मैं नेता हूं मेरी कोई जाति नहीं होती और न ही मेरा कोई धर्म होता है फिर भी मंच पर जब चढ़ जाता हूं तो सबको बताता हूं कि मैं ओबीसी हूं,मैं हरिजन हूं,मैं ब्राह्मण हूं,मैं क्षत्रिय हूं,मैं हिंदू हूं, मैं मुस्लिम हूं,जबकि मैं नेता हूं मेरी कोई जाति नहीं होती मेरा कोई धर्म नहीं होता।।
मैं समाज या देश और लोगों का अच्छा और भला करने के स्थान पर वोट बैंक की राजनीति करता हूं,मैं लोगों को आपस में लड़वाता हूं,आपस में बांटता हूं क्यूंकि मैं नेता हूं वोट बैंक की राजनीति करता हूं,मैं नेता हूं मेरी कोई जाति नहीं होती मेरा कोई धर्म नही होता।।
वोट मांगूंगा कभी हरिजन बन कर,कभी ओबीसी बनकर,कभी हिंदू बनकर,कभी मुस्लिम बनकर क्यूंकि मैं नेता हूं मेरी कोई जाति नहीं होती,मेरा कोई धर्म नही होता।।
मैं वोट बैंक बनाने के लिए एससी-एसटी लाता हूं,रिजर्वेशन को बढ़ाने की वकालत करता हूं,फिर आपस में सबको लड़वाने के लिए और एससी,एसटी,ओबीसी का वोट पाने और खींचने के लिए उनका हमदर्द बन जाता हूं,परन्तु मैं देश,समाज और लोगों के लिए कुछ भी नही करना चाहता हूं क्यूंकि मैं नेता हूं मेरी कोई जाति मेरा कोई धर्म नही होता।।
कभी मैं बीजेपी का,कभी कांग्रेस का,कभी सपा का,कभी बसपा का,कभी आम आदमी पार्टी का तो कभी अन्य पार्टियों का नेता बन कर आता हूं,अगर मुझ जैसे नेता फंस गए तो एक दूसरे पर आरोप लगाता हूं,इसकी टोपी उसके सर पहनाता हूं क्यूंकि मैं नेता हूं मेरी कोई जाति मेरा कोई धर्म नही होता।।
कभी मैंने राजनीतिक पार्टियां बदली,कभी मैंने भरे मंच से सफेद झूठ बोला,कभी जुमले दिए झूठे,कभी लोगों से झूठी हमदर्दी दिखाई,कभी जनता के सामने झूठे आंसू बहाए,रोना रोया क्यूंकि मैं नेता हूं मेरी कोई जाति नहीं होती मेरा कोई धर्म नही होता।।
मैं सिर्फ देश को अंदर और बाहर दोनों तरफ से खोखला करके नरक बना देता हूं,कभी वोट बैंक के लिए हिंदू बन कर मुस्लिम से लड़वाता हूं,कभी मुस्लिम को हिंदू से लड़वाता हूं,अगर इसमें सफल न हुआ तो आपस में जातियों को लड़ाकर राजनीतिक उन्माद पैदा करता हूं क्यूंकि मैं नेता हूं मेरी कोई जाति मेरा कोई धर्म नहीं होती।।
मैं केवल सत्ता का सुख पाना चाहता हूं,सरकारी सुखों का उपभोग करना चाहता हूं,अपने स्वार्थ को देखते हुए गाता हूं सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा क्यूंकि मैं नेता हूं मेरी कोई जाति नहीं होती मेरा कोई धर्म नहीं होता।।
आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”