[Übersetzung der Kurzgeschichte „Nachts schlafen die Ratten doch“ von Wolfgang Borchert. Aus dem Deutschen ins Hindi übersetzt von Ram Chander Gupta]

मूल जर्मन से हिन्दी में अनुवाद

लेखक : वोल्फ़गांग बोर्षर्ट

अनुवादक : रामचन्द्र गुप्ता

अकेली खड़ी दीवार की खोखली खिड़की में से ढलते सूरज की लालिमा झाँकने लगी थी । सीधे खड़े चिमनी के अवशेषों में धूल के कण झिलमिला रहे थे । मलबे के ढेर यहाँ-वहाँ पड़े ऊँघ रहे थे ।

उसकी आँखें बन्द थीं । अचानक अँधेरा और अधिक हो गया । उसने महसूस किया कि कोई आकर उसके सामने खड़ा हो गया था, धुँधला सा, धीरे से । अब तो मैं गया ! उसने सोचा । परन्तु जब उसने अपनी पलकें जरा सी ऊपर कीं तो उसे फटी-पुरानी पतलून में दो टाँगें नजर आईं । टाँगें इतनी टेढ़ी थीं कि वह उनके बीच से सामने देख सकता था । उसने हिम्मत करके अपनी नजरें थोड़ी और ऊपर कीं तो एक अधेड़ आदमी को खड़ा पाया । उसके हाथ में एक चाकू था और एक टोकरी थी । उँगलियों में थोड़ी मिट्टी लगी थी ।

तुम यहाँ सो रहे हो ना ? आदमी ने ऊपर से ही उसके बिखरे बालों को देखते हुए पूछा । युर्गन ने आदमी की टाँगों के बीच से सामने सूरज की ओर देखा और बोला: नहीं, मैं सो नहीं रहा हूँ । मैं यहाँ निगरानी कर रहा हूँ । आदमी ने सिर हिलाते हुए कहा: अच्छा, तो शायद इसीलिए तुमने यह बड़ा सा डंडा अपने पास रखा हुआ है ?

हाँ, युर्गन ने उत्साहित होते हुए कहा और डंडे को मजबूती से पकड़ लिया ।

किसकी निगरानी कर रहे हो तुम ?

यह मैं नहीं बता सकता । उसने डंडे को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया ।

शायद पैसों की, है ना ? आदमी ने टोकरी को नीचे रख दिया और चाकू को पतलून पर रगड़ने लगा ।

नहीं, पैसों की तो बिल्कुल भी नहीं, युर्गन ने तिरस्कार भरे स्वर में कहा । किसी बिल्कुल ही अलग चीज की ।

किस चीज की ?

यह मैं नहीं बता सकता । कुछ बिल्कुल ही अलग है ।

ठीक है, मत बताओ । तब तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मेरी टोकरी में क्या है । आदमी ने पैर से टोकरी को ठोकर मारी और चाकू मोड़ कर बन्द कर लिया ।

 मैं अच्छी तरह से सोच सकता हूँ कि टोकरी में क्या है, युर्गन उपेक्षा से बोला, खरगोशों का चारा ।

अरे बाप रे, बिल्कुल सही ! आदमी ने आश्चर्य से कहा, तुम तो बड़े चतुर हो । कितनी आयु है तुम्हारी ?

नौ वर्ष ।

अच्छा, तो तुम नौ साल के हो । तब तो तुम्हें जरूर पता होगा कि तीन गुणा नौ कितने होते हैं, पता है ना ?

क्यों नहीं, युर्गन ने कहा और फिर समय पाने के लिए बोला: यह तो बिल्कुल आसान है । और वह आदमी की टाँगों के बीच से दूसरी तरफ देखने लगा । तीन गुणा नौ ही ना ? उसने फिर से पूछा, सत्ताईस । यह तो मुझे पहले ही पता था ।

बिल्कुल सही, आदमी ने कहा, ठीक इतने ही खरगोश हैं मेरे पास ।

युर्गन ने आश्चर्यचकित होकर कहा: सत्ताईस ?

तुम उन्हें देख सकते हो । कई तो अभी काफी छोटे हैं । देखना चाहोगे ?

मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता ना । मुझे तो निगरानी करनी है ना, युर्गन ने अनिश्चितता से भरे स्वर में कहा ।

अभी भी, आदमी ने पूछा, रात में भी ?

रात में भी, अभी भी, हमेशा, युर्गन ने टेढ़ी टाँगों से ऊपर देखकर कहा । शनिवार से ही, उसने फुसफुसाते हुए कहा ।

परन्तु क्या तुम बिल्कुल भी घर नहीं जाते ? खाना खाने तो जाते होगे ?

युर्गन ने एक पत्थर ऊपर उठाया । उसके नीचे एक आधी ब्रैड रखी थी । और एक टीन की डिबिया ।

तुम धूम्रपान करते हो ? आदमी ने पूछा, क्या तुम्हारे पास पाइप है ?

