श्रीराम की वैश्विक सत्ता है। राम का चरित्र मानवीय अस्मिता एवं स्वत्व-बोध से संपृक्त है। राम सौंदर्य के आगार, शील की प्रतिमा और शक्ति के प्रतीक है। राम मर्यादा पुरूषोत्तम है, परमसत्ता है, परमशक्ति है; साथ ही मानवीय मूल्यों के प्रतीक भी हैं। राम समता, न्याय, प्रेम, बन्धुत्व और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिष्ठापक है। वह करूणा-सिंधु और परम उदार राष्ट्र-सेवक है। त्याग, सेवा और उत्सर्ग के प्रतिरूप हैं; इसलिए राम वैष्विक अस्मिता प्राप्त व्यक्तित्व हैं। राम अहंरहित जनसत्ता, जनशक्ति और जनविजय के प्रति आस्थावान एवं प्रतिबद्ध नायक हैं।

सब मम प्रिय मम उपजाएं।

सबसे अधिक मनुज मोहि भाए।।

पारिवारिक-सामाजिक मूल्यों के साथ जनसंस्कृति के प्रतिष्ठापक हैं राम। श्रीराम दलित-अस्मिता और मानवीय-अस्मिता के अधिष्ठापक हैं। कोल्ह-भील, बानर-रीक्ष, पुरजन-गिरीजन और वनजन के प्रति आत्मीयता एवं राग के भाव से पूर्ण हैं राम। राम राष्ट्रप्रेमी के साथ मानव-प्रेमी हैं। राम सत्यनिष्ठ हैं और कर्मनिष्ठ भी।

   राम के चरित्र की उद्घाटिका एवं वैश्विक पहचान के काव्य कृतियाँ हैं- वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण, तुलसीकृत रामचरितमानस। वाल्मीकि रामायण में मानवीय तत्वों की प्रमुखता है, अध्यात्म रामायण में ईश्वरीय सत्ता की प्रतिष्ठा है और आनंदरामायण में भक्ति की अधिष्ठापना है। अद्भुत रामायण में सीता के माध्यम से आदिशक्ति-आदिमाया की परिकल्पना के साथ स्त्री-अस्मिता की प्रतिष्ठा हैं। रामचरित्रमानस में राम मर्यादा पुरूषोत्तम है; परमसत्ता हैं, रामराज्य के स्थापक-प्रतिष्ठापक भी हैं, जननायक और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिष्ठापक भी। (डॉ. जयकिषन प्रसाद खंडेमवाले, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा। पृष्ठ संख्या-32-33)। रामराज्य में सभी जन दीर्घायु, स्वाध्यायी और धर्मनिष्ठ होते हैं-

