गांधीजी के राम : एक सांस्कृतिक-विमर्श – डॉ. अरुणाकर पाण्डेय

रामनाम से गांधीजी का पहला परिचय उनकी धाय रंभा के कारण हुआ जिसने उन्हें बताया था कि भूतप्रेत का इलाज रामनाम है ।इस तरह देखें तो रामनाम का प्रभाव बचपन […]

तुलसी के राम सौंदर्य, शक्ति और शील के संगम – नदीम अहमद

गहराई से किए गए तुलसी काव्य के अवलोकन से यह चित्रित सत्य एकदम साफ हो जाता है कि तुलसी ने राम को चार रूपों में चित्रित किया है:- (1) निर्गुण […]

वर्तमान सांस्कृतिक संकट और राम कथा – डॉ. दीप्ति

समाज के अभिन्न अंग व्यक्ति के समग्र जीवन की पृथक-पृथक परिष्कृत एवं सुसंस्कृत गतिविधियों के समुच्चय रूप का नाम संस्कृति है। वर्ल्ड यूनिवर्सिटी एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार, “संस्कृति समाज विशेष की […]

राम के ‘निराला’ व निराला के ‘राम’ – राजन सिंह

राम  के  विराट  व्यक्तित्व  की  तरह  निराला  का  भी  व्यक्तित्व  विराट है। राम केवल एक चक्रवर्ती राजा के पुत्र ही नहीं वरन् उनका व्यक्तित्व एक प्रजापालक, मर्यादित, आदर्शवादी, नैतिकता की […]

मध्ययुग की असमीया साहित्य में राम – डॉ. नयनमणि बरुवा

भारत के विविध भाषा के साहित्य की भांति असमीया साहित्य भी प्राचीन इतिहास से समृद्ध है। असमीया साहित्य की इतिहास रचयिताओं ने इस इतिहास को मूल रूप से प्राचीन युग, […]

निराला साहित्य में राम – प्रतिभा

साहित्य के आदि चरित्र और भारतीय संस्कृति के प्रतीक पुरुष के रूप में राम प्रत्येक देश, काल व परिस्थिति में आदर्श नायक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। धर्म और अधर्म […]

भवभूति के राम – डॉ. पल्लवी भूदेव पाटील

भवभूति संस्कृत के श्रेष्ठ नाटककार हैं। कालिदास के नाटकों में समतुल्य भवभूती के नाटक माने जाते हैं। भवभूति विदर्भ के पद्मपूर नामक स्थान के निवासी थे। भवभूति ने भट्टश्रीकंठ पछलांछती […]

भक्ति कालीन साहित्य में राम – पार्वती

शोध सार – भक्ति परम्परा का विकास प्राचीनकाल से ही आरम्भ हो गया था। राम भक्त कवियों ने अपनी मधुर वाणी के द्वारा जनसाधारण के हृदय में राम भक्ति का […]

तुलसी साहित्य में राम – तिलकराज गर्ग 

तुलसी  साहित्य  में  केवल  रामकथाओं  एवं  रामस्तुति,  ही  प्रमुख  है।  सर्वाधिक प्रचलित  रामचरितमानस  के  अतिरिक्त तुलसी  साहित्य में  विनय  पत्रिका,  गीतावली  एवं  दोहावली  ही  जनसाधारण के  प्रचलन  में  है।  शेष  […]

सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा : कबीर और तुलसी के -पिंकी कुमारी

‘रमंति इति रामः’; जो रोम रोम में रम रहा है और समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त है; वही राम है। अमरकोश में ‘राम का एक अर्थ मनोज्ञ: भी किया गया है’[1] […]