सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी हिन्दी साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं, उन्होंने अपनी प्रत्येक रचना में अपनी नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा का परिचय दिया है। निराला जी का रचनाकाल सामान्यतः 1916 से 1960 तक का माना जाता है। अतः उनकी काव्य-कृतियों में स्वाभाविक ही विविध युगों की चर्चा उनकी साहित्यिक रचनाओं में रहस्यवादी, छायावादी, प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी रचना में भी विभाजित किया जा सकता है, किन्तु निराला जी छायावाद के प्रणेता हैं और छायावाद की सर्वाधिक मकान काव्यकृति ‘‘राम की शक्ति पूजा’’ में हम उनकी साहित्यिक मनोदृष्टि का परिविस्तार देख सकते हैं। उनका दृष्टिफलक मनीषी कवि तुलसीदास जी जैसा ही उदार, व्यापक और समाहार धर्मी है। निराला जी असाधारण थे और उनमें अतिमानवीय काव्य प्रतिभा थी। ‘‘राम की शक्ति पूजा’’ उनके सृजन-समुद्र का आलोक स्तम्भ है।
‘‘राम की शक्ति पूजा’’ एक लघु पौराणिक आख्यानक काव्य है। इस रचना का कथा प्रसंग मुख्यतः देवी भागवत पुराण, बंगाल की हत्तिवास रामायण पर आक्रान्त है। इसमें मिलते-जुलते प्रसंग हमें वाल्मिकी रामायण, कालिका पुराण और शिव महिमा स्त्रोत में भी है, जिसमें बंगाल में प्रसिद्ध राम-रावण युद्ध संबंधी कथा को काव्य रूप दिया है, जिसके अनुसार राम ने रावण के अद्भुत शौर्य से व्याकुल होकर विजय प्राप्त करने के लिए शक्ति की पूजा की थी। शास्त्रों या महान ग्रंथों से प्राप्त इस सामग्री को निराला जी ने अपनी अद्भुत प्रतिभा के बल पर इस मिथकीय कल्पनाओं और लोक धारणाओं के द्वारा इसे अत्यधिक सजीव एवं नाटकीय बना दिया है। निराला जी ने समूचे वृत्त को मिथकीय जादू से बांधने का मोहक और सशक्त प्रयत्न किया है। राम के द्वारा शक्ति की मौलिक कल्पना मिथकीय पुनर्रचना का श्रेष्ठ उदाहरण है।
निराला जी के पूर्व भी अनेक साहित्यकारों द्वारा इस कथानक को लेकर साहित्य रचना की गई थी, जिसमें संस्कृत साहित्य में वाल्मिकी कृत ‘रामायण’ और हिन्दी में तुलसीदास जी कृत ‘रामचरित मानस’ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वाल्मिकी जी और निराला जी की रचनाओं में जहाँ शब्द-साम्य है, वहाँ भाव-साम्य भी है। वह आकस्मिक हो सकता है, किन्तु एक बात तो तय है कि निराला जी के राम, तुलसीदास जी के राम की तरह न तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, न ही वह शेषशायी विष्णु के लीलावतारी हैं। तुलसीदास जी जहाँ राम को त्रिदेव वर्ग से ऊपर परमब्रह्मा के ही रूप में देखते हैं और वह उनका देवत्व कभी समाप्त नहीं होने देते। जहाँ राम के जीवन में निराशा के अवसर (जैसे कि लक्ष्मण का शक्तिबाण लगने से मूर्च्छित होना और राम का विलाप करना) आता है, ऐसे समय तुलसीदास जी स्वयं कथा के बीच उपस्थित होकर पाठक को आश्वस्त करने लगते हैं। तुलसीदास जी मर्यादावादी हैं और राम के प्रति उनकी भक्ति दास्य भाव की है। अतः वे प्रारंभ से अनंत तक इसी भाव का निर्वाह करते हैं।
निराला जी ऐसे पहले कवि हैं, जिन्होंने राम को धरती के मनुष्य का रूप देने की सार्थक चेष्टा की है। राम का पौराणिक कथा तथा अति प्राकृत संदर्भी से एकदम मुक्त नहीं किया है। निराला जी राम के भक्त थे, जिसका साक्ष्य हमें उनके द्वारा रचित प्रगीत (आराधना) में मिलता है, किन्तु उस अर्थ में नहीं, जिस अर्थ में तुलसीदास या मैथिलीशरण गुप्त लेते हैं, जिसका एक कारण यह भी हो सकता है। निराला जी लम्बे समय तक बंगला में रहे थे, वहाँ की शक्ति पूजा का उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। राम की शक्ति पूजा में भी राम एक तेजस्वी, किन्तु मानववर्गीय चरित्र के रूप में सामने आते हैं, जिन्हें शक्ति के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है। राम के मानवीय व्यक्तित्व को रेखांकित करने वाले प्रसंग ‘‘राम की शक्ति पूजा’’ में निराला जी कविता के प्रारम्भ में ही इस तरह करते हैं:-
‘‘है अमानिशा, उगलता गगन धन अंधकार,
खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन चार,
अप्रतिहत गरज रहा पीछे, अम्बुधि विशाल,
भूधर क्यों ध्यान मग्न, जलती केवल मशाल,
स्थिर राघवेन्द्र हो हिला रहा फिर-फिर संशय।’’
स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा …… संशय।

यह पंक्ति जिसके मन में बार-बार अपनी जीत को लेकर संशय होना, साधारण मनुष्य के रूप में रेखांकित करते हैं।
दिन भर के युद्ध के पश्चात् अपने शिविर की ओर लौटने का दृश्य जिसमें राम के तन-मन की दशा, विभीषण के प्रबोधन के पश्चात् भी उनका अप्रभावित रहना और उनका अश्रुपात करना आदि ये मानवेचित्त स्थितियों सीधे-सीधे केवल उन्हें मनुष्य के रूप में स्थापित करने सहायक होती हैं और शायद यही निराला का प्रयोजन भी था।
‘‘विच्छुरित विहिन राजीव नयन हत-लक्ष्य बाण,
राघव लाघव, रावण-वारण गत युग्म प्रहार,
अनिमेष-राम विश्वर्जिद्वित्येशर भंग-भाव,
बिन्दांग-बद्ध कोदण्ड, मुष्टि-स्वर रूधिर-स्त्राव।’’

शक्ति की पक्षधरता की बात करते हुए श्रीराम के नेत्रों में आंसू छलक आना, उनका कंठ भर जाना, कहीं न कहीं परमब्रह्मा से हटकर मानवीय रूप की चेष्टा की है।
‘‘अन्याय जिधर है, उधर शक्ति कहते छल-छल,
हो गये नयन, कुछ बूंद पुनः ढलके दृगजल,
देखा है महाशक्ति रावण को लिए अंक,
लांछन ले ले जैसे शशांक नभ में अशंका।’’

रावण के अन्याय और विजय को सोचकर राम का करुणाकुल हृदय का विचलित हो जाना और उनकी आँखों से आँसू की बूँदें गिराना। जीवन की पराजय और विवशता की ऐसी दैन्य स्थिति वाणी के मंदिर में अन्यत्र दिखाई नहीं देती। निराला जी और अवसाद के क्षणों में यकायक राम को जानकी की सुंदरता का स्मरण होना भी ठीक उसी तरह की साधारण मनुष्य भी दुःख या अवसाद के समय अपने समय की सुखद स्मृतियों को याद करता है।
‘‘ऐसे क्षण अंधकार, धन में जैसे विद्युत
जागी पृथ्वी जनय, कुमारिका छवि अच्युत
ग ग ग ग ग ग
देखते हुए निष्पलक याद आया उपवन
विदेह का नयनों का नयनों से गोपनीय प्रिय-संभाषण,
पलकों का नवपलकों पर प्रथमोत्थान पतन,
कॉंपते हुए किसलय, झरते पराग समुदाय
ज्योति प्रपात ज्ञात छवि प्रथम स्वीय,
जानकी-नयन-कमनीय प्रथम कंपन तुरीय।’’

‘राम की शक्ति पूजा’ में राम अपने चिन्तन में संपूर्ण युग का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे उन व्यक्तियों के प्रतीक हैं, जो बहिस्तर के संघर्षों से जूझते हुए अंत में विजयी होते हैं। यह संघर्ष और अंतर्द्वन्द्व केवल राम का न होकर, उस युग का न होकर, स्वयं निराला जी का भी है। राम के जीवन में निराशा के ऐसे क्षण आते हैं, जिसमें उन्हें कहना पड़ता है।
‘‘कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार
असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।
ग ग ग ग ग ग
कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर
बोले रघुमणि मित्रवर विजय होगी न, हो न समर।’’

जामवन्त के सुझाव पर राम का शक्ति की आराधना का प्रण लेना और इसे पूरा करने के लिए देवीदह से एक सौ आठ कमल लाने का प्रसंग आया है और शक्ति पूजा के बीच एक सौ आठ कमल में से अन्तिम कमल का सहसा लुप्त हो जाना, श्रीराम का यह कहना कि –
‘‘धिक् जीवन जो पाता ही आया विरोध,
धिक् साधन जिसके लिये सदा ही किया शोध,
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का न हो सका।’’

इन पंक्तियों में राम के बहाने निराला का आत्मप्रेषण भी हमें देखने को मिलता है, लेकिन इसका अर्थ कतई यह नहीं कि वह राम को साधारण मनुष्य की तरह हारकर चुपचाप बैठ जाना। राम जी का मन न चेतन स्तर पर, न ही अचेतन स्तर पर हार मानता है और वे लिखते हैं –
‘‘वह एक और मन रहा राम का जो न थका
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय
कर गया भेद मायावरण प्राप्त कर जय
बुद्धि के दुर्ग पहुंचा विद्युत गति हतचेतन
राम में जगी स्मृति, हुए सजग भाव प्रमन।’’

इसमें अर्जुन की तरह वह प्रतिज्ञा प्रतिध्वनित है, ‘न च दैन्य न पलायनम्।’ निराला जी राम के समस्त संघर्षी और अंतर्द्वन्द्वों के बीच विश्वासपूर्ण जयघोष का स्वर भी मुखर हो उठता है।
‘‘होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन
यह कह महाशक्ति रावण के बदन में हुई लीन।’’

अंत में ‘‘पुरुषोत्तम नवीन’’ कहकर निराला जी यह भी सिद्ध करते हैं। उनके राम साधारण मानवेचित प्रवृत्तियां लेते हुए भी पुरुषों में श्रेष्ठ पुरुष पुरुषोत्तम हैं, कहीं भी निराला जी मर्यादा को नहीं लांघते हैं। उनके राम साधारण होते हुए भी असाधारण हैं, वे लिखते हैं –
‘‘प्रशमित है वातावरण, नमित सुख सान्धय कमल
लक्ष्मण चिन्तावन, पीछे वानर-वीर सकल
रघुनायक आगे अवनी पर नवनीत चरण।’’

‘अवनी पर नवनीत चरण’ कहकर राम के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। श्री राम को ऑंसू असाधारण नहीं है, उनकी आंखों से दो बूंद अश्रु का गिरना, हनुमान जी को उद्वेलित कर सकता है।
‘‘ये अश्रु राम के आते ही मन में विचार,
उद्रेक हो उठा शक्ति-खेल सागर अपार,
हो श्वसित पवन-उनचास पिता पक्ष से तुमुल,
एकत्र वक्ष पर वहां वाष्प को उड़ा अतुल,
शत धूर्णावर्त, तरंग-भंग, उठते पहाड़,
जलराशि राशिजल पर चढ़ता खाता पछाड़।’’

शक्ति पूजा के समय एक सौ देवीदह से लाए एक सौ आठ कमल में से अन्तिम कमल का गायब हो जाना और इस अन्तिम कमल के स्थान पर राम को याद आना कि माता मुझे ‘राजीव-नयन’ कहती थी और राम का देवी को अपना एक नयन देने का दृढ़-निश्चय करना और समय ब्रह्माण्ड का कांपना राम को साधारण मानव से असाधारण बना देता है।
‘‘जिस क्षण बंध गया बेधने का दृग-दृढ़ निश्चय,
कॉंपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय,
साधु, साधु, साधक वीर, धर्म धन धन्य राम,
कह लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।’’

निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि निराला जी के राम साधारण मानवेचित प्रवृत्तियों के होते हुए भी असाधारण हैं। वे पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ पुरुषोत्तम नवीन हैं। यह निराला जी की मौलिक उद्भावना है, जिसमें उन्होंने राम को धरती के मनुष्य के देेने की सार्थक चेष्टा की है। राम का पौराणिक कथा तथा अति के रूप में कहीं भी प्राकृत संदर्भों से एकदम मुक्त नहीं किया।
निराला जी ने अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया है, वे साधारण होते हुए भी असाधारण हैं।

संदर्भ ग्रन्थ सूची
आधार ग्रन्थ:- राग-विराग, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।
संदर्भ ग्रन्थ:-
1. निराला की साहित्य साधना, डॉ. रामविलास शर्मा।
2. महाकवि निराला एक विश्लेषण, दुर्गाशंकर मिश्र।
3. निराला की दो लम्बी कविताएं, डॉ. जगदीशप्रसाद श्रीवास्तव।
4. राम की शक्ति पूजा की व्यवहारिक समीक्षा, सम्पादक डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित।
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डॉ. सरोज पाटिल
सहायक प्राध्यापक (हिन्दी)
शास. महाविद्यालय, आठनेर, जिला बैतूल (म.प्र.)