नाकाले म्रियते कष्चिन्न

व्याघि; प्राणिनां तथा।

नानार्थेविद्याते कष्चिद्

रामे राज्यं प्रषासति।।

-7, 99,13

मंत्री-शक्ति राजा की नियंत्रिका है-

  अमात्यै कामवृत्तो हि राजा

कापथमाश्रित।

मारीच वचन, 3/41/7

  निग्राहयः सर्वथा सद्भि स

निग्राहयो न गृह्यासे।।

3/4/7

वाल्मीकि रामायण में राजा को ही धर्म और पाप का मूल माना गया है-

राजा र्धमस्य कामष्च द्रव्याणां

चोतमोनिधिः।

धर्मः शुभम् व पापं

वा राजमूलं प्रवर्तते।

3/50/10

राम धर्मनिष्ठ हैं-

धर्मोहि परमो लोक धर्मे सत्य प्रतिष्ठितम्।

धर्म संश्रित मेतच्च पितृर्वचन मुक्तमम।।

वाल्मीकि रामायण भारत का राष्ट्रीय आदि काव्य है। धार्मिक और नैतिक आदर्शों का भंडार होने के साथ-साथ वह एक महत्वपूर्ण मानवीय समाजशास्त्र भी हैं जो सहस्त्रो शताब्दियों पूर्व के भारतीयों के जीवनयापन का रोचक वृतांत उपस्थित करता है। एक पूरातन युग की जीवित परंपराओं, धाराणाओं का मिश्रण करने के कारण वह प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति की एक बहुमूल्य निधि भी है। वह आज भी करोड़ों भारतीयों के धार्मिक विश्वास के साथ अविच्छिन्न रूप से गुँथी हुई है। वाल्मीकि हमारे राष्ट्रीय आदर्शों के आदि-विधाता हैं। धर्म और सत्यरूपी महावृक्षों के जो अमर बीज उन्होंने बोये, वे आज भी फलफूल रहे हैं (रामायण कालीन समाज, श्रीशांति  कुमार नानूराम व्यास, संस्कृत साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृष्ठ-73)।

बाल्मीकि धर्म-पालन से अर्थ-सुख की उत्पत्ति मानते हैं। धर्म से ही मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। उनके मत में धर्म ही जगत् का सार है-

धर्मादर्थ प्रभवति धर्मात् प्रभवते सुखम्।

धर्मेण लभ्यते सर्व धर्म सारमिंद जगत्।।

सीताराम दुःखी मुनिजन के रक्षक हैं-

मां सीते स्वयमागम्य शरण्याः शरणगताः।

वाल्मीकि रामायण में स्त्री-अस्मिता की प्रतिष्ठा एवं दाम्पत्य मूल्य की महत्ता का प्रतिपादन है –

भर्ता नाम परं नार्या शोभनम् भूषणादपि।

मातृत्व प्रेम को महत्व प्राप्त है रामायण में-

देषे देषे कलत्राणि देषे देषे च बांघवाः।

तं तु देषं न पष्चिामि यत्र भ्राता सहोदरः।।

रामराज्य में स्वकर्म से प्रजा तुष्ट है और धर्मपरायण हैं-

स्वकर्म प्रवर्तन्ते तुष्टा स्वैरर्व कर्मभिः।

आसन्प्रजा धर्म परा रामे शासित नानृता।।

श्रीराम भारतीय संस्कृति की समस्त विशिष्टताओं से युक्त हैं-

अनुरक्तः प्रजामिष्च प्रजाष्चाप्य´्रजते।

‘वाल्मीकि रामायण’ राम काव्य का मुख्य उपजीव्य है। वाल्मीकि के राम सबसे ध्वजा के समान और पिता आनंद वर्द्धक हैं-

तेषां केतुरिव ज्येष्ठो

रामो रतिकरः पितु।

लक्ष्मण लोकप्रिय राम के मानो दूसरे बाह्य प्राण सदृश हैं-

रामस्य लोकामस्य बहिः प्राण इवापरः।

वाल्मीकि के राम जैसे अमृत अग्निचक्र द्वारा सुरक्षित रहता है वैसे ही राम भी विश्वामित्र द्वारा सुरक्षित है।

गुप्तं कुषिकपुत्रण ज्वलेनामृतं यथा।

राम सर्वविद्या प्राप्त भगवान अंशुमाली हैं-

सहस्त्र रष्मिर्भगवान

                     शरदीव दिवाकरः।

राम सर्वजन के अभ्युदय की कामना करने वाले तथा संपूर्ण जीवों पर दयालु हैं-

वृद्धि कामो हि लोकस्य सर्वभूतानुकम्पक

मत्त प्रियतरो लोके पर्जन्य इव वृष्टिमान।।

राम कैकयी के प्राणप्रिय हैं-

न तु रामं बिना देहे तिष्ठेत्तु मम जीवितम्।

राम पितृभक्ति के प्रतिमान हैं-

न वनं गन्तु कामस्य लक्ष्यते चितविक्रिया।

कालिदास कृत रघुवंशम् में अनेकानेक नृपतियों की चमकती नक्षत्रमाला में राम तेजस्विता और गरिमा के प्रतिमान हैं। इसमें तपस्वी और गृहस्थ जीवन का समन्वय है, आश्रमों की परिकल्पना है। भवभूति संस्कृत साहित्य की विभूति हैं उनका ‘उत्तररामचरित’ नाटक संस्कृत का अत्यंत प्रसिद्ध नाटक है। जिसमें परितक्यता सीता की प्रेम-पीर और उनकी अनन्यता के साथ स्त्री-अस्मिता को प्रतिष्ठा प्राप्त है। इसमें दाम्पत्य जीवन की महत्ता का प्रतिपादन है-

  जड़ा नामपि चैतन्यं भवभूतरेभुद्

ग्रावाप्यरोदीत पार्वत्याः गिरा।

हसतेः स्मरतनावपि।।

  स्नपयति व हृदयेमं स्नेह

निष्यन्दिनी ते।

धवल बहलामुग्धा

दुग्धकुल्येव दृष्टिः।।

  अंतकरण तत्वस्य दाम्पत्यो स्नेहसंश्रयात्।

आन्नद ग्रन्थिरेककोऽयमपत्मं इति बध्यते।

दाम्पत्य आनंददायक हृदय का विश्राम है-

त्वं जीवितं त्वमसि

मे हृदयं द्वितीयं।

त्वम् कौमुदी नयनयोर मृतं त्वमड्.गे।

 उत्तररामचरित के राम लोकहित के लिए सीता के त्याग की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं-

स्नेहं दया च सौख्यम् च

यदि वा जानकीमपि।

आराधनाय लोकस्य मुच्चंतो

नास्ति में व्यथा।।

नाट्यकृतियाँ 142

अन्य प्रमुख रामकाव्य हैं-

पउमचरियम् (विमल सूरी), सियाचरियम् (भुवनतुंग सूरी), उत्तर पुराण (गुणभद्र), सीता कथानकम्, कथाकोषमर रामायण (हरिषेण), पउमचरउ (स्वयंभू), महापुरान (पुष्पदंत), प्रतिमा नाटक (राम वनगमन से रावण वध तक की कथा, भास), अभिषेक नाटक (बालि वध से राज्याभिषेक तक की कथा, भास), रावण वध, प्रवरसेन (राम-रावण युद्ध का वर्णन), (उदात्त राघव- अंनगहर्ष, वनवास से अयोध्या आगमन की कथा), जानकी हरण (कुमार दास), रामायण मंजरी क्षेमेन्द्र (रामायण की संक्षिप्त कथा), उदार राघव (साकल्यम), रघुनाथ चरित (वायन भट्टणवाण) अनंघ राघव (मुरारि), बालरामायण (राजशेखर), प्रसन्नराघव (जयदेव), उल्लास राघव (सोमेष्वर), राघव पाण्डवीय (धनंजय), राघव नैषधीय (हरिदत सूरि), राघव पाण्डव यादवीय (चिदंबर), रामरक्षा स्तोत्र (रामानंद), भरत मिलाप, अंगदपैज (ईष्वर दास), हनुमान चरित (सुन्दर दास), रावण मंदोदरी संवाद (मुनिलावण्य), रामचरित या रामरास, हनुमंत दास (ब्रह्मजिन दास), हनुमंतगामी कथा (ब्रह्मरामायण मल्ल), ध्यान मंजरी, अष्टयाम, राम भजन मंजरी (अग्रदास) आदि।

गोस्वामी तुलसीदास राम के चरित्र को मर्यादा पुरूषोत्तम के साथ परमसत्ता, जननायक और लोक सत्ता के प्रतिष्ठापक का नया आयाम प्रदान करते है। राम का अस्तित्व सृष्टिव्यापी और उनकी अस्मिता मानवीय भी है। मानस के प्रेम-सौंदर्य में उन्माद नहीं; उछाह है, काम नहीं, माधुर्य है। पंचवटी की शूर्पनखा के मादक कामुक और उच्श्रृंखल सौंदर्य का परिहार करते हें मानस में। तुलसी के राम का सौंदर्य, उनकी शक्ति और उनका शील चरित्र का प्रतिमान है और कल्याणकारी भी।

   मानस के राम लोकरंजक से अधिक लोक रक्षक हैं और उनका अभिप्रेत मूल्य एवं मानवधर्म की स्थापना है। मानस में पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृति और नैतिक मूल्यों को नया आयाम प्राप्त है। राम के व्यक्तित्व में समन्वय और समरसता विद्यमान हैं। रामचरितमानस भ्रातृत्व, मित्रता, गार्हस्थ्य मूल्य और मानवीय सरोकार का काव्य है। जाति, संप्रदाय क्षेत्र से परे निषाद, सुग्रीव विभीषण, हनुमान, शबरी के साथ राम की समतामूलक आत्मीय संबंध हैं। वह अहिल्या का उद्धार करते हैं और शबरी को प्रेमापूरित करते हैं। राम सहअस्तित्व, साहचर्य और सहकर्म के प्रतिरूप है। कोल्ह-झील, बानर, पुरजन, परिजन और गिरीजन की समन्वित सैन्य शक्ति से वह लंकाविजय करते हैं, सीता को मुक्त करते हैं, किंतु लंका की सत्ता त्यागपूर्ण विभीषण को सौंप देते हैं।

   मानस समन्वय का विराट् काव्य है। धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सौहार्द्र मानस में है। इसमें स्त्री-अस्मिता की प्रतिष्ठा है-

जनकसुता जग जननी जानकी।

अतिषय प्रिय करूणा निधान की।।

जगत जननी जग छवि निधि मूला।

वाम अंग सोभित अनुकूला।।

तुलसी के राम का संघर्ष आत्मसंघर्ष के साथ जन-संघर्ष का प्रतीक है, उनकी विजय जनविजय है, मूल्यों की प्रतिष्ठा का द्योतक है। राम का संघर्ष राष्ट्र की अस्मिता एवं स्वतंत्रता के लिए है- त्याग एवं समर्पण से पूर्ण निष्काम। राम जनप्रिय हैं और राष्ट्र उनका परम प्रिय है-

  अवधपुरी मम अति सुहावनी।

-उत्तरकांड

  अति मम प्रिय यहाँ के बासी।

-उत्तरकांड 474

मानस में जीवन का यथार्थ अंकित है। धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अवमूल्यन, आचरण की भ्रष्टता, भोगवादिता, धर्माडंबर की विद्रूपता, अनैतिकता का यथार्थ चित्रण है मानस में-

  पंडित सोई जो गाल बजावा।

-उत्तरकांड, पृष्ठ-20

  गुरू वही जो षिष्य धन हरई।

-वही पृष्ठ-20

परिवारिक एवं मानवीय मूल्यों के क्षरण की विकृति पर चोट है मानस में-

  कालिकाल बेहाल किए मनुजा।

कोइ मानत नहीं अनुजा तनुजा।।

-उत्तरकांड, पृष्ठ-23

  जो कह झूठ मसखरी जाना।

कलियुग सोइ गुणवंत बखाना।।

-वही पृष्ठ-24

मानस में मनुष्य और राक्षस के अंतर का उद्घाटन है-

  परद्रोही परदार रत परधन पर अपवाद।

ते नर पावर पापमय देह धरे मनुजाद।।

-वही पृष्ठ-25

  विप्र निराखर कुलिस कामी

अनाचार सठ वृषली स्वामी। वही पृष्ठ-25

धर्माडंबरपूर्ण भक्ति का निषेध और सहज भक्ति की स्वीकृति है मानस में-

नहिं कलिकर्म न भगति विवेकू।

रामनाम अबलंबन एकू।।

-बालकांड, पृष्ठ-82

मानस का रामराज्य समता, न्याय, बंधुत्व और स्वतंत्रता का प्रतिष्ठापक है। यहाँ जनगण का सम्मान है-

  नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।

नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।

-वही पृष्ठ-484

  सब नर करइ परस्पर प्रीती।

चलत स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।

-वही पृष्ठ-485

  तुम मम प्रिय भरत सम भ्राता।

सदा रहहु पुर आवत जाता।।

-वही पृष्ठ-484

  जो पांचऊ जन लागउ नीका।

करहुँ हरषि हिय रामहिं टीका।।

  जो अनीति कुछ भाखऊ भाई।

तो मोहि बरजेउ भय विसराई।।

-वही पृष्ठ-494

यहाँ स्त्री-स्वतंत्रता की वकालत है-

कतविधि सृजि नारी जग माही।

पराधीन सपने सुख नाहीं।।

-वही पृष्ठ-344

रामचरितमानस में सबकी अपनी अस्मिता और अस्तित्व-चेतना हैं। डॉ. फादर कामिल बुल्के राम को जनक्रांति के अग्रदूत और डॉ. राममनोहर लोहिया सांस्कृतिक पुरूष मानते हैं, वरान्निकोव की दृष्टि में राम मानवता के अधिष्ठाता हैं। वह उन्हें राष्ट्रीय एकता एवं समरसता का प्रतीक घोषित करते हैं। अन्य रामकाव्य हैं- रामचंद्रिका (आ. केशव), रामायण महानाटक (प्राणचंद चौहान), रामरासो, अध्यात्म रामायण (माधव दास चारण), हनुमन्नाटक (हृदय राम), पौरूषेय रामायण (नरहरिवापट), अवध विलास (लाल दास), रघुनाथ चरित, दषावतार चरित (परषुराम), रघुनाथ चरित (माधव दास जगन्नाथी), रामायण (कपूर चंद त्रिखा), साकेत (मैथिलीषरण गुप्त), भगवान राम (मनबोध लाल), अरूण रामायण (रामावतार अरूण), जानकी जीवन (आ. तुलसी), भूमिजा (रघुवीरशरण मित्र), जानकी जीवन (राजा राम), उर्मिला (पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन), कैकेयी (पं. केदारनाथ मिश्र प्रभात), विदेह (रघुवीर सिंह), पवन तनय (राजेन्द्र शर्मा), आंजनेय (दया शंकर विजय), इन राम काव्यों में राम को लोकनायकत्व और सीता को लोकनायिकत्व की गरिमा से मंडित किया गया है। सीता स्त्री-स्वतंत्रता की प्रतीक है। राम महाकव्य (हरदयालु सिंह), दशानन (कैलाश तिवारी), अग्निपथ (अनूप शर्मा), अन्तर्मन (उदयशंकर भट्ट), चित्रकूट (रामानंद शास्त्री), सौमित्र (रामेष्वर दयाल), शबरी, निषाद राज (डॉ. रत्नचंद्र शर्मा), अग्निपरीक्षा, रामराज्य (डॉ रत्नचंद्र शर्मा), मर्यादा पुरूषोत्तम (पं. सुमित्रानदन पंत) में राम लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिष्ठापक हैं। संषय की एक रात (नरेष मेहता) में राम आधुनिक मानव हैं। उत्तरायण (डॉ. राम कुमार), भरत (बाल्मीकि भट्ट), निष्कासिता (परमानंद), सीता समाधि (राजेष्वर अग्रवाल), वनवासिनी सीता (ज्ञानवती सक्सेना), स्वर पाषाण शिला के (रमेशचन्द्र) आदि आधुनिक रामकाव्य हैं। पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत ‘राम की शक्ति पूजा’ के राम अपराजेय शक्ति के प्रतीक है। अन्य भारतीय राम काव्य हैं- कृतिवासी रामायण (कृतिवास बंगला), कंबरामायण (कंब, तमिल), रंग रामायण (रंग, तेलुगू), भास्कर रामायण (भास्कर तेलुगू), भावार्थ रामायण (एकनाथ मराठी), रामायण, अर्द्ध रामायण, मंगल रामायण, सुंदर रामायण, संकेत रामायण (गिरीधर स्वामी, मराठी), पद रामायण (माधव कंदली, असमिया), गीति रामायण (शंकरदेव, असमिया), कथा रामायण (माधवदेव, असमिया), कीर्तनिया रामायण (अनंत कंदली, असमिया), गुजराती रामायण (कवि मालण, गुजराती) आदि।

