
हिंदी साहित्य के नवोदित कथाकारों की कृतियों में सत्य व्यास जी द्वारा लिखित उपन्यास ‘दिल्ली दरबार’ प्रशंसनीय है | यह कहानी देश के छोटे-छोटे शहरों से निकलकर राजधानी दिलवालों की दिल्ली में अपने सपने बुनने झारखण्ड के टाटानगर से आये दो युवकों मोहित सिंह (झाड़ी) और राहुल मिश्र (पंडित) की है | कथा का वर्णन उपन्यास का पात्र मोहित करता है |
यह कथा टाटानगर की गलियों से दोनों मित्रों को AIPM दिल्ली से MBA करने के लिए दिल्ली की सड़कों पर दौड़ लगाती जिन्दगी में लाती है और युवा मन के उन्मादों और निर्णयों की झलकियाँ प्रस्तुत करती है | कथा का आरम्भ ‘साहब’ यानि राहुल मिश्र जिसे मोहित पंडित बुलाता है की लीलाओं और प्रेम प्रसंगों से होता है | राहुल मिश्र यानि पंडित और मोहित सिंह यानी झाडी दिल्ली में हॉस्टल की जगह लक्ष्मी नगर में बटुक शर्मा जी के मकान में अपना आशियाना बनाते हैं | यहीं राहुल, ‘बीवी’ यानि बटुक शर्मा जी की बेटी परिधि की परिधि में आ जाता है और कहानी रूमानी होती जाती है | पात्रों की सूची में एक और नाम है छोटू का | है तो नौकर पर पहली झलक में क्रिकेट का शौकीन है |
कहानी की पृष्ठभूमि इन्टरनेट बैंकिंग के शुरूआती दिनों की है जब आये दिन धोखाधड़ी होती रहती थी | राहुल पढाई से ज्यादा रूचि इन कामों में रखता था और एक दिन उसने बटुक शर्मा की इन्टरनेट बैंकिंग डिटेल चोरी कर ली | कहानी आगे बढती है और कई परेशानियां साथ लाती है जिनमे परिधि की प्रेगनेंसी फिर एबॉर्शन, बटुक शर्मा के बैंक खाते से रुपये निकलना, और छोटू का आईपीएल फाइनल के बाद से वापस न आना | कहानी रहस्यमय हो जाती है और कथा के अवसान में मोहित एसएससी GD में चयनित हो जाता है, चाइनीज तकनीकी की मदद से राहुल भी हाईवे प्राधिकरण में नौकरी पा जाता है अंततः परिधि से विवाह कर लेता है |
सत्य व्यास जी का कथा लिखने का ढंग पाठक को बाँध कर रखता है | सीधी लगने वाली कहानी यकायक रोमांचक मोड़ ले लेती है और रहस्यमयी हो जाती है | हास्य, व्यंग्य और मुहावरों का सटीक प्रयोग कथा को रुचिकर बना देता है | हिंदी के नवीन उपन्यासों में सत्य व्यास जी द्वारा लिखा गया दिल्ली दरबार पठनीय है |





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