भारतीय समाज, साहित्य और संस्कृति में राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं| राम का शील चरित्र इतना लोकप्रिय है की भारतीय भाषाओं में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर एक विशाल साहित्य की रचना हुई है| आज के शोध-पत्र में पूर्वोत्तर भारत ( खासतौर से असमिया भाषा साहित्य के संदर्भ में )  के समाज, साहित्य एवं संस्कृति में राम की उपस्थति के बारे में संक्षेप में बात करेंगे|

आधुनिक भारतीय भाषा में सबसे पहले असमिया में 14वीं सदी में माधव कन्दली द्वारा सप्तकाण्ड रामायण की रचना हुई थी जो लगभग रामचरितमानस से डेढ़ सौ वर्ष पुरानी है| असम के श्रीमंत शंकरदेव अपना पहला गीत राम को समर्पित करते हैं.. मन मेरी राम चरणहि लागू..’ और अंतिम नाटक ‘राम-विजय’ राम को केंद्र में रखकर लिखते हैं| माधवदेव कृत ‘आदिकांड’ एवं श्रीमंत शंकरदेव कृत उत्तरकाण्ड’ असमिया रामकथा की महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं| असमिया रामकथा श्रृंखला में अनन्त कन्दलि के पाताखंड रामायण एवं जीवस्तुति रामायण, हरिहर विप्र के लवकुशर युद्ध, दुर्गावर कायस्थ के गीतिरामायण, अनन्त ठाकुर आता के श्रीराम कीर्तन, रघुनाथ महंत के अद्भुत रामायण एवं कथा रामायण, श्रीराम अता के अध्यात्म रामायण का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है| यह संस्कृत के वाल्मीकि रामायण का ही अनुवाद मात्र है परन्तु राम के माहात्म्य में थोड़ी सी भी कमी नहीं है| यहाँ राम लोक जीवन के केंद्र में हैं एवं सभी महत्वपूर्ण प्रसंगों में उनका जिक्र आता है| लिखित साहित्य के अलावा राम चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला, मुखौटा कला में भी स्थापित हैं|

 असम के ‘सत्र वैष्णव धर्म का प्रचार केंद्र रहा है जहाँ आज भी जन-जीवन सत्रों से जुड़ा हुआ है| असम में कुल 665 सत्र हैं, जिसमें 65 माजुली में ही स्थित है| यहाँ के सत्रों में कमलावारी सत्र, आउनीआती सत्र, सामगुरी सत्र, दक्षिणपाट सत्र, उत्तर कमलावारी सत्र, नेपाली सत्र, आधार सत्र आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है| असम में ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित है-‘माजुली-द्वीप, जो चारो तरफ से पानी से घिरा हुआ है| यह एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा ‘नदी-द्वीप’ है| माजुली का मुखौटा कला अपने आप में एक अनोखी कला है|

माजुली वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव द्वारा वैष्णव धर्म प्रचार का प्रमुख केंद्र भी है| श्रीमंत शंकरदेव ने असम के अनपढ़, अशिक्षित, रुढियों से ग्रसित जनता को वैष्णव धर्म को सहज, सरल रूप में समझाने के लिए ‘अंकिया नाट तथा ‘भाउना’ का प्रवर्तन किया था जिसमें ‘मुखौटा’ का प्रयोग किया गया था| उनका मानना था कि धर्म तत्वों को केवल नीति-सिद्धांतों में बंद रखकर नहीं बल्कि नृत्य, संगीत, नाटक, एकांकी, चित्रकला, हस्तकला आदि के माध्यम से ज्यादा लोगों तक पहुँचाया जा सकता है जिसमें वो काफी सफल भी हुए है|

मुखौटा-कला के लिए ‘सामागुरी-सत्र, एलेंगी सत्र, नरसिंह सत्र, हिडिमपुर सत्र प्रसिद्ध हैं जहाँ आज भी मुखौटा निर्माण कार्य जारी है| इस कार्य में सामगुरी सत्र के  गोस्वामी परिवार पिछले सौ वर्षों से अधिक समय से इस कार्य में लगे हुए हैं| सामागुरी सत्र गृहस्थ सत्रों में आता है, जहाँ शादी-विवाह कर अपने वंश को आगे बढ़ाते हैं और साथ ही इस कला को भी आगे बढाते हैं|

शंकरदेव ने राम के विराट चरित्र को अपने नाटक ‘राम-विजय’ में चित्रित किया है| शंकरदेव वैसे तो निर्गुण-निराकार कृष्ण भक्त थे परन्तु निर्गुण-निराकार की प्राप्ति के लिए सगुण-साकार का माध्यम चुना था| ‘राम-विजय’ नाटक में दशरथ के पुत्र राम का चित्रण किया है| राम यहाँ इश्वर, अंश अवतार, नारायण हैं| ‘राम-विजय’ नाटक  में राम ने भूमि का भार हरने के लिए राजा दशरथ के घर में श्रीराम के रूप में अवतार लिया है|

‘जे जगतक परम नारायण भुमिक भरा हरण निमित्त दशरथ गृहे अवतरल

                                            (देव गोस्वामी 1999 : 128)

असम कई जनजातियों की स्थल हैं  जिसमें खामति जनजाति प्रमुख हैं| यह जनजाति बौद्ध धर्मावलम्बी है| इनकी भाषा ‘टाई’ है| खामति रामायण जिसका नाम ‘लिक-चाऊ-लामाड.’ है इसकी पाण्डुलिपि 2 फुट 4 इंच और चौराई 1 फुट 8 इंच है जिसमें 306 पृष्ठ हैं यह आज भी भी असम के उत्तर लखीमपुर के अंतर्गत नारायणपुर के बरखामती गाँव में बौद्ध विहार में संरक्षित है| बौद्ध धर्म रामायणी परंपरा में रामचंद्र को स्वयं बुद्धदेव का अवतार माना गया है| यहाँ भी राम को एक अवतारी, शक्तिशाली,  संस्कारी, प्रजा हितैषी माना गया है| बाली-वध प्रसंग में राम/लामाड. कहते हैं-

‘दुष्टक दमन और संतक पालन कराई मोर धर्म’

(बरा 2001:113)

असम के अनेक जनजातियों में एक जनजाति है-‘कार्बी-जनजाति’| कार्बी रामायण ‘छाबिन आलुन’ में राम का चरित्र जनजातीय परिवेश तथा परिस्थिति में पारिवारिक तथा समाजिक रूप में प्रस्तुत किया गया है जहाँ राम अवतारी पुरुष नहीं हैं| यहाँ पात्रों का नाम बदल दिया गया है. लक्षमण का नाम लखन, सीता का छिनताकुरी, दशरथ का दहरम, हनुमान का उलिमान रखा गया है. कथावस्तु पूर्व रामायण परम्परा के अनुसार ही है|

असम के राम कथा में ‘कथा’ एवं ‘सप्तकाण्ड’ का जिक्र आता है जिसके लेखक हैं-विष्णुदास एवं माधव कन्दली| ये दोनों राजकवि थे, अपने आश्रयदाता के अनुरोध पर वाल्मीकि रामायण को जनभाषा में प्रस्तुत किया| ‘कथा’ में विष्णुदास राम को मुक्ति प्रद्यक मानते हैं-‘स्वामी भुक्ति मुक्ति दाता, प्रनऊ रामदेव अवतारु.(916) ‘सप्तकांड’ में श्रवण,कीर्तन एवं स्मरण के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहा गया है-‘आठरधर्म कलित नामत परे नाई.’

विवाह किसी भी समाज के लिए पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौहार होता है| असमिया समाज के लिए भी विवाह त्यौहार से कम नहीं है, असम में विवाह को ‘बिया या ‘बिबाह’ कहा जाता है| असमिया विवाह संस्कृति के प्रत्येक अंग में राम विशेष रूप से जुड़े हुए हैं| यहाँ विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले ‘गीत’ को ‘बियानाम कहा जाता है| यह गीत औरतें एकत्र होकर बिना वाद्य-यंत्र के विवाह के विभिन्न प्रसंग में गाती हैं| विवाह के दिन दुल्हा शिव या राम के प्रतिरूप दुल्हन पार्वती या सीता का पर्याय माना जाता है-

‘शिव गोंसाईं आहिछे डंबरू बाजी छे,

हेमबन्तर पदुलित कन्या भिक्षा मागिछे..’

सभी समाज के जीवन में हर्ष-विषाद, उत्साह-निरुत्साह, आशा -निराशा, कल्पना भरे होते हैं| सभी प्रसंगों को वह बड़े नायक के सन्दर्भ में जीते आ रहे हैं| असमिया लोक जीवन के नायक राम हैं जहाँ एक तरह माँ के गोद में ‘निसुकनि गीत(लोरी) में राम होते हैं वहीं जीवन के अंतिम क्षणों में ‘राम-राम’ नाम लेकर आँख मुंदने का काम करते हैं| निसुकनि गीत में शिशु मन को सहज आर्कर्षित करने वाले कुछ पंक्ति इस प्रकार हैं –

‘कलमौ पातरे नाव साजि ललो, इकरा पातरे बठा

अकल रामचन्द्रे कि जज्ञ पातिसे, लगत नाई सारथि सीता..’

(अर्थात  कमल के पात्तों से नौका बनवाई गई और इकरा पत्तों से पतवार, अकेले रामचंद्र क्या यज्ञ करेंगे जबकि सीता ही साथ में नहीं है)

       लोकजीवन में बारहमासा का विधान है| असम के बारहमासा में राम के वनवास से लेकर सीता हरण तक की कहानी है| जनता में राजा राम से बिछड़ने के बाद संसार अन्धकारमय दिख रहा है-

‘पुहर मासते राम बने कोइला सार.

अजोध्यार नर आसे राम देखिबार

अजोध्यार नर-नारी करे हाहाकार

राम प्रभु बिहे जगत अंधार”

असम के साहित्य-संसार में रामकथा विपुल मात्र में देखने को मिलती है| प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रसंगों में राम की उपस्थिति देखी जा सकती है| यहाँ कण-कण में राम व्याप्त हैं| माधवदेव एवं श्रीमंत शंकरदेव से लेकर जनजातीय साहित्य में राम आदर्श नायक के रूप में उपस्थित हुए हैं| असमिया समाज आज भी राम से अपनी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करते हैं|

सन्दर्भ ग्रन्थ-

  1. महाकवि शंकरदेव-डॉ.कृष्ण नारायण प्रसाद मागध
  2. भारतीय भाषाओँ में रामकथा-सं.डॉ. अनुशब्द
  3. असम के वैष्णव धर्म और साहित्य-डॉ. कनक चन्द्र
  4. असमर लोक साहित्यर रुपरेखा-महेश्वर नेउग
  5. कार्बी रामायण ‘छाबिन आलुन’-डॉ.देवेंचंद्र दास
अजय कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
सत्यवती कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय