डॉ.आलोक रंजन पांडेय

वैश्विक साहित्य में राम

राम भारतीय जन-जीवन में व्याप्त एक कालजयी चरित्र हैं,जिन्होंने संपूर्ण विश्व को अपने आदर्श एवं मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप से प्रभावित किया है।जिसमें सब रम जाएँ वहीं राम हैं। राम को शक्ति, शील एवं सौंदर्य का समन्वित रूप माना गया है।मानव जीवन में जीतने भी आदर्श पक्ष हो सकते हैं उनसब पर राम का चरित्र एक चरम प्रतिमान बन गया है।वे आदर्श पुत्र,आदर्श शिष्य, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श भाई, आदर्श स्वामी एवं आदर्श राजा हैं।लोकवादिता का जितना अवकाश रामकाव्य में है, अन्यत्र नहीं है। भग्वान के चौबीस अवतार कहे गए हैं। इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय राम और कृष्ण हैं। राम का जीवन केवल संघर्ष में गुजरा है। कृष्ण की राम-काव्य में नहीं है। राम-काव्य करुण रस का काव्य माना गया है। राम का चरित्र दुखी और असहाय जनता को अधिक सहानुभूति देता है।संघर्षमयता और मर्यादा रामकथा की विशिष्टता है। रामकथा पर अधारित काव्यों को अपूर्व लोकप्रियता प्राप्त हुई है। वाल्मीकि, भवभूति, तुलसीदास से लेकर निराला तक रामकथा के अमर गायक माने जाते हैं। इनके काव्योत्कर्ष मे रामकथा की संघर्ष-संकुलता, विवेक और मर्यादा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।वाल्मीकि से लेकर निराला रामकथा का जो चित्रण मिलता है उसमें एक बात समान है, वह है राम के जीवन की अविरल संघर्ष-परंपरा। इस अविरल संघर्ष-परंपरा में भी विवेक, लोक-मंगल और मर्यादा को बनाए रखने का जो आदर्श राम के चरित्र में मिलता है, वह वर्तमान जीवन के संदर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक है। इसलिए राम राम की कथा को ‘मंगल करनि कलि-मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की’ कहा गया है।

रामकथा की जड़ें बहुत गहराई से जमी हुई है और उसकी शाखाओं एवं प्रशाखाओं की व्याप्ति देश-देशांतर तक है। छोटे-मोटे साम्य-वैषम्य के साथ पूरे एशिया में उसकी पैठ है।पूरे एशियाई जनमानस पर इसका साम्राज्य है। दशकों पहले अपने शोध प्रबंध में फादर कामिल बुल्के ने साबित कर दिया है कि रामकथा केवल भारतीय कथा नहीं है वह अंतरराष्ट्रीय कथा है।रामकथा के इस विस्तार का फादर कामिल बुल्के आदिकवि ‘वाल्मीकि की दिग्विजय’ कहा करते थे। इस कथा की जड़ें ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में मिलती है,लेकिन यह वाचिक परंपरा में ही सीमित रह जाने के कारण अप्राप्य है। राम को ही बोधिसत्व मानकर रामकथा को जातक कथाओं में स्थान मिला है।वाल्मीकि से प्रेरित और प्रभावित होकर भारत की विभिन्न भाषाओं में रामकथा के रूपांतर मिलते हैं।इसकी स्पष्ट छाप देश-विदेश की साहित्यों में भी मिलती है।श्रीलंका,जावा,सुमात्रा,कंबोडिया की चित्रकला और मूर्तिकला पर रामकथा के दृष्टांत मिलते हैं। मारिशस में हमारे पूर्वजों को काले पानी की सजा मिली थी तो दिन भर जी तोड़ परिश्रम के बाद शाम को राम कथा ही राहत देती थी तथा हताशा और अवसाद से उबारती थी।रामायण उनके लिए दुख से निवारण करने वाला था। यही उनकी मानसिक खुराक थी,संजीवनी थी। मानसिक और आर्थिक साम्राज्यवाद से निपटने के लिए इसी संजीवनी कथा को पुनर्जीवित करने की जरूरत है और चर्चा-परिचर्चा के माध्यम से लोगों को मानस की देहरी पर राम नाम रूपी दीपक को प्रतिष्ठित करने की जरूरत है।

‘रामनाम मनि दीप धरु,जीह देहरी द्वार तुलसी भीतर बाहिरहुं,जौ चाहसि उजियार।’

उनके व्यक्तित्व के विविध पूर्ण आयाम को देखकर विश्व के हर भाषा के साहित्यकारों ने उनके चरित्र पर लेखनी चलाई है। मैथिलीशरण गुप्त ने उनको चरित्र के महाकाव्य माना है उन्होंने लिखा है कि-
‘राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काम है कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।’
कहने का आशय यह है कि राम का चरित्र न केवल महान काव्यात्मक गरिमा से ओतप्रोत है बल्कि उसमें युग युगांतर को प्रेरित और प्रभावित करने की सामग्री उपलब्ध है।राम के चरित्र से प्रभावित होकर न केवल देश की भाषाओं में अपितु विदेशी भाषाओं में भी साहित्य रचा गया है। इन भाषाओं में संस्कृत और हिंदी जैसी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त रूसी,जर्मनी, फ्रेंच, अंग्रेजी, मंदारिन,थाई,सिंघली आदि भाषाओं में भी राम साहित्य मिलता है। राम के चरित्र और व्यक्तित्व में भारतीय संस्कारों के ऐसे गुण और वैशिष्ट्य निहित है जिनके अध्ययन-अध्यापन से ना केवल युवा पीढ़ी का सर्वांगीण विकास किया जा सकता है, अपितु विश्व की तमाम समस्याओं का समुचित निदान भी किया जा सकता है।

उपर्युक्त बिंदुओं के ध्यान में रखकर रामानुजन महाविद्यालय ने 28-29 मार्च , 2022 को एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया था जिसका विषय “वैश्विक साहित्य में राम” था । दो दिनों में इस विषय के अंतर्गत विचारोतेजक बतचीत हुई। इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में राम-साहित्य के देश-विदेश के विशेषज्ञों के अतिरिक्त साहित्य के प्राध्यापक, समाज विज्ञानी और साहित्य के जागरूक प्रयोक्ता ने भी अपने विचारों से एक दूसरे को लाभान्वित किया। राम का विराट चरित्र सबको मोहित करता है।ऐसे विराट व्यक्तित्व पर विश्व की अनेक देशों में जो साहित्य रचा गया है उसमें राम के स्वरूप का किस प्रकार निर्वाचन हुआ है। इस पर इस संगोष्ठी में गंभीर विमर्श हुआ, और बहुत सारे विद्वानों ने अपने शोध-पत्र का वाचन भी किया। उन्हीं शोध-पत्रों में से कुछ चुने हुए शोधालेख को हम याहाँ लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हैं। बहुत सारे शोध-पत्रों को हम नहीं ले सके हैं,उसे हम पत्रिका के किसी आगामी अंक में शामिल करने की कोशिश करेंगे। आप सुधी पाठकों ने सदैव ‘सहचर ई-पत्रिका’ को आगे बढ़ाया है और मुझे पूरा विश्वास है कि यदि इस अंक में भी कुछ त्रुटि रह गई होगी तो आप हमें अवश्य बताएंगे, जिससे कि आगे के अंकों में हम सुधार कर सकें। इस अंक में ‘भगवान राम’पर शोधालेख तो हैं ही साथ ही और सारे कॉलम के भी सामग्री भी हैं। अगले अंक में हम फिर किसी नए विषय को लेकर आएंगे……………….

डॉ. आलोक रंजन पांडेय