ग़ज़ल का इतिहास लगभग पंद्रह सौ वर्ष पुराना है। इन पंद्रह सौ वर्षों में ग़ज़ल विधा के अर्थ और स्वरूप में परिवर्तन हुआ है। अरबी भाषा में ग़ज़ल का अर्थ है “औरतों से या औरतों के विषय की बातें करना।”

हिंदी साहित्य कोश में ग़ज़ल का शाब्दिक अर्थ है “नारियों से प्रेम की बातें करना।”

मुहम्मद मुस्तफा खां मद्दाह द्वारा संपादित उर्दू-हिंदी शब्दकोश में ग़ज़ल का अर्थ दिया गया है “प्रेमिका से वार्तालाप, उर्दू फारसी कविता का एक प्रकार विशेष जिसमें प्राय: पांच से ग्यारह शेर होते हैं। और सभी शेर एक ही रदीफ और काफिये में होते है।”

हिंदी के विद्वान एवं प्रबुद्ध लोग, रचनाकार ग़ज़ल को अपने-अपने रूप में परिभाषित करते है। प्रसिद्ध स्वच्छंदतावादी कवि रामनरेश त्रिपाठी ग़ज़ल का अर्थ बताते हुए जवानी का हाल बयां करना माशूक की संगति और इश्क का जिक्र करते हुए लिखते है कि “ग़ज़ल में भिन्न-भिन्न भावों के शेर लाने का नियम रखा गया है। किसी शेर में आशिक अपनी मनोवेदना प्रकट करता है। जिसमें वह प्रसन्न हो। अर्थ यह है कि जिस बात के कहने से प्रेमी के प्रसन्न होने और कोई खास नतीजा मिलने की आस होती है। वही बातें ग़ज़ल में आती है।” प्रसिद्ध आलोचक डॉ नगेंद्र ग़ज़ल का स्थायी भाव प्रेम को ही मानते हैं। वे लिखते हैं कि “ग़ज़ल उर्दू की सर्वाधिक प्रसिद्ध और सरस विधा है। उसका स्थायी भाव प्रेम है। जिसमें रहस्यानुभूति, मस्ती, धार्मिक विद्रोह भावनाएं संचारी रूप से ओतप्रोत रहती है। विषय के अनुरूप उसका एक विशिष्ट काव्य रूप भी है। जो मतला, मक़ता, ग़िरह क़ाफिया या रदीफ़ में परिबद्ध रहता है।” एक अन्य ग़ज़लकार भवानी शंकर के अनुसार “गजल एक स्वतंत्र काव्य विधा है। इसमें कम से कम पाँच और अधिकतम ग्यारह शेर कहे जाते हैं।” उपर्युक्त परिभाषाओं से ग़ज़ल के शिल्प को केंद्र में रखकर भी अध्येताओं ने ग़ज़ल को परिभाषित किया है। फ़िराक़ गोरखपुरी ग़ज़ल के  शिल्प को ध्यान में रखकर गजल को असंबद्ध कविता कहा है। हिंदी के प्रसिद्ध कवि और ग़ज़लकार शमशेर बहादुर सिंह ने कहा है कि “ग़ज़ल एक लिरिक विधा है। जिसकी अपनी कुछ शर्ते हैं अपना प्रतीकवाद और जीवंत परंपरा है।”

इन विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि ग़ज़ल का अर्थ प्रेम के इर्द-गिर्द घूम कर ही सिमट कर रह जाना है।

यूं तो प्रेम एक अदृप्त भाव है जो हर सह्रदय के हृदय में उत्पन्न होता है और सार्वभौमिक और सार्वकालिक भाव है। मनुष्य के जीवन जगत में चाहे कितनी भी मुश्किलें हो या समाज के बंधन और बाधाएं प्रेम को रोकना चाहे लेकिन प्रेम का तंतु एक दूसरे हृदय से अटूट रूप से जुड़ा हुआ रहता है। प्रेम हिंदी गजल का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्योंकि कोई भी रचनाकार प्रेम की अनुभूति में मग्न हुए बिना अपने को संतुष्ट नहीं पा सकता है।

प्रेम और सौंदर्य हिंदी ग़ज़लकारों की रग-रग में बसा हुआ है। हिंदी ग़ज़लकारों की ग़ज़लों में प्रेम के जितने रूप, रंग और भाव भरे हुए हैं। वह अपने आप में बेजोड़ है। प्रेम मानवीय रूप का ऐसा भाव है। जो कि शाश्वत है और मानवता के साथ ही उत्पन्न हुआ है। आदिकाल से अनादि काल तक जब तक यह जीवन जगत रहेगा तब तक रहने वाला चिर सत्य है। हिंदी ग़ज़लों में प्रेम के प्रति एक ऐसा आकर्षण दिखाई पड़ता है। जिसके साथ एक प्रकार की लुका-छिपी चलती रहती है। ऐसा लगता है कि मानो कोई हमेशा आसपास है। वह बार-बार बुलाता है हंसाता है और रूलाता भी है। और अपने होने का एहसास भी कराता है परंतु दिखाई नहीं पड़ता। वह अदृश्य रूप में हर एक जगह साथ रहता है। यहां प्रेम की वह स्थिति देखी जा सकती है। जहां कोई पूरी तरह प्रेम में मग्न हो जाता है। और उसके मन मस्तिष्क पर कोई अपना इस तरह प्रभाव जमा लेता है कि वही हर तरफ दिखाई पड़ने लगता है। प्रेम जीवन का राग है जो हर ह्रदय में वीणा के तारों की तरह झंकृत हो उठता है। आधुनिक काल के प्रमुख हिंदी ग़ज़ल कार दुष्यंत कुमार ने प्रेम को इस प्रकार अभिव्यक्ति दी है-

“चांदनी छत पे चल रही होगी,

अब अकेली टहल रही होगी।

फिर मेरा जिक्र आ गया होगा,

वो बरफ-सी पिघल रही होगी।”

ग़ज़ल की यह विशेषता है कि वह लोगों के दिलों को प्रेम, विश्वास, भाईचारा और आनंद में मग्न कर देती है और नफरत के परिवेश को प्रेम से भर देती है। जीवन की जटिल समस्याओं ने जीवन में प्रेम की स्थितियों को कमजोर किया है। जहाँ प्रेम, उदात्तता, समर्पण, धैर्य, त्याग और गहरी संवेदना की माँग करता है। वहीं आज समाज में इन भावों का लोप हो चला है। अब कोई सच्चे प्यार का हाथ बढ़ाता है तो मानव हृदय प्रफुल्लित हो उठता है-

“बाद मुद्दत के वक्त आता है,

जब कोई प्यार से बुलाता है।

देखिए दिखते नहीं धागे,

फिर भी संबंध बुना जाता है।

प्यार मरहम है दोस्तों ऐसा,

जख्म हर कोई पूरा जाता है।”

प्रेम ह्रदय की सहज अभिव्यक्ति है। जो प्रत्येक इंसान को अपनी और आकर्षित करती है। प्रेम प्रत्येक रूप में अनायास ही उत्पन्न हो जाया करता है। कभी स्वाभाविक तौर पर तो कभी प्रकृति के माध्यम से-

“सुबह लगे यूँ प्यारा दिन,

जैसे नाम तुम्हारा दिन।”

प्रेम एक ऐसा जीव है जो अंधकारमय जीवन में भी प्रकाश का संचार कर जीवन ज्योति जगा देता है। सारे निराश और हताश हृदयों में जीवन का राग भर देता है।

“दिल में ऐसे उतर गया कोई,

जैसे अपने ही घर गया कोई।

मैं अमावस की रात था मुझमें,

दीप ही दीप धर गया कोई।”

प्रेम एक स्वतंत्र और सहज भाव है। यह स्वाभाविक तौर पर ही प्रकट होता है। और कहा भी जाता है कि प्रेम और विश्वास किसी में जबरदस्ती पैदा नहीं किया जा सकता है। प्रेम हर प्रकार के बंधनों को नकारता है-

“कायदो में न बांधना उसको,

प्रीति का व्याकरण नहीं होता।”

निःसंदेह ग़ज़ल का मूल तत्व प्रेम है। ग़ज़ल की उत्पत्ति ही प्रेम का परिणाम रही है। अपने विकास की अवस्था में भले ही ग़ज़ल ने अन्य प्रवृत्तियों को अपने में समाहित कर लिया हो फिर भी एक लंबे समय तक प्रेम और सौंदर्य से ही ग़ज़ल की पहचान बनी रही। आधुनिक हिंदी के ग़ज़लकारों ने भले ही जीवन के अन्य तत्वों को अपनी ग़ज़लों का वर्ण्य विषय बनाया हो। लेकिन प्रेम उनकी ग़ज़लों का आज भी प्रमुख विषय बना हुआ है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हिंदी ग़ज़ल जीवन की विविधता के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। वह समाज के सभी अंतर्विरोध को स्वर दे रही है और उसके पांव धरती पर टिके हुए है। वह काल्पनिक प्रवेश से अपने आप को ना जोड़कर धरातलीय रूप से पूर्णतः जुड़ चुकी है। वह यथार्थ की अभिव्यक्ति का एक माध्यम बन चुकी है।

संदर्भ ग्रंथ सूची:-

  1. सं. डॉ धीरेंद्र वर्मा, हिंदी साहित्य कोश, भाग-1 (पारिभाषिक शब्दावली), ज्ञानमंडल लिमिटेड वाराणसी।
  2. मोहम्मद मुस्तफा खां मद्दाह, उर्दू-हिंदी शब्दकोश,।
  3. डॉ नरेश, हिंदी ग़ज़ल दशा और दिशा।
  4. रामनरेश त्रिपाठी, उर्दू ज़बान का संक्षिप्त इतिहास।
  5. डॉ नगेंद्र, मुकदमा-ए-शेर ओ शायरी की भूमिका।
  6. भवानी शंकर, हिंदी ग़ज़ल ग़ज़लकारों की नजर में।
  7. दुष्यंत कुमार, सांये में धूप।
  8. रामकुमार कृषक, नीम की पत्तियां।
  9. सूर्यभानु गुप्त, एक हाथ की ताली।

10., सं. नित्यानंद तुषार, शिव ओम अंबर की चुनी हुई ग़ज़लें।

नवीन कुमार जोशी
शोधार्थी, हिंदी विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर