अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना या रहीम, एक मध्यकालीन कविसेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न था। वे एक ही साथ कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे। जन्म से एक मुसलमान होते हुए भी हिंदू जीवन के अंतर्मन में बैठकर रहीम ने जो मार्मिक तथ्य अंकित किये थे, उनकी विशाल हृदयता का परिचय देती हैं। हिंदू देवी-देवताओं, पर्वों, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का जहाँ भी उनके द्वारा उल्लेख किया गया है, पूरी जानकारी एवं ईमानदारी के साथ किया गया है। वे जीवनभर हिंदू जीवन को भारतीय जीवन का यथार्थ मानते रहे। रहीम ने काव्य में रामायणमहाभारतपुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को उदाहरण के लिए चुना है और लौकिक जीवनव्यवहार पक्ष को उसके द्वारा समझाने का प्रयत्न किया है, जो भारतीय संस्कृति की वर झलक को पेश करता है।रहीम के दोहे आज भी कई पुस्तकों में देख सकते है। रहीम की कृष्ण भक्ति और हिन्दू धर्म को समान देने पर रहीम को रहीम दास जी कहा जाने लगा। फिर रहीम दास जी की गिनती तुलसीदास और सूरदास जैसे कवियों में होने लगी। रहीम दास जी ने ज्योतिष पर अपनी दो पुस्तके भी लिखी जो काफी प्रसिद्ध है। उनका नाम कौतुकम और द्वाविष्ट योगावली है।

       रहीम में होनेवाले अच्छे कवि के नाते उन्होंने लिखि कई रचनाएँ और  दोहे  प्रसिद्ध है।

 .* बड़े बड़ाई ना करें बड़े न बोले बोल

  *. रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरो मोल।। 1.

    जो समाज मे प्रतिष्ठित है और स्वयं ही अपनी बढ़ाई करते है खुद के बारे में बड़ी बड़ी बाटे बोलते है बढ़ाई करते हैं वे वास्तव में बड़े नही होते क्योकि किसी बड़े को खुद को बड़ा कहने की आवश्यकता नहीं होती है। हीरा कभी कहता है क्या मैं लाख टके का हु। उसको परखने वाले तो जोहरी होते ही है।

समय पाय फल होत है समय पाय झरि जाए

सदा रहे नहिं एक सी का रहीम पछताए।। 2.

     वृक्ष को समय होते ही फल लगते हैं और समय आने पर ही वृक्ष की पतझड़ होती है। किसी की भी अवस्था कभी एक जैसी नही होती तो फिर पछताने का कोई मतलब नही।

  • रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय
  • सुनि  इठलैहै लोग सब बांटी ना लेहे कोय 3.

इसका मतलब है कि अपने दुख को मन के भीतर ही छिपा कर रखना चाहिए किसी और को अपना दुख सुनाने से कोई बांटने वाला नहीं है वह सुनकर और  खुश होगा

  • रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय
  • टूटे तो फिर ना छूटे जुटे गांठ पड़ जाए 4.

इस दोहा का अर्थ है की प्रेम का रिश्ता बहुत नाजुक होता है जिस तरह धागा टूट जाने के बाद जुड़ने के बाद उसमें गांठ पड़ जाता है उसी तरह प्रेम का रिश्ता भी अगर एक बार टूट जाता है तो दोबारा जोड़ने के बाद पहले जैसी मिठास नहीं रह जाती हैं

रिश्ते में दरार पड़ जाती है. इस तरह उनकी बहुत सारे दोहे हैं जो कि ज्ञानवर्धक है और हम लोग अपने निजी जीवन में भी उसे हमेशा बोलते रहते हैं प्रयोग करते रहते हैं.   *रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।

 *पानी गए न ऊबरै मोती मानुष चून।। 5.

रहीम का कहना है कि आपअपनी पत मतलब प्रतिष्ठा स्वयम रखिये एक बार अगर व्यक्ति की प्रतिष्ठा सम्मान चला जाता है तो फिर कुछ भी करने से नही आता। जैसे बून्द से गई वह हौद से नही आती।

 *चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेश

 *जा पर विपदा पड़त है सो आवत यह देश।। 6.

यह देश इतना अच्छा है कि जिस किसी पर विपदा याने संकट आता है वे इसी देश मे आते हैं और यह देश उन्हें सहायता करता है।

  • बिगरी बात बनै नहीं लाख करौ किन कोय
  • रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय।। 7.

  रहीम कहते है एक बार अगर बात बिगड़ जाती है तो वह फिर वह नही बनती जैसे फटे हुए दूध को कितना भी मथा जाय लेकिन उसका माखन नही बनता है इसलिए बात को बिगड़ने न दीजिये।

  • रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि
  • जहां काम आवे सुई कहा करे तलवारी।। 8.

     रहीम कहते है कोई बड़े लोग अगर आते है तो लोग छोटो की और ध्यान नही देते लेकिन हर एक का उसकी अपनी जगह पर महत्व होता है। कपड़े को सीने के लिए सुई की ही आवश्यकता होती है वहा तलवार का कोई महत्व नहीं होता है।रहीम जो भी दोहे कविताएं लिखते थे उनमें वह भारत के सामाजिक संस्कृति उन लोगों के जो भी आराध्य भगवान हैं हर संप्रदाय हर जाति के प्रति आधार का भावना रखकर सत्य निष्ठा के साथ रचना करते थेरहीम ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में ही कविता की है जो सरल, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। उनके काव्य में शृंगार, शांत तथा हास्य रस मिलते हैं तथा दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं। रहीम जनसाधारण में अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं।

वह अकबर के नवरत्नों में से एक थे अकबर उन्हें अपने पुत्र की तरह मानता था लेकिन अकबर के बाद जब जहांगीर बादशाह बनने वाले थे तब उनके और दरबारियों के तरह अब्दुल रहीम खानखाना भी जहांगीर को बादशाह बनााने के पक्ष में नहीं था

इन्हीं सब बातों के चलते जब अकबर की मृत्यु हो गई और जहांगीर बादशाह बन गए तब जहांगीर ने रहीम दास के दोनों बेटों को मरवा दिया और इसके बाद 1627 में अब्दुल रहीम की भी मौत हो गई

अब्दुल रहीम खान- ए- खाना  ने अपनी बेगम की याद में एक मकबरा बनवाया था जिसका नाम खान-ए-खाना  था जब रहीम का मृत्यु हुआ तो उन्हें इसी मकाबरे में दफनाया गया था.अब्दुल रहीम की मकबरा बनवाया गया जो कि दिल्ली में आज भी स्थित है.

संदर्भ ग्रंथ सूची

  1. रहीम  दोहावली
  2. रहीम दोहावली
  3. रहीम दोहावली
  4. रहीम दोहावली
  5. रहीम दोहावली
  6. हिंदी साहित्य का अतित भाग-2- आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र पृ.452
  7. रहीम दोहावली
  8. रहीम दोहावली

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डॉ. शिंदे मालती धौंडोपन्त
                            नारायणराव वाघमारे महाविद्यालय, आ.बालापुर
                             तालुका कलमनुरी जिला हिंगोली
                             महाराष्ट्र