
मेरे अस्तित्व की कोई कीमत नहीं? मैं इतना अभागा कैसे हो गया। किसी को मुझ पर दया ना आई।
पता नहीं अब किसका नंबर होगा?
“मेरा पक्ष लेने वाला कोई वकील नहीं।”
” मुझे बचाने वाला कोई जलदूत नहीं?
” मेरी व्यथा पर लिखने वाला पत्रकार नहीं?। मुझे सब अनदेखा करते हैं। मेरे अस्तित्व को नकारते हैं।
जलती चिता से उछाल दी गई आलोक मंजरी झाडियो के पिछे छिपकर बैठी थी। जीने के लिए।मैं किस के पिछे छिप जाऊं जीने के लिए। बताओं सावित्री मैं कहां छिप जाऊं ।
तुम्हारे स्वास्थ्य का राज जंगल का अनमोल खजाना है। भिलावा गरीब की दवा है चिरौंजी सिताफल गरीब का सेब है।
प्रकृति अपना उत्तरदायित्व निस्वार्थ भाव से निभाती है। पेड़ ने भी अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाया। इसलिए तो वह कहने लगा।
हर दिन हर पल मरता हूं।
जीवन की नई “आस “जगाता हूं।
फिर भी हार नहीं मानता।
मानव सेवा ही मेरा कर्म है।
” सूरज तारे धरती चांद की,
जब तक। चले कहानी
हमेशा सबको सुख देने की।
मैंने है मन में ठानी “