   शंकरदेव कृत रामविजय नाटक है। उड़िया साहित्य के प्रथम प्रतिनिधि कवि सरलादास की कृति विलंका रामायण, रामविभा (अर्जुन दास), बलराम दास (रामायण), जगमोहन रामायण (बलराम दास), फकीर मोहन सेनापति (रामायण) उड़िया भाषा में रामकाव्य हैं।

   कन्नड़ भाषा में पंप रामायण की रचना नागचन्द्र करते हैं। रामचंद्र चरित पुराण भी इनकी कृति है। कुमार व्यास काल में कुमार वाल्मीकि तोरवे रामायण की रचना करते हैं। देवचंदर रामकथावतार जैन काव्य की रचना करते हैं। मुद्दन अद्भुत रामायण का लेखन करते हैं। कश्मीरी भाषा में प्रकाश राम रामायण की रचना करते हैं। दिवाकर प्रकरण भट्ट भी काश्मीरी रामायण लिखते हैं। गुजराती में भालण की कृति सीता स्वयंवर अथवा रामविवाह है। गिरिधर दास की आधुनिक रामकाव्य कृति रामायण है जो अत्यंत लोकप्रिय है।

   तमिल में कंब रामायण है, तेलुगू में मधुरवाणी की रघुनाथ रामायण; शीरभू की सुभद्रा रामायण; चेबरोलू सरस्वती की सरस्वती रामायण; मोल्ल की रामायण प्रसिद्ध एवं जनप्रिय हैं। तेलुगू की सर्वप्रथम कवयित्री आतुकुरी मोल्ला ‘मोल्ल रामायण’ रचती हैं। पंजाबी में गुरूगोविन्द सिंह गोविंद रामायण की रचना करते हैं। इसमें धर्मयुद्ध का वर्णन है।

   बंगला के संत कवि कृतिवास ‘रामायण पांचाली’ का लेखन करते हैं। यह अमरग्रंथ है और बंगला का जनकंठहार है। तिरूवनांकोर के राजा रामचरित का लेखन करते हैं। बंगाली में अन्य रामकाव्य हैं- आश्चर्य रामायण (नित्यानंद आचार्य), अंगद रायवार (कविचंद्र), रामरसायन (रघुनंदन गोस्वामी), रामायण कथा (चन्द्रावती), मलयालम में रामपणिक कृत कविष्ष है। इसके बाद की कृति रामकथा पाट्ट है। बाल्मीकि रामायण का अनुवाद केरल वर्मा रामायण है। सर्वाधिक लोकप्रिय वृति एजुतचन कृत ‘अध्यात्म रामायण’ है।

   महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में रावण वहो (रावण वध) की रचना कश्मीरी कवि प्रवरसेन करते हैं। इसका संस्कृत अनुवाद ‘सेतुबंध’ है।

   नेपाली भाषा में भानुभट्ट संपूर्ण रामायण की रचना करते हैं जो रामचरितमानस के समान लोकप्रिय है।

   प्रवासी कवियों द्वारा भी रामकाव्य की रचना की गई है। मारीशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम, गुयाना में राम कथा अत्यंत लोकप्रिय और सर्वमान्य है। फिजी में रामचरितमानस लोकप्रिय और प्रतिष्ठित है। लक्ष्मण दास राम कथा मर्मज्ञ हैं और रामलीला के आयोजक के रूप में सुख्यात हैं।

   इंडोनेशिया में रामायण सत्यता की शपथ का साक्ष्य है। यह ‘काकोविन रामायण’ के रूप सुख्यात है। यह धर्म, संस्कृति, जीवन-मूल्यों का अधिष्ठापक प्रतिमान है। चीन, तिब्बत, जापान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, लाओस, मलेशिया, कंबोडिया, श्रीलंका, फिलीपिन्स, म्यांमार, रूस आदि देशों में राम की इयत्ता एवं अस्मिता अंगीकृत एवं स्वीकृत है।

   श्रीराम के चरित्र से संबद्ध वैश्विक काव्य कृतियाँ हैं- होबत्सषु (12वीं शताब्दी जापान), दोरागाकू शताब्दी नाटक नृत्य शैली की रामकथा है। साम्बो ए. कोताबा (10वीं शताब्दी) में दशरथ एवं श्रवण कुमार का प्रसंग है। होबोत्सुषु में शाक्यमुनि के वनगमन का मूल रक्तपात को रोकना है, लक्ष्मण के वन-गमन का उल्लेख नहीं है, सीता के वनगमन की चर्चा है। सीताहरण में स्वर्ण मृग का प्रसंग नहीं है, अपितु रावण द्वारा योगी के रूप में राम का विश्वास जीतने का उल्लेख है। राम की अनुपस्थिति में रावण सीता का हरण करते हैं; रावण ड्रैगन सर्पराज है जो चीनी प्रभाव है। हनुमान शक्र इन्द्र है और वही सेतु-निर्माण करते हैं। कथा का अंत भी मूल कथा से भिन्न है।

   इंडोनेशिया में राम बालिके हिन्दू के लिए आधार है और जावा में सुमात्रा के मुस्लिम के लिए श्रद्धेय हैं। थाईलैंड में लव एवं कुश के प्रति श्रद्धा है। अजुधिया, लवपुरी जनकपुर महत्वपूर्ण नगरों की चर्चा है। थाईलैंड में रामकथा पर आधारित ग्रंथ है – रामकितेन (राम कीर्ति)।

म्यांमार में रामवस्तु में राम चरित्र का अंकन है, दूसरी कीर्ति महाराम (18वीं सदी) हैं। तीसरी कृति राम तोन्मयो (1904) है। अन्य ग्रंथ हैं राम ताज्यी, राम भगना, राम तात्यो, थिरी राम, मोन्तव राम, राम-लखन आदि। म्यांमार में 1767 ई0 से थमाप्वे नामक रामलीला खेली जाती है।

कम्बोडिया (कम्पूचिया) में रामकेर या रामकेति नामक महाकाव्य प्रसिद्ध है। यहाँ राम कथा सत्य एवं न्याय का प्रतीक है। दक्षिण पूर्व एशिया में अंगकोरवाट भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। यहाँ बुद्ध, शिव, विष्णु आदि की मूर्तिया विद्यमान है।

फिलिपिन्स में महारादिया लावना रामकथा है। राम मंदिरी, लक्ष्मण मंगलवर्न, सीता मंलाइला के रूप में स्वीकृत हैं। मलेशिया में मलयरामायण (1633 ई) प्रसिद्ध हैं। मुस्लिम भी अपने नाम के साथ राम, लक्ष्मण और सीता नाम जोड़ते हैं। हिकायत सेरीनाम मलयराम कथा है। इसमें सीता-त्याग तथा राम-सीता मिलन की कथा है।

   ‘लाओस’ में राम कथा संगीत, नृत्य चित्रकारी, स्थापत्य और साहित्य की धरोहर है। यहाँ राम कथा फालम (जातक काव्य), पोम्पचाक के रूप में है। राम बुद्ध भिक्षओं को राम कथा सुनाते हैं। तिब्बत में अनामक जातक, दशरथ जातक के रूप में स्थापित है। मंगोलिया में राम कथा राजा जीवन की कथा है, श्रीलंका में कुमार दास कृत जानकी हरण उल्लेखनीय है।

वारान्निकोव, ईचेलीषेव और फादर कामिन वुल्के राम कथा के प्रख्यात समीक्षक एवं चिंतक है। इन देशों के अतिरिक्त मारीशस , त्रिनिदाद, सूरीनाम, गुयाना आदि देशों में रामकथा मान्य एवं श्रद्धास्पद है।

 

सिद्धेश्वर काश्यप
हिन्दी सहप्राध्यापक
पी.जी. सेंटर, सहरसा