युर्गन ने अपने डंडे को मजबूती से पकड़ा और संकोच के साथ कहा: मैं सिगरेट पीता हूँ । पाइप मुझे अच्छा नहीं लगता ।

अफसोस की बात है, आदमी अपनी टोकरी उठाने के लिए झुका, खरगोशों को तुम निस्संकोच देख सकते थे । खास तौर पर छोटे-छोटे बच्चों को । शायद तुम उनमें से एक अपने लिए ले सकते थे । परन्तु तुम तो इस जगह को छोड़कर जा ही नहीं सकते ।

नहीं, युर्गन ने उदास होकर कहा, नहीं नहीं ।

आदमी ने टोकरी उठाई और खड़ा हो गया । ठीक है, यदि तुम्हारा यहीं रहना जरूरी है तो – बड़े अफसोस की बात है । और वह जाने के लिए मुड़ा । यदि तुम किसी और को नहीं बताओ तो, युर्गन ने शीघ्रता से कहा, मैं यहाँ चूहों के कारण बैठा हूँ ।

टेढ़ी टाँगें एक कदम पीछे आ गईं: चूहों के कारण ?

हाँ, वे मृतकों को खाते हैं ना । मनुष्यों को । इसी से तो वे अपना पेट भरते हैं ना ।

कौन कहता है ?

हमारे अध्यापक ।

और तुम अब चूहों की निगरानी कर रहे हो ? आदमी ने पूछा ।

उनकी नहीं ! और तब वह बहुत धीरे से बोला: मेरा भाई, वह वहाँ नीचे लेटा हुआ है । वहाँ । युर्गन ने डंडे से ध्वस्त दीवारों की ओर इशारा किया । हमारे घर पर बम गिरा था । तुरन्त तहखाने की बत्ती चली गई । और वह भी । हमने पुकारा भी था । वह मुझसे बहुत छोटा था । केवल चार वर्ष का । उसे अब भी यहीं होना चाहिए । वह मुझसे बहुत छोटा है ना ।

आदमी ने ऊपर से ही उसके बिखरे बालों को देखा । परन्तु फिर वह तुरन्त बोला: अच्छा, तो तुम्हारे अध्यापक ने तुम्हें यह नहीं बताया कि चूहे रात में सोते हैं ?

नहीं, युर्गन ने फुसफुसाते हुए कहा और अचानक बहुत थका हुआ नजर आने लगा, ऐसा तो उन्होंने नहीं बताया ।

अरे, आदमी ने कहा, कैसा अध्यापक है जिसे इतना भी नहीं पता । रात में तो चूहे सोते हैं । रात में तुम निस्संकोच घर जा सकते हो । रात में वे हमेशा सोते हैं । बल्कि जब अँधेरा होने लगता है तभी सो जाते हैं ।

युर्गन अपने डंडे से मलबे में छोटे-छोटे गड्ढे बना रहा था ।

केवल छोटे-छोटे बिस्तर हैं ये, वह सोच रहा था, सब के सब छोटे-छोटे बिस्तर । तब आदमी ने कहा (और ऐसा करते समय उसकी टेढ़ी टाँगें काफी अशान्त लग रही थीं ): ऐसा करते हैं कि अभी मैं जाकर जल्दी से अपने खरगोशों को चारा डाल देता हूँ और जब अँधेरा हो जाएगा तो मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा । शायद मैं एक साथ भी ले आऊँ । एक छोटा सा या, क्या कहते हो ?

युर्गन मलबे में छोटे-छोटे गड्ढे बना रहा था । केवल छोटे-छोटे खरगोश । सफेद, धूसर, सफेद-धूसर । मैं नहीं जानता, उसने धीरे से कहा और टेढ़ी टाँगों की ओर देखा, यदि वे सचमुच रात को सोते हैं ।

आदमी दीवारों के अवशेषों को लाँघकर सड़क पर पहुँच गया । अवश्य, उसने वहीं से कहा, तुम्हारे अध्यापक को यदि इतना भी नहीं पता तो उसे कोई दूसरा काम ढूँढ लेना चाहिए ।

युर्गन खड़ा हो गया और पूछा: क्या मुझे एक खरगोश मिल सकता है ? शायद एक सफेद रंग का ?

मैं कोशिश करूँगा, आदमी ने जाते-जाते ऊँची आवाज में कहा, लेकिन तुम तब तक यहीं मेरी प्रतीक्षा करना । पता है क्या, मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जाऊँगा । तुम्हारे पिता जी को बताना भी है ना कि खरगोशों के लिए घर कैसे बनाया जाता है । क्योंकि यह जानना तो तुम्हारे लिए जरूरी है ना ।

हाँ, युर्गन ने ऊँची आवाज में कहा, मैं प्रतीक्षा करूँगा । जब तक अँधेरा नहीं हो जाता तब तक मुझे यहाँ निगरानी भी तो करनी है ना । मैं अवश्य प्रतीक्षा करूँगा । और वह बोला: हमारे घर में फट्टे भी हैं । पेटियों के फट्टे, वह बोला ।

परन्तु ये शब्द आदमी को सुनाई नहीं पड़े । वह तो अपनी टेढ़ी टाँगों से सूरज की ओर भागता जा रहा था । शाम का सूरज लाल हो चुका था । युर्गन टाँगों के बीच से उस ढलते सूरज को साफ देख सकता था, इतनी टेढ़ी थीं वे । उत्तेजना से टोकरी इधर-उधर झूल रही थी । उसमें खरगोशों का चारा था । हरा चारा जो धूल से कुछ-कुछ धूसर सा हो गया था ।

रामचन्दर गुप्ता
सेवानिवृत्त असोशीएट प्रोफेसर
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय 
नई दिल